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[वीडियो] पराली से बायोगैस बनाना वायु प्रदूषण से निपटने का उम्दा विकल्प, लेकिन सामने हैं कई बाधाएं

काम पर एक बेलर मशीन। पीईडीए के अनुसार, पंजाब में 42 नियोजित सीबीजी संयंत्रों में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल करके हर दिन 495 टन सीबीजी का उत्पादन किया जाएगा। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

काम पर एक बेलर मशीन। पीईडीए के अनुसार, पंजाब में 42 नियोजित सीबीजी संयंत्रों में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल करके हर दिन 495 टन सीबीजी का उत्पादन किया जाएगा। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

  • बायो-सीएनजी तकनीक पुआल या पराली जलाने से जुड़ी समस्याओं से निपटने में मदद करती है। साथ ही, यह तकनीक स्वदेशी ईंधन और जैविक उर्वरक के उत्पादन को संभव बनाती है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर इस अवधारणा को अपनाने में बहुत सारी बाधाएं हैं।
  • धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच में थोड़े समय के दौरान धान की पराली को इकट्ठा करना महंगा और चुनौतियों वाला काम है।
  • बहुत ज्यादा सब्सिडी वाला रासायनिक उर्वरक उद्योग सीबीजी उप-उत्पाद यानी फर्मेंट किए गए जैविक खाद के रास्ते में रोड़ा है, जो इस उभरते उद्योग से होने वाली कमाई को कम कर रहा है।

साल 2022 में नवंबर के शुरुआती दिनों की एक शाम। पंजाब के संगरूर जिले की ये शाम पिछले कई सालों के मुकाबले बहुत अलग थी। आसमान साफ था। हवा में ठंडक नहीं थी। और इन नज़ारों में बाधा बनने वाली धुंध भी वातावरण से गायब थी। दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में धुंध और जहरीली हवा के लिए कुख्यात पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में उस साल 30% की कमी आई थी। साल 2022 में दिल्ली में दैनिक PM2.5 स्तरों में खेत की आग का अधिकतम योगदान 34% था। वहीं साल 2021 में यह आंकड़ा 48% था।

पंजाब में संगरूर गेहूं-चावल की व्यापक खेती का केंद्र है। यह मुख्यमंत्री भगवंत मान का गृह क्षेत्र भी है। साथ ही, खेतों में पराली जलाने के मामलों में सबसे ऊपर है। लेकिन जून में, जिले में बायो-सीएनजी या कम्प्रैस्ड बायोगैस (सीबीजी) का उत्पादन करने के उद्देश्य से यहां एक इनोवेशन शुरू हुआ। यह ऐसी तकनीक है जो खेतों में बचे फसलों के अवशेषों को बहुत ज्यादा सघन मीथेन में बदलती है। यह धरती के नीचे से निकाली जाने वाली कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) की जगह ले सकती है। साल 2022 के जून महीने में, भारत का सबसे बड़ा और पराली पर आधारित एकमात्र सीबीजी संयंत्र संगरूर में शुरू हुआ था। यह संयंत्र सालाना 1.10 लाख टन पराली के फीडस्टॉक से प्रतिदिन 33 टन सीबीजी और 600 टन जैविक खाद का उत्पादन कर सकता है। जर्मन कंपनी वर्बियो ने जिले के लेहरा गागा ब्लॉक में 20 एकड़ जमीन पर 2.3 करोड़ रुपये की लागत से ये संयंत्र लगाया है।

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वैसे भारत अपने कच्चे तेल की जरूरत का 85% आयात करता है। इस तरह, वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। वहीं, आईआईटी गुवाहाटी के एक अध्ययन में कहा गया है कि इसमें 80,000 टन प्रति दिन (टीपीडी) सीबीजी का उत्पादन करने की क्षमता है, जो परिवहन में डीजल के मौजूदा इस्तेमाल को आधा कर सकता है। हालांकि, अध्ययन में कहा गया है कि देश में फिलहाल सीबीजी क्षमता का केवल 0.5% ही इस्तेमाल में आ रहा है। साल 2015 से प्रौद्योगिकी में सुधार पर काम कर रहे आईआईटी दिल्ली के राम चंद्र ने कहा, “सीबीजी एक सर्कुलर तकनीक है जहां खेती का उप-उत्पाद ईंधन के लिए इनपुट बन जाता है और फिर इसका उप-उत्पाद मिट्टी को पोषण देता है।” कई जानकारों का कहना है कि अन्य नवीन ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले, सीबीजी का उत्पादन हमेशा किया जा सकता है। साथ ही, सौर और पवन ऊर्जा उद्योग की तुलना में यहां ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिलता है।

