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महानदी: 86 सालों बाद भी क्यों नहीं सुलझ पा रहा छत्तीसगढ़, ओडिशा जल विवाद

ओडिशा में महानदी। नदी पर हजारों मछुआरे और किसान आश्रित हैं। साल 1937 में पहली बार महानदी के पानी को लेकर बात शुरु हुई थी, जब ओडिशा में हीराकुंड बांध बनाने की बात चली। तस्वीर- कमलाकांत नायक/विकिमीडिया कॉमन्स

ओडिशा में महानदी। नदी पर हजारों मछुआरे और किसान आश्रित हैं। साल 1937 में पहली बार महानदी के पानी को लेकर बात शुरु हुई थी, जब ओडिशा में हीराकुंड बांध बनाने की बात चली। तस्वीर- कमलाकांत नायक/विकिमीडिया कॉमन्स

  • छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच पिछले कई सालों से जारी महानदी जल विवाद सुलझता नज़र नहीं आ रहा है।
  • ओडिशा का आरोप है कि महानदी पर छत्तीसगढ़ सरकार ने बड़ी संख्या में बांध और बैराज बना दिए हैं, जिससे पानी का प्रवाह कम हो गया है। इससे ओडिशा को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं हीराकुंड बांध में भी जल संकट गहरा गया है।
  • महानदी जल विवाद अभिकरण की टीम ने कुछ महीने पहले दोनों राज्यों का दौरा किया है लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार का मानना है कि इस तरह के ट्रिब्यूनल से बात नहीं सुलझेगी।

बारिश के इस मौसम में छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाइगढ़ ज़िले के कलमा बैराज के दोनों तरफ़ पानी नज़र आ रहा है। लेकिन दो-तीन महीने पहले तक तस्वीर ऐसी नहीं थी। छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग ने कलमा बैराज के अपने सारे गेट बंद कर रखे थे, जिसके कारण छत्तीसगढ़ के हिस्से वाली नदी में तो दूर-दूर तक अथाह पानी नज़र आ रहा था लेकिन ओडिशा की तरफ़ नदी, किसी रेगिस्तान की तरह सूखी हुई थी।

राजस्थान में जल संरक्षण पर काम करके दुनिया भर में चर्चा में आए राजेंद्र सिंह ने कलमा बैराज की हालत देखकर टिप्पणी की थी, कलमा बैराज के ओडिशा की तरफ़ रेगिस्तान और छत्तीसगढ़ की तरफ़ समुद्र। समुद्र को देख कर अच्छा लगता है, लेकिन रेगिस्तान को दख कर रोना आता है क्योंकि मैं रेगिस्तान से आया हूं। जहां रेगिस्तान होता है, वहां लोग उजड़ जाते हैं। पर ये तो नदी का रेगिस्तान है। इस नदी को अपने जीवन का अधिकार है।

कलमा बैराज असल में महानदी की असली कहानी बताता है, जिसके पानी पर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच बरसों से जारी विवाद कम होता नज़र नहीं आ रहा। इस विवाद को सुलझाने के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाले महानदी जल विवाद अभिकरण की टीम ने हाल ही में दोनों राज्यों में महानदी की ज़मीनी हक़ीकत को समझने के लिए अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया। यह टीम छत्तीसगढ़ और ओडिशा का दौरा कर के लौट चुकी है। लेकिन पानी पर तकरार ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। 

महानदी के किनारे सैकड़ों उद्योग लगे हुए हैं। इससे ओडिशा और छत्तीसगढ़ के 200 उद्योगों में पानी दिया जाता है। इसके अलावा नदी पर मछुआरे और किसान भी आश्रित हैं। तस्वीर- रंजन पांडा
महानदी के किनारे सैकड़ों उद्योग लगे हुए हैं। इससे ओडिशा और छत्तीसगढ़ के 200 उद्योगों में पानी दिया जाता है। इसके अलावा नदी पर मछुआरे और किसान भी आश्रित हैं। तस्वीर- रंजन पांडा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के अनुसार, महानदी के विवाद को ट्रिब्यूनल में जाना ही नहीं चाहिए था। महानदी छत्तीसगढ़ से निकली है और यहां हमारा कोई बांध नहीं है। सात बैराज बने हैं, उसी के कारण यह विवाद पैदा हुआ है। विवाद के कारण हमारे बांध बनाने की योजना रुकी पड़ी है।

