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संरक्षणवादी और आशा की संदेशवाहक जेन गुडाल का 91 वर्ष की आयु में निधन [श्रद्धांजलि]

2024 के अंत में मोंगाबे-इंडिया टीम के साथ जेन गुडाल। तस्वीर: कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

2024 के अंत में मोंगाबे-इंडिया टीम के साथ जेन गुडाल। तस्वीर: कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

  • चिंपैंज़ी पर शोध करने वाली वैज्ञानिक (प्राइमेटोलॉजिस्ट), संरक्षणवादी और आशा की संदेशवाहक जेन गुडाल का 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है।
  • अपने करियर के शुरुआती वर्षों में, तंजानिया के गोंबे के जंगलों में चिंपैंज़ियों के व्यवहार का अध्ययन करते हुए, उन्होंने इंसानों की गैर-मानव जानवरों को देखने की सोच को बदलने में अहम भूमिका निभाई।
  • पिछले वर्ष मोंगाबे-इंडिया से बातचीत में गुडाल ने अपने काम, व्यक्तिगत प्रयास की अहमियत और जैव विविधता की संरक्षक के रूप में महिलाओं की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की थी।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर चिंपैंज़ी वैज्ञानिक (प्राइमेटोलॉजिस्ट) और संरक्षणवादी जेन गुडाल का 1 अक्टूबर को लॉस एंजेलिस, अमेरिका में निधन हो गया। वह 91 वर्ष की थीं।

गुडाल ने अपने शोध कार्य से वैज्ञानिकों और संरक्षण समुदाय का गहरा सम्मान हासिल किया। मोंगाबे के संस्थापक और सीईओ रेट बटलर ने अपनी श्रद्धांजलि में लिखा: “छह दशकों में, वह पूर्वी अफ्रीका के जंगलों में एक असंभव सी लगने वाली युवा शोधकर्ता से अपने समय की सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक और संरक्षणवादी बनीं। गोंबे में उनका धैर्यपूर्ण फील्डवर्क प्राइमेटोलॉजी के क्षेत्र में बदलाव लेकर आया, इंसानों की विशिष्टता पर चली आ रही धारणाओं को चुनौती दी और विज्ञान को जानवरों की चेतना पर विचार करने के लिए मजबूर किया।”

वह एक कार्यकर्ता भी थीं। अपने शोध के नतीजों को उन्होंने सामाजिक कार्रवाई में बदला। बटलर लिखते हैं: “उन्होंने जेन गुडाल इंस्टीट्यूट की स्थापना की, अफ्रीका में आश्रय स्थल और सामुदायिक कार्यक्रम शुरू किए और युवाओं के लिए रूट्स एंड शूट्स आंदोलन के ज़रिए लाखों लोगों को प्रेरित किया। उनका असर विज्ञान से कहीं आगे तक पहुंचा। वह संयुक्त राष्ट्र की शांति दूत बनीं, पशु कल्याण की पैरोकार और वैश्विक संकट के दौर में संरक्षण की मज़बूत आवाज़। इसके बावजूद, वह हमेशा केवल ‘जेन’ के नाम से जानी गईं। एक शख्सियत जिसने हमेशा कहा कि आशा मूर्खता नहीं बल्कि ज़रूरी है।”

1960 के दशक में जेन गुडाल। इमेज: सीबीएस
1960 के दशक में जेन गुडाल। तस्वीर: सीबीएस

सेवानिवृत्त वन अधिकारी और संरक्षणवादी मोहन आलंबेथ कहते हैं: “जेन गुडाल का जीवन जिज्ञासा, करुणा और अडिग आशा का प्रमाण था। 1960 में, सिर्फ एक नोटबुक और दूरबीन लेकर वह गोंबे के जंगलों में गईं और विज्ञान की दिशा बदल दी। उनका यह खोज कि चिंपैंज़ी औज़ार बनाते और इस्तेमाल करते हैं, इंसानों की विशिष्टता पर चले आ रहे विश्वास को तोड़ गया। लेकिन उनकी कोमल मौजूदगी, ध्यान से सुनना, अपने अध्ययन विषयों को नाम देना और जानवरों को संवेदनशील प्राणी मानना, यही वह चीज़ थी जिसने फील्ड रिसर्च को नई आत्मा दी।”

वह आगे लिखते हैं: “विज्ञान से परे, गुडाल शांति और पृथ्वी की आवाज़ बनीं। जेन गुडाल इंस्टीट्यूट और रूट्स एंड शूट्स कार्यक्रम के ज़रिए उन्होंने लाखों युवाओं को जानवरों, इंसानों और धरती की देखभाल के लिए प्रेरित किया। वह कोई साधारण विरासत नहीं छोड़कर गईं बल्कि एक जीवित विरासत: हर संरक्षित जंगल में, हर बच्चे में जो जिज्ञासा से जागा और हर जीव में जिसे सम्मान मिला। उन्होंने जंगल के साथ चलकर हमें सुनना सिखाया।”

