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खाद्यान का नुकसान कम करने और किसानों की आय बढ़ाने वाली तकनीकें

एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

  • फसल की कटाई के बाद खाद्यान के नुकसान से किसानों को घाटा होता है। साथ ही, खेती में लगने वाली लागत की बर्बादी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से पर्यावरण पर भी बुरा असर होता है।
  • फसल की कटाई के बाद इस्तेमाल में आने वाली खेती की तकनीकें बेहतर भंडारण और परिवहन, मांग का बेहतर पूर्वानुमान और खाद्यान को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाने पर केंद्रित हैं। इससे प्रसंस्करण के जरिए नुकसान कम करने में मदद मिलती है।
  • एग्रीटेक के जानकारों का कहना है कि नुकसान को कम करने तथा खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता, खाद्यान के परिवहन की दूरी कम करने और फसल तैयार होने के बाद काम आने वाली प्रौद्योगिकियों में ज्यादा निवेश किया जाना चाहिए।
  • यह स्टोरी भारत में खेती से जुड़ी प्रौद्योगिकी में प्रगति के बारे में तीन हिस्सों की श्रृंखला का तीसरा हिस्सा है। इसमें कटाई के बाद की अवस्था में कृषि प्रौद्योगिकियों पर चर्चा की गई है। भाग 1 में बुवाई से पहले और और भाग 2 में फसल बढ़ने के चरण में इस्तेमाल की जाने वाली कृषि तकनीकों पर चर्चा की गई है।

कल्पना कीजिए कि आप टमाटर की खेती करने वाले किसान हैं। आपको सूखे का सामना करना पड़ा है। इससे पैदावार कम हुई है। फसल की गुणवत्ता भी खराब हुई है। टमाटरों को अलग-अलग करके निकाला जाता है और ऐसा करने में मजदूरी ज्यादा देनी पड़ती है। भंडारण और परिवहन का कुल खर्च बाजार में टमाटर की कीमत से ज़्यादा है। अब आपके पास क्या विकल्प हैं?

इस स्थिति में, कुछ किसान उपज को फेंकने और नुकसान उठाने का फैसला करते हैं। उन्हें इसे बाजार ले जाकर ज्यादा नुकसान उठाने की बजाए ऐसा करना ज्यादा अच्छा फैसला लगेगा। इस तरह होने वाले आर्थिक नुकसान का ना सिर्फ किसान पर असर पड़ता है, बल्कि पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि फेंके गए खाद्य पदार्थ को पैदा करने के लिए इस्तेमाल की गई भूमि, पानी और ऊर्जा (कृषि इनपुट) भी बर्बाद हो जाती है। दूसरा, इससे उत्सर्जन भी होता है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का कहना है कि खाने-पीने की चीजों से होने वाला नुकसान दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 10% तक का योगदान देता है।

उपज तैयार हो जाने के बाद दूसरी तरह से भी नुकसान होते हैं। ये नुकसान भंडारण और परिवहन के दौरान होते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण गर्मी, चक्रवात या बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं के चलते भी तैयार फसलों का नुकसान होता है। कभी-कभी मांग से ज्यादा आपूर्ति हो जाती है और जल्दी खराब होने वाली चीजों को लंबे समय तक स्टोर करके नहीं रखा जा सकता है। इससे भी नुकसान होता है।

किसान राजेश बिरसिंह साल 2015 में बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई अपनी बैंगन की फसल दिखाते हुए। तस्वीर: धारिणी पार्थसारथी-सीसीएएफएस/फ्लिकर।
किसान राजेश बिरसिंह साल 2015 में बेमौसम बारिश से बर्बाद हुई अपनी बैंगन की फसल दिखाते हुए। तस्वीर: धारिणी पार्थसारथी-सीसीएएफएस/फ्लिकर।

एफएओ की 2019 खाद्य एवं कृषि स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में खाने-पीने की लगभग 14% चीजें, फसलें तैयार होने और भंडारण के बीच खराब हो जाती हैं। इनकी कीमत हर साल लगभग चालीस हजार करोड़ डॉलर है।

फसल तैयार होने के बाद कृषि प्रौद्योगिकियों (एग्रीटेक) का उद्देश्य खाने-पीने की चीजों में होने वाले नुकसान को कम करके तथा किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी करके इन मसलों का हल निकालना है।

हीटिंग और कूलिंग से चीजों को लंबे समय तक बचाकर रखना

एग्रीटेक स्टार्टअप एस4एस टेक्नोलॉजीज (S4S Technologies) की सह-संस्थापक निधि पंत कहती हैं, “किसानों को फसलों को बचाने और प्रसंस्करण दोनों के लिए तकनीक की जरूरत है, ताकि उपज को बाजार के लिए तैयार किया जा सके और अतिरिक्त आमदनी के लिए इनकी बेहतर कीमत मिल सके।” स्टार्टअप महिला किसानों को सौर ऊर्जा से चलने वाले डिहाइड्रेटर प्रदान करता है, ताकि उन्हें उपज को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाए रखने में मदद मिल सके।