भूपेश बघेल का कहना है कि राज्य में छोटे और मध्यम बांध नहीं बनाए जाने से राज्य की कृषि और उद्योग को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री मानते हैं कि दोनों राज्यों के बीच के इस महाविवाद को जल्दी सुलझाने की ज़रुरत है, जिससे दोनों राज्यों की जनता को मुश्किलों से उबारा जा सके।

हालांकि ओडिशा के मयूरभंज इलाके के सांसद और केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू भी मानते हैं कि इस समस्या को जल्दी सुलझाना चाहिए लेकिन वे इसके पीछे राजनीति भी देखते हैं। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “2000 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता वाले बांध के लिए केंद्र सरकार की किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए छत्तीसगढ़ में बनाए गये बैराज पर आपत्ति नहीं की जा सकती। संकट ये है कि ओडिशा में जब चुनाव सामने नज़र आते हैं तो महानदी के पानी की याद आ जाती है।

लेकिन इसका दूसरा पहलू ये है कि छत्तीसगढ़ में बने बैराज ओडिशा को मुश्किल में डाल रहे हैं। ऊपरी हिस्से में कई बैराज बना दिए हैं, जिससे ओडिशा के हिस्से में जल संकट गहरा गया है। हालत ये हो गई है कि हीराकुंड बांध तक में पानी की कमी होती जा रही है। 

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साल 1937 में पहली बार महानदी के पानी को लेकर बात शुरु हुई थी, जब ओडिशा में हीराकुंड बांध बनाने की बात चली। भारत की आज़ादी के दौर में इस बांध के शिलान्यास के साथ यह चर्चा तेज़ होती चली गई। बाढ़ से तबाह तटीय ओडिशा को बचाने, सिंचाई, बिजली उत्पादन और पेयजल के लिए बनाए गए इस बांध की अपनी पीड़ा है, जिसमें ओडिशा और तत्कालीन मध्यप्रदेश के 285 गांव डूब गये। इस बांध से 26,501 परिवार विस्थापित हुए लेकिन बी बाबू, जीसी साहू, जीएन दास, नरेंद्र कुमार बेहरा की किताबें बताती हैं कि इनमें से महज 11 फ़ीसदी लोगों का ही नियमानुसार पुनर्वास किया गया।

बहरहाल इन 86 सालों में जाने कितना पानी महानदी में बह गया। लेकिन महानदी के पानी का मसला अब तक वहीं ठहरा हुआ है। ऐसा नहीं है कि इसे सुलझाने की कोशिश नहीं हुई। सरकारों के बीच सैकड़ों बैठकें हो चुकीं, लेकिन आज तक बात नहीं बनी। विधानसभाओं और संसद में बहसें होती रहीं, जिसका सिलसिला आज भी जारी है। 

महानदी की कछार पर ताप विद्युत गृह और साथ में धान के खेत। यहां पानी का बेतहाशा इस्तेमाल होता है। तस्वीर- रंजन पांडा
महानदी की कछार पर ताप विद्युत गृह और साथ में धान के खेत। यहां पानी का बेतहाशा इस्तेमाल होता है। तस्वीर- रंजन पांडा

जून 1973 में तत्कालीन मध्यप्रदेश और ओडिशा के बीच समझौते में शामिल अधिकांश अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। उस समझौते की फाइलें धरी रह गईं। 28 अप्रैल 1983 को तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच महानदी को लेकर किए गए जिस समझौते का हवाला बार-बार दिया जाता है, उसे 40 साल हो गए। दोनों दूरदर्शी कहे जाने वाले नेता, अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन यह समझौता आज तक फाइलों से निकल कर ज़मीन पर लागू नहीं हो पाया।

छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, संकट ये है कि कोई भी सरकार अपने राज्य के हितों के आगे बात ही नहीं कर पाती। दोनों राज्य एक-दूसरे के हितों के बारे में सोच कर हल निकालना चाहें, तभी रास्ता निकल सकता है। देश में नदियों को लेकर गठित कई ट्रिब्यूनल आज तक कोई फ़ैसला नहीं कर पाए।