2024 में मोंगाबे-इंडिया टीम के साथ जेन गुडाल। तस्वीर: सौमित्र शिंदे/मोंगाबे
2024 में मोंगाबे-इंडिया टीम के साथ जेन गुडाल। तस्वीर: सौमित्र शिंदे/मोंगाबे
1974 में जेन गुडाल और उनके पति ह्यूगो वान लाविक कैमरा लगाते हुए, जिसे एक बंदर देख रहा है। (एपी फोटो)
1974 में जेन गुडाल और उनके पति ह्यूगो वान लाविक कैमरा लगाते हुए, जिसे एक बंदर देख रहा है। (एपी फोटो)

गुडाल मोंगाबे की मित्र और एंबेसडर भी थीं। नवंबर 2024 में, मोंगाबे इंडिया की टीम ने मुंबई में उनसे मुलाकात की और बातचीत की। उन्होंने कहा कि उनके लिए पर्यावरण पर संवाद करना, शोध और कार्रवाई जितना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने याद किया कि 1986 की एक कॉन्फ्रेंस में उन्हें यह जानकर झटका लगा कि अफ्रीका के जंगल खतरे में हैं और इसका मतलब है कि चिंपैंज़ियों का भविष्य भी संकट में है।

उन्होंने मोंगाबे-इंडिया से कहा: “मुझे गोंबे के वर्षावन में रहकर इन चिंपैंज़ियों को जानना बहुत अच्छा लगता। लेकिन अब यह समस्या बन गई है। मुझे लगता है कि मुझे कुछ करना होगा।” इसी कारण 1986 से उन्होंने वैश्विक स्तर पर संरक्षण का संदेश फैलाना शुरू किया।

गुडाल बच्चों और युवाओं को पर्यावरणीय कार्रवाई के लिए उत्साहित करने पर बहुत ज़ोर देती थीं। रूट्स एंड शूट्स कार्यक्रम का मुख्य संदेश है कि “हममें से हर व्यक्ति हर दिन पृथ्वी पर असर डालता है। हमें समझदारी से चुनना होगा कि यह असर कैसा हो। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाना मेरे लिए भविष्य की सबसे बड़ी आशा है, क्योंकि जब युवा समस्या को समझते हैं और कार्रवाई के लिए सक्षम होते हैं, तो वे तुरंत जुट जाते हैं। हमें जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता ह्रास को धीमा करना होगा, इससे पहले कि देर हो जाए।”

उन्होंने महिलाओं की भूमिका को भी रेखांकित किया। उनका कहना था: “महिलाएं पर्यावरण की रक्षा को समझती हैं क्योंकि वे अपने बच्चों से प्यार करती हैं और उनके भविष्य की चिंता करती हैं।” उनके अनुसार, महिलाओं में स्वाभाविक रूप से पोषण करने का स्वभाव होता है और पर्यावरण संरक्षण उसी का विस्तार है।

नवंबर 2024 की उस दोपहर उन्होंने कहा: “आशा अब पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अगर हम आशा खो देंगे, तो उदासीनता में गिर जाएंगे और तब हमारा अंत निश्चित है।” उनकी टीम ने बताया कि वह 90 साल की उम्र पार करने के बाद भी साल में लगभग 300 दिन यात्राओं में रहती थीं। बातचीत के बाद जब कैमरा बंद हुआ, हमने उनसे उनकी ऊर्जा का राज़ पूछा। उनका छोटा-सा जवाब था – “जुनून।”

उस शाम उन्होंने नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स के टाटा थिएटर में खचाखच भरे हॉल में व्याख्यान दिया। पूर्ण शांति और अंत में खड़े होकर तालियां।

गुडाल अपने पॉडकास्ट द जेन गुडाल होपकास्ट पर बोलते हुए। तस्वीर: रेट बटलर
गुडाल अपने पॉडकास्ट द जेन गुडाल होपकास्ट पर बोलते हुए। तस्वीर: रेट बटलर

अगस्त 2025 में, गुडाल ने निलगिरीस्केप्स कॉन्फ्रेंस के लिए एक रिकॉर्डेड वीडियो संदेश भेजा था। इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के पर्यावरण और सांस्कृतिक परिदृश्य का संरक्षण था। वैश्विक संकट की पृष्ठभूमि में भी उन्होंने स्थानीय समूहों की एकजुटता और कार्रवाई की सराहना की।

टोड़ा समुदाय के नृवंशविज्ञानी और पारिस्थितिकीविद् तरुण छाबड़ा बताते हैं कि उन्होंने यह संदेश गुडाल से प्राप्त किया। वह पहली बार उनसे 2009 में वर्ल्ड वाइल्डरनेस कांग्रेस में मिले थे। गुडाल निलगिरीस्केप्स कॉन्फ्रेंस के उद्देश्यों को लेकर उत्सुक थीं और उनका संदेश इस कॉन्फ्रेंस की उचित शुरुआत बना।

छाबड़ा कहते हैं: “1970 के दशक में, जब मैं स्कूल में पढ़ता था और पर्यावरण में दिलचस्पी रखता था, तब मैं नेशनल ज्योग्राफिक खूब पढ़ता था। जेन गुडाल के काम के बारे में पढ़ना हमेशा प्रेरणा देता था। वह दुनिया भर के लोगों के लिए बड़ी प्रेरणा थीं।”

बैनर तस्वीर: 2024 के अंत में मोंगाबे-इंडिया टीम के साथ जेन गुडाल। तस्वीर: कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

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