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हसदेव अरण्य: विधानसभा के संकल्प, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के बावजूद बढ़ता कोयला खनन

छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से के 70 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हसदेव अरण्य के जंगल में पेड़ों की कटाई जारी है।। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से के 70 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हसदेव अरण्य के जंगल में पेड़ों की कटाई जारी है।। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

  • छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जहां से राजस्थान अपने बिजलीघरों के लिए कोयला ले जाता है।
  • दिल्ली से भी बड़े इलाके में फैला, हसदेव अरण्य का जंगल पारिस्थितकीय कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है, जिसे बचाने के लिए वहां के आदिवासी पिछले एक दशक से संघर्ष कर रहे हैं।
  • छत्तीसगढ़ की विधानसभा ने जुलाई 2022 में सर्वसम्मति से हसदेव अरण्य में सभी कोयला खदानों की अनुमतियां रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया, सरकार ने कोयला खदानों को गैरज़रुरी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में जुलाई 2023 में शपथपत्र दिया लेकिन पेड़ों की कटाई जारी है।

छत्तीसगढ़ में बहुचर्चित हसदेव अरण्य के जंगल में पेड़ों की कटाई जारी है। राज्यपाल से लेकर विधानसभा तक ने, हसदेव अरण्य में कोयला खदानों पर रोक लगाने की बात कही है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दे कर किसी नई कोयला खदान को गैरज़रुरी बताया है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी 1878 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य के घने जंगल में कोयला खनन का विरोध पिछले एक दशक से कर रहे हैं लेकिन इन सारी आवाज़ों को हाशिये पर डाल दिया गया है।

दिल्ली जैसे राज्य से भी बड़े इलाके में फ़ैले हसदेव अरण्य के जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जिनका आदिवासी विरोध कर रहे हैं। इन तीनों खदानों का प्रबंधन और खनन का काम राजस्थान सरकार ने अडानी समूह को सौंप दिया है।

तीन खदानों में से एक, परसा ईस्ट केते बासन के पहले चरण का खनन, जिसमें से 2028 तक कोयले की आपूर्ति होनी थी, उसमें क्षमता से अधिक कोयला निकाला गया और 2021 में ही इस खदान का कोयला ख़त्म हो गया। अब इस कोयला खदान के दूसरे चरण में खनन प्रक्रिया शुरु हो गई है। इसी तरह एक अन्य खदान परसा के लिए भी खनन की प्रक्रिया पर काम चालू है। तीसरी खदान, केते एक्सटेंशन को लेकर भी अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में यहां भी कामकाज शुरु हो सकता है।

इन तीनों ही खदानों के ख़िलाफ़ कई मामले हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित हैं। लेकिन, अदालतों की धीमी रफ़्तार के कारण इन पर सुनवाई नहीं हो पा रही है। अदालती कार्रवाई का हाल इससे समझा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने हसदेव अरण्य में एक खदान — परसा ईस्ट केते बासन में खनन को यह कहते हुए मंजूरी दी थी कि खदान से जंगल पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन करवा लिया जाए। लेकिन इस अध्ययन की रिपोर्ट तब आई, जब खदान के पहले चरण का लगभग सारा कोयला निकाला जा चुका था। 

विधानसभा के संकल्प, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के बावजूद बढ़ता कोयला खनन

हालांकि इतने लंबे संघर्ष के कारण अब तक हसदेव के जंगल को सुरक्षित रखने में आदिवासियों ने सफलता पाई है लेकिन आदिवासियों का मानना है कि जिस तरह से कॉरपोरेट घरानों और सरकार का दबाव बढ़ रहा है, उसमें हसदेव अरण्य को बचाने की लड़ाई आने वाले दिनों में और मुश्किल होती जाएगी।

आदिवासियों का तर्क है कि अगर एक भी नई खदान को मंजूरी दी गई तो एक-एक कर हसदेव अरण्य में सभी दो दर्जन कोयला खदानों में अंधाधुंध कोयला खनन शुरु कर दिया जाएगा और हसदेव के जंगल पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे। उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि छत्तीसगढ़ का हसदेव बांगो बांध, जिस हसदेव नदी पर है, उसका जल संग्रहण क्षेत्र हसदेव का जंगल ही है। अगर जंगल कटे और खनन गतिविधियां शुरु हुईं तो चार लाख हेक्टेयर के इलाके में सिंचाई करने वाला हसदेव बांगो बांध भी संकट में आ जाएगा।

