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स्लॉथ भालू के आवासों के लिए खतरा बनी आक्रामक पौधे की एक प्रजाति

स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोदनकर/विकिमीडिया कॉमन्स 

स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तस्वीर- रुद्राक्ष चोदनकर/विकिमीडिया कॉमन्स 

  • स्लॉथ भालू गुजरात के पांच वन्यजीव अभयारण्यों में रहते हैं।
  • शोधकर्ताओं ने जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य में इस बात की जांच की कि आक्रामक पौधा प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा स्लॉथ भालू के आवास को कैसे प्रभावित करता है।
  • जहां एक तरफ यह आक्रामक प्रजाति स्लॉथ भालू के आवासों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही थी, वहीं ऊंचाई, ऊबड़-खाबड़ इलाके, घने वन आवरण और खुले झाड़ियों वाले इलाकों ने आवासों पर सकारात्मक असर डाला।

गुजरात के जेसोर स्लोथ भालू अभ्यारण्य में हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह जानने की कोशिश की गई कि आक्रामक प्रजाति “प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा”, शुष्क इलाके में स्लोथ भालू के रहने की जगह को कैसे प्रभावित करती है। यह पहली बार है कि इस विषय पर कोई नतीजापरक अध्ययन किया गया है। हालांकि इससे पहले भी शोध किए गए थे। लेकिन उनमें यह देखने के लिए अध्ययन किया गया था कि आक्रामक पौधे स्थानीय पेड़-पौधों की विविधता, आबादी और संख्या को कैसे प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने इस बात की भी जांच की थी कि ये आक्रामक पौधे जंगली जीवों और पारिस्थितिक तंत्र पर कैसा प्रभाव डालते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, गुजरात को इसके महत्वपूर्ण स्लॉथ बियर आबादी और विशेष रूप से राजस्थान से जुड़े उत्तरी क्षेत्रों में प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा की व्यापक उपस्थिति के कारण चुना गया था। अध्ययन के लेखकों में से एक आशीष जांगिड़ ने कहा, “अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि यह आक्रामक पौधा स्लॉथ बियर के आवास को इस्तेमाल करने के पैटर्न को कैसे प्रभावित करता है। राज्य की विविध पारिस्थितिकी ने आक्रामक प्रजातियों और वन्यजीवों के बीच संबंधों की जांच करने और संरक्षण योजना के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान का एक आदर्श अवसर दिया है।”

गुजरात की पारिस्थितिकी

गुजरात में वर्षा पैटर्न के आधार पर अलग-अलग तरह के कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं। कच्छ और बनासकांठा, पाटन और जामनगर जिलों के कुछ हिस्सों सहित सुदूर उत्तर और उत्तर-पश्चिम शुष्क हैं। इसके विपरीत, सूरत, नर्मदा, नवसारी, वलसाड और डांग जिलों सहित सुदूर दक्षिण में हरी-भरी वनस्पतियों के साथ उप-आर्द्र जलवायु है। राज्य का बाकी बचा हिस्सा अर्ध-शुष्क जलवायु के अंतर्गत आता है, जिसकी विशेषता कम घनी वनस्पति, बार-बार सूखा और मिट्टी के कटाव की आशंका है।

अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (एटीआरईई) के शोधकर्ता चेतन मिशर बताते हैं, “प्राकृतिक रूप से सूखे इलाकों में आम तौर पर पेड़-पौधों की विविधता कम होती हैं और किसी भी नई प्रजाति के लिए खुद को स्थापित करना आसान होता है।” मिशर अध्ययन से जुड़े नहीं थे।

प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा मूल रूप से मध्य और दक्षिण अमेरिका से है और इसे 1877 में भारत में लाया गया था। किसी भी परिस्थिति में उग जाना इसकी खासियत है। यह कठोर वातावरण में भी फल-फूल जाती है और सूखे और बीमारी का सामना भी डटकर करती है। इसकी जड़ प्रणाली इतनी मजबूत है कि वो नीचे भूजल तक पहुंच जाती है और यह पौधा भीषण गर्मी में भी जिंदा बना रह सकता है। मिशर कहते हैं, “इस प्रजाति की इसी खासियत के चलते देश के शुष्क इलाकों में इन्हें जानबूझकर रोपा गया था। इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों की आजीविका और ईंधन के लिए लकड़ी मुहैया कराना और रेगिस्तानों को हरे-भरे जगहों में तबदील करना था।”

