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अपना इलाका स्थापित करने निकले बाघों के व्यवहार की निगरानी

रिजर्व के पास रायपुर गांव में खेत जोतते हुए किसान। एक नए अध्ययन में बिखरे हुए बाघों की गतिविधियों के बारे में पता लगाया गया है, जो नए इलाकों की तलाश में खेतों और अन्य मानव बस्तियों से होकर गुजरते हैं। जहां बाघ जंगलों से होकर सुस्ताते हुए धीमी गति से चलते हैं, वहीं खेतों से गुजरते समय उनकी चाल तेज हो जाती है। प्रतिनिधि तस्वीर: अलोश बेनेट\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)

रिजर्व के पास रायपुर गांव में खेत जोतते हुए किसान। एक नए अध्ययन में बिखरे हुए बाघों की गतिविधियों के बारे में पता लगाया गया है, जो नए इलाकों की तलाश में खेतों और अन्य मानव बस्तियों से होकर गुजरते हैं। जहां बाघ जंगलों से होकर सुस्ताते हुए धीमी गति से चलते हैं, वहीं खेतों से गुजरते समय उनकी चाल तेज हो जाती है। प्रतिनिधि तस्वीर: अलोश बेनेट\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)

  • महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ में सात साल से ज्यादा अवधि तक 15 किशोर बाघों पर नजर रखी गई।
  • इस अध्ययन का मकसद उनके जन्मस्थान से नए आवास तक की गतिविधियों का पता लगाना था।
  • इसमें पाया गया कि नए क्षेत्रों में जाने से पहले बाघ अपनी माताओं के करीब रहे। नए क्षेत्रों में बाघ गांवों और खेतों से होकर तेजी से गुजरे, जबकि जंगलों में उनकी चाल धीमी हो गई। नए क्षेत्रों में आने के बाद बाघ स्थिर हो गए, जंगलों में गश्त लगाने लगे और खेतों को कुशलता के साथ पार करने लगे।
  • नतीजे बताते हैं कि बाघों का व्यवहार उम्र के अनुसार बदलता है। इससे पता चलता है कि वे सबसे ज्यादा कब असुरक्षित होते हैं, सुरक्षित गलियारे क्यों अहम हैं और वन्यजीव अभयारण्य के प्रबंधक संघर्ष वाली जगहों का पूर्वानुमान किस तरह लगा सकते हैं।

जब आप किसी चलते हुए बाघ के बारे में सोचते हैं, तो आप शायद यह कल्पना कर सकते हैं कि वह ऊंची घासों के बीच से चुपचाप गुजर रहा होगा। वह पानी पीने के लिए गड्ढों के पास रुका हुआ होगा या फिर अंधेरे में शिकार का पीछा कर रहा होगा। लेकिन, तब क्या होगा जब उस बाघ को अपने जन्मस्थान पर मिलने वाली सुरक्षा को छोड़कर नया इलाका ढूंढ़ना पड़े?

महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ लैंडस्केप (ईवीएल) पर किए गए नए, लंबी अवधि के अध्ययन से उस सफर के बारे में दुर्लभ जानकारी मिलती है। युवा बाघों के अपने माताओं के आवासों को छोड़ने, जोखिम भरे इलाकों में जाने और आखिरकार वहां बस जाने पर नजर रखकर, शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि ये बड़ी बिल्लियां लोगों के साथ रहने के लिए किस तरह खुद को ढालती हैं और संघर्ष करती हैं। “हमने जानबूझकर 1.5-2.5 साल से कम उम्र के शावकों को चुना, जो अपनी मां का इलाका छोड़ने के कगार पर थे। हमने मां का इलाका छोड़ने से पहले, मां का इलाका छोड़ देने और नए इलाके में बस जाने के चीन चरणों की निगरानी की। इस तरह, हम उनके आरामदायक क्षेत्र से लेकर आजाद होने तक के पूरे सफर को समझ पाए,स्वीडिश यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (एसएलयू) में मछली और पर्यावरण अध्ययन विभाग में वन्यजीव जीवविज्ञानी और पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता और इस अध्ययन की शोधकर्ताओं में से एक पल्लवी घसकादबी कहती हैं।