खेत में धान की फसल की कटाई करता एक किसान। पंजाब का संगरूर जिला राज्य में गेहूं-चावल की व्यापक खेती के लिए जाना जाता है। फसलों के अवशिष्ट हटाने के लिए उन्हें खेतों में जलाया जाता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
खेत में धान की फसल की कटाई करता एक किसान। पंजाब का संगरूर जिला राज्य में गेहूं-चावल की व्यापक खेती के लिए जाना जाता है। फसलों के अवशिष्ट हटाने के लिए उन्हें खेतों में जलाया जाता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पीईडीए/PEDA) का कहना है कि पंजाब में 42 और सीबीजी संयंत्र लगाने की योजना बनाई गई है।  इनसे 495 टीपीडी सीबीजी का उत्पादन होगा। इनमें सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल होगा। पंजाब में हर साल 1.9 करोड़ टन पराली का उत्पादन होता है।  इसलिए फीडस्टॉक की कोई कमी नहीं है। पीईडीए के अनुसार, ऐसी 250 और परियोजनाओं की संभावना है। पेडा के निदेशक एमपी सिंह ने कहा, राज्य सरकार पंजीकरण शुल्क नहीं लेने, जमीन खरीदने पर स्टांप शुल्क और बिजली शुल्क पर छूट जैसे प्रोत्साहन दे रही है। वे उन कंपनियों को लंबी अवधि के पट्टे पर पंचायत की जमीन भी दे रहे हैं जो जमीन नहीं खरीदना चाहते हैं। अपने समर्पित सीबीजी कार्यक्रम, किफायती परिवहन के लिए टिकाऊ विकल्प (एसएटीएटी) के तहत, केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय प्रत्येक 4.8 टीपीडी संयंत्र के लिए चार करोड़ रुपये की सब्सिडी देता है।

इसके बावजूद, राज्य में सीबीजी परियोजनाओं की प्रगति धीमी है। अब तक महज एक संयंत्र ही चालू हो पाया है। इसकी वजह पूंजीगत लागत का बहुत ज्यादा होना, पराली को इकट्ठा करने और उसे ले जाने की चुनौतियां और कमप्रेस्ड जैविक खाद (एफओएम) की बिक्री शामिल हैं। फाजिल्का जिले में बायोगैस आधारित बिजली संयंत्र संपूर्ण एग्री वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक संजीव नागपाल ने कहा, “सीबीजी उद्योग तभी प्रगति कर सकता है जब संतुलित फसल पोषण के विचार को बढ़ावा दिया जाए।”

क्या है सीबीजी?

सीबीजी बायोगैस का बेहतर संस्करण है। इसका इस्तेमाल भारत के कई हिस्सों में खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। इसे अलग-अलग फीडस्टॉक जैसे उपज के अवशेष, गाय के गोबर, गन्ना कारखानों से निकलने वाली मिट्टी और बायोडिग्रेडेबल कचरे से बनाया जा सकता है। सीबीजी बनाने के लिए सबसे पहले कटाई के बाद पराली को सूखने के लिए खेत में फैला दिया जाता है। इस प्रक्रिया को टेडरिंग कहा जाता है। फिर इसे इकट्ठा करके 450 किलो की गांठें बनाई जाती हैं। वर्बियो के संयंत्र प्रमुख पंकज जैन ने कहा, “गांठों को प्री-ट्रीटमेंट एरिया में डाला जाता है, जहां पराली को काटा जाता है और माइक्रोबियल ब्रेकडाउन के लिए पानी और गाय के गोबर के साथ मिलाया जाता है।” फिर इस मिश्रण को मुख्य डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है। यह एक महीने के लिए एनरोबिक स्थितियों में फर्मेंट होता है। उत्पादित बायोगैस को डाइजेस्टर के ऊपर एकत्र किया जाता है और गैस सफाई क्षेत्र तक पहुंचाया जाता है। 95% मीथेन में अपग्रेड की गई गैस को सिलेंडरों में कमप्रेस्ड किया जाता है। फिर सीएनजी स्टेशनों पर वाहनों में भरा जाता है। वहीं, बचे हुए घोल का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जा सकता है।

