Site icon Mongabay हिन्दी

घर जरूर लौटते हैं अजगर, समय लगता है लेकिन लौट आते हैं: स्टडी

जर्मनी के स्टुटगर्ट के जूलॉजिकल हार्डन में एक इंडियन रॉक पायथन। इंडियन रॉक पायथन ऐसे सांप हैं जिनके बारे में बहुत कम अध्ययन किया गया है। तस्वीर- होल्गर क्रिस्प/विकिमीडिया कॉमन्स।

जर्मनी के स्टुटगर्ट के जूलॉजिकल हार्डन में एक इंडियन रॉक पायथन। इंडियन रॉक पायथन ऐसे सांप हैं जिनके बारे में बहुत कम अध्ययन किया गया है। तस्वीर- होल्गर क्रिस्प/विकिमीडिया कॉमन्स।

  • दक्षिण भारत के दो टाइगर रिजर्व में पाए जाने इंडियन रॉक पायथन पर हुई एक टेलीमेट्री स्टडी में सामने आया है कि इसके घर की रेंज लगभग 4 वर्ग किलोमीटर होती है।
  • इस टीम ने पहले पता लगाया था कि एक वयस्क नर अजगर की लंबाई आम धारणा से कम होती है।
  • पहले की गई स्टडी में पता चला है कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के रॉक पायथन के प्रजनन के समय में अंतर भी पाया गया है।

हाल ही में दक्षिण भारत के दो टाइगर रिजर्व में 14 इंडियन रॉक पायथन (Python molurus) पर हुई एक टेलीमेट्री स्टडी में इस प्रजाति के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इस स्टडी ने इन सांपों की पारिस्थितिकी, वितरण, जनसंख्या और भारत में इनके व्यवहार से जुड़ी सीमित जानकारी में इजाफा किया है। भारत दुनिया के कई बड़े सांपों को घर है।

तमिलनाडु के सत्यमंगलम और मुदुमलाई रिजर्व में की गई इस स्टडी का उद्देश्य इस प्रजाति के घर की रेंज के बारे में समझना था। इस रिसर्च पेपर में कहा गया है कि किसी प्रजाति के घर की रेंज समझने से उस प्रजाति के व्यवहार की पारिस्थितिकी को समय और स्थान की स्केल के हिसाब से समझा जा सकता है। कई मूलभूत कारक जैसे कि खाना ढूंढने के पैटर्न, विस्थापन, फैलाव और प्रजनन की सफलता सीधे तौर पर जानवरों के इस्तेमाल की जगह पर निर्भर करता है।

भारत में दुनिया में सांपों की सबसे ज्यादा प्रजातियों वाला देश माना जाता है। यहां अजगर की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं- इंडियन रॉक पायथन, बर्मीज पायथन और रेटिकुलेटेड पायथन। जहां इंडियन रॉक पायथन भारतीय महाद्वीप में पाया जाता है, वहीं बर्मीज पायथन सिर्फ पूर्वोत्तर भारत में पाया जाता है और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सीमित क्षेत्र में पाया जाता है। वहीं, रेटिकुलेटेड पायथन पूरे दक्षिणपूर्व एशिया में पाया जाता है लेकिन भारत में यह सिर्फ निकोबार में सीमित है। 

घर की लंबी रेंज और लौटने की धीमी रफ्तार

वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक और स्टडी की अगुवाई करने वाले चिन्नास्वामी रमेश ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि रिसर्च टीम को पता चला कि इन अजगरों की होम रेंज लगभग 4 वर्ग किलोमीटर होती है। इसके अलावा, अगर इन सांपों को अपने घर के आसपास की 13 किलोमीटर की रेंज में छोड़ दिया जाए तो ये अपने घर लौट सकते हैं। वह बताते हैं, “हमने पाया कि एक अजगर ने 13 किलोमीटर की दूरी तय करके अपने घर पहुंचने में 11 महीने का समय लिया लेकिन आखिरकर वह अपने होम रेंज में लौट ही आया।” रमेश के मुताबिक, इससे यह नतीजा निकलता है कि किसी भी रेस्क्यू किए गए सांप को अगर 13 किलोमीटर की रेंज के बाहर छोड़ा जाए तो वह अपने घर नहीं लौट पाएगा।”

