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खाने की पौष्टिकता को कम कर रहा बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में सब्जी बेचता एक विक्रेता। तस्वीरः बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में सब्जी बेचता एक विक्रेता। तस्वीरः बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स

  • उच्च स्तरीय कार्बन डाइऑक्साइड वाले वायुमंडल के बीच पनपने वाले पौधों में खनिज, प्रोटीन और विटामिन की कमी देखी जा रही है।
  • ये कमियां भारत के पोषण और कृषि परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
  • बदली हुई पर्यावरणीय परिस्थितियों में कृषि में फसलों की विविधता को बढ़ाना, पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अपनाने वाली ज्यादा फसलें लगाना और अधिक पारंपरिक अनाजों पर ध्यान केंद्रित करना, पोषण को बढ़ावा देने के कुछ तरीके हो सकते हैं।

वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर पौधों में प्रमुख खनिज पोषक तत्वों पर नकारात्मक असर डाल रहा है। इसकी वजह से उनमें पोषकता कम हो रही है। ट्रेंड्स इन प्लांट साइंस जर्नल में एक हालिया समीक्षा लेख से इस बात की जानकारी मिली है। यह लेख कई अध्ययनों के निष्कर्षों का सारांश है। फ्रांस के वैज्ञानिकों द्वारा की गई समीक्षा में बताया गया कि लगभग सभी C3 पौधे, कार्बन डाइऑक्साइड के ऊंचे स्तर के संपर्क में होने के कारण, उनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जस्ता, मैग्नीशियम और सल्फर जैसे पोषक तत्वों में कमी देखी गई है। C3 पौधे वे पौधे हैं जो प्रकाश संश्लेषण के लिए C3 प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं, जहां पहले कार्बन यौगिक में 3 कार्बन परमाणु होते हैं। 

अनुमानों से पता चलता है कि प्री-इंडस्ट्रियल युग की तुलना करें तो वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर अब 50 फीसदी ज्यादा है। 2022 में, वैश्विक औसत कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़कर 417.06 भाग प्रति मिलियन हो गया था। नतीजन, एक नई रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।

इस साल मई में, NOAA की ग्लोबल मॉनिटरिंग लैब द्वारा मापा गया कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर औसतन 424.0 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) था, जो मई 2022 की तुलना में 3.0पीपीएम की वृद्धि है।

जहां एक तरफ कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, वहीं ये प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में से भी एक है। यह ध्यान में रखते हुए कि धरती पर ज्यादातर पौधे , जिनमें गेहूं, चावल, जौ और जई जैसे अनाज शामिल हैं, C3 प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। समीक्षा लेख ने कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर को लेकर खतरे की घंटी बजाई और बताया कि इससे न सिर्फ उत्पादित भोजन की मात्रा में बल्कि इसकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।

समीक्षा लेख में कहा गया है, हालांकि यह घटना लगभग दो दशक पहले दर्ज की गई थी, लेकिन हाल के साक्ष्यों ने इसके प्रभाव को बताने में मदद की है। 

1750 में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से मानव गतिविधियों(ग्रे लाइन) के साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (नीली रेखा) की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। चार्ट- एनओएए 
1750 में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से मानव गतिविधियों(ग्रे लाइन) के साथ वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (नीली रेखा) की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। चार्ट- एनओएए

मानवीय गतिविधियों का खामियाजा भुगत रहे फसल

समीक्षा लेख ने भारतीय संदर्भ में जलवायु परिवर्तन और फसलों के पोषण पर इसके प्रभाव को लेकर होने वाली बातचीत को फिर से सामने ला दिया है। देश की खाद्य और पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में आने वाली मुश्किलों को देखते हुए यह विषय खासा महत्व रखता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2022 के अनुसार, भारत 121 देशों में से 107 वें पायदान पर है। इस स्तर पर भूख की समस्या को गंभीर माना गया है। जीएचआई 2022 में यह भी कहा गया है कि भारत में चाइल्ड वेस्टिंग दर (ऐसे बच्चे जो अपनी ऊंचाई के हिसाब से बहुत पतले हैं) दुनिया में सबसे ज्यादा है। 2022 में, बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले दो दशकों में भारत में गंभीर कुपोषण के मामलों में भारी वृद्धि हुई है।

