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भेड़, बकरी और ऊंटनी के दूध से बने चीज़ में बढ़ रही दिलचस्पी, बड़ा हो रहा बाजार

गुजरात के कच्छ में पनीर बनाने वाले अर्पण कलोत्रा और पंचाल डेयरी के भीमसिंहभाई घांघल बकरी के दूध से पनीर बनाते हुए। तस्वीर - पांचाल डेयरी।

गुजरात के कच्छ में पनीर बनाने वाले अर्पण कलोत्रा और पंचाल डेयरी के भीमसिंहभाई घांघल बकरी के दूध से पनीर बनाते हुए। तस्वीर - पांचाल डेयरी।

  • पशुपालक समुदाय की ओर से बकरी, भेड़ और ऊंटनी के दूध से बनाया गया चीज़ अपने स्वाद और गुणवत्ता के चलते बाजार में लोकप्रिय हो रहा है।
  • अतिरिक्त आमदनी का अवसर देखकर चरवाहे अब डेयरी उत्पाद बना रहे हैं और इन्हें बेच रहे हैं।
  • सरकार की ओर से प्रोत्साहन मिलने पर, पारंपरिक चीज़ गाय-भैंस के अलावा दूसरे मवेशियों से मिलने वाले दूध की मांग बढ़ा रहा है। इससे चरागाह की जमीन के संरक्षण में मदद मिलने की उम्मीद है।

पिछले दिनों चेन्नई में अलग-अलग मवेशियों के दूध से बने चीज़ को टेस्ट करने का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। यहां रखी गई चीज़ की किस्मों में से एक ताजा बकरी के दूध से मैरीनेट किया हुआ फेटा था। इसे गुजरात के कच्छ जिले के गांव सायला में चीज़ बनाने वाली छोटी इकाई में मालधारी या पशुपालक समुदाय के दो युवाओं अर्पण कलोत्रा और भीमसिंहभाई घांघल ने बनाया था।

कलोत्रा और घांघल ने साल 2022 के जनवरी महीने में पांचाल डेयरी शुरू की थी। यह पारंपरिक चीज़ बनाने वाले एक समूह में से एक है। यह समूह भारत में खास लेकिन लगातार बढ़ते पारंपरिक चीज़ बाजार का नेतृत्व कर रहा है। पंचाल डेयरी में चीज़ की 10 किस्में बनती है। इनमें बकरी के ताजा दूध से चेवरे, हलौमी और मैरीनेटेड फेटा; बकरी के दूध से पहले से बना कर रखे गए चीज़ की किस्में टॉमी और टिम्सबोरो और विशेष भेड़-चीज़ किस्म में रिकोटा, पेकोरिनो और मांचेगो शामिल हैं। चूंकि, बकरी का दूध साल में सिर्फ सात महीने ही उपलब्ध होता है। इसलिए, बाकी के महीनों के लिए पहले से बना कर रखा गया चीज़ एक विकल्प है।

राजस्थान में कैमल करिश्मा की ओर से बनाया गया फेटा पनीर। तस्वीर - कैमल करिश्मा।
राजस्थान में कैमल करिश्मा की ओर से बनाया गया फेटा चीज़। तस्वीर – कैमल करिश्मा।

भारत में चीज़ का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है। मार्केट रिसर्च एजेंसी IMARC के अनुसार, साल 2022 में यह 7.13 अरब रुपए का था। माना जा रहा है कि 2028 तक यह 24.06 फीसदी की दर से बढ़कर 26.26 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा। राजस्थान में ऊंटनी के दूध से चीज़ बनाने वाली बहुला नेचुरल्स की संस्थापक आकृति श्रीवास्तव के अनुसार, पारंपरिक चीज़ का सीएजीआर (चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर) “22 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दिखाता है।” उन्होंने पारंपरिक चीज़ में बढ़ती दिलचस्पी को बड़े पैमाने पर शहरों में लोगों की बढ़ती पसंद को बताया। 