जीवनदायिनी महानदी

छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले के सिहावा पर्वत से निकलने वाली महानदी, देश का आठवां बड़ा बेसिन है, जिसका कुल जलग्रहण या अपवाह क्षेत्र 139681.51 वर्ग किलोमीटर है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.28 प्रतिशत है। 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार महानदी नदी घाटी इलाके में लगभग 30 लाख की आबादी निवास करती है, जिसकी आजीविका खेती पर निर्भर है और ज़ाहिर तौर पर खेती के लिए उनकी निर्भरता इसी महानदी के पानी पर है।

छत्तीसगढ़ के सिहावा से निकल कर बंगाल की खाड़ी तक महानदी 851 किलोमीटर का फासला तय करती है। महानदी का कुल 52.42 प्रतिशत हिस्सा (73214.52 वर्ग किलोमीटर) छत्तीसगढ़ में है, वहीं 47.14 प्रतिशत हिस्सा (65847.28 वर्ग किलोमीटर) ओडिशा, 0.23 प्रतिशत (322.38 वर्ग किलोमीटर) महाराष्ट्र, 0.11 प्रतिशत (151.78 वर्ग किलोमीटर) मध्यप्रदेश और 0.1 प्रतिशत हिस्सा (145.56 वर्ग किलोमीटर) झारखंड में है।

शिवनाथ, हसदेव, मांड, ईब, केलो, बोरई, पैरी, जोंक, सूखा, कंजी, लीलार, लात, तेल और ओंग, महानदी की सहायक नदियां हैं।

महानदी पर 253 बांध, 14 बैराज, 13 एनिकट और 6 बिजली संयंत्र बने हुए हैं। इसी महानदी पर छत्तीसगढ़ के कोरबा में 87 मीटर ऊंचा मिनीमाता हसदेव बांगो बांध बना हुआ है, वहीं ओडिशा में 4800 मीटर की लंबाई वाला हीराकुंड बांध बना हुआ है।

दोनों राज्यों की तांदुला, महानदी मुख्य कैनाल, खारंग, मनियारी, हसदेव-बांगो, तैरी, कोडार, सलकी, ओंग, सुंदर डैम जैसी 24 बड़ी और 50 मध्यम सिंचाई परियोजनाएं इसी महानदी के सहारे हैं। दोनों राज्यों की बड़ी आबादी खेती-बाड़ी से लेकर पेयजल तक के लिए महानदी पर निर्भर है। छत्तीसगढ़ की अधिकांश बिजली परियोजनाओं से लेकर कई बड़े उद्योग भी इसी महानदी के भरोसे हैं।

सुलझेगा विवाद?

ओडिशा का आरोप है कि पिछले 50 सालों में महानदी पर छत्तीसगढ़ में एक के बाद एक बांध बनते गए। इसके अलावा बिजली और उद्योगों के लिए महानदी के पानी का उपयोग होने से ओडिशा में नदी का प्रवाह कम हो गया है। इसके कारण खेती तो प्रभावित हो ही रही है, पेयजल का भी संकट पैदा होने लगा है। इस मुद्दे पर ओडिशा में पिछले कई सालों से जन आंदोलन चल रहे हैं। महानदी के जल संकट को सुलझाने के मुद्दे पर नागरिक संगठन पिछले कुछ सालों से सैकड़ों अध्ययन, ज्ञापन, धरना, प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन अब तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है।

छोटी बांध परियोजनाओं तक तो बात बयानों तक रही लेकिन छत्तीसगढ़ ने चार बड़ी परियोजनाओं पर जब काम शुरु किया तो ओडिशा में विरोध के स्वर उभरे। इसमें केलो डैम, टेरी महानदी, तांदुला रिज़रवॉयर और तांदुला बांध शामिल था। साल 2009 में केलो डैम के अलावा किसी भी परियोजना को केंद्रीय जल आयोग से मंजूरी नहीं दी गई। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मंजूरी के बिना ही तांदुला बांध के निर्माण की गतिविधियां शुरु कर दीं।