बच्चों के खाद्य उत्पादों के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म माई लिटिल मॉपेट के संस्थापक और सीईओ डॉ. हेमाप्रिया नटेसन ने कहा, “इन निष्कर्षों से पता चलता है कि फसलें स्वाभाविक रूप से कम पौष्टिक होती जा रही हैं। यह चिंताजनक है

डॉ. नैटसन ने बताया कि आप भविष्य में कैसा भोजन खाना पसंद करेंगे, यह शुरुआती दिनों में दिए जाने वाले भोजन पर निर्भर करता है। और इस बात को सभी समझते हैं। एक मां और एक डॉक्टर के रूप में डॉ. नैटसन ने कहा कि अपर्याप्त पोषण तो चिंताजनक है। लेकिन इसके साथ ही पुराने समय से भोजन को लेकर चला आ रही सोच भी कम चिंताजनक नहीं है जहां चीनी में लिपटे सीरियल्स को बच्चों के लिए बेहतर माना जाता है।

एक अध्ययन से पता चलता है कि अधिक कार्बन डाइऑक्साइड स्तर वाले वातावरण में पनपने वाले वाले पौधों में खनिज, प्रोटीन और विटामिन जैसे पोषक तत्वों में कमी देखी जा रही है। तस्वीर -SuSanA Secretariat/विकिमीडिया कॉमन्स 
एक अध्ययन से पता चलता है कि अधिक कार्बन डाइऑक्साइड स्तर वाले वातावरण में पनपने वाले वाले पौधों में खनिज, प्रोटीन और विटामिन जैसे पोषक तत्वों में कमी देखी जा रही है। तस्वीर – SuSanA Secretariat/विकिमीडिया कॉमन्स

जब आप खान-पान की इन पुराने समय से चली आ रही आदतों में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड स्तर के प्रभाव को जोड़ते हैं, तो यह इसे और अधिक जटिल बना देता है।

सूरी सहगल सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड कंजर्वेशन, अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (एटीआरईई), बैंगलोर में एसोसिएट प्रोफेसर जी. रविकांत ने बताया, हालांकि पोषण संबंधी चुनौतियां इस मुद्दे का एक हिस्सा हैं। लेकिन अधिक कार्बन डाइऑक्साइड स्तर मिट्टी में संतुलन को भी बदल रहा है। इसकी वजह से टिकाऊ कृषि प्रथाओं को लागू करना मुश्किल हो जाता है। 

उन्होंने कहा, जब पौधे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में आते हैं, तो प्रकाश संश्लेषण बढ़ जाता है, जिसके चलते अधिक बायोमास होता है। नई मांग को पूरा करने के लिए, पौधे मिट्टी से ज्यादा पोषक तत्व खींचने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा, कार्बन डाइऑक्साइड मिट्टी के माइक्रोफ्लोरा को भी प्रभावित करता है, जिससे मिट्टी में अपघटन दर प्रभावित होती है और पौधों के पोषक तत्वों पर असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह दुष्चक्र बाहरी पोषक तत्वों के बिना फसल उगाना मुश्किल बना देता है।

2016 में प्रकाशित वैश्विक मृदा जैव विविधता एटलस से यह पता चला कि ठीक भारत के संकटग्रस्त पोषण परिदृश्य की तरह प्रदूषण, गहन कृषि, कटाव और जलवायु परिवर्तन जैसे कई खतरों के कारण भारत की मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव भी उच्च जोखिम में हैं।