वहीं, राजस्थान के पाली जिले में स्थित कैमल करिश्मा चीज़ सहित ऊंट के दूध से बने उत्पादों को बढ़ावा देने की एक और पहल है। इससे ऊंट पालने वाले समुदायों को आमदनी बढ़ाने के अवसर मिलते हैं। तीन दशकों से ज्यादा समय से ऊंट शोधकर्ता और इस पहल के पीछे की शक्ति इल्से कोहलर-रोलेफसन ने कहा कि उनके उत्पादों को बाजार में लोकप्रियता मिल रही है। उन्होंने कहा, हमने रायका (एक समुदाय) ऊंट प्रजनकों के समर्थन में नवंबर 2022 में गोडवार ऊंट चीज़ महोत्सव का आयोजन किया था। कार्यक्रम में शामिल हुए उदयपुर के लेक पैलेस होटल के शेफ ने अपने मेनू में ऊंटनी के दूध का पनीर शामिल किया।’ ‘उदयपुर में ताज होटल समूह और जोधपुर में जोधाना प्रॉपर्टीज ब्रांड के अन्य प्रमुख ग्राहक हैं। कोहलर-रोलेफसन का मानना है कि भारत में पारंपरिक चीज़ की बढ़ती मांग से पशुपालक समुदाय को फायदा पहुंच सकता है।

फकरुद्दीन, राजस्थान के बीकानेर में बहुला नेचुरल्स की पनीर बनाने वाली इकाई में चरवाहा समुदाय से पनीर बनाने वालों में से एक हैं। तस्वीर - बहुला नेचुरल्स।
फकरुद्दीन, राजस्थान के बीकानेर में बहुला नेचुरल्स की चीज़ बनाने वाली इकाई में चरवाहा समुदाय से चीज़ बनाने वालों में से एक हैं। तस्वीर – बहुला नेचुरल्स।

परंपरा से आगे निकलते पशुपालक

पारंपरिक चीज़ हाथ से बना होता है। इस चीज़ को छोटे बैचों में बनाया जाता है। वहीं प्रोसेस करके बनाए गए पनीर को मशीनों के इस्तेमाल से थोक में बनाया जाता है। पारंपरिक पनीर नरम पनीर या पुराना पनीर हो सकता है। इसे बेहतर स्वाद और सुगंध के लिए उपयुक्त परिस्थितियों में पकाया जाता है। फिलहाल कच्छ में कोटडा भादली में पुरातात्विक खोज से सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान डेयरी प्रसंस्करण के सबूत मिलते हैं। लेकिन मक्खन या घी जैसे अन्य डेयरी उत्पादों के विपरीत चीज़ बनाना भारत में पशुपालक समुदायों की पारंपरिक प्रथा नहीं है। हालांकि, हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत में याक के दूध से बनी चुरपी जैसे कुछ अपवादों भी हैं।

बहुला नेचुरल्स की श्रीवास्तव ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “चीज़ बनाने के लिए एक अहम घटक रेनेट जरूरी होता है जो दूध को गाढ़ा करने में मदद करता है। चरवाहों के पास वह उपलब्ध नहीं है। हालांकि वे दूध को ज्यादा समय तक बचाए रखने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन चीज़ उनमें से एक नहीं है।” 

परंपरागत रूप से, राजस्थान में ऊंट पालक रायका समुदाय ऊंट का दूध नहीं बेचते थे। समुदाय के चरवाहे माधवराम रायका ने बताया कि ऐसा इसलिए था, क्योंकि उनका मानना था कि ऊंट को देवी पार्वती और भगवान शिव ने अपनी आत्मा में डालकर बनाया था और देवताओं ने रायका समुदाय को जानवर की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने कहा, “पीढ़ियों से हम अपनी पहुंच वाली चरागाह पर ऊंटों के झुंड चराते रहे हैं और मानसून के दौरान कुंभलगढ़ के जंगलों में चले जाते थे।” यह कुम्भलगढ़ को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किये जाने से पहले की बात है। ऊंटनी का दूध परिवार खाता था और जानवर खेत में मदद करता था या सामान ढोता था। जब खानाबदोश चरवाहे एक जगह से दूसरी जगह पर जाते थे, तो दूध को बर्तनों में जमा किया जाता था और दूध के कुछ उत्पाद बनाए जाते थे जिससे दूध काम में आ जाता था। उदाहरण के लिए, जमा किए गए दूध को छानने के बाद बचे डेयरी के दानेदार टुकड़े, चीज़ जैसा कुछ, रोटियां बनाने के लिए बाजरा (मोती बाजरा) के साथ मिलाया जाता था। ये यात्रा में लंबे समय तक खराब नहीं होता था और सभी इसे खा सकते थे। 