पंत बताती हैं, “भारत में हम परंपरागत रूप से खाने-पीने की चीजों को बचाए रखने के लिए धूप में सुखाते रहे हैं। हालांकि, सीधे धूप में सुखाने से गर्मी गैर-बराबर रूप से फैलती है और उत्पाद को पूरी तरह से सूखने में लगभग छह से सात दिन लगते हैं। इस प्रक्रिया में, यह फफूंद के विकास और पर्यावरण से जुड़ी अन्य चुनौतियों के लिए अतिसंवेदनशील हो जाती है। हालांकि, सोलर डिहाइड्रेटर छह से आठ घंटे में ऐसा कर सकते हैं। रंग, बनावट, सुगंध को उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़ा जा सकता है और यह ज्यादा साफ-सुथरा तरीका है। इसमें पोषक तत्वों का नुकसान भी नहीं होता है।”

महाराष्ट्र में अपनी मुख्य ऑपरेशन के साथ एस4एस टेक्नोलॉजीज ने 2,000 महिला किसानों तक पहुंच बनाई है जो नमी को खत्म करने और कटाई के बाद होने वाला नुकसान कम करने के लिए डिहाइड्रेटर का इस्तेमाल करती हैं। महिलाओं को कटाई और प्रसंस्करण के उपकरण भी मिलते हैं, जिससे उन्हें बड़ी खाद्य एजेंसियों, रेस्तरां और क्लाउड किचन के लिए उत्पाद को पैक करने और बेचने में मदद मिलती है। साथ ही, उन्हें दक्षिण-पूर्व एशिया में निर्यात भी किया जाता है। पंत ने बताया, “हम सालाना 60 हजार टन उत्पाद बेच लेते हैं।”

सोलर डिहाइड्रेटर में सूखे हुए अदरक को छांटती हुई महिलाएं । तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।
सोलर डिहाइड्रेटर में सूखे हुए अदरक को छांटती हुई महिलाएं । तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

कृषि उत्पादों की शेल्फ-लाइफ बढ़ाने का एकमात्र तरीका नमी को खत्म करना ही नहीं है। कोल्ड-स्टोरेज चैंबर भी हैं जो जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं और अनाज को स्टोर करने में मदद करते हैं। फरवरी 2024 तक भारत में 8,653 कोल्ड स्टोरेज थे, जिनका उद्देश्य फसल तैयार होने के बाद होने वाले नुकसान को कम करना है। हालांकि, आपूर्ति श्रृंखला क्षेत्र में एग्रीटेक स्टार्टअप वेकूल (WayCool) के संस्थापक कार्तिक जयरामन कहते हैं कि कोल्ड स्टोरेज गोदामों की संख्या बढ़ाने के अलावा नुकसान को और कम करने के कई दूसरे तरीके भी हैं।

वेकूल छोटे किसानों से खरीद करके उपज को बार-बार संभालने से बचाता है और जहां तक संभव हो भंडारण को कम करता है। स्टार्टअप मांग की सटीक गणना करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का फायदा उठाता है। जयरामन बताते हैं, “हमारे पास संग्रह और वितरण केंद्रों का नेटवर्क है। हमारे मांग-पूर्वानुमान उपकरणों का इस्तेमाल करके, हम अपने संग्रह केंद्रों को जरूरी सब्जियों की सटीक मात्रा बताते हैं। ये संग्रह केंद्र फिर किसानों से खरीद शुरू करते हैं। लक्ष्य के लिए कीमत भी एल्गोरिदम से तय की जाती है। इसलिए किसान बेहतर योजना बना पाते हैं और यह उपज को खेत में सड़ने से बचाता है।”

जयरामन का मानना ​​है कि कोल्ड स्टोरेज की तकनीक नुकसान को कम करने में मदद करती हैं, लेकिन हमें फूड माइल्स‘ (खाने-पीने की चीजों को उगाने या बनाने की जगह और इन्हें इस्तेमाल करने की जगह के बीच की दूरी) को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। वे बताते हैं, “वेकूल में हमने हवादार और अच्छी तरह से प्रबंधित कोल्ड स्टोरेज के साथ ही नुकसान को लगभग 6% तक कम किया है। लेकिन कोल्ड स्टोरेज तकनीकें मुख्य रूप से पश्चिम के लिए विकसित की गई हैं, जहां मुख्य रूप से समशीतोष्ण जलवायु होती है। किराने की दुकानें भी वातानुकूलित होती हैं। हालांकि, भारत उष्णकटिबंधीय देश है और हमें उत्पाद को 42 डिग्री सेल्सियस से 2-6 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रखने की जरूरत है। आपको गर्मियों के चरम पर अधिकतम ठंडे तापमान की जरूरत होती है। इसलिए, कोल्ड स्टोरेज चैंबर के अलावा हमें छोटी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भी ध्यान देना चाहिए।”

