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वाराणसी में सौर ऊर्जा से बुनकरी के पेशे में जागती उम्मीद, लेकिन अभी लंबा सफर बाकी

वाराणसी में सोलर हाइब्रिड सिस्टम द्वारा चलित एक लूम पर काम करते बुनकर। तस्वीर: राहुल सिंह

  • वाराणसी भारत में बुनकरी का एक प्रमुख केंद्र है। ग्रिड पर बिजली के लिए पूरी तरह से निर्भर बुनकरों का कहना है कि इस कारोबार की प्रमुख दिक्कतों में एक बिजली से जुड़ी परेशानियां हैं।
  • वाराणसी में बुनकरी के पेशे को फायदेमंद बनाने के लिए सौर उर्जा को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस प्रयोग से कपड़े की बुनाई का काम निर्बाध गति से चलता है। यह प्रयोग स्थापित बुनकरों या लूम मालिकों के साथ दूसरे के लूम पर काम करने वाले कारीगरों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है।
  • 24 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश की नवीनीकृत ऊर्जा क्षमता मात्र 2142 मेगावाट है, जबकि राज्य को अपने तय ऊर्जालक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी वर्तमान क्षमता में हर साल चार गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को जोड़ना होगा।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में विश्व-प्रसिद्द बनारसी साड़ी बनाने वाले कई बुनकरों की तरह ही उनत्तिस साल के उबैद अहमद भी बिजली की अपर्यात आपूर्ति और बेवक्त कटौती को लेकर परेशान थे। बिजली की अपर्यात आपूर्ति की वजह से कारीगरों को अपने काम के घंटे और बुनाई पूरी करने के लिए रात में देर तक काम करना पड़ता था, वहीं बेवक्त कटौती से उनके माल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता था। 

इन मुश्किलों के बीच उबैद के लिए अपने बनारसी साड़ियों के कारोबार को मुकम्मल बनाए रखने में सौर ऊर्जा का उपयोग बहुत हद तक मददगार साबित हुआ।

करीब डेढ़ साल पहले उबैद ने वाराणसी के लोहता में स्थित अपने मकान की छत पर पांच किलोवाट क्षमता का सोलर पैनल अपने लूम चलाने के लिए लगवाया। 

उबैद के भांजे व उनके कारोबार में साझेदार सईद फराज (21) कहते हैं, “अब लाइट नहीं रहने पर भी हमारा लूम चलता है, अगर छह से आठ घंटे तक भी लाइट नहीं रही, तो हमारे लूम का काम नहीं रुकता और इससे हमारे कपड़े का उत्पादन 25 प्रतिशत बढ गया है।”  

पहले सोलर पैनल के अच्छे परिणाम आने के बाद उबैद ने छः किलोवाट का एक और सोलर पैनल लगवाया। अब उनकी छत पर हाइब्रिड सोलर सिस्टम की 11 किलोवाट की क्षमता की दो यूनिट लगी हुई हैं। इन दो पैनलों से उनके चार लूम चलते हैं। सामान्यतः पांच या छः किलोवाट की एक यूनिट से चार लूम को आपूर्ति दी जा सकती है, लेकिन उबैद के लूम की क्षमता अधिक होने के कारण इन दो यूनिट से उनके चार लूम ही चल पाते हैं।

“यह हाइब्रिड सोलर सिस्टम हमारे लिए सामान्य बिजली से अधिक लाभकारी हैं क्योंकि इससे लूम में बिजली की आपूर्ति एक समान होती है। वह फ्लैक्चुएट नहीं करता है जिससे साड़ी की क्वॉलिटी अच्छी रहती है। सामान्य बिजली में लाइट आने-जाने से क्वालिटी मेंटेन करने में दिक्कत होती है,” फराज ने बताया। 

समय की बचत और आमदनी में सुधार 

वाराणसी में अधिकतर बुनकरों को तय वेतन नहीं मिलता। उन्हें साड़ी या कपड़े की बुनाई के हिसाब से भुगतान किया जाता है।  ऐसे में, बिजली ना होने की स्थिति में कारीगरों को अपना काम पूरा करने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता था। बुनकरों के लिए रात में जागकर काम करना एक मजबूरी हो गयी थी। 

इसके साथ ही कोविड 19 महामारी के बाद मांग में गिरावट आने की वजह से भी इस क्षेत्र में काम करने वाले व्यापारियों और कारीगरों की दिक्कतें बढ़ गयीं। 

उबैद कहते हैं, “कोविड के बाद बनारस (वाराणसी) के 50 प्रतिशत लूम बंद हो गए, बाजार में डिमांड कम थी और लोगों के पास काम नहीं था, ऐसे में कई बुनकर मजदूर बन गए।”

मोहम्मद शमीम (50) पहले एक लूम में कारीगर थे लेकिन बिजली की दिक्कत की वजह से उन्हें रातों में काम करना पड़ता था। “मैं जहां काम करता था, वहां बिजली की दिक्कत की वजह से मुझे रात में काम करना पड़ता था, मैं रात में जाग नहीं पाता था, इसलिए मैंने वह काम छोड़ दिया,” शमीम कहते हैं। शमीम अब दिहाड़ी मजदूरी करते हैं।  