ताडोबा अंधारी बाघ अभयारण्य में बाघिन और उसका शावक। फैलाव से पहले अपने शुरुआती चरण में, युवा बाघ अपने जन्मस्थान के भीतर अपनी माताओं के क्षेत्रों के पास ही रहते हैं। तस्वीर: रोहित शर्मा\ विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)
ताडोबा अंधारी बाघ अभयारण्य में बाघिन और उसका शावक। फैलाव से पहले अपने शुरुआती चरण में, युवा बाघ अपने जन्मस्थान के भीतर अपनी माताओं के क्षेत्रों के पास ही रहते हैं। तस्वीर: रोहित शर्मा\ विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)

नए इलाके की तलाश

पूर्वी विदर्भ परिदृश्य (ईवीएल), मध्य भारतीय बाघ परिदृश्य का हिस्सा है। यह खेत, राजमार्गों और 8,500 से ज़्यादा गांवों से घिरे रिजर्व, अभयारण्यों और वन प्रभागों का मिला-जुला इलाका है। इसके वन क्षेत्रों में ताडोबा-अंधारी बाघ अभयारण्य, उमरेड-करहांडला वन्यजीव अभयारण्य और टिपेश्वर वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।

घसकदबी कहती हैं, “ईवीएल में महाराष्ट्र के क्षेत्रफल का लगभग 30% हिस्सा आता है और यहां राज्य की आबादी का पांचवां हिस्सा रहता है। फिर भी, अनुमान के मुताबिक यहां 300-500 बाघ रहते हैं। यह इस बात को समझने के लिए अच्छी जगह है कि बाघ मानव-प्रधान भू-भाग में किस तरह घूमते हैं, कैसे खुद को ढालते हैं और संघर्ष का जोखिम सबसे ज्यादा कहां है।”

अमरावती के मेलघाट टाइगर

साल 2016 और 2022 के बीच, शोधकर्ताओं ने 15 शावकों (अलग-अलग उम्र के) को जीपीएस कॉलर लगाए। इसके जरिए हर कुछ घंटों में उनकी लोकेशन रिकॉर्ड की जाती थी। दस (आठ नर और दो मादा) को संरक्षित क्षेत्रों के अंदर और पांच (एक नर और चार मादा) को उसके बाहर कॉलर पहनाए गए। कॉलर लगाने में सुरक्षित एनेस्थीसिया, विकास के लिए गद्देदार कॉलर और नए इलाके में आवास बना लेने के बाद दूर से ही कॉलर उतारना शामिल था।

अध्ययन के दौरान भावनात्मक चुनौतियां भी सामने आईं, क्योंकि बाघों पर रियल टाइम में नजर रखने का मतलब था उन्हें इंसानों की बहुतायत वाले इलाकों में जीवन की सबसे कटु सच्चाइयों का सामना करते हुए देखना। घसकदबी कहती हैं, “जिन जानवरों को हमने कॉलर पहनाए थे, उनमें से कुछ अवैध तारबंदी वाले खेतों में बिजली के झटके से मर गए। वैज्ञानिकों के रूप में, हमारी भूमिका इन मौत के बारे में निष्पक्ष रूप से बताना था। ऐसा तब है, जब हमारी सहज प्रवृत्ति हस्तक्षेप करने की थी। कभी-कभी खुद को और बाघों से प्यार करने वाले लोगों को यह विश्वास दिलाना मुश्किल था कि हम रेडियो-कॉलर वाले बाघ को उनके सामने आने वाले खतरों से नहीं बचा पाए।”

डेटा बिंदुओं को समझने के लिए, टीम ने हिडन मार्कोव मॉडल (एचएमएम) का इस्तेमाल किया, जो आंकड़ों वाला एक तरीका है और व्यवहार को आराम, सफर या भोजन की तलाश जैसी अवस्थाओं में अलग-अलग करता है। इसमें दिन के समय, तापमान, आवास, मानव घनत्व और सड़कों से नजदीकी को भी ध्यान में रखा।

बदलता व्यवहार

अध्ययन में पाया गया कि इंसानों की तरह बाघ भी जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरते हैं जो उनके व्यवहार को आकार देते हैं।

