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बढ़ती गर्मी, लू से निपटने के लिए कूलिंग स्टेशन जैसी सुविधाओं को तेजी से अपनाना जरूरी

जोधपुर में बने देश के पहले कूलिंग स्टेशन में बैठकर गर्मी से राहत पाते लोग। तस्वीर साभार- महिला हाउसिंग ट्रस्ट

जोधपुर में बने देश के पहले कूलिंग स्टेशन में बैठकर गर्मी से राहत पाते लोग। तस्वीर साभार- महिला हाउसिंग ट्रस्ट

  • देश में बढ़ती भीषण गर्मी और लू के दिनों के बीच जोधपुर में पिछले साल बना देश का पहला नेट-जीरो कूलिंग स्टेशन उपयोगी साबित हो रहा है। अब शहर में दूसरा कूलिंग स्टेशन बनाने का काम आखिरी चरण में है।
  • इस सुविधा को व्यापक बनाने में जमीन, फंडिंग और ऐसी पहलों पर कम चर्चा जैसी दिक्कतें सामने आ रही हैं। एनओसी तो आसानी से मिल जाती है, लेकिन इसके बाद असल चुनौतियां पेश आती हैं।
  • भारत में अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार और सेवा क्षेत्र के तेज विस्तार को देखते हुए कूलिंग स्टेशन को जरूरी माना जा रहा है, क्योंकि भारत के आधे से ज्यादा कामगार खुले में काम करते हैं।

जगदीश जोधपुर नगर निगम का ट्रैक्टर चलाते हैं। थार रेगिस्तान का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले इस शहर में मार्च से जून के दौरान भीषण गर्मी पड़ती है। इन महीनों में जगदीश बड़ी मुश्किल से अपना काम निपटा पाते हैं। वैसे यहां गर्मी में पसीना कम आता है, लेकिन सूर्य नगरी के नाम से मशहूर जोधपुर में सूरज की किरणें सीधे सिर पर पड़ती हैं।

लेकिन, भीषण गर्मी को लेकर जगदीश की चिंता कुछ हद तक कम हो गई है। शहर में कबीर नगर के जिस कायलाना चौराहे के आसपास वह काम करते हैं, वहां महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने पिछले साल देश का पहला नेट जीरो कूलिंग स्टेशन बनाया है। 

जगदीश मोंगाबे हिंदी से कहते हैं, “मैं यहां अक्सर आता हूं। यहां आराम भी हो जाता है और भीषण गर्मी से बचाव भी। यह सुविधा बहुत अच्छी है।” जगदीश जैसे कई लोग रोज यहां आते हैं और तरोताजा होकर फिर से अपने काम में जुट जाते हैं।

कूलिंग स्टेशन में लगे खस के परदे जिन पर पाइप से पानी गिरता है। इससे बाहर की गर्म हवा ठंडी होकर अंदर आती है। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे
कूलिंग स्टेशन में लगे खस के परदे जिन पर पाइप से पानी गिरता है। इससे बाहर की गर्म हवा ठंडी होकर अंदर आती है। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे

हीट एक्शन प्लान से निकला विचार

छह हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैले जोधपुर की आबादी 10 लाख से ज्यादा है। यहां हर रोज हजारों लोगों को तपती गर्मी में बाहर निकलना पड़ता है। इसे देखते हुए जोधपुर उत्तर नगर निगम ने साल 2023 में हीट एक्शन प्लान तैयार किया था। और इसमें कूलिंग स्टेशन जैसी सुविधाएं विकसित करने पर जोर था।

कूलिंग स्टेशन का संचालन भी महिला हाउसिंग ट्रस्ट (एमएचटी) करता है जो कई सालों से शहरी गरीबों के बीच काम कर रहा है। दो साल चलाने के बाद एमएचटी इसे जोधपुर उत्तर नगर निगम को सौंप देगा। कूलिंग स्टेशन में इस तरह की सुविधाएं हैं:

दीवारों को कड़ी धूप से बचाने के लिए पाइसन पैनल से बनाया गया है।

मिस्ट स्प्रिंकलर पंखा और दीवार के चारों तरफ खस के परदे लगे हैं जिन पर पाइप से पानी गिरता है। इससे अंदर आने वाली गर्म हवाएं ठंडी हो जाती हैं। 

कूलिंग स्टेशन में लगा विंड टावर गर्म हवा को बाहर निकालने और ठंडी हवा को अंदर लाने का काम करता है।

यहां सौर पैनल लगे हैं जो रोशनी, पंखे और स्प्रिंकलर को बिजली देते हैं। 

पीने के पानी, ओआरएस और प्राथमिक चिकित्सा किट की सुविधा है। 

यहां लगाई गई बेच पर एक बार में 45 लोग बैठ सकते हैं।

कूलिंग स्टेशन में प्राथमिक चिकित्सा और पीने के पानी जैसी सुविधाएं भी हैं। यहां रजिस्टर रखा होता है, जिस पर सभी आगंतुको को हस्ताक्षर करने होते हैं। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे
कूलिंग स्टेशन में प्राथमिक चिकित्सा और पीने के पानी जैसी सुविधाएं भी हैं। यहां रजिस्टर रखा होता है, जिस पर सभी आगंतुको को हस्ताक्षर करने होते हैं। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे

जोधपुर के लिए हीट एक्शन प्लान तैयार करने में मदद करने वाले एनआरडीसी इंडिया की जलवायु और स्वास्थ्य विशेषज्ञ रितिका कपूर ने मोंगाबे हिंदी से कहा, अगर समुदाय-आधारित और जलवायु को ध्यान में रखकर तैयार किया गया बुनियादी ढांचा स्थानीय जरूरतों के हिसाब से चलता है, तो यह ज्यादा असरदार होता है। कूलिंग की पेसिव तकनीकों का नवीन ऊर्जा के साथ इस्तेमाल यह दिखाता है कि स्थानीय जलवायु और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के हिसाब से कम खर्च वाला इनोवेशन ज्यादा असरदार हो सकता है। 

महिला हाउसिंग ट्रस्ट के जोधपुर समन्वयक जयेंद्र सिंह चावड़ा ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “कूलिंग स्टेशन के अंदर और बाहर तापमान नापने वाली मशीनें लगी हुई हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और कूलिंग स्टेशन के अंदर के तापमान का मिलान करने पर पता चला कि सामान्य दिनों में तापमान में छह से सात डिग्री और लू वाले दिनों में 10 से 12 डिग्री तक की कमी आती है।”

राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर के इसी इलाके में कूलिंग स्टेशन बनाने के पीछे कई वजहें रही। कायलाना बड़ा चौराहा है जहां ऑटो स्टैंड, बस स्टॉप और कॉलेज हैं। जोधपुर में एमएचटी की फील्ड समन्वयक अलका पुरोहित इस जगह को चुनने की वजह बताते हुए कहती हैं, “पास में ही आठ से दस बस्तियां हैं जहां से लोग सुबह काम पर निकलते हैं या फिर दोपहर में वापस लौटते हैं। यहां निगम के सफाई कर्मियों का कार्यालय और अन्नपूर्णा रसोई भी है। आस-पास में पेड़-पौधे कम होने से छायादार जगह और बैठने की व्यवस्था भी नहीं थी।“ चावड़ा कहते हैं कि इसे भीषण गर्मी को ध्यान में रखकर बनाया गया है, लेकिन यह बारिश और ठंड में भी राहगीरों की मदद करता है।

वहीं, पत्थर खदान से काम करके लौट रहे 25 साल के देवाराम कहते हैं कि गर्मी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में यहां काफी लोग आएंगे और इस जगह का लाभ उठाएंगे।

