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गर्मी और अनियमित बारिश से फूल उत्पादकों और विक्रेताओं की आजीविका पर असर

मुंबई में एक फूल विक्रेता। परिवहन और मजदूरी की लागत के अलावा, पिछले 5-10 सालों में मौसम की मार ने असली फूलों की कीमतें बढ़ा दी हैं। तस्वीर: डिंपल बहल।

मुंबई में एक फूल विक्रेता। परिवहन और मजदूरी की लागत के अलावा, पिछले 5-10 सालों में मौसम की मार ने असली फूलों की कीमतें बढ़ा दी हैं। तस्वीर: डिंपल बहल।

  • अनियमित बारिश और अत्यधिक गर्मी से भारत की फ्लोरीकल्चर इंडस्ट्री पर असर पड़ रहा है, जो दुनिया भर में फूलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • इसके अलावा, आर्टिफिशियल फूलों की ओर रुख करने वाले उपभोक्ता न केवल विक्रेताओं की आजीविका को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि इनके कचरे से निपटना भी पर्यावरण के लिए एक चुनौती बन गया है।
  • चरम मौसम की घटनाओं की वजह से फूल जल्दी खराब हो रहे हैं। फूल विक्रेताओं को या तो कम फूल मंगाने पड़ रहे हैं या फिर उन्हें सस्ते दामों पर बेचना पड़ रहा है।

महाराष्ट्र में मौसम के बदलते मिजाज ने फूल विक्रेताओं की रोजी-रोटी पर असर डाला है। एक तरफ जहां, बेमौसम बारिश और तेज गर्मी से फूलों की फसल खराब हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें फूलों को कम दामों पर बेचना पड़ रहा है।

दीपा और राजेश पिछले 20 सालों से मुंबई के दादर बाजार में फूल बेच रहे हैं। दीपा कहती हैं, “आमतौर पर हमें बारिश के मौसम में काफी अच्छी क्वालिटी के फूल मिलते हैं, जो कई दिन तक चल जाते थे। लेकिन, पिछले कुछ सालों में कभी बहुत ज्यादा बारिश और कभी लगातार बरसता पानी, फूलों को दो-तीन दिन की बजाय एक ही दिन में खराब कर रहा है। अब, इस मौसम में हम सिर्फ 40-50 गड्डी फूल ही मंगवाते हैं, जबकि आम दिनों में यह संख्या 100 गड्डी तक पहुंच जाती है।” आमतौर पर, वे गुलाब का एक गुलदस्ता 80 रुपए में बेचते हैं, लेकिन बारिश में उन्हें दाम घटाकर 30 रुपए करना पड़ता है।

मुंबई के दादर फूल बाजार में गुलाब बेचते दीपा और राजेश। अत्यधिक बारिश ने फूलों के जीवनकाल को कम कर दिया है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई है। तस्वीर- डिंपल बहल 
मुंबई के दादर फूल बाजार में गुलाब बेचते दीपा और राजेश। अत्यधिक बारिश ने फूलों के जीवनकाल को कम कर दिया है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई है। तस्वीर- डिंपल बहल

पिछला साल, 2023, बेमौसम बारिश वाला मौसम रहा। औसत से ज्यादा बारिश हुई, महीने दर महीने बारिश में काफी अंतर रहा और कई बार मौसम ने अजीबोगरीब रूप दिखाए, जिससे शहर की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता उजागर हुई। मुंबई में 2023 के मानसून के मौसम में लगभग 3000 मिमी बारिश हुई, जो शहर के लिए वार्षिक वर्षा औसत 2318 मिमी से अधिक है। मानसून देर से आया, लेकिन जल्दी ही भारी बारिश हुई। शहर ने सिर्फ पांच दिनों में जून के औसत का 90% रिकॉर्ड किया। सबसे ज्यादा बारिश जुलाई में हुई, जो 1550 मिमी को पार कर गई, जो सामान्य मासिक औसत से अधिक थी। यहां तक ​​कि जुलाई 2005 की कुल वर्षा (1454 मिमी) को भी पार कर गई। यह वही साल था, जब शहर में भयंकर बाढ़ आई थी।

मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (MCAP) के लिए किए गए एक आकलन के अनुसार, पिछले 10 सालों (2011 से 2020) में मुंबई में औसतन हर साल छह भारी (64.5-115.5 मिमी), पांच बहुत भारी (115.6-204.4 मिमी) और चार अत्यधिक भारी (204.5 मिमी से अधिक) बारिश हुई। साल 2017 और 2020 के बीच के चार सालों में अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं में लगातार वृद्धि देखी गई है।

दुनिया भर में कई अध्ययनों ने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उपज को होने वाले नुकसान का अनुमान लगाया है। उत्तरी यूरोप में किए गए एक अध्ययन में, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी और बारिश का अनुमान लगाया गया, वहीं जंगली फूलों की उपलब्धता में भारी गिरावट देखी गई। भारत में भी, बेमौसम बारिश और बढ़ते तापमान का असर वनस्पतियों पर पड़ा है। इस साल जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांश पर समय से पहले ही फूल खिल गए। नुकसान सिर्फ फूलों की खेती करने वाले किसानों तक ही सीमित नहीं है। इसका असर विक्रेताओं पर भी पड़ रहा है।

