- सरकार के प्रयासों और आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की फसल अवशेष प्रबंधन योजनाएं पूरे देश में पराली की समस्या से निपटने की बजाय दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या के इर्द-गिर्द ही हैं।
- केंद्र सरकार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को पराली के प्रभावी प्रबंधन के लिए 2018 से 2023 में 3,062 रुपये से अधिक जारी किए। इसमें से लगभग आधी राशि अकेले पंजाब को आवंटित की गई है। हालाँकि, मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार से ऐसी कोई सहायता नहीं मिली।
- मध्य प्रदेश में साल 2020 में पराली जलाने के 49,459 मामले देखे गए, जबकि पंजाब में उसी वर्ष 92,922 मामले दर्ज किए गए और तभी से मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामलों में पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर बना हुआ है।
मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर आता है, यह बात प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। लेकिन इसके साथ ही मध्य प्रदेश अब फसल अवशेषों को जलाने के मामले में भी दूसरे स्थान पर आ चूका है। इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकांश प्रयास पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक ही सीमित हैं, क्योंकि इन राज्यों में जलाई गयी पराली से दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) प्रभावित होता है।
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पंजाब, पिछले कुछ वर्षों में, पराली जलाने के बढ़ते मामलों की वजह से सुर्खिओं में रहा है। पंजाब की इस समस्या पर इतना ध्यान दिए जाने की वजह देश की राजधानी दिल्ली बढ़ता वायु प्रदूषण रहा है, ना कि पराली जलाने के हानिकारक प्रभाव।
अब जब केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकांश प्रयास पंजाब में पराली जलाने के मामलों से निपटने पर केंद्रित हैं, तभी मध्य प्रदेश धीरे-धीरे पराली जलाने के मामलों में दुसरे पायदान पर पहुँच चूका है।
सरकार के प्रयासों और आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की फसल अवशेष प्रबंधन योजनाएं पूरे देश में पराली की समस्या से निपटने की बजाय दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या के इर्द-गिर्द ही हैं।
दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए, केंद्र सरकार द्वारा साल 2018-19 से पराली के प्रबंधन के लिए कृषि मशीनीकरण को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चलाई जा रही है। यह योजना पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली को उनके फसल अवशेषों से निपटने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारों को पराली के प्रभावी प्रबंधन के लिए पांच साल की अवधि (2018-19 से 2022-23 तक) में 3,062 रुपये से अधिक जारी किए। इसमें से लगभग आधी राशि अकेले पंजाब को आवंटित की गई है।
हालांकि, मध्य प्रदेश को केंद्र सरकार से ऐसी कोई सहायता नहीं मिली।
मध्य प्रदेश में साल 2020 में पराली जलाने के 49,459 मामले देखे गए, जबकि पंजाब में उसी वर्ष 92,922 मामले दर्ज किए गए और तभी से मध्य प्रदेश पराली जलाने के मामलों में पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर बना हुआ है।
वर्ष 2020 और 2021 में, हरियाणा में पराली जलाने के क्रमशः 9,350 मामले और 6,987 मामले देखे गए और राज्य को पराली की समस्या से निपटने के लिए 2018 और 2022 के दौरान केंद्र से 693 करोड़ रुपये प्राप्त हुए।
मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं साल 2002 में 454 से लगभग 10 गुना बढ़कर साल 2016 में 64% की औसत वार्षिक दर से बढ़कर 4,359 हो गई। राज्य में ये घटनाएं साल 2016 में 4,359 से बढ़कर साल 2020 में 49,459 तक पहुंच गईं।
मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं खरीफ की फसल के सीजन (अक्टूबर से दिसंबर) की तुलना में रबी के सीजन (मार्च से मई) में अधिक थीं।
फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के मध्य प्रदेश के प्रयासों के बारे में बात करते हुए कृषि अभियांत्रिकी निदेशालय के निदेशक राजीव चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र को एक प्रस्ताव भेजा था लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली, इसलिए राज्य ने कृषि यंत्रों को बढ़ावा देने के लिए अपनी योजना शुरू की।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने केन्द्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर से साल 2021 में एक मुलाकात के दौरान प्रदेश को केंद्र द्वारा संचालित योजना में शामिल किये जाने की माँग की थी।
कृषि के क्षेत्र में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर चुके जीवविज्ञानी दीपक आचार्य ने कहा कि चूंकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से दिल्ली प्रभावित होती है, इसलिए सरकार इस पर त्वरित प्रतिक्रिया देती है। उन्होंने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश की हवा की दिशा और मौसम की स्थिति और राज्य में एक प्रमुख मेट्रो शहर की अनुपस्थिति के कारण, लोगों को इस बढ़ती समस्या का प्रभाव महसूस नहीं होता है।