पांच मई को इस कूलिंग स्टेशन में आराम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र कुमार ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “जोधपुर और उसके आस-पास का इलाका पहाड़ी है। पत्थर जल्दी गर्म हो जाते हैं और देर से ठंडे होते हैं। इसलिए शहर में गर्मी ज्यादा लगती है। यहां आकर कुछ देर आराम करना सुकून देता है।” उन्होंने शहर के दूसरे इलाकों में भी ऐसी सुविधाओं की मांग की।

जोधपुर उत्तर नगर निगम के असिस्टेंट इंजीनियर और हीट एक्शन प्लान के नोडल अधिकारी अंकित पुरोहित ने बताया, “पहले फेज में महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने तीन जगहों पर कूलिंग स्टेशन लगाने का प्रस्ताव दिया था। एक चल रहा है, दूसरा अगले 10 दिन में शुरू हो जाएगा। तीसरे के लिए उपयुक्त जगह खोजने का काम जारी है।” जोधपुर में दूसरा कूलिंग स्टेशन गोकुल जी की प्याऊ के पास बन रहा है। 

महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने पिछले साल देश का पहला नेट जीरो कूलिंग स्टेशन बनाया है। तस्वीर साभार- महिला हाउसिंग ट्रस्ट
महिला हाउसिंग ट्रस्ट ने पिछले साल देश का पहला नेट जीरो कूलिंग स्टेशन बनाया है। तस्वीर साभार- महिला हाउसिंग ट्रस्ट

सैलानियों के बीच लोकप्रिय जोधपुर में पूरे साल धूप वाला मौसम रहता है। शहर का सालाना और अधिकतम तापमान पिछले कुछ दशकों से बढ़ रहा है। आबादी का घनत्व ज्यादा होने और लगातार शहरीकरण के चलते यहां हीट एक्शन प्लान को बेहतर तरीके से लागू करना जरूरी है, ताकि गरीब परिवारों और खुले में काम करने वाले कामगारों को गर्मी के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। 

आगे बढ़ाने में कई चुनौतियां

हालांकि, हीट एक्शन प्लान के तहत कूलिंग स्टेशन जैसी सुविधा में कई चुनौतियां भी हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, हीट एक्शन प्लान तब विफल हो गए, जब उनमें कई विभागों के बीच तालमेल की जरूरत थी। 

चावड़ा बताते हैं, “शहर का पहला कूलिंग स्टेशन भीड़भाड़ वाले पावटा में बनना था। सन सिटी हॉस्पिटल से सटे पार्क के बाहर इसे बनाने के लिए एनओसी भी मिल गया। लेकिन, कुछ हलकों से यह आवाज उठी कि इससे  पार्क की अहमियत कम हो जाएगी। दूसरा, वहां से रैलियां भी निकलती हैं। इस तरह, वहां के लिए एनओसी रद्द हो गई। चावड़ा कहते हैं, “एनओसी लेने में कागजी रूप से अधिक कठिनाई नहीं होती, लेकिन जमीन पर काम करते समय वास्तविक और व्यावहारिक समस्याएं सामने आती हैं। जैसे अगर वहां कोई टैक्सी स्टैंड, रेहड़ी लगाने वाले हैं तो उनकी ओर से आपत्ति आ सकती है। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना होता है।”                                                                      

वैसे, कूलिंग स्टेशन बनाने के लिए जमीन भी बड़ा मुद्दा है। महिला हाउसिंग ट्रस्ट की प्रोग्राम मैनेजर बिंदिया पटेल ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “किसी शहर में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा कई विभागों की जमीन होती है। जब टाउन प्लानिंग होती है, तो जमीन अलग-अलग कामों के लिए आवंटित कर दी जाती है। इस तरह, उक्त जमीन को दूसरे काम में लेना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। हालांकि, निगम के साथ मिलकर रास्ता निकालने की कोशिश की जाती है।“

पुरोहित का सुझाव है कि इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए साइज को लेकर फ्लेक्सिबल होने की जरूरत है। तीन-चार मॉडल होने चाहिए और उपलब्ध जगह के हिसाब से फैसला किया जाना चाहिए। इससे लागत भी कम आएगी और इस सुविधा को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