वेकूल का वितरण केंद्र जो कृषि उत्पादों की सीधी हैंडलिंग को कम से कम करता है। तस्वीर - वेकूल।
वेकूल का वितरण केंद्र जो कृषि उत्पादों की सीधी हैंडलिंग को कम से कम करता है। तस्वीर – वेकूल।

खाने-पीने की चीजों को लाने-ले जाने के दौरान, वेकूल वाहनों में हवा की आवाजाही के बारे में भी सावधानी बरतता है। जयरामन कहते हैं, “हम यहां लगातार प्रयोग कर रहे हैं, क्योंकि बहुत ज़्यादा हवा की आवाजाही से नमी का नुकसान होगा। वाहनों में सही तरह का वेंटिलेशन होना चाहिए। हमारे पास अलग-अलग सब्जियों को एक साथ रखने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया भी है। जैसे, टमाटर को दबाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि जब इसे ज्यादा आर्द्रता वाले क्षेत्र में ले जाया जाता है, तो अगर इसे ठीक से नहीं रखा जाता है, तो इस पर फंगल का हमला हो सकता है।” 

आपूर्ति श्रृंखला को बेहतर बनाना

आपूर्ति श्रृंखला में एक अहम चुनौती यह भी है कि उपज की गुणवत्ता और कीमत के बारे में पारदर्शिता की कमी है। इसे ठीक करने के लिए, एग्रीटेक स्टार्टअप ने खेत से ही उपज की गुणवत्ता की जांच करना शुरू कर दी है। जब फसल की कटाई के तुरंत बाद उपज को ग्रेड किया जाता है, तो यह गुणवत्ता के अनुसार कीमत तय करने में मदद करता है। किसान तब पुष्टि कर सकते हैं कि उन्हें उचित कीमत मिल रही है या नहीं। ऐसा देहात ( DeHaat) की ओर से बनाए गए ऐप से होता है जो हर फसल के लिए बाजार की कीमत दिखाता है।

देहात के सह-संस्थापक अमरेंद्र सिंह कहते हैं, “जब हम हर खेत में उपज की गुणवत्ता का आकलन कर पाते हैं और यह पक्का करते हैं कि उपज अच्छी क्वालिटी की है और उनमें कीटनाशक नहीं है, तो उत्पादन के आधार पर कीमत तय की जाती है और हम आपूर्ति श्रृंखला में पारदर्शिता बनाए रख पाते हैं। इससे खुदरा विक्रेता और किसान दोनों को फायदा होता है।” वे कहते हैं कि किसानों के लिए भी यह पक्की खरीद है जो खेती से होने वाले नुकसान को कम करती है।

देहात का लक्ष्य किसानों के इर्द-गिर्द ऐसा सिस्टम बनाना और समाधान तैयार करना है। सिंह कहते हैं, “भारत में हमारे पास मुख्य रूप से छोटे किसान हैं जिन्हें फसल तैयार होने के बाद मदद की जरूरत होती है। और सभी इनोवेशन में किसानों के लिए आखिरी मील की कनेक्टिविटी की जरूरत होती है। साथ ही, पंचायत या गांव के स्तर पर स्थानीय भागीदारी से पक्के तौर पर मदद मिलती है।”

धान के खेत के ऊपर मंडराता हुआ फ्यूजलेज का कृषि ड्रोन। ड्रोन जैव उर्वरकों का छिड़काव करने के लिए सटीक छिड़काव तकनीक का इस्तेमाल करता है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
धान के खेत के ऊपर मंडराता हुआ फ्यूजलेज का कृषि ड्रोन। ड्रोन जैव उर्वरकों का छिड़काव करने के लिए सटीक छिड़काव तकनीक का इस्तेमाल करता है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

