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[वीडियो] लद्दाखः भारत के सबसे ऊंचे मौसम केंद्र से ग्राउंड रिपोर्ट, चुनौतियों से भरा है पल-पल बदलते मौसम का पूर्वानुमान

लद्दाख की राजधानी लेह स्थित मौसम केंद्र। यह केंद्र समुद्र तल से 11,562 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

लद्दाख की राजधानी लेह स्थित मौसम केंद्र। यह केंद्र समुद्र तल से 11,562 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

  • लेह का मौसम विज्ञान केंद्र देश में सबसे अधिक ऊंचाई यानी समुद्र तल से 3,524 मीटर (11,562 फ़ीट) ऊपर स्थित है।
  • दिसंबर 2020 में स्थापित हुए इस केंद्र से जलवायु संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है जिससे किसानों के अलावा हाइवे पर ट्रैफिक नियंत्रण के लिए मौसम की जानकारी और फ्लैश फ्लड से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
  • लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी पर नजर रखने के लिए इस मौसम केंद्र से मिले आंकड़ें काफी महत्वपूर्ण हैं। इससे लंबे वक्त में हिमालय में हो रहे मौसम में बदलावों का अध्ययन किया जा सकता है।

मौसम विज्ञानी अभय सिंह हवा की दिशा और रफ्तार, बादलों की स्थिति का आकलन कर रहे हैं। किसी भी मौसम केंद्र के लिए यह एक आम दिनचर्या है, लेकिन सिंह जिस मौसम केंद्र पर यह काम कर रहे हैं उसकी ऊंचाई इसे खास बनाती है। यह मौसम केंद्र समुद्र तल से 11,562 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मौसम केंद्र है केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह में। इसे देश के सबसे ऊंचे मौसम केंद्र के नाम से भी जाना जाता है। मोंगाबे-हिन्दी की टीम ने जुलाई के महीने में इस केंद्र का दौरा किया। 

हिमालय के जटिल पहाड़ी भू-भाग में स्थित इस मौसम केंद्र पर यहां की चुनौतीपूर्ण जलवायु का लेखा-जोखा रखने की जिम्मेदारी है। यहां किसी भी वक्त मौसम करवट ले सकता है और शांत सा दिखने वाला मौसम पल में ही बर्फीले तूफान का रूप ले सकता है। 

मौसम पर बारीक नजर रखने के लिए सिंह की दिनचर्या सुबह 5.30 बजे से शुरू हो जाती है। इसके बाद हर तीन घंटे में वह मौसम का जायज़ा लेने केंद्र के बगल में खुले मैदान में लगी मशीनों के बीच जाते हैं। यहां एक स्वचलित मौसम केंद्र भी है जो आंकड़े इकट्ठा कर 24 घंटे जानकारी भेजता रहता है।

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जटिल हिमालय क्षेत्र की मौसमी घटनाओं पर नजर रखने के लिए 29 दिसंबर 2020 को इस मौसम केंद्र की स्थापना हुई थी। जलवायु की जानकारी के साथ-साथ यह केंद्र देश की सुरक्षा के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

लद्दाख की जलवायु अत्यधिक ठंडी और शुष्क है। यहां बादल फटना, आकस्मिक बाढ़, हिमानी झील विस्फोट (जीएलओएफ), हिमस्खलन, सूखा आदि से जान-माल की हानि होती है। लद्दाख को देश बाकी के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाले दो महत्वपूर्ण राजमार्ग –  लेह-मनाली और लेह-श्रीनगर – अक्सर हिमस्खलन और दर्रों पर भारी बर्फबारी की चपेट में आ जाते हैं। 

मौसम विज्ञानी सिंह जिन जानकारियों को एकत्र कर रहे हैं वह यहां कठिन पहाड़ी रास्तों, ट्रेक पर निकले पर्यटकों के लिए काफी जरूरी है। इस केंद्र पर रोजाना हवा का दबाव, आर्द्रता, तापमान, बर्फबारी और बारिश आदि के आंकड़े जुटाए जाते हैं। 