कटाई के बाद पराली खेत में सूखने के लिए छोड़ दी जाती है। इस प्रक्रिया को टेडरिंग कहा जाता है। सभी तस्वीरें- रवलीन कौर/मोंगाबे।फिर पराली को जमा करके 450 किलो की गांठें बनाई जाती हैं।फिर गांठों को प्री-ट्रीटमेंट एरिया में डाला जाता है। यहां पराली को काटा जाता है और माइक्रोबियल ब्रेकडाउन के लिए पानी और गाय के गोबर के साथ मिलाया जाता है।फिर मिश्रण को डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है, जो एक महीने तक एनरोबिक स्थितियों में फर्मेंट होता। इससे कच्ची बायोगैस और जैविक खाद का उत्पादन करता है।उत्पादित बायोगैस को डाइजेस्टर के ऊपर जमा किया जाता है और गैस सफाई क्षेत्र में पहुंचाया जाता है।

पीईएस रिन्यूएबल्स प्राइवेट लिमिटेड के योगेश सहगल ने कहा, “सीएफए को 2021 में बंद कर दिया गया था। इसे नवंबर 2022 में फिर से शुरू किया गया था। कंपनी की पंजाब में नौ सीबीजी संयंत्र लगाने की योजना है।” नई तकनीक वाले बिजनेस में आने के लिए उद्यमियों को सब्सिडी की जरूरत होती है। बैंक, सीबीजी संयंत्रों के लिए ऋण पैकेज की पेशकश करते हैं, लेकिन वे कोलेटरल की आवश्यकता जैसी शर्तों को बदलते रहते हैं।

एक तरह से देखें तो सीबीजी का उत्पादन बाजार में सीएनजी की मांग से भी जुड़ा हुआ है। नाम न छापने की शर्त पर आईओसीएल के एक अधिकारी ने बताया कि पंजाब में 11 सीएनजी आउटलेट हैं। फिलहाल पेट्रोल और सीएनजी की कीमतों में कोई खास अंतर नहीं है। इसलिए उपभोक्ता की तरफ से मांग उतनी नहीं है। सरकार को सार्वजनिक बसों को डीजल से सीबीजी में बदलना चाहिए। साथ ही उन जिलों में जहां वाहन ज्यादा सीबीजी का इस्तेमाल करते हैं और जैविक खाद का इस्तेमाल भी बहुत होता है, उन जिलों को मॉडल के रूप में विकसित करना चाहिए। तभी ऐसी साफ-सुथरी प्रौद्योगिकियों को मुख्यधारा में लाया जा सकेगा।

पराली से सीबीजी बनाने की क्षमता

भारत में पराली का उत्पादन: 16 करोड़ टन
धान की उपज में पराली का अनुपात: 1:1.5
एक टन सीबीजी के लिए: 8-9 टन पराली
1 टन पराली से FOM का उत्पादन: 1.75 टन

छोटी अवधि की चुनौती

रणधीर सिंह वर्बियो संयंत्र से दो किलोमीटर दूर खाई गांव के किसान हैं। सात साल पहले उन्होंने अपने दो एकड़ खेत में पराली जलाना बंद कर दिया थालेकिन 2022 में उनके पास कोई विकल्प नहीं था।

साल 2021 में, उन्होंने ट्रायल रन अवधि के दौरान वर्बियो को अपनी पराली दी। रणधीर ने कहा, मैंने 2022 में भी पंजीकरण कराया था। उन्होंने ढेर बनाने के लिए रैकर भेजे, लेकिन उसके बाद कोई नहीं आया। ” “मैंने उन्हें बुलाया, लेकिन जब वे नहीं आए तो मुझे उसमें आग लगानी पड़ी।” उन्होंने कहा कि इससे उनका काफी समय और पैसा बर्बाद हुआ।

अक्टूबर से लेकर आधे नवंबर के बीच 15-20 दिन की अवधि के दौरान धान की कटाई होती है। इसी दौरान रबी गेहूं भी बोया जाता है। यह समय किसान और सीबीजी कंपनियों दोनों के लिए अहम है। सीबीजी कंपनियों को इस अवधि के दौरान पूरे साल के लिए अपना फीडस्टॉक इकट्ठा करना होता है।