छत्तीसगढ़ के आदिवासी 1878 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य के घने जंगल में कोयला खनन का विरोध पिछले एक दशक से कर रहे हैं लेकिन इन सारी आवाज़ों को हाशिये पर डाल दिया गया है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे
छत्तीसगढ़ के आदिवासी 1878 वर्ग किलोमीटर में फैले हसदेव अरण्य के घने जंगल में कोयला खनन का विरोध पिछले एक दशक से कर रहे हैं लेकिन इन सारी आवाज़ों को हाशिये पर डाल दिया गया है। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे

हसदेव अरण्य संघर्ष समिति के संयोजक, उमेश्वर सिंह आर्मो कहते हैं, सारे क़ानून ताक पर रख दिए गए हैं। दुनिया के सबसे ताक़तवर घरानों में शामिल कॉरपोरेट की हां में हां मिलाने के लिए लोकतंत्र के लगभग सारे स्तंभ तैयार बैठे हैं। अपना जंगल बचाने वाले हम आदिवासियों को ही अपराधी साबित करने की तैयारी चलती रहती है। लेकिन हम, इन सबका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। यह हसदेव को बचाने की लड़ाई नहीं है, यह हमारी सांसों को बचाने की लड़ाई है और हमारे पास ज़िंदा रहने के लिए लड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।

आर्मो इस इलाके के उन आदिवासियों में शुमार हैं, जो पिछले एक दशक से इन कोयला खदानों का विरोध कर रहे हैं। पिछले दो सालों से भी अधिक समय से तो आदिवासियों ने हरिहरपुर में स्थाई धरनास्थल बना रखा है, जहां हर दिन आदिवासी एकत्र होते हैं, अपना दुख-सुख साझा करते हैं और जंगल बचाने पर चर्चा करते हैं।

विधानसभा और राज्यपाल की भी सुनवाई नहीं

तीन साल पहले अक्टूबर 2021 में आदिवासियों ने हसदेव से रायपुर तक पदयात्रा करते हुए तत्कालीन राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके से मुलाकात कर उनसे इस बात की शिकायत की कि कोयला खदान के लिए संवैधानिक प्रावधानों को अनदेखा किया जा रहा है। आदिवासियों का कहना था कि हसदेव अरण्य, संविधान की पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र है, जहां किसी भी तरह की गतिविधि के लिए ग्राम सभा की अनुमति आवश्यक है। लेकिन इन खदानों के लिए फर्ज़ी ग्राम सभा की बैठक के कागजों का उपयोग किया गया। यहां तक कि जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उन्हें भी फर्ज़ी कागज में उपस्थित दिखाया गया।

इसी तरह वन अधिकार क़ानून के अनुसार, जंगल के इलाके में रह रहे लोगों को व्यक्तिगत पट्टों के वितरण का काम जब तक पूरा नहीं हो जाता, तब तक किसी तरह की खनन गतिविधि नहीं शुरु की जा सकती। लेकिन इस इलाके में अभी भी वन अधिकार क़ानून के अंतर्गत पट्टों के मामले लंबित हैं। इसके उलट कोयला खनन करने वाली कंपनी ने कुछ आदिवासियों से ग़ैरक़ानूनी तरीके से उनके वन अधिकार के पट्टे ही ख़रीद लिए।

दिल्ली जैसे राज्य से भी बड़े इलाके में फ़ैले हसदेव अरण्य के जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जिनका आदिवासी विरोध कर रहे हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे
दिल्ली जैसे राज्य से भी बड़े इलाके में फ़ैले हसदेव अरण्य के जंगल में तीन कोयला खदान राजस्थान सरकार को आवंटित हैं, जिनका आदिवासी विरोध कर रहे हैं। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे

राज्यपाल ने इन मामलों की जांच 15 दिनों में करने का आदेश दिया और तब तक सारी गतिविधियों को स्थगित करने के लिए भी कहा। राज्य सरकार ने इस मामले में कोई जांच आज तक नहीं करवाई।

इसी तरह 26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से, हसदेव क्षेत्र में आवंटित सभी कोल ब्लॉक रद्द करने का शासकीय संकल्प पारित किया। लेकिन इस शासकीय संकल्प पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। केंद्र ने तो इस संकल्प की परवाह नहीं की, इसके उलट तत्कालीन भूपेश बघेल की सरकार ने हसदेव अरण्य में नए कोयला खदानों की लंबित स्वीकृतियां जारी कर दी और पेड़ों की कटाई शुरु हो गई।