अथमलिक, ओडिशा से बहती महानदी। तस्वीर- आदित्य महर/विकिमीडिया कॉमन्स
अथमलिक, ओडिशा से बहती महानदी। तस्वीर– आदित्य महर/विकिमीडिया कॉमन्स

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने छत्तीसगढ़ में बनने वाले बांध और बैराज पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री को कई अवसरों पर चिट्ठियां लिखीं। इसके उलट छत्तीसगढ़ सरकार दावा करती रही कि इन तमाम बैराज और बांधों का निर्माण केवल छत्तीसगढ़ में पानी की जरुरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है, इससे ओडिशा को कोई नुकसान नहीं होगा। छत्तीसगढ़ ने 10 सालों के पानी के प्रवाह का हवाला देते हुए दावा किया कि ओडिशा में पानी की कोई कमी नहीं है।

विवाद बढ़ा तो 17 सितंबर 2016 को छत्तीसगढ़ और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों की केंद्र सरकार की मध्यस्थता में महानदी के पानी को लेकर बैठक में सहमति बनी कि 1983 में प्रस्तावित प्राधिकरण कम से कम अब बना लिया जाए। ओडिशा ने शर्त रखी कि इस बीच छत्तीसगढ़, अपने राज्य में बांधों के निर्माण का कार्य बंद रखेगा। लेकिन बात नहीं बनी।

ओडिशा ने 2016-17 में एक अध्ययन के बाद दावा किया कि पिछले 10 सालों के औसत तुलना में, गैर मानसून दिनों में ओडिशा के इलाके में महानदी के जल प्रवाह में नवंबर 2016 में 41.1%, दिसंबर 2016 में 32.9%, जनवरी 2017 में 30.9%,फरवरी 2017 में 39.2%, मार्च 2017 में 27.6%, अप्रैल 2017 में 73% और मई 2017 में 77.8% कमी पाई गई।

ओडिशा सरकार ने केंद्र सरकार से मांग की कि वह महानदी की समस्या को सुलझाने के लिए अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के अंतर्गत महानदी जल विवाद अधिकरण का गठन करे। लेकिन अधिकरण के गठन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और 24 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक महीने के भीतर महानदी जल विवाद अधिकरण के गठन का निर्देश दिया।

छत्तीसगढ़ सरकार के सिंचाई मंत्री और सरकार के प्रवक्ता रवींद्र चौबे का कहना है कि महानदी जल विवाद अधिकरण को सारे दस्तावेज़ उपलब्ध कराए गए हैं और उम्मीद है कि दोनों राज्यों के बीच इस मसले को सुलझा लिया जाएगा।


और पढ़ेंः महानदी को लेकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ में खींचतान, क्या बच पाएगी नदी?


रवींद्र चौबे ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, महानदी का लगभग 80 फ़ीसदी पानी छत्तीसगढ़ से ओडिशा होते हुए समुद्र में चला जाता है। पानी की इस बर्बादी को रोकने की दिशा में ओडिशा को विचार करना चाहिए। अगर ऐसा हो जाए तो पानी के सारे विवाद सुलझ जाएंगे।

लेकिन नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय को महानदी का हल सुलझता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। उनका कहना है कि पूरे देश के लिए नदियों को लेकर जब तक वैज्ञानिक चेतना के साथ एक नीति नहीं बनेगी, तब तक महानदी जैसे विवाद अनसुलझे रहेंगे।

बंदोपाध्याय ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, विकास की दौड़ में जल और अधोसंरचना पर सर्वाधिक दबाव है। नदी घाटी आधारित समस्या को हल करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास जरुरी है। जब तक यह राजनीतिक दलों का एजेंडा बना रहेगा, इसका हल नहीं निकलेगा। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में राज्य और केंद्र के नदी के नियंत्रण के दायरे को सुनिश्चित किया जाना ज़रुरी है। यह तभी संभव है, जब पूरे देश के लिए एक नीति का निर्माण हो।

 

बैनर तस्वीरः ओडिशा में महानदी। नदी पर हजारों मछुआरे और किसान आश्रित हैं। साल 1937 में पहली बार महानदी के पानी को लेकर बात शुरु हुई थी, जब ओडिशा में हीराकुंड बांध बनाने की बात चली। तस्वीर– कमलाकांत नायक/विकिमीडिया कॉमन्स

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