विक्रेताओं और किसानों के बीच पहले से ही एक करार होता है जिसके चलते विक्रेताओं को किसानों से मिलने वाला सारा माल खरीदना पड़ता है, भले ही फूल अच्छी गुणवत्ता के हों या न हों। इस वजह से विक्रेताओं को फूल कम दामों पर बेचने पड़ते हैं और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।


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भारतीय संस्कृति में ताजे फूल लंबे समय से चली आ रही परंपरा का हिस्सा रहे हैं। लोग सालों से पूजा-पाठ और त्योहारों में ताजा फूल ही इस्तेमाल करते हैं। अनुमान के मुताबिक, भारतीय फ्लोरिकल्चर इंडस्ट्री दुनिया में दूसरे नंबर पर है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के अनुसार, 2022-2023 में, भारत ने 707 करोड़ रुपए (7 अरब रुपए) से ज्यादा के फूलों का निर्यात किया था। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के साथ, इस उद्योग को भारी नुकसान होने का खतरा है।

अत्यधिक गर्मी से फूलों को नुकसान 

साल 2023 में, भारत में 1901 के बाद से सबसे गर्म फरवरी और सबसे शुष्क और गर्म अगस्त रहा, जबकि जुलाई और अगस्त की रातें 1901 के बाद से दूसरी सबसे गर्म रहीं। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, भारत के अन्य हिस्सों के साथ-साथ महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी 1950 के बाद से हीट स्ट्रेस में वृद्धि देखी गई है। इस साल, मुंबई में अप्रैल में लू चली और तापमान 39 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

अत्यधिक गर्मी पौधों में परागण की प्रक्रिया को बाधित करती है, जिससे फल लगने की क्षमता कम हो जाती है। इसके अलावा, पौधे मुरझा सकते हैं, उनकी बढ़त रुक सकती है और कभी-कभी तो वे मर भी सकते हैं।

मुंबई की बागवानी विशेषज्ञ और नेचर एजुकेटर अंजना देवस्थले कहती हैं, “फूलों में 75% नमी होती है। किसी भी तरह की बदलते मौसम की घटनाएं अक्सर उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है। इसलिए, इन दिनों ज्यादातर फूलों की खेती पॉली-हाउस में की जा रही है, जहां तापमान, आर्द्रता, कार्बन डाइऑक्साइड आदि सहित एक नियंत्रित वातावरण होता है।” 

मुंबई के दादर फूल बाजार में कमल के फूलों को बेचते हुए विजय कुमार यादव। अत्यधिक गर्मी से पौधों में परागण की प्रक्रिया बाधित होती है जिससे वे मुरझा जाते हैं और उनकी बढ़त रुक जाती है। तस्वीर: डिंपल बहल
मुंबई के दादर फूल बाजार में कमल के फूलों को बेचते हुए विजय कुमार यादव। अत्यधिक गर्मी से पौधों में परागण की प्रक्रिया बाधित होती है जिससे वे मुरझा जाते हैं और उनकी बढ़त रुक जाती है। तस्वीर: डिंपल बहल

प्रियदर्शिनी विलास मानकर (52) पुणे जिले के तलेगांव दाभाडे में एक नियंत्रित वातावरण में गुलाब के चार एकड़ के फार्म की मालकिन हैं। वह स्थानीय गणपति उत्सव के दौरान मुंबई के विक्रेताओं को फूल उपलब्ध कराती हैं। उन्होंने कहा, “पिछले कुछ सालों से काफी ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है, जिसका फूलों और पौधों पर बुरा असर पड़ा है। तेज गर्मी में फूल और पौधे मुरझा रहे हैं, सूख रहे हैं। इससे उत्पादन और उनकी गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है। 

शोध बताते हैं कि बढ़ा हुआ तापमान अलग-अलग प्रजातियों के फूलों के उत्पादन पर विविध प्रभाव डाल सकता है। अत्यधिक गर्मी, ठंड, लगातार या अप्रत्याशित बारिश और तूफान से होने वाले नुकसान का असर फूलों के खिलने की अवधि और उत्पादन पर पड़ सकता है। इससे फूलों का कम खिलना, फूलों और उनके रंग का सही विकास न होना, और फूलों का आकार छोटा रह जाना जैसी कई समस्याएं बढ़ सकती हैं।

रिसर्च के मुताबिक, उच्च तापमान का सीधा असर फूलों की खुशबू पर भी पड़ता है। इससे रंगों की चमक कम हो सकती है। उनमें कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ सकता है।