ऐसे में  सोलर सिस्टम होने से काम के घंटे बर्बाद नहीं होते और न बुनकरों को रात में जागकर काम करने की मजबूरी रहती है।

उबैद के अनुसार, इस सिस्टम के लगने से उनके लूम पर काम करने वाले बुनकरों को अब बिजली नहीं रहने पर बैठे नहीं रहना पड़ता है। इससे उनकी आय में भी सुधार आया है। इस सिस्टम पर काम करने वाले कारीगर 600 से 800 रुपये तक कमा लेता हैं।

वाराणसी के एक लूम में साड़ी बुनते हुए एक बुनकर। तस्वीर: राहुल सिंह

बुनकर ऋषि पटेल (30) कहते हैं कि सोलर सिस्टम लगने से बिजली चले जाने के बाद भी चार से पांच घंटे काम चलता रहता है। उनका कहना है कि इस सिस्टम के लगने से दिन भर में 500-600 रुपये कमाई हो जाती है, इसके पहले वह सिर्फ 300-400 रुपये कमा पाते थे।

समय के साथ घटती सब्सिडी 

वाराणसी में रेशम के कपड़ों की बुनाई में सौर ऊर्जा के उपयोग का यह प्रयोग टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट) ने किया है। टेरी के सोलर फोटावोलिक एक्सपर्ट और इस प्रोग्राम को लीड करने वाले जितेंद्र तिवारी का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से अब तक करीब 2,000 लूम जोड़े गए हैं और इससे करीब 500 बुनकर परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।

इस प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर प्रिंस पांडेय ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “अब तक हमने वाराणसी व इसके आसपास के इलाके में जिन बुनकर परिवारों के यहां सोलर सिस्टम इंस्टॉल किया है, उनमें से 90 प्रतिशत अल्पसंख्यक वर्ग के हैं।” वे कहते हैं कि वर्तमान में इस परियोजना के तहत 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है, पहले 65 से 70 प्रतिशत तक थी। तिवारी बताते हैं कि 2017 में इस प्रोजेक्ट को जब शुरू किया गया था तो लोगों में इसको लेकर जागरूकता कम थी, इसलिए उन्हें इससे जोड़ने के लिए अधिक सब्सिडी दी जा रही थी, अब यह धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है।

उबैद, जिन्होंने करीब डेढ़ साल पहले ही रूफटॉप सोलर सिस्टम लगवाया है, कहते हैं, “हमने आसपास में कुछ लोगों को सोलर हाइब्रिड सिस्टम लगवाये हुए देखा तो इसके बारे में पता किया और खुद भी लगवा लिया। इसको लगवाने में हमारी 50 प्रतिशत लागत लगी।” सब्सिडी (50 प्रतिशत) पर मिले पांच किलोवाट क्षमता के सोलर सिस्टम के लिए उनकी लागत 2.15 लाख रुपये और छह किलोवाट क्षमता के लिए 2.50 लाख रुपये आई।

वाराणसी के लोहता इलाके के धन्नीपुर गांव के बुनकर संजय मौर्य (46) ने वर्ष 2020 में अपने घर की छत पर पांच किलोवाट क्षमता का सोलर पैनल लगावाया जिसके लिए उन्हें 1.5 लाख रुपये खर्च करने पड़े। वे हाइब्रिड सोलर सिस्टम को अपने कारोबार के लिए फायदेमंद बताते हैं और कहते हैं कि इससे चार लूम चल जाते हैं। हालांकि उनकी कुछ शिकायतें हैं।

वाराणसी का लोहता में एक मोहल्ला जो बुनकरों के लिए जाना जाता है। तस्वीर: राहुल सिंह

संजय कहते हैं, “अगर इसके साथ नेट मीटरिंग सिस्टम लगा होता तो पता चलता कि कितनी बिजली सोलर पैनल से जनरेट हुई, कितना हमने खर्च किया और ग्रिड को कितनी बिजली आपूर्ति हुई।”  

दरअसल नेट मीटरिंग की सुविधा सिर्फ ऑन-ग्रिड सोलर सिस्टम में मिलती है और उसके लिए भी उत्तरप्रदेश सरकार ने मानक तय कर रखे हैं।  

यूपी नेडा (उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण)) के सीनियर प्रोजेक्ट ऑफिसर अजय कुमार ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “नेट मीटरिंग के लिए जून 2022 में रेगुलेशन बनाया गया और यह सिर्फ सरकारी दफ्तरों, कमर्शियल बिल्डिंग आदि के लिए है।” उत्तर प्रदेश की नई सौर ऊर्जा नीति में नेट मीटरिंग के मानकों का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है।

वर्तमान में हाइब्रिड सोलर सिस्टम से लूम चलाये जा रहे हैं, जिसके तहत ग्रिड की बिजली का भी उपयोग होता है और बैटरी में स्टोर की गयी बिजली का भी उपयोग होता है, जिसे विशेषज्ञ अधिक कारगर बताते हैं।