वैसे, सूर्य नगरी का दूसरा कूलिंग स्टेशन व्यस्त इलाके घंटाघर में बनना था। यहां के लिए एनओसी भी मिल गई थी। लेकिन, यहां यह आपत्ति आई कि कूलिंग स्टेशन बनने से जाम लग सकता है। चावड़ा बताते हैं, “गोकुल जी की प्याऊ के लिए एनओसी लेने के लिए जब प्रक्रिया शुरू की गई, तब कनिष्ठ अभियंता की रिपोर्ट और पटवारी रिपोर्ट में आया कि ये जगह नगर निगम के अलावा पीडब्ल्यूडी विभाग में आती है। तो, दोनों से एनओसी लेनी होगी। साथ ही, यातायात बाधित ना हो, इसके लिए यातायात विभाग से भी एनओसी लेनी होगी। इस प्रक्रिया में समय लगा और स्थानीय तौर पर कोई आपत्ति नहीं हो, इसलिए सम्बंधित वार्ड के पार्षद से भी बात की गई।” 

मिस्ट स्प्रिंकलर पंखा और दीवार के चारों तरफ खस के परदे लगे हैं जिन पर पाइप से पानी गिरता है। इससे अंदर आने वाली गर्म हवाएं ठंडी हो जाती हैं। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे
मिस्ट स्प्रिंकलर पंखा और दीवार के चारों तरफ खस के परदे लगे हैं जिन पर पाइप से पानी गिरता है। इससे अंदर आने वाली गर्म हवाएं ठंडी हो जाती हैं। तस्वीर- विशाल कुमार जैन/मोंगाबे

इसके अलावा, कूलिंग स्टेशन के लिए फंडिंग भी बड़ा मसला है। इसकी बड़ी वजह यह है कि पिछले कुछ सालों से ही भारत में गर्मी और लू पर संजीदगी से बात हो रही है। शहर भी अपनी नीतियों में इसे शामिल कर रहे हैं। पटेल कहती हैं, “फंड करने वाले हमसे इन चीजों पर जानकारी ले रहे हैं और अपनी नीतियों में इसे शामिल कर रहे हैं। सरकार भी बजट में इसकी व्यवस्था कर रही हैं। हमारा मानना है कि निगम को हर साल अपने बजट में इस काम के लिए धन आवंटित करना चाहिए। अभी सीएसआर के तहत यह काम हो रहा है।”

पुरोहित कहते हैं कि नगर निगम या सरकारी विभाग मांग को देखते हुए फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा, “गर्मी और लू से बचाव के लिए अलग से फंड की व्यवस्था है, लेकिन खास तौर पर कूलिंग स्टेशन जैसी पहलों के लिए नहीं। एक बार जब तीनों कूलिंग स्टेशन काम करने लगेंगे, तो शायद लोगों की तरफ से ऐसी मांग आए। फिर इस पहल के लिए अलग से फंड की व्यवस्था करने पर विचार हो सकता है।” 

जानकारों के मुताबिक हीट एक्शन प्लान की विफलता की एक वजह बारीकियों पर ध्यान नहीं देना भी है। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (डब्ल्यूआरआई) इंडिया में क्लाइमेट, इकनॉमिक्स, फाइनेंस के एसोसिएट प्रोग्राम डायरेक्टर सारांश वाजपेयी ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “जब हीट एक्शन प्लान बनते हैं, तो शहर के स्तर पर बड़े सुझाव दे दिए जाते हैं। जरूरत इस बात की है कि हम हीट एक्शन प्लान को शहर से जोन और फिर वार्ड तक ले जाएं। यह पता लगाएं की किस आबादी पर जोखिम ज्यादा है और फिर बारीकी से प्लानिंग करें। अभी हीट एक्शन प्लान में स्पष्टता का अभाव है।” 