चौंतिस साल के विजय बहादुर यादव 2006 से मुंबई के दादर बाजार में कमल के फूल बेच रहे हैं। वह कहते हैं कि गुलाब के उलट, कमल पर पानी का ज्यादा असर नहीं होता है, क्योंकि इसकी पत्तियों पर एक प्राकृतिक मोम जैसी परत होती है जो पानी को रोक देती है। उन्होंने बताया, “गर्मी और बारिश कमल के लिए सबसे अच्छा मौसम होता है। लेकिन, बहुत ज्यादा गर्मी से फूल पानी की कमी से सूख जाते हैं और अगर तालाबों या दलदली जगहों में पानी कम हो तो उनका तना काला पड़ जाता है। 2,000 फूलों की एक गड्डी में, गर्मियों के दौरान कम से कम 200 फूल खराब हो जाते हैं। फिर उन्हें सस्ते दामों पर बेचना पड़ता है।”

कृत्रिम फूलों की ओर रुख करते उपभोक्ता

जहां एक तरफ मौसम की खराब हालत उत्पादन पर असर डाल रही है, वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ताओं का बदलता व्यवहार भी फूल विक्रेताओं को परेशान कर रहा है।

देवस्थले कहती हैं, “आजकल त्योहारों में लोग नकली फूलों का काफी इस्तेमाल करने लगे हैं। हालांकि, इन फूलों का पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ता है।”

ग्राहक मृणाली कहती हैं, “हम सिर्फ शादियों या त्योहारों जैसे खास मौकों के लिए ही असली फूल खरीदते हैं। गणपति उत्सव जैसे लंबे समय तक चलने वाले त्योहारों के लिए नकली फूल खरीदना ही समझदारी है। वे काफी दिन तक चलते हैं और हमें बार-बार सजावट करने से छुटकारा मिल जाता है।”

ग्राहक की पसंद अब नकली फूलों की तरफ बढ़ रही हैं, जो ताजे फूलों की तुलना में सस्ते होते हैं और लंबे समय तक चलते हैं।

दादर के फूल बाजार में पिछले छह सालों से गेंदा और दूसरे फूल बेच रहे रोहित धुरा कहते हैं, “लोग अपने काम में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उनके पास असली फूलों की देखभाल करने का समय नहीं है। कई लोग नकली फूलों का विकल्प चुन रहे हैं क्योंकि वे सस्ते होते हैं और लंबे समय तक चलते हैं। असली फूलों के विपरीत, नकली फूल मुरझाते नहीं हैं, जिससे लोगों को सुविधा रहती है। हालांकि, नकली फूलों की ओर इस बदलाव का किसानों और फूल विक्रेताओं पर बुरा असर पड़ रहा है।”

भारत में कृत्रिम फूलों का बाजार। तस्वीर: क्रिट्ज़ोलिना, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।
भारत में कृत्रिम फूलों का बाजार। तस्वीर: क्रिट्ज़ोलिना, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)।

प्लास्टिक और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों से बने नकली फूलों की खरीद और उपयोग के बाद रीसाइक्लिंग की पर्यावरणीय लागत का सवाल भी उठता है। सीमित रीसाइक्लिंग विकल्पों और अनुचित कचरा निपटान के कारण, नकली फूल कचरा प्रबंधन के लिए बड़ी चुनौती पेश करते हैं।

ग्राहक असली फूलों से नकली फूलों की तरफ जा रहे है, तो फूल विक्रेता भी मांग में कमी के चलते कचरा फेंकने की इस समस्या के जिम्मेदार हो गए है। साल 2016 के एक शोध पत्र के अनुसार, भारत में हर साल लगभग आठ मिलियन टन बेकार फूलों को नदियों और अन्य जल निकायों में फेंक दिया जाता है।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2023 में मुंबई के प्रसिद्ध दादर फ्लावर मार्केट में ताजा फूलों की मांग में 50% की कमी आई, जिससे एक ही दिन में 90 मीट्रिक टन से अधिक फूल कचरे के रूप में फेंकने पड़ते हैं।

धुरा कहते हैं कि लागत, परिवहन, मजदूरी आदि बढ़ने से पिछले 5-10 सालों में असली फूलों की कीमत काफी बढ़ी है और मौसम की मार ने इसे और भी बदतर बना दिया है।

महाराष्ट्र के उन इलाकों का जिक्र करते हुए, जहां से वह फूल खरीदते हैं, धुरा कहते हैं, “कोहरे में फूल ठीक से नहीं खिल पाते, जिससे उत्पादन 50 कैरट (डिब्बों) से घटकर सिर्फ 20 कैरट रह गया है।” उन्होंने आगे बताया, “उत्पादन में कमी और सर्दियों में बढ़ी हुई मांग के कारण, कीमतें बढ़ जाती हैं। नतीजतन, लोग सस्ते होने के कारण नकली फूलों की ओर रूख करते हैं, जिससे हमें नुकसान होता है। इसके अलावा, अगर बारिश से उत्पादन पर असर पड़ता है और फूलों की गुणवत्ता खराब हो जाती है, तो ग्राहकों की रुचि और भी कम हो जाती है।

 


यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 26 जून 2024 को प्रकाशित हुई थी।


बैनर तस्वीर: मुंबई में एक फूल विक्रेता। परिवहन और मजदूरी की लागत के अलावा, पिछले 5-10 सालों में मौसम की मार ने असली फूलों की कीमतें बढ़ा दी हैं। तस्वीर: डिंपल बहल।

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