पांडेय कहते हैं, “बुनकरों के लिए ऑन-ग्रिड सिस्टम लाभदायक नहीं है, इनके लिए यह हाइब्रिड सिस्टम ही फायदेमंद है, क्योंकि उनको बैटरी बैकअप चाहिए, ताकि बिजली जाने के बाद भी बुनकर कारीगर काम करते रहें।” 

बुनकरों के लिए रूफटॉप सोलर 

मोंगाबे हिंदी ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बुनकरी के पेशे में इस तरह के ऊर्जा बदलाव के प्रयासों को जानने के लिए उत्तर प्रदेश खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के डिप्टी सीईओ महेंद्र प्रताप से बात की। महेंद्र प्रताप ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “सौर ऊर्जा से उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे – वाराणसी, सीतापुर, मुरादाबाद, बांदा में न्यू मॉडल चरखा चल रहे हैं, जिसे सोलर चरखा भी कहा जाता है।” वह कहते हैं, “साल 2017 से राज्य में इस योजना पर काम हो रहा है और अब तक करीब 3,000 चरखे बांटे गए हैं।”

वह सौर ऊर्जा के उपयोग को फायदेमंद बताते हुए कहते हैं कि इसमें बिजली की आपूर्ति एक समान होती है तो धागे की क्वालिटी अच्छी और एक जैसी होती है, साथ ही इससे उत्पादन भी बढ़ा है।

वाराणसी में रूफटॉप सोलर लगता एक टेक्नीशियन। तस्वीर: टेरी (TERI)

उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण के डायरेक्टर अनुपम शुक्ला ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “छोटे और मझोले उद्योगों (एसएमई) में हम राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं और हम उन्हें कार्य आवंटन में प्राथमिकता देते हैं।” 

शुक्ला कहते हैं, “20223-24 में हमने रूफटॉप लगाने के लिए राज्य भर में 370 वेंडर नियुक्त किये हैं, पहले इनकी संख्या 50-60 के करीब होती थी।” वे कहते हैं कि एसएमई में ऑन ग्रिड के लिए प्रयास किया जा रहा है, फिलहाल वह ऑफ-ग्रिड ही हैं। 

बुनकरों के बीच सौर ऊर्जा को लोकप्रिय बनाने के कोशिशों से जुड़े सवाल पर शुक्ला ने कहा, मुख्यमंत्री बुनकर योजना से उन्हें जोड़ा जा रहा है। राज्य सरकार ने इस साल के शुरू में इस संबंध में एक निर्णय लिया है।

उत्तर प्रदेश नवीनीकृत ऊर्जा में कितना सक्षम है?

यूपी नेडा से हासिल जानकारी के अनुसार, आबादी (24 करोड़) के दृष्टिकोण से भारत के इस सबसे बड़े प्रदेश की नवीनीकृत ऊर्जा क्षमता मात्र 2,142 मेगावाट है, जिसमें रूफटॉप सोलर की क्षमता 288 मेगावाट है। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 में भी एक सौर ऊर्जा नीति जारी की थी, जिसमें यह लक्ष्य रखा गया था कि वर्ष 2022 तक राज्य सरकार कुल बिजली खपत का आठ प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से हासिल करेगी। इसके लिए 10 हजार 700 मेगावाट की सोलर क्षमता हासिल की जानी थी, जिसमें 4,300 मेगावाट रूफटॉप सोलर से हासिल करने का लक्ष्य था। 

यानी राज्य को नवीनीकृत स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन व उपयोग में अभी लंबा सफर तय करना है। अनौपचारिक बातचीत के क्रम में अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि राज्य सौर ऊर्जा उत्पादन में पिछड़ गया है। हालांकि इस बीच राज्य की इस क्षेत्र में बेहतर करने की उम्मीदें बुंदेलखंड क्षेत्र पर टिकी हैं। यूपी नेडा के डायरेक्टर अनुपम शुक्ला कहते हैं, “बुंदेलखंड के लिए नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्र में करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।”

प्रदेश ने साल 2022 में अपनी नई सौर ऊर्जा नीति की घोषणा की। इसमें राज्य ने वित्त वर्ष 2026-27 तक 22 हजार मेगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का संकल्प व्यक्त किया है। इसके जरिये राज्य में तीन लाख नई नौकरियों व कौशल विकास सृजित करने का संकल्प व्यक्त किया है।

एनर्जी सेक्टर पर रिसर्च व एनालिसिस करने वाली संस्था जेएमके रिसर्च के विश्लेषण के अनुसार, नई ऊर्जा नीति में तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अगले पांच सालों तक उत्तर प्रदेश को अपनी वर्तमान क्षमता में हर साल 4  गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को जोड़ना होगा।

 

बैनर तस्वीर: वाराणसी में सोलर हाइब्रिड सिस्टम द्वारा चलित एक लूम पर काम करते बुनकर। तस्वीर: राहुल सिंह 

यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के रिन्यूएबल एनर्जी ग्रांट के सहयोग से रिपोर्ट की गई है।

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