2018 में प्रकाशित एक अलग शोध अध्ययन से पता चला कि वायुमंडल में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड न सिर्फ सूक्ष्म पोषक तत्वों बल्कि चावल के दानों के प्रोटीन और विटामिन पर भी असर डालता है। अध्ययन में पाया गया कि प्रोटीन, जिंक और आयरन के अलावा, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर से बी1, बी2, बी5 और बी9 विटामिन में भी गिरावट आती है। हालांकि सटीक स्वास्थ्य परिणामों को मापना मुश्किल है। लेकिन इस तथ्य पर विचार करते हुए कि चावल दुनिया की आधी से अधिक आबादी के लिए प्राथमिक भोजन स्रोत है, तो ये कमियां गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकती हैं।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एनवायरनमेंट हेल्थ साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर लुईस एच. जिस्का अध्ययन के सह-लेखकों में से एक हैं। वह एक संबंधित ब्लॉग पोस्ट में लिखते हैं कि पौधों के शरीर क्रिया विज्ञान में ये मौन परिवर्तन अक्सर होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर मुख्यधारा की कहानियों का हिस्सा नहीं होता है क्योंकि उनकी परिकल्पना करना मुश्किल है। एक ईमेल इंटरव्यू में जिस्का ने इन परिवर्तनों को समझने के महत्व को दोहराया। जिस्का ने कहा, “ कम पोषण मूल्यों के परिणाम आने वाले भविष्य के लिए काफी बड़े हैं, न सिर्फ प्रोटीन, विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों पर CO2-प्रेरित प्रभावों के जरिए मानव स्वास्थ्य के संदर्भ में, बल्कि यह वैश्विक खाद्य श्रृंखला के संबंध में भी भूमिका निभाएगा।” जिस्का ने पौधों और जीवन पर कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभाव पर एक किताब भी लिखी है।

वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण फसलों में खनिज, प्रोटीन और विटामिन तत्वों की कमी से भारत के पोषण और कृषि परिदृश्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। तस्वीर- अनस्प्लैश 
वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण फसलों में खनिज, प्रोटीन और विटामिन तत्वों की कमी से भारत के पोषण और कृषि परिदृश्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। तस्वीर- अनस्प्लैश

फसलों में विविधता पोषण की समस्या को सुलझाएगी

समस्या के संभावित समाधान के बारे में बात करते हुए एटीआरईई के रविकांत ने स्वीकार किया कि इसे हल करना एक जटिल समस्या है, लेकिन पोषण संबंधी चुनौतीपूर्ण भविष्य के लिए तैयारी करने का एक तरीका ऐसे पौधों को उगाना है जो मिट्टी से पोषक तत्वों को बेहतर ढंग से अवशोषित करते हैं और बेहतर उपज देते हैं। कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, जीकेवीके, बेंगलुरु जैसे विभिन्न अनुसंधान केंद्रों में परीक्षण चल रहे हैं।

जिस्का ने कहा कि नीतियां बनाते समय  इस बात का ध्यान रखा जाए कि जिन फसल श्रृंखलाओं में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक है, उनकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

जिस्का ने कहा, “ जिन पौधों का हम उपभोग करते हैं, पृथ्वी उन पौधों के बीच आनुवंशिकी की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करती है। पोषण संबंधी समस्या के समाधान के लिए समय (फसल चक्र) और स्थान (एक ही स्थान पर अलग-अलग फसलें लगाना) दोनों में विविधता लाना बेहद जरूरी है।”

नटेसन ने आगे कहा कि ये नजरिया न सिर्फ खेतों में बल्कि खाने की थाली में भी नजर आना चाहिए। उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सभी को एक साथ काम करने और दीर्घकालिक समाधान के साथ आगे आने की जरूरत है। लेकिन अभी हम जो कर सकते हैं वह अधिक पारंपरिक अनाज का उपभोग करने और रासायनिक खादों के बिना एक बेहतर आहार उगाने पर ध्यान केंद्रित करना है। ऐसा कर हम इन कमियों को जल्द ही दूर कर लेंगे।

उद्धरण:

गोजोन ए, कैसन ओ, बाख एल, लेजे एल, मार्टिन ए। दि डिक्लाइन ऑफ प्लांट मिनरल न्यूट्रिशन अंडर राइजिंग सीओ2 – साइकलॉजिकल ओंड मोलेक्यूलर एसपेक्ट ऑफ बेड डील। ट्रेंड्स प्लांट साइंस 2023 फ़रवरी;28(2):185-198. डीओआई: 10.1016/जे.टीप्लांट्स.2022.09.002। ईपीयूबी 2022 नवंबर 3. पीएमआईडी: 36336557।

चुनवु झू एट अल। इस सदी में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का स्तर चावल के दानों के प्रोटीन, सूक्ष्म पोषक तत्वों और विटामिन सामग्री को बदल देगा, जिससे चावल पर निर्भर सबसे गरीब देशों के स्वास्थ्य पर संभावित परिणाम होंगे। साइंस। एडीवी.4, 2018.

 

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बैनर तस्वीर: पश्चिम बंगाल के हावड़ा में सब्जी बेचता एक विक्रेता। तस्वीरः बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स 

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