रेडियो टेलीमेट्री स्टडी के लिए पकड़े गए इंडियन रॉक पायथन के साथ रिसर्चर्स की टीम। इंडियन रॉक पायथन प्रजाति की होम रेंज समझने के लिए कुल 14 अजगरों पर रेडियो टेलीमेट्री स्टडी की गई। तस्वीर- WII इंडियन पायथन टेलीमेट्री रिसर्च टीम।
रेडियो टेलीमेट्री स्टडी के लिए पकड़े गए इंडियन रॉक पायथन के साथ रिसर्चर्स की टीम। इंडियन रॉक पायथन प्रजाति की होम रेंज समझने के लिए कुल 14 अजगरों पर रेडियो टेलीमेट्री स्टडी की गई। तस्वीर- WII इंडियन पायथन टेलीमेट्री रिसर्च टीम।

रिसर्चर्स ने पाया कि दूसरे बड़े सांपों की प्रजाति जैसे कि किंग कोबरा के उलट इन सांपों के वजन और उनके आकार और होम रेंज में कोई आपसी संबंध नहीं पाया गया। थाईलैंड में की गई एक स्टडी के मुताबिक, बड़े किंग कोबरा (Ophiophagus hannah) का होम रेंज बड़ा होता है जो यह दर्शाता है कि इन सांपों के आकार, मेटाबोलिक डिमांड और खाना ढूंढने के प्रयासों में आपसी संबंध होता है।

अजगर शर्मीले और छिपकर रहने वाले ऐसे सांप होते हैं जो इंसानों से दूर रहना पसंद करते हैं। भले ही इनका आकार डराने वाला होता है लेकिन इंसानों पर इनके हमलों की खबरें बहुत कम ही आती हैं। आमतौर ये सांप इंसानों की ओर से परिवर्तित किए गए क्षेत्रों जैसे की खेतों और खाली मैदानों में पाए जाते हैं, जहां इनके शिकार पर्याप्त मात्रा में होते हैं। यह जरूरी है कि अजगरों के निवास स्थलों के पास रहने वाले किसान समुदाय को इन बड़े सांपों के फायदों के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि उनका संरक्षण हो सके। रमेश जैसे विशेषज्ञों के मुताबिक, ये सांप किसानों के लिए मुफ्त में पेस्ट कंट्रोल का काम करते हैं।

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के सेंटर फॉर ईकोलॉजिकल साइंसेज के वैज्ञानिक कार्तिक सुनागर कते हैं कि इस तरह की स्टडी बेहद जरूरी हैं क्योंकि हम भारतीय सांपों के बारे में बहुत कम जानते हैं। वह आगे कहते हैं, “यह हैरान करने वाला है कि हम बडे़ स्तनधारी जीवों के बारे में तो बहुत जानते हैं लेकिन सांपों के बारे में बहुत कम जातन हैं। इस तरह के शर्मीले जानवरों जैसे कि सांपों की होम रेंज के बारे में जानने से संरक्षण से जुड़ी रणनीतियां बेहतर तरीके से बनाई जा सकती हैं।”

वयस्क अजगर के लिए अहम नहीं होता है आकार

DST-SERB (द डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी- साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड) के सहयोग से हुई इस टेलीमेट्री स्टडी में तमिलनाडु के वन विभाग और सत्यमंगल टाइगर रिजर्व की वेटेरिनरी टीम ने भी मदद की. इसके अलावा, वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने ट्रांसमिटर लगाने में मदद की। रेडियो टेलीमेट्री में सांप में फिट किए गए ट्रांसमिटर से निकलने वाले रेडियो सिग्नल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए सांप की लोकेशन पता की जाती है और इसी के हिसाब से सांप को ट्रैक करके उसकी होम रेंज, उसके बर्ताव और ईकोलॉजी समेत अन्य कई चीजों का अध्ययन किया जाता है।