समय के साथ, इस प्रजाति को लेकर चिंताएं बढ़ने लगीं। जहां एक ओर शोध से पता चला कि इस प्रजाति के अतिक्रमण से देशी वनस्पतियों पर महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर 2015 में प्रकाशित 3,624 जानवरों के अवलोकनों के एक व्यापक विश्लेषण ने वन्यजीव विविधता, फिटनेस और पारिस्थितिक तंत्र के कामकाज पर इसके हानिकारक प्रभाव को उजागर किया। अगर बात इस पौधे के फायदों की करें, तो इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जोकि वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हों। नतीजतन, इसे भारत में एक आक्रामक विदेशी पौधे की प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया और अब इसे राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने शीर्ष आक्रमणकारी प्रजाति बताया है।  

गुजरात में स्लॉथ भालू काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं और उत्तरी क्षेत्रों में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा की भी घनी आबादी है। तस्वीर- आशीष जांगिड़ 
गुजरात में स्लॉथ भालू काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं और उत्तरी क्षेत्रों में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा की भी घनी आबादी है। तस्वीर- आशीष जांगिड़

प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा के तेजी से फैलने से जिन जानवरों पर असर पड़ा है उनमें से स्लॉथ भालू भी एक हैं। स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाए जाते हैं और घास के मैदानों से लेकर जंगलों तक विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में निवास करते हैं। लेकिन अवैध शिकार और आवास के नुकसान के कारण उनकी आबादी तेजी से कम होती जा रही है और ये स्थानीय तौर पर विलुप्ति होते जा रहे हैं। अब इनकी आबादी भारत, नेपाल, श्रीलंका और भूटान के निचले इलाकों तक सिमट कर रह गई है। इंसानो के साथ संघर्ष और स्लॉथ भालू के हमलों की वजह से होने वाली मौतों ने भी संरक्षण प्रयासों में बाधा डाली है। इसलिए, प्रभावी संरक्षण और उनके दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए उनके आवास उपयोग को प्रभावित करने वाले कारकों को समझना जरूरी हो गया है।

गुजरात में स्लॉथ भालू पांच वन्यजीव अभयारण्यों में निवास करते हैं: शूल्पनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य, जांबुघोड़ा वन्यजीव अभयारण्य, रतनमहल वन्यजीव अभयारण्य, जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य और बलराम-अंबाजी वन्यजीव अभयारण्य। ये भालू मुख्य रूप से दीमकों, चींटियों और फलों को खाते हैं और यहां वन के फिर से फलने फूलने और जैव विविधता के रखरखाव में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जांगिड़ कहते हैं, “भारत भर के कई शुष्क पर्णपाती जंगलों में स्लॉथ भालू महत्वपूर्ण और संरक्षक प्रजातियों के रूप में काम करते हैं, खासकर बाघ और हाथियों जैसे बड़े स्तनधारियों की अनुपस्थिति में।”


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उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उनके आवास उपयोग, आहार संबंधी आदतों और आंदोलन पैटर्न के बारे में सीमित जानकारी उपलब्ध है। इसी पर ध्यान देते हुए अध्ययन ने जेसोर स्लॉथ भालू अभयारण्य के प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा से घिरे उनके आवासों पर मौसमी परिवर्तनों की जांच की।

स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। घास के मैदानों से लेकर जंगलों तक विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में इनका आवास है। तस्वीर- एन.ए.नज़ीर/विकिमीडिया कॉमन्स
स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। घास के मैदानों से लेकर जंगलों तक विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में इनका आवास है। तस्वीर– एन.ए.नज़ीर/विकिमीडिया कॉमन्स

आवास परिवर्तन

शोधकर्ताओं ने सर्दी, गर्मी और मानसून के मौसम के दौरान अभयारण्य में 1 किमी के रास्ते पर संकेत सर्वे (साइन सर्वे) किया। ऊंचाई, ऊबड़-खाबड़ इलाका, वन घनत्व, खुली झाड़ियां वाले इलाके, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का फैलाव और मानवीय अतिक्रमण जैसे कारकों का स्लॉथ भालू पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण करने से प्रमुख जानकारी सामने आई।

जहां प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा की संख्या ज्यादा थी, वहां स्लॉथ भालू के आवास उपयोग को उन्होंने नकारात्मक रूप से प्रभावित किया था। जबकि ऊंचाई, ऊबड़-खाबड़ इलाके, घने वन आवरण और खुले झाड़ी क्षेत्रों जैसे कारकों ने उनके आवासों को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया। जांगिड़ कहते हैं, “सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव आवास में बदलाव है। प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा स्थानीय पौधों को खत्म कर देता है, जिन पर जीव निर्भर करते हैं और साथ ही उनके रहने के लिए जगह भी कम कर देता है।” शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्हें ये जानकर काफी हैरानी हुई कि कभी कभी स्लॉथ भालू अपने खाने के लिए प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा से भरे इलाकों की तरफ चले जाते हैं। वह इसकी फली खाते हैं, जिससे संभावित रूप से बीज फैलाव में सहायता मिलती है। 

अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्लॉथ भालू के मौसम के अनुसार अलग-अलग आवास का उपयोग करते हैं। जब जंगलों और कृषि क्षेत्रों में भरपूर मात्रा में खाने के लिए पेड़-पौधे मिलते हैं, तो भालू प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा से भरे इलाकों की तरफ जाने से बचते हैं। लेकिन जब ये फसले या पौधे नहीं होते, तो वे प्रोसोपिस पैच की ओर रुख कर लेते हैं।

विभिन्न मौसमों में मानवीय अतिक्रमण अलग-अलग होता है। गर्मियों और सर्दियों के दौरान भालू बस्तियों के पास ज्यादा दिखाई देते हैं। शायद इसकी बड़ी वजह खाद्य संसाधनों की उपलब्धता है। जांगिड़ कहते हैं, ” शोध में हमें ये भी पता चला कि इन महीनों के दौरान स्लॉथ भालू किन फसलों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं। यह उनके खाने की रुचि को दर्शाता है।”

अध्ययन के दौरान कैमरा ट्रैप में कैद एक स्लॉथ भालू। तस्वीर- आशीष जांगिड़ 
अध्ययन के दौरान कैमरा ट्रैप में कैद एक स्लॉथ भालू। तस्वीर- आअध्ययन के दौरान कैमरा ट्रैप में कैद एक स्लॉथ भालू। तस्वीर- आशीष जांगिड़ शीष जांगिड़

आगे का रास्ता

ये निष्कर्ष भारत के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्लॉथ भालू के व्यवहार के बारे में काफी जानकारी देते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन संबधों को पूरी तरह से समझने और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है।

इसी समय उन्होंने राह में आने वाली बाधाओं को भी पहचाना। उदाहरण के लिए, स्लॉथ भालू पर आक्रामक पौधों की वजह से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाने में कई चुनौतियां भी है। क्योंकि यहां के लोगों की प्राथमिकताएं अलग है। दरअसल स्थानीय समुदाय अक्सर इन पौधों का इस्तेमाल अपनी लकड़ी की जरूरतों और अन्य उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करते हैं। फिर भी, शोधकर्ताओं का मानना है कि समुदायों को उन्मूलन प्रयासों में शामिल करना और उन्हें संरक्षण के बारे में जानकारी देना प्रभावशाली हो सकता है।

स्लॉथ भालू-मानव मुठभेड़ों को कम करने के लिए एक सुझाव भी दिया गया है। इस तरह की मुठभेड़ों को कम करने के लिए ऐसी फसलों को उगाया जाना चाहिए, जिन्हें भालू खाना पसंद नहीं करते हैं। माधव कहते हैं, “हमें भालू को आकर्षित करने वाली फसलों के बजाय नकदी फसलों की खेती करनी होगी। इसके अलावा मानव बस्तियों और खेतों के पास से प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा हेजेज को उखाड़ कर फेंकना होगा।” माधव एक स्थानीय किसान हैं जिन्होंने पिछले साल क्षेत्र के किसानों को स्लॉथ भालू के प्रति जागरूक करने के लिए गुजरात वन विभाग की ओर से आयोजित सत्र में भाग लिया था। इसकी फंडिंग राज्य सरकार ने की थी।

स्थानीय समुदाय अक्सर लकड़ी और अन्य जरूरतों के लिए प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर-आशीष जांगिड़ 
स्थानीय समुदाय अक्सर लकड़ी और अन्य जरूरतों के लिए प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर-आशीष जांगिड़

स्लॉथ भालू और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करना और वन्यजीव संरक्षण प्रयासों का समर्थन करना जरूरी है। जांगिड़ ने कहा, “ अगर ऐसा नहीं किया गया तो लंबे समय में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का आक्रमण भालुओं के आवास के नुकसान को और बढ़ा सकता है। इससे मानव-भालू संघर्ष बढ़ने की संभावना है। स्लॉथ भालू की सुरक्षा और मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए इस खतरे से निपटना जरूरी हो जाता है। इसके अलावा, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा का आक्रमण अन्य वन्यजीवों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह आवासों को बदलता है और जैव विविधता को कम करता है, पारिस्थितिक संतुलन को बाधित करता है। पूरे पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इसके प्रसार को रोकना जरूरी है।” 

 

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बैनर तस्वीर: स्लॉथ भालू भारतीय उपमहाद्वीप के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। तस्वीर– रुद्राक्ष चोदनकर/विकिमीडिया कॉमन्स 

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