राजस्थान में ऊंट पालकों के संगठन लोकहित पशु पालन संस्थान के निदेशक हनवंत सिंह राठौड़ ने बताया कि 1994 तक शायद ही कोई ऊंट का दूध बेचता था। राठौड़ ने कहा,हालांकि, ऊंटों के लिए घटते चरागाह और परिवारों का भरण-पोषण जैसी  बदलती स्थितियों के साथ  जानवरों के कल्याण पर प्रभाव पड़ा। इससे  हमें आजीविका के अलग-अलग विकल्प तलाशने पड़े। हमने दूसरों को यह विश्वास दिलाना शुरू किया कि ऊंटनी का दूध आमदनी का बेहतर जरिया हो सकता है।

कैमल करिश्मा की ओर से ऊंटनी के दूध से बनाया गया पनीर। तस्वीर - कैमल करिश्मा।
कैमल करिश्मा की ओर से ऊंटनी के दूध से बनाया गया चीज़। तस्वीर – कैमल करिश्मा।

राठौड़ ने कहा कि राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जालोर और मारवाड़ क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में अभी भी ऊंटनी का दूध नहीं बेचा जाता है। उदयपुर और गोडवार जैसी जगहों पर, पशुपालकों ने सिर्फ तीन दशक पहले ही ऊंटनी का दूध बेचना शुरू किया है, जो बदलती स्थितियों और मानसिकता का संकेत है। उन्होंने कहा,पहले हम ऊंटनी नहीं बेचते थे। 2002 तक, दूध पिलाने वाली ऊंटनी को सिर्फ बच्चों को दूध पिलाने के लिए पुष्कर मेले (पुष्कर में सालाना पशुधन मेला) में ले जाया जाता था। लेकिन अब ऊंटनी की मांग बढ़ गई है और ये 25,000-30,000 रुपये में बिकती हैं। ऊंटनी के दूध के औषधीय गुणों और चीज़ जैसे उत्पादों की मांग के चलते ये बदलाव हुए हैं।

श्रीवास्तव ने कहा कि इन पहलों का मुख्य उद्देश्य ऊंट संरक्षण और चारागाह का कायाकल्प करना है। देश भर में चरवाहों को अपनी आजीविका के लिए अलग-अलग तरह के खतरों का सामना करना पड़ा है जैसे कि कम होते चारागाह और जलवायु परिवर्तन। पश्चिमी राजस्थान में एक चरवाहे नेक मोहम्मद ने कहा कि भेड़ चराने के अपने 40 सालों के अनुभव में उन्हें मवेशियों के स्वास्थ्य से संबंधित इतनी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा, जितना अब हुआ है। उन्हें संदेह है कि जलवायु में बदलाव इसका कारण है। उन्होंने कहा, लंबे समय तक शुष्क और ठंडे दौर चल रहे हैं। सर्दियां गंभीर हैं। उन्होंने कहा कि फेफड़ों की अज्ञात बीमारी के कारण पिछले दो सालों में उनके समुदाय में 30 भेड़ों की मौत हो गई। उनका मानना है कि यह बदलते मौसम के कारण हो सकता है।