खेती में इनोवेशन को अपनाने में तेजी लाने के लिए काम करने वाला गैर-लाभकारी संगठन थिंकऐज (ThinkAg) के सह-संस्थापक हेमेंद्र माथुर के अनुसार, नेट जीरो पर जाने की चाहत रखने वाली बड़ी खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां और रेस्तरां आपूर्ति श्रृंखला के लिए अच्छे हो सकते हैं। वे विस्तार से बताते हैं, “खाद्य कंपनियां और किसानों के बीच पर्याप्त रूप से बातचीत नहीं करते हैंहालांकि, वे एक ही आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा हैं। ज्यादा जलवायु-लचीला होने या खाद्य उत्पादों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए, ट्रेसबिलिटी स्थापित करना अहम है। जिन कंपनियों ने नेट-जीरो के लक्ष्य तय किए हैं, वे यह जानना चाहेंगी कि किसान ने फसल किस तरह उगाई है और इनमें कार्बन फुटप्रिंट कितना है, ताकि वे दावा कर सकें कि इन्हें टिकाऊ तरीके अपनाकर उगाया गया है। किसानों के साथ सीधे काम करने की उनकी प्रवृत्ति में सुधार होगा।” माथुर इस बात को लेकर भी उम्मीदों से भरे हैं कि आने वाले सालों में ग्राहक ऐसे उत्पादों की मांग करने लगेंगे जिनका उत्पादन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना हुआ है।

फसल तैयार होने के बाद काम आने वाली तकनीक का भविष्य

भारत की खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का असर दुनिया पर भी पड़ता है। यह दुनिया में कृषि उत्पादों का नौवां सबसे बड़ा निर्यातक है, लेकिन अभी तक यह भरोसेमेंद आपूर्तिकर्ता नहीं बन पाया है क्योंकि इसने घरेलू स्तर पर कमी के चलते खेती से जुड़े शिपमेंट के लिए अचानक विदेशी प्रतिबंध की घोषणा कर दी।

माथुर कहते हैं, “फसल तैयार होने के बाद इस क्षेत्र में निवेश की बहुत संभावना है।” उनका मानना ​​है कि राज्य सरकारें एग्रीटेक स्टार्टअप को बहुत मदद कर सकती हैं। “वित्तीय सहायता या सब्सिडी से ज्यादा, एग्रीटेक स्टार्टअप डेटा और टेस्ट के लिए पायलट प्रोजेक्ट तक पहुंच हासिल करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और राज्य सरकारों के साथ काम करना चाहते हैं। ज्यादा सार्वजनिक-निजी सहयोग फायदेमंद होगा।”

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा संचालित केंद्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संस्थान ने खुदरा मार्केटिंग के लिए मछली के अल्पकालिक भंडारण और परिवहन के लिए मोबाइल कूल चैंबर, सभी गोलाकार वस्तुओं को वर्गीकृत करने और उपज को संभालने में कमी लाने के लिए फल ग्रेडर, फलों और सब्जियों को मध्यम तापमान पर संग्रहित करने के लिए भाप से ठंडा करने वाली संरचना (ईसीएस) जैसी तकनीकें विकसित की हैं। पिछले साल सरकार ने प्याज पर गामा किरण विकिरण का भी प्रयास किया था, ताकि प्याज के अंकुरित होने की क्षमता को कम किया जा सके, जिससे उन्हें लंबे समय तक काम में लिया जा सके।

हालांकि, इनमें से कई तकनीकें सभी किसानों तक एक तरह से नहीं पहुंची हैं। उन्हें सभी किसानों के लिए सुलभ और आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए आगे बढ़ाया जाना चाहिए। जयरामन ने कहा, “कुछ किसानों के पास कई स्मार्ट ऐप हैं और कई ने कीटनाशकों के छिड़काव के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। लेकिन इसे शुरुआती अपनाने वालों से मुख्यधारा के एग्रीटेक समाधानों की ओर ले जाना होगा; इस खाई को पाटना होगा।जयराम खाद्य मील को कम करने पर वापस आते हैं। वे कहते हैं, “क्या होगा अगर आप स्थानीय स्तर पर सही किस्म की फसल उगा सकें? हमें फसल के बाद होने वाले नुकसान से बचने के लिए उचित किस्मों के साथ किसानों की मदद करनी चाहिए।” 


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सिंह इस बात से सहमत हैं कि “हमें जैव प्रौद्योगिकी पर निर्भर रहने की जरूरत है।” वे कहते हैं, “हर साल हम किसानों से सुनते हैं कि मौसम पिछले साल की तुलना में बहुत खराब है और इसका पूर्वानुमान भी बहुत कम लगाया गया है। हर किसी के पास बदलती जलवायु के हिसाब से ढलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसा करने के लिए हमें जलवायु के हिसाब से फसल की किस्मों और सटीक खेती के लिए टूल चाहिए। हमें मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की जरूरत है।” 

 

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बैनर तस्वीरः एस4एस टेक्नोलॉजीज के सोलर डिहाइड्रेटर जो कृषि उत्पादों को लंबे समय तक इस्तेमाल के लायक बनाते हैं। तस्वीर: सौम्या खंडेलवाल/एस4एस टेक्नोलॉजीज।

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