बढ़ती और बदलती अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवॉयरनमेंट और वाटर (सीईईडब्ल्यू) की ओर से 21 मई को जारी एक अध्ययन के मुताबिक अब देश के 57 फीसदी जिले और तीन-चौथाई आबादी पर भीषण गर्मी का जोखिम है। यानी देश की करीब 100 करोड़ आबादी पर किसी न किसी रूप में गर्मी का असर दिख रहा है। पैंतीस संकेतकों के आधार पर किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि देश के 417 जिले ज्यादा और बहुत ज्यादा जोखिम वाले हैं। सामने आ रहे नए खतरनाक ट्रेंड के मुताबिक रात भी सामान्य से ज्यादा गर्म हो रही है।  

सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा,  “हमें स्थानीय जोखिमों को दूर करने, आपातकालीन प्रतिक्रिया उपायों को लंबी अवधि के लचीलेपन के साथ संतुलित करने और कूलिंग के स्थायी समाधानों के लिए रकम की व्यवस्था करने के लिए शहर-स्तर के हीट एक्शन प्लान में तत्काल आमूलचूल बदलाव करने चाहिए।

दूसरी तरफ, लगातार आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था बड़े बदलावों से गुजर रही है। भारत में गिग वर्कर्स जैसे कागमारों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिन्हें खुले में काम करना पड़ता है और यही वर्ग लू की सबसे ज्यादा मार झेलता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2029-30 तक भारत में गिग वर्कर्स की तादाद 2 करोड़ से ज्यादा होने का अनुमान है।


और पढ़ेंः भीषण गर्मी में तैनात सुरक्षा गार्ड के हीट-स्ट्रोक से बचने की कहानी


एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कामगारों में करीब आधे भीषण गर्मी में काम करने को मजबूर हैं। भारत में रोजगार के आंकड़ों के आधिकारिक स्त्रोत पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के मुताबिक देश में गैर-कृषि श्रमिकों का 18 फीसदी हिस्सा खुले में काम करता है। खेती में लगे मजदूरों का आंकड़ा इसमें मिला देने के बाद यह करीब 49.4 फीसदी हो जाता है। वहीं, अनुमान है कि 23 करोड़ से अधिक कामगार खुले में काम करने को मजबूर हैं। इसके अलावा लाखों लोग खुली जगहों पर ठेला लगाते हैं और रोजी-रोटी कमाते हैं।

इन तथ्यों के बीच वाजपेयी मोंगाबे हिंदी से कहते हैं, “हीट एक्शन प्लान में हमें यह पता लगाना जरूरी है कि किसी शहर में मानवीय बसाहट कैसी है? कामगार रोजगार हेतु कहां जाते हैं? इन चीजों का पता लगाकर हम भीषण गर्मी और लू से बचाव के लिए बेहतर और उचित रणनीति तैयार कर सकते हैं। इस तरह के शोध से नगरीय निकाय वित्तीय व अन्य संसाधनों का उचित एवं दक्षतापूर्वक उपयोग करने में सक्षम होंगे।

फिर भी, तमाम चुनौतियों के बावजूद जोधपुर का कूलिंग स्टेशन दूसरे शहरों के लिए नजीर बन सकता है। कपूर कहती हैं, “बढ़ती लू के बीच घर के अंदर कूलिंग की व्यवस्था नहीं होने से दिहाड़ी मजदूर, सड़कों के आसपास ठेला लगाने वाले और शहरी गरीबों जैसी जोखिम वाली आबादी की सेहत पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इस कूलिंग स्टेशन की सफलता ने दूसरी जगहों पर भी इसी तरह की सुविधाएं विकसित करने में दिलचस्पी पैदा की है, जिससे यह भारतीय शहरों और अन्य जगहों पर बढ़ते तापमान के हिसाब से ढलने के लिए जरूरी खाका बन गया है।“ 

 

बैनर तस्वीरः जोधपुर में बने देश के पहले कूलिंग स्टेशन में बैठकर गर्मी से राहत पाते लोग। तस्वीर साभार- महिला हाउसिंग ट्रस्ट

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