अपने शुरुआती दौर में युवा बाघ अपने जन्मस्थान के भीतर अपनी माताओं के क्षेत्रों के करीब ही रहे। अध्ययन में छह नर और चार मादाओं पर 15 से 154 दिनों तक नजर रखी गई और 9,420 जीपीएस स्थानों से आंकड़े जुटाए गए। बाघों ने अपना औसतन  30% समय सफर में, 42% छोटे क्षेत्रों में रुककर और 27% आराम करते हुए बिताया। इन पैटर्न में सावधानी और परिचित होना दिखा। वे ज्यादातर दिन में आराम करते और रात में यात्रा करते थे।

इस अवस्था में भी, वे ज्यादा मानव-घनत्व वाले क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़े, जिससे जोखिम के बारे में शुरुआती जागरूकता का संकेत मिलता है। घसकादबी कहती हैं, “सफर से पहले के चरण ने हमें एक बेसलाइन दी। फिर, जब वे अक्सर मानसून के दौरान (इस समय संरक्षित क्षेत्रों के बाहर का आवरण घना होता है) बाहर निकलने लगे, तो हमें उनके खोजी व्यवहार के शुरुआती संकेत दिखाई दिए।”

नए इलाके बनाने या फैलाव के लिए घर छोड़ना सबसे जोखिम भरा दौर था। अध्ययन में छह बिखरे हुए बाघों (पांच नर और एक मादा) पर 19 से 162 दिनों तक नजर रखी गई और 5,400 जीपीएस पॉइंट एकत्र किए गए। औसतन, उन्होंने अपना समय लगभग बराबर बांटा: 32% आराम करते हुए, 36% देर तक रुक कर और 32% सफर में।

आवास के साथ पैटर्न भी बदलते रहे। जंगल में बाघों की चाल धीमी हो गई और वे छोटे-छोटे अंतरालों में चलते रहे। खेतों, गांवों और सड़कों पर वे जोखिम कम करने के लिए अपनी चाल बढ़ा देते थे और नाक की सीध में चलते थे। उन्होंने अपने समय में भी बदलाव किया: लंबी दूरी की यात्राएं शाम और रात के समय सबसे ज्यादा होती थी, आधी रात के बाद से भोर तक वे आराम करते थे और खोजी गतिविधियां सुबह 10 बजे के आसपास सबसे ज्यादा होती थी। घसकदबी कहती हैं, “इन खतरनाक यात्राओं को संभव बनाने के लिए वे जंगल के छोटे-छोटे हिस्सों और सुरक्षित गलियारों पर निर्भर थे। इसलिए, छोटे असुरक्षित जंगल या बंजर भूमिइन बड़ी बिल्लियों के अस्तित्व के लिए अहम हैं।”

ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व में बाघ का एक शावक। तस्वीर - रोहित शर्मा\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)
ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व में बाघ का एक शावक। तस्वीर – रोहित शर्मा\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)

एक बार जब युवा बाघों ने नए इलाके बना लिए, तो उनकी गतिविधियां ज्यादा स्थिर हो गई। नए इलाकों वाले इस चरण में, अध्ययन में सात बाघों (पांच नर और दो मादा) पर 84 से 305 दिनों तक नजर रखी गई, जिससे 8,980 जीपीएस पॉइंट मिले। इस चरण तक, बाघों ने अपना लगभग 36% समय आराम करते हुए, 39% छोटे इलाकों में रुकते हुए और 25% समय यात्रा करते हुए बिताया।

यहां भी आवास ने उनकी यात्राओं को तय दिया: जंगलों में बाघ रुकते थे और गश्त करते थे, जबकि बिना जंगल वाले क्षेत्रों में, वे जोखिम भरे स्थानों में कम समय बिताने करने के लिए लंबे, सीधे रास्तों (कभी-कभी जंगल की दूरी से दोगुनी दूरी) में सफर करते थे। रोज के पैटर्न भी अलग-अलग थे: आराम सुबह के समय चरम पर होता था, दिन के ज्यादातर समय खोजपूर्ण गतिविधियां हावी रहती थीं और यात्रा शाम के समय सबसे आम थी।