“MODIS (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडोमीटर) और VIIRS (विजिबल इंफ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सुइट) अग्नि डेटा पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, पिछले कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आग की संख्या बिंदु (VIIRS) लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे पता चलता है कि इस अवधि के दौरान कृषि आग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है,” डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर सत्यम वर्मा ने कहा।
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वर्मा ने मध्य प्रदेश में पराली जलाने के बढ़ते मामलों पर एक पेपर लिखा है। उन्होंने कहा, “वर्तमान में, पराली जलाने के मामले में मध्य प्रदेश पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर है और मध्य प्रदेश और पंजाब के बीच का अंतर बहुत तेजी से कम हो रहा है।”
उपायों की घोषणा लेकिन लागू करने में कोताही
मध्य प्रदेश में वायु प्रदूषण और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पर पराली जलाने के प्रभाव का कोई लक्षित अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन राज्य सरकार ने अपने आदेशों में स्वीकार किया है कि पराली जलाने से एक्यूआई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
सरकार ने 2017 की अपनी अधिसूचना में कहा, “यह देखा गया है कि फसलों की कटाई के बाद खुले खेतों में बचे हुए भूसे/स्टबल को अंधाधुंध जलाने से पूरे मध्य प्रदेश राज्य में व्यापक वायु प्रदूषण फैल रहा है जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो रही हैं।”
अधिसूचना में पराली जलाने पर किसानों पर जुर्माने के प्रावधान भी बताए गए हैं। राज्य सरकार हर साल पराली जलाने वाले व्यक्ति पर 2,500 रुपये से 15,000 रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश लेकर आती है। जुर्माना राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारित किया गया है और पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी लगाया जाता है। हालाँकि, तीन अन्य राज्यों के विपरीत, मध्य प्रदेश सरकार ने गंभीरता से जुर्माना नहीं लगाया है।
जबलपुर स्थित संगठन नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के समन्वयक मनीष शर्मा ने कहा, “मध्य प्रदेश सरकार ने दंड के निर्देश जारी किए और जिला कलेक्टरों को अपने-अपने जिले में पराली जलाने पर निगरानी करने और मामले दर्ज करने के लिए भी कहा गया, लेकिन कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।”
किसानों में जागरूकता और पराली प्रबंधन
साल 2019 में उच्चतम न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों को आदेश दिया कि किसानों को दंडित करना पराली जलाने का समाधान नहीं हो सकता है, और सरकारों को किसानों को बुनियादी सुविधाओं देने के साथ और जागरूकता कार्यक्रमों की सहायता लेनी चाहिए।
पंजाब पराली की समस्या से निपटने के लिए कुछ वर्षों से जागरूकता अभियान चला रहा है और इसके कुछ परिणाम भी आए हैं। लेकिन, मध्य प्रदेश के किसानों ने पराली जलाने के खिलाफ सरकारी अधिसूचनाओं की खबरों के अलावा ऐसा कोई अभियान नहीं देखा है।
“वर्ष 2015 में एनजीटी के सेंट्रल जोन ने मध्य प्रदेश सरकार को जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने को कहा था। उस समय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुछ काम शुरू किया था लेकिन उसके बाद कुछ नहीं किया गया,” शर्मा ने कहा।
वर्मा ने पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों और टिकाऊ विकल्पों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता के बारे में किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने की वकालत की। उनका मानना है कि किसानों को पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं, जो कृषि अवशेषों को जलाने के दुष्चक्र से मुक्ति दिलाती हो, को अपनाने के लिए प्रेरित बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने सुझाव दिया, “सरकार कुशल अवशेष प्रबंधन की सुविधा प्रदान करने वाली आधुनिक मशीनरी और प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।” वर्मा ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश सरकार फसल अवशेष प्रबंधन में उपयोग की जाने वाली कृषि मशीनरी पर 50% सब्सिडी दे रही है।
उन्होंने कहा, “हालांकि, पराली जलाने की बढ़ती घटनाओं और चावल और गेहूं के उत्पादन में निरंतर वृद्धि ने इस क्षेत्र में और अधिक गहन प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित किया है।”
बढ़ते उत्पादन का असर पराली की समस्या पर पड़ सकता है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, कटाई के बाद खेतों में अधिक फसल अवशेष बच सकते हैं, जिनमें चावल और गेहूं की पराली भी शामिल हैं।
वर्मा ने कहा, “अगर ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया, तो ये फसल अवशेष पराली जलाने की घटनाओं का संभावित स्रोत बन जाते हैं। इसलिए, फसल अवशेषों की बढ़ती मात्रा को संभालने और जलाने की प्रथाओं पर निर्भरता को कम करने के लिए प्रभावी फसल अवशेष प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण हो जाता है।”
बैनर तस्वीरः पराली जलाने के मामले में मध्य प्रदेश पंजाब के बाद दूसरे स्थान पर है और मध्य प्रदेश और पंजाब के बीच का अंतर बहुत तेजी से कम हो रहा है। तस्वीर– नील पाल्मर (सीआईएटी)/ विकिमीडिया कॉमन्स