कच्छ में चरवाहों की शिकायत है कि 1961 में कच्छ के रण में प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए लाई गई आक्रामक प्रजाति  प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा अब लगभग 50 प्रतिशत घास के मैदान तक फैल गया है। इससे  देशी घास और पौधों को खतरा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण आक्रामक प्रजातियों का फैलाव अक्सर बढ़ जाता है। इसके चलते चरवाहों को अपने जानवरों को चराने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।

पनीर बनाने वाले गुलाब सिंह सोढ़ा और बहुला नेचुरल्स की प्रमिला देवासी। तस्वीर - बहुला नेचुरल्स।
पनीर बनाने वाले गुलाब सिंह सोढ़ा और बहुला नेचुरल्स की प्रमिला देवासी। तस्वीर – बहुला नेचुरल्स।

आगे बढ़ते डेयरी उद्योग में बकरी के दूध की स्थिति दयनीय

भारत दूध उत्पादन में दुनिया में पहले पायदान पर है, जिसमें से ज्यादातर गोवंश का दूध है, जो गाय और भैंसों से मिलता है। पशुपालन और डेयरी विभाग की सालाना रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, देश में कुल दूध उत्पादन में बकरी के दूध का योगदान लगभग तीन प्रतिशत है। इसकी मुख्य वजह वसा की मात्रा कम होना है। पांचाल डेयरी के कलोत्रा ने कहा,तो बकरी और भेड़ के दूध से चीज़ बनाने के पीछे का विचार इस चुनौती से निपटना और मांग पैदा करना है। इससे दूध कई दिनों तक ठीक भी रहता है और पशुपालकों को अपनी पारंपरिक आजीविका जारी रखने के लिए स्थायी आमदनी मिल सकती है। 

भेड़ के दूध से चीज़ बनाने वाले देश के कुछ उद्यमों में से एक पंचाल डेयरी चीज़ बनाने के लिए हर दिन 100 लीटर दूध का इस्तेमाल करती है, जिसमें से 70 लीटर बकरी का दूध होता है। वे दूध पूरी तरह से स्थानीय रबारी और भरवाड समुदायों से लेते हैं।

कलोत्रा ने कहा, “हाल तक हमें यह भी नहीं पता था कि चीज़ क्या होता है। इन सभी किस्मों को बनाना तो दूर की बात है।” कलोत्रा और घांघल को चीज़ निर्माता नम्रता सुंदरासन द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, जो सहजीवन की मदद वाली पहल है। सहजीवन एक गैर-लाभकारी संस्था है जो चरवाहों के साथ काम करती है। उन्होंने “कई प्रयोगों” के बाद उन किस्मों पर ध्यान केंद्रित किया जो वर्तमान में बेची जाती हैं। चेन्नई स्थित सुंदरासन के पास कासे चीज़ नामक पारंपरिक चीज़ का अपना ब्रांड है जो अब पांचाल डेयरी का सबसे बड़ा बिजनेस टू बिजनेस ग्राहक है। सुंदरासन ने कहा, “ये चीज़ की किस्में मुक्त-जीवित जानवरों से हैं जो उत्पाद को बेहतर बनाती हैं और इसके बारे में उपभोक्ता तेजी से जागरूक हो रहे हैं।” श्रीवास्तव की सहायता से उन्होंने राजस्थान में पशुपालकों के एक समूह को ऊंटनी के दूध से चीज़ बनाने का प्रशिक्षण भी दिया।

राजस्थान में कैमल करिश्मा की ओर से ऊंटनी के दूध से बनाया गया पनीर। तस्वीर - कैमल करिश्मा।
राजस्थान में कैमल करिश्मा की ओर से ऊंटनी के दूध से बनाया गया चीज़। तस्वीर – कैमल करिश्मा।