अगले साल यानी 2023 में जब हसदेव का मुद्दा दुनिया भर में गरमाने लगा तो जुलाई 2023 में राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य के कोयला खदानों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में अपनी तरफ़ से शपथपत्र दे कर नये कोयला खदानों को ग़ैरज़रुरी बताया।

इस शपथपत्र में राज्य सरकार ने विधानसभा के संकल्प का तो हवाला दिया ही, साथ ही भारत सरकार के उपक्रम वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा दो साल के अध्ययन के बाद दी गई इस चेतावनी का भी उल्लेख किया कि पहले से ही मानव-हाथी संघर्ष झेल रहे हसदेव-अरण्य में, नये कोयला खदान खुलने पर मानव-हाथी संघर्ष और बढ़ जाएगा। इस हलफनामे में कहा गया कि राज्य का कुल कोयला भंडार 70 हज़ार मीलियन टन है और हसदेव अरण्य में इसका महज 8 फ़ीसदी कोयला है।


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राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में दावा किया कि राजस्थान सरकार को आवंटित जिस परसा ईस्ट केते बासन में खुदाई जारी है, उसमें 350 मिलियन टन कोयला है और यह राजस्थान के 4340 मेगावाट बिजली संयंत्र की अगले 20 साल की ज़रुरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

एक दूसरे को बताया ज़िम्मेवार

इन तमाम जांच के आदेश, विधानसभा का संकल्प और सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफ़नामे का दूसरा सच यह है कि राज्य सरकार ने कभी भी अपनी तरफ से इन खदानों के लिए जारी स्वीकृतियां रद्द नहीं की। विपक्ष में हसदेव अरण्य के आदिवासियों के साथ खड़ी होने वाली कांग्रेस पार्टी, जब राज्य में सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इन खदानों को ज़रुरी बताया। उनके कार्यकाल में हज़ारों पेड़ों की कटाई भी हुई। इसी तरह जब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी तो उसके नेता हसदेव अरण्य में पहुंच कर आदिवासियों का साथ देते थे। भाजपा के प्रवक्ताओं ने तब कांग्रेस सरकार को लगातार घेरने की कोशिश की।

लेकिन कांग्रेस सरकार की विदाई और राज्य में भाजपा की सरकार के आते ही जब हसदेव में पेड़ों की कटाई शुरु हुई तो भाजपा सरकार के नये मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने साफ़-साफ़ गेंद पिछली सरकार के पाले में यह कहते हुए डाल दी कि पेड़ों की कटाई पिछली सरकार द्वारा जारी आदेश के तहत हो रही है और उनकी सरकार ने पेड़ों की कटाई का आदेश जारी नहीं किया है।

26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से, हसदेव क्षेत्र में आवंटित सभी कोल ब्लॉक रद्द करने का शासकीय संकल्प पारित किया। लेकिन इस शासकीय संकल्प पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे
26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से, हसदेव क्षेत्र में आवंटित सभी कोल ब्लॉक रद्द करने का शासकीय संकल्प पारित किया। लेकिन इस शासकीय संकल्प पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे

यह और बात है कि 30 जनवरी को राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के दावे को झूठा ठहरा दिया। भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में दावा किया कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को कोयला देने के लिए कहा और विष्णुदेव साय ने तीन बार फोन किया। रात को साढ़े ग्यारह बजे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने फोन करके कहा कि मैंने आपका काम कर दिया और कोयला खनन का काम चालू है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं, हसदेव के जंगल में रहने वाले आदिवासी अकेले नहीं हैं। छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ से बाहर का नागरिक समाज उनके साथ खड़ा है। हम सब मिल कर हसदेव के जंगल को बचाने की लड़ाई में जुटे हुए हैं। लेकिन संकट ये है कि सरकारें, अपने ही नागरिकों की नहीं सुनना चाहतीं। यहां तक कि जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने चाहे जिस मंशा से भी, सर्वसम्मति से हसदेव में कोयला खदानों को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन उसे भी कोई सुनने के लिए तैयार नहीं है। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अभिभावक, राज्यपाल की भी कोई नहीं सुन रहा है।

आलोक शुक्ला के सवाल अपनी जगह हैं लेकिन हसदेव अरण्य के मामले में जनता की आवाज़, नक्कारखाने की तूती बन कर रह गई है, जिसे अभी तो कम से कम कोई भी, सुनने के लिए तैयार नहीं है।

 

बैनर तस्वीर: छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से के 70 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हसदेव अरण्य के जंगल में पेड़ों की कटाई जारी है।। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल

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