धान की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से की जाती है। यह तभी बेहतर ढंग से काम करता है जब फसल में थोड़ी नमी बनी रहे। नहीं तो मशीन से दाने टूट जाते हैं। इसका मतलब है कि बचे हुए भूसे में अभी भी नमी है। किसान इस पराली को या तो जला देता है या मिट्टी में मिला देता है।

पंजाब के एक खेत में जलती पराली। तस्वीर-रवलीन कौर/मोंगाबे।
पंजाब के एक खेत में जलती पराली। तस्वीर-रवलीन कौर/मोंगाबे।

सीबीजी कंपनियों के लिए जरूरी है कि किसान पराली काटने के लिए रीपर मशीन का इस्तेमाल करें। इसके बाद वे इसकी जिम्मेदारी लेते हैं। इस प्रक्रिया में चार मशीनें, टेडरिंग उपकरण, एक रेकर, एक बेलर और एक लोडिंग ट्रॉली शामिल होती हैं। पुआल को सूखने के लिए खेत में फैलाने के एक सप्ताह बाद गांठें बनाई जाती है। वर्बियो के फील्ड सुपरवाइज़र पुष्पिंदर सिंह ने कहा, “सूखी पराली बहुत जरूरी है क्योंकि गीले भूसे की गांठें अंदर से सड़ने लगती हैं और मीथेन वायुमंडल में चली जाती है।” “पिछले साल, नमी के चलते हमारी तीन हजार गांठें बर्बाद हो गईं।”

हालांकि, किसी किसान के लिए एक सप्ताह का वक्त बहुत लंबा होता है। वर्बियो साइट से एक किमी दूर बसे गांव खंडेवाल के किसान बलकार सिंह ने कहा, “पराली को सुखाने का मतलब है कि नीचे की जमीन भी सूख रही हैऔर कोई भी पूरी तरह से सूखी मिट्टी में गेहूं नहीं बो सकता है।” एक बार जब वे पराली ले लेंगे, तो हमें खेत में फिर से सिंचाई करनी होगी और गेहूं की बुआई के लिए मिट्टी में नमी बनाने के लिए 15 दिन और इंतजार करना होगा। इसलिए, पानी की कमी वाले इस क्षेत्र में सिंचाई की अतिरिक्त लागत के साथ-साथ तीन-चार सप्ताह समय का नुकसान होता है, इसलिए अधिकांश किसानों के लिए यह व्यवस्था काम की नहीं है।

जगशील सिंह ने कहा, “कंपनियां उन खेतों में जाती हैं जहां जोत बड़ी है। लेकिन छोटे किसानों के लिए, आग लगाना ही एकमात्र विकल्प है क्योंकि वे न तो महंगी मल्चिंग मशीनें खरीद सकते हैं और न ही कंपनी उनसे पराली उठाती है।”  उन्होंने इस सीजन में अपने दो एकड़ वाले पट्टे के खेत में पराली जला दी थी। पुष्पिंदर ने कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि छोटे खेतों में कभी-कभी मशीनों को अंदर ले जाने के लिए पर्याप्त रास्ता नहीं होता है।

ट्रेडिंग मशीन। किसानों से पुआल लेने की प्रक्रिया के दौरान सीबीजी कंपनियां चार मशीनों - टेडर, रेकर, बेलर और लोडिंग ट्रॉली का इस्तेमाल करती हैं। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
ट्रेडिंग मशीन। किसानों से पुआल लेने की प्रक्रिया के दौरान सीबीजी कंपनियां चार मशीनों – टेडर, रेकर, बेलर और लोडिंग ट्रॉली का इस्तेमाल करती हैं। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

वर्बियो इंडिया के प्रबंध निदेशक आशीष कुमार ने कहा कि एक टन भूसे को इकट्ठा करने, परिवहन और भंडारण करने की लागत 3000 रुपये है। “ये सभी मशीनें आयात की गई हैं और इनसे केवल पांच-छह साल ही काम लिया जा सकता है।”