लेह मौसम केंद्र में खुले आसमान के नीचे स्थापित मौसम संबंधी उपकरण। इसी स्थान पर अटोमेटेड वेदर स्टेशन या स्वचलित मौसम केंद्र भी है जो सीधे श्रीनगर और दिल्ली कार्यालय को मौसम संबंधी जानकारी भेजता है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
लेह मौसम केंद्र में खुले आसमान के नीचे स्थापित मौसम संबंधी उपकरण। इसी स्थान पर अटोमेटेड वेदर स्टेशन या स्वचलित मौसम केंद्र भी है जो सीधे श्रीनगर और दिल्ली कार्यालय को मौसम संबंधी जानकारी भेजता है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत करते हुए वह बताते हैं, “हम जो जानकारियां जुटा रहे हैं उसके आधार पर मौसम की सामान्य रिपोर्ट बनेगी जो जिला प्रशासन से लेकर केंद्र तक विभिन्न एजेंसियों को भेजी जाएगी। इसके अलावा, इन जानकारियों के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान भी लगाया जाएगा जो कि आम लोगों के साथ-साथ पर्यटकों, पहाड़ी रास्तों पर ट्रैफिक व्यवस्था देखने वालों, आपदा प्रबंधन और किसानों के लिए जरूरी जानकारी है।”

सिंह बताते हैं कि इस वक्त मौसम सबसे अनुकूल है। साथ ही वह दिसंबर और जनवरी के महीने में पेश आने वाली चुनौतियों के बारे में बताते हैं। “पिछली बार हमने -18 से -20 डिग्री सेल्सियस का तापमान रिकॉर्ड किया है। चारों तरफ बर्फ होती है, यहां तक कि पीने का पानी भी जम जाता है। बाहर इतनी तेज बर्फीली हवा चलती है कि एक मिनट भी खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में लगातार मौसम की जानकारी इकट्ठा करना काफी मुश्किल होता है। कम ऑक्सीजन में यह काम करना और भी मुश्किल भरा होता है,” उन्होंने बताया। 

लद्दाखी खेती के लिए जीवनरेखा

मोंगाबे-हिन्दी ने भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र से लेह स्थित मौसम केंद्र के महत्व को लेकर सवाल पूछे। उन्होंने बताया कि लद्दाख भारत के सबसे उत्तरी भाग में स्थित है। यह पश्चिमी हिमालय के रेनशैडो क्षेत्र में पड़ता है और लेह में सालाना 100 मिमी (जून-अक्टूबर के दौरान बारिश, नवंबर-मई के दौरान बर्फबारी) की थोड़ी वर्षा होती है, हालांकि ज़ांस्कर और कारगिल क्षेत्रों में लेह की तुलना में अधिक वर्षा होती है। इसलिए इसे ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है जो इसे बाकी जगहों से अनोखा बनाता है। 


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“लेह के मौसम स्टेशन में वैज्ञानिकों के अलावा स्वचालित मशीनें भी हैं। दोनों ही इस क्षेत्र के मौसम और जलवायु में परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी नाजुक है और कृषि सिंचित है और वर्षा आधारित नहीं है। व्यावसायिक रूप से देखा और एकत्र किया गया मौसम डेटा ग्लेशियरों के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए बहुत उपयोगी होगा जो लद्दाखी कृषि के लिए जीवन रेखा हैं,” महापात्र ने बताया। 

उन्होंने आगे बताया, “रणनीतिक स्थान होने के कारण मौसम और जलवायु की जानकारी देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आईएमडी ने उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम (न्योमा, हुंदर, नुब्रा, पैंगोंग झील के पास तांगत्से, पदुम ज़ांस्कर, द्रास, कारगिल, गारकोन आर्यन वैली, उप्शी, चुचोट, स्टाकना और लेह) को कवर करते हुए स्वचलित मौसम केंद्र (AWS) स्थापित किए हैं।”

 

बैनर तस्वीरः लद्दाख की राजधानी लेह स्थित मौसम केंद्र। यह केंद्र समुद्र तल से 11,562 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

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