प्रतिस्पर्धी डेयरी उद्योग में सबसे ऊपर है चीज़

बीकानेर की बहुला नेचुरल्स तीन प्रकार का चीज़ बनाती है – पुराना चेशायर, हालौमी और फेटा। इस प्रक्रिया में स्थानीय चरवाहा समुदाय के चार सदस्य शामिल हैं एक सदस्य विशेष रूप से खरीदे गए दूध की गुणवत्ता पक्की करने के लिए लगा हुआ है। श्रीवास्तव ने कहा, वर्तमान में हम अलग-अलग डेयरी उत्पादों के लिए 45 पशुपालकों से 250-300 लीटर ऊंटनी का दूध खरीदते हैं। इसमें से 100 लीटर का उपयोग हर दिन चीज़ बनाने के चार या पांच बैचों के लिए किया जाता है उनके ज्यादातर ग्राहक बेंगलुरु, गोवा और दिल्ली जैसे शहरों से हैं।

श्रीवास्तव के अनुसार, ऊंटनी के दूध की मांग को बढ़ाने के लिए उन्होंने जिन सभी डेयरी उत्पादों पर प्रयोग किया है, उनमें चीज़ सबसे लोकप्रिय रहा है। उन्होंने कहा, “2020-21 में हमने स्वादयुक्त दूध, घी, कपकेक, कारमेलाइज्ड टॉफ़ी और ऊंटनी के दूध से बने बिस्कुट पेश करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया और कई चुनौतियों का सामना किया। लोग गाय के दूध से बने घी के एक खास स्वाद के आदी थे और बिस्कुट के लिए बाजार में काफी प्रतिस्पर्धा थी

गैर-लाभकारी केंद्र देहातीवाद के वसंत सबरवाल ने कहा कि हालांकि, चीज़ बना कर पशुपालक समुदायों और चरवाहों की पारंपरिक आजीविका को मदद नहीं मिल सकती है। यह संगठन पशुपालकों की आजीविका और पशुपालन प्रणालियों पर जानकारी को बढ़ाने के लिए काम करता है। उन्होंने कहा, हमारा मिशन पशुपालकों के दूध के लिए मांग पैदा करना है। (ऐसा करने के लिए) पनीर इन विकल्पों में से एक है” 


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सबरवाल ने कहा, पशुपालकों के दूध की खासियत यह है कि इलाके और जानवर क्या खाते हैं, इसके आधार पर दूध का स्वाद अलग-अलग होता है। यह दूध जैविक होता है और कुछ दूध, जैसे ऊंटनी के दूध में औषधीय गुण पाए गए है। उन्होंने कहा, “इसलिए हमारा उद्देश्य पशुपालकों के दूध को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना और इसके मूल्य को बढ़ाना है।”

इन पहलों पर ध्यान दिया जा रहा है और इन्हें बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जनवरी 2023 में, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशुपालक युवाओं का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जिसमें गैर-गोवंशीय दूध की मार्केटिंग के लिए संस्थागत प्लेटफार्म बनाने और पशुपालक डेयरी परिदृश्य में कारोबार करने में आसानी पर चर्चा की गई। अभी हाल ही में अक्टूबर 2023 में, राष्ट्रीय ऊंट अनुसंधान केंद्र ने बहुला नेचुरल्स को दिल्ली में एक कार्यक्रम में अपनी चीज़ की थाली पेश करने के लिए आमंत्रित किया, जहां भारत की राष्ट्रपति मौजूद थीं। पंचाल डेयरी धीरे-धीरे अपनी वेबसाइट के जरिए ई-कॉमर्स में कदम रख रही है, जबकि कैमल करिश्मा जनवरी 2024 में कनाडाई चीज़ पेशेवर, ट्रेवर वॉर्मधल के साथ पशुपालकों के लिए एक कार्यशाला की तैयारी कर रही है और बहुला नेचुरल्स अपने कारीगर चीज़ का निर्यात करने के लिए तैयार हो रहे हैं।

 

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बैनर तस्वीर: गुजरात के कच्छ में चीज़ बनाने वाले अर्पण कलोत्रा और पंचाल डेयरी के भीमसिंहभाई घांघल बकरी के दूध से चीज़ बनाते हुए। तस्वीर – पांचाल डेयरी।

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