और पढ़ेंः तस्करी से बचाये वन्यजीवों की बढ़ती संख्या बनी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए समस्या


रमेश ने बताया कि उत्तर और दक्षिण भारत में अजगरों पर उनके पुराने अध्यययनों में पता चला है कि उनके प्रजनन के समय में अंतर है। जहां दक्षिण के अजगर जनवरी में शुरू करते हैं वहीं उत्तर में एक महीने बाद यह प्रक्रिया शुरू होती है। हो सकता है कि ऐसा वातावरण के तापमान की वजह से होता है। प्रजनन के तरीके में अंतर देखा गया कि उत्तर भारत में सात से आठ नर अजगर एक मादा से संबंध बनाते हैं वहीं दक्षिण भारत में एक मादा से दो से तीन नर अजगर संबंध बनाते हैं। रमेश कहते हैं कि रेंगने वाले जीव समतापी होते हैं और वातावरण के साथ इनके शरीर का तापमान बदलता रहता है ऐसे में यह समझना जरूरी है कि तापमान की वजह से इनका व्यवहार और प्रजनन की प्रक्रिया कैसे बदलती है।

स्टडी के लिए इंडियन रॉक पायथन पर रेडियो टेलीमेट्री डिवाइस लगाते पशुओं के डॉक्टर। तस्वीर- WII इंडियन पायथन टेलीमेट्री रिसर्च टीम।
स्टडी के लिए इंडियन रॉक पायथन पर रेडियो टेलीमेट्री डिवाइस लगाते पशुओं के डॉक्टर। तस्वीर- WII इंडियन पायथन टेलीमेट्री रिसर्च टीम।

रमेश और उनकी टीम की ओर से साल 2021 में की गई एक पुरानी स्टडी में एक वयस्क रॉक पायथन के बारे में भी अहम जानकारी मिली है। पहले माना जाता था कि जब कोई अजगर सात से आठ फीट का हो जाए तो वह वयस्क हो जाता है लेकिन रिसर्चर्स ने पाया कि एक नर अजगर जो कि 6 से साढ़े 6 फीट (198 सेंटीमीटर) का था वह खुद से बड़ी मादा के साथ संबंध बना रहा था। रमेश के मुताबिक, इस नतीजे से इस प्रजाति के संरक्षण से जुड़ी रणनीति बनाई जा सकती है। वह कहते हैं, “भारत के लिए यह अच्छी खबर है क्योंकि यहां अजगरों की संख्या कम होती जा रही है। अजगर को पकड़कर रखने से ब्रीडिंग करना आसान होगा।”

हालांकि, यह अमेरिका के लिए बुरी खबर है जहां बर्मीज अजगर पाए जाते हैं, पहले इसे इंडियन रॉक पायथन की उप प्रजाति माना जाता था। यह प्रजाति स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर एक आक्रमणकारी प्रजाति के रूप में बुरा असर डाल रही है। रमेश कहते हैं, “इंडियन और बर्मीज अजगरों की जेनेटिक संरचना बहुत अलग नहीं है और इनमें आपस में इंटर ब्रीडिंग भी होती है।” विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह स्टडी ऐसे अजगरों के संरक्षण से जुड़ी रणनीतियों को बढ़ाने में मदद करेगी जिनकी संख्या कम होती जा रही है।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: जर्मनी के स्टुटगर्ट के जूलॉजिकल हार्डन में एक इंडियन रॉक पायथन। इंडियन रॉक पायथन ऐसे सांप हैं जिनके बारे में बहुत कम अध्ययन किया गया है। तस्वीर– होल्गर क्रिस्प/विकिमीडिया कॉमन्स।

Exit mobile version