अब एग्रीगेटर सामने आ रहे हैं। खन्ना में 12 टीपीडी वाले संयंत्र फार्म गैस के निदेशक करण कौशल ने कहा, “पंजाब में बहुत कम एग्रीगेटर हैंऔर पराली की मांग बढ़ रही है। फसल के समय वे हमें 1,500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति टन पर बेच रहे थे, लेकिन अब हमें 3000 रुपये की बढ़ी हुई दर पर खरीदना पड़ सकता है।

एवर एनवायरो इंडिया लिमिटेड के आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के प्रमुख दिनेश नागपाल कहते हैं, 2022 में, राज्य सरकार ने पराली जलाने पर कोई जुर्माना नहीं लगायापंजाब में यह कंपनी 11 सीबीजी संयंत्र लगाने की योजना पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे उनके लिए चीजें मुश्किल हो गईं। उन्होंने कहा, ”पहले सरकार पराली जलाने वाले किसानों की जमीन के कागजात पर लाल निशान लगा देती थी।” “इससे डरकर, वे हमें अपने खेतों से पराली इकट्ठा करने के लिए पैसे भी देते थे। साल 2022 में सरकार ने सभी नियमों में ढील दे दी।

खाद के लिए नहीं है बाजार

किसी सीबीजी संयंत्र के राजस्व का 20-25% एफओएम से आता है। अक्टूबर 2022 में वर्बियो संयंत्र का उद्घाटन करते हुए, भगवंत मान ने घोषणा की कि संयंत्र से उत्पादित खाद 2,150 एकड़ कृषि भूमि को उर्वर बनाएगी। SATAT ने 2023 तक सीबीजी संयंत्रों से पांच करोड़ टन खाद के उत्पादन की परिकल्पना की है। उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित) (नियंत्रण) आदेश, 1985, जिसे आमतौर पर एफसीओ  कहा जाता है, को सीबीजी संयंत्र से एफओएम  और बायो-स्लरी को शामिल करने के लिए 2021 में संशोधित किया गया था। मई 2022 में, रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने उर्वरक कंपनियों को एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन योजना के तहत सीबीजी संयंत्रों से अनिवार्य रूप से एफओएम लेने का आदेश जारी किया।

इस आदेश के बावजूद वर्बियो के परिसर में बीस हजार टन एफओएम पड़ा हुआ है, जिसे बेचा नहीं जा सका। उर्वरक कंपनी कृषक भारत सहकारी लिमिटेड (कृभको) के वरिष्ठ राज्य विपणन प्रबंधक जेएस बराड़ ने कहा, “सीबीजी संयंत्रों से खाद खरीदना अनिवार्य है, लेकिन हम इसे तब तक नहीं ले सकते जब तक कि पंजाब कृषि विभाग उन्हें लाइसेंस जारी नहीं करता है।”

वर्बियो सीबीजी संयंत्र में फर्मेंट की गई जैविक खाद का ढेर। किसी सीबीजी संयंत्र के राजस्व का 20-25% एफओएम से आता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
वर्बियो सीबीजी संयंत्र में फर्मेंट की गई जैविक खाद का ढेर। किसी सीबीजी संयंत्र के राजस्व का 20-25% एफओएम से आता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

वर्बियो के आशीष कहते हैं, ”जब तक एफओएम मुद्दा हल नहीं हो जाता, पंजाब में संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध कंपनियां सामने नहीं आएंगी।सीबीजी प्रक्रिया में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रत्येक टन पराली के लिए, एफओएम की दोगुनी मात्रा का उत्पादन होता है।  इसकी 75% सामग्री में नमी होती है।

जैविक खाद के रूप में इसकी गुणवत्ता पर्यावरण चक्र को विनियमित करने में मदद कर सकती है। इसके बावजूद, पंजाब इसके सबसे बेहतरीन उपयोग में बाधा डालने वाली दिक्कतों को दूर नहीं कर पाया है। इसकी गुणवत्ता को रेखांकित करते हुए, डॉ. राम चंद्र, अपने 2017 के पेपर में कहते हैं कि एफओएम फैलाना पुआल को सीधी सड़ाने से बेहतर है।