अध्ययन में पाया गया कि तापमान का भी व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बाघ 20-30° सेल्सियस पर सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं, लेकिन विदर्भ की चिलचिलाती गर्मियों में जब तापमान 50°सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो वे ज्यादा आराम करते हैं। घसकदबी कहती हैं, “खास तौर पर, फैलाव के बाद के चरण में, जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, हमने उन्हें ज्यादा आराम करते देखा, जो स्पष्ट तौर पर गर्मी को झेलने का उपाय प्रतीत होता है।” लिंग का प्रभाव जीवन अवस्था से कम था; यानी नर और मादा में एक जैसे पैटर्न दिखाई दिए।

सुरक्षित गलियारों की जरूरत

अध्ययन से पता चला है कि लोगों के आस-पास बाघ अपनी गति और दिशा को सक्रिय रूप से बदलते रहते हैं। घसकादबी कहती हैं, “हम आमतौर पर तेंदुओं और कौगर को मानव क्षेत्रों में अनुकूलनीय बड़ी बिल्लियांमानते हैं। लेकिन ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्रों में बाघों को देखना और यह देखना रोमांचक था कि वे कैसे तेजी से और नाक की सीध में चलते हैं, जैसे वे रुकने के बजाय तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हों। जोखिम से बचने की यही रणनीति ही उन्हें भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जीवित रहने में मदद करती है।”

शोधकर्ताओं के अनुसार, बाघों के लिए जीवन-स्तर का तरीका पहली बार इस्तेमाल किया गया है। यह दिखाता है कि उनका व्यवहार स्थिर नहीं होता, बल्कि उम्र और संदर्भ के साथ बदलता रहता है। यह संरक्षण के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह बताता है कि जानवर सबसे ज्यादा असुरक्षित कब होते हैं, सुरक्षित गलियारे क्यों जरूरी हैं और वन्यजीव पार्क प्रबंधक संघर्ष की संभावित जगहों का अनुमान किस तरह लगा सकते हैं।


और पढ़ेंः इंसानी बस्तियों में बाघों की बढ़ती संख्या से लोगों में बढ़ता मानसिक तनाव


आवास का बंटा होना बाघों के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है, क्योंकि भारत के लगभग 35% बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। घसकदबी कहती हैं, “हमारे अध्ययन से सबसे स्पष्ट नतीजा यह है कि बाघों को आपस में जुड़े हुए लैंडस्केप की जरूरत है। रिजर्व क्षेत्रों के बीच वन गलियारों की रक्षा और इन्हें फिर से बहाल करना ना सिर्फ लंबी अवधि का लक्ष्य है, बल्कि बाघों के फैलाव के लिए भी जरूरी है। सुरक्षित गलियारों के बिना वे मनुष्यों, गांवों और खेतों के करीब जाने को मजबूर हैं, जहां बिजली के झटके, बदला लेना या सड़क दुर्घटना का खतरा ज्यादा होता है।”

अध्ययन सह-अस्तित्व के लिए लोगों की जरूरी भूमिका पर भी जोर देता। घासकदबी कहती हैं, “बाघों के साथ रहने वालों को मुआवजा योजनाओं, फसल सुरक्षा, सौर ऊर्जा से चलने वाली बाड़ों के रखरखाव और आजीविका कार्यक्रमों के ज़रिए मदद देने से संघर्ष कम हो सकता है और इससे भरोसा बढ़ सकता है। हमारा अध्ययन दिखाता है कि बाघ लचीले और दृढ़ होते हैं, लेकिन यह पक्का करना हमारी जिम्मेदारी है कि वे जिन इलाकों से गुजरते हैं, वे गुजरने योग्य और सुरक्षित हों।”


यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर  6 अक्टूबर, 2025 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: रिजर्व के पास रायपुर गांव में खेत जोतते हुए किसान। एक नए अध्ययन में बिखरे हुए बाघों की गतिविधियों के बारे में पता लगाया गया है, जो नए इलाकों की तलाश में खेतों और अन्य मानव बस्तियों से होकर गुजरते हैं। जहां बाघ जंगलों से होकर सुस्ताते हुए धीमी गति से चलते हैं, वहीं खेतों से गुजरते समय उनकी चाल तेज हो जाती है। प्रतिनिधि तस्वीर: अलोश बेनेट\विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 2.0)

 

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