एफओएम की मार्केटिंग के लिए सीबीजी कंपनियों को तीन चीजों की जरूरत है। उन्हें एफसीओ विनिर्देशों को पूरा करने, राज्य के कृषि विभाग से लाइसेंस प्राप्त करने और पीएयू, लुधियाना से अलग-अलग फसलों के लिए खाद की खुराक के बारे में सुझाव प्राप्त करने की जरूरत है। पीएयू अपने अनुसंधान क्षेत्रों में खाद का परीक्षण कर रहा है। पीएयू के अनुसंधान निदेशक एएस धट्ट ने कहा, “हम एक-दो फसल सीज़न के बाद ही नतीजे साझा कर पाएंगे, यानी कम से कम दो साल।”

वर्बियो की खाद दो मापदंडों पर एफसीओ द्वारा परिभाषित एफओएम शर्तों को पूरा नहीं करती है: नमी और कार्बन से नाइट्रोजन (सी:एन/C: N) अनुपात। बहुत ज्यादा सी:एन अनुपात का मतलब है कि खाद अच्छी तरह से विघटित नहीं हुआ है। कम सी:एन अनुपात प्राप्त करने के लिए कार्बन और नाइट्रोजन युक्त सामग्री को संतुलित किया जाना चाहिए। हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के जीवी रामाजनेयुलु ने कहा, “पराली में नमी वाले पदार्थ के चलते सी:एन अनुपात बढ़ता है।”

रामाजनेयुलु ने कहा, अच्छी तरह से विघटित खाद दो-तान महीनों में अपने पोषक तत्वों से फायदा देने लगेगीलेकिन जो अच्छी तरह से फर्मेंट नहीं पाती है उसे छह महीने तक का समय लग सकता है। गोबर, रसोई के कचरे या हरे बायोमास को जोड़ने से सी:एन अनुपात को समायोजित किया जा सकता है। ”

कुमार ने कहा, नाइट्रोजन प्रोटीन से आता है और पराली में प्रोटीन नहीं होता है। कृषि अवशेष आधारित सीबीजी संयंत्रों में, जब तक हम खाद को समृद्ध नहीं करते, हम एफसीओ का सी:एन अनुपात कभी भी ठीक नहीं हो सकता। इसलिए, या तो इस पहलू को शामिल करने के लिए एफसीओ का विस्तार किया जाना चाहिए या कृषि-अवशेष-आधारित सीबीजी संयंत्रों से एफओएम की एक नई श्रेणी शुरू की जानी चाहिए।” वह कहते हैं, “कृषि विभाग हमें तब तक लाइसेंस नहीं देगा जब तक हम शर्तों को पूरा नहीं करते।”


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पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक गुरविंदर सिंह ने कहा कि वे लाइसेंस दे सकते हैं, लेकिन जब तक पीएयू खाद की मात्रा की सिफारिश नहीं करता, एफओएम बाजार में प्रवेश नहीं कर पाएगा। “भले ही किसान इसका उपयोग करता हो, एफओएम अन्य सभी उर्वरकों की जगह नहीं ले सकता, तो किसान अपनी लागत क्यों बढ़ाएगा।”

कुमार को लगता है कि सरकार की हीला-हवाली के लिए मजबूत रासायनिक उर्वरक लॉबी का दबाव जिम्मेदार है। उन्होंने आगे कहा, जो खाद बाजार में बेची जा रही है, उसकी मात्रा बाजार में बिक रही लाखों टन रासायनिक उर्वरक की तुलना में काफी छोटी है। लेकिन अगर सरकार वास्तव में जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहती है और इस पर रासायनिक उर्वरकों के बराबर सब्सिडी देती है, तो भविष्य में इसका बाजार बड़ा हो सकता है। इस साल के बजट में सरकार ने रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

संगरूर के रामगढ़ गांव के किसान जुगराज सिंह ने कहा,जब हरित क्रांति आई, तो ऊपज बढ़ाने के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने हमें मुफ्त यूरिया और डीएपी दिया। आज कोई भी किसान जैविक खाद जरूर खरीदेगा, अगर वे रासायनिक खाद जैसी कीमतों पर उपलब्ध होती हैं। लेकिन, यह उन्हें सघन रासायनिक खेती की आदत से मुक्ति दिलाएगा और पंजाब को बचाएगा।” 

 

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बैनर तस्वीर: काम पर एक बेलर मशीन। पीईडीए के अनुसार, पंजाब में 42 नियोजित सीबीजी संयंत्रों में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल करके हर दिन 495 टन सीबीजी का उत्पादन किया जाएगा। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

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