- पंजाब सरकार ने इसी साल 7 अप्रैल को एक पत्र जारी कर पंजाब में हाइब्रिड धान और पूसा 44 की खेती पर रोक लगा दी।
- पंजाब के बड़े बीज विक्रेताओं ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।
- हाइब्रिड बीज विक्रेताओं के एडवोकेट ने हाई कोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार के पास बीजों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है।
पंजाब के फिरोजपुर जिले के गांव गुरू हरसही के धान उत्पादक किसान अमरदीप सिंह विर्क, 67, इस बार खासे परेशान हैं। उन्होंने बताया कि धान की रोपाई एक जून से शुरू होनी थी,लेकिन उन्होंने कोई तैयारी नहीं की। कारण, पंजाब सरकार द्वारा हाइब्रिड धान व पूसा 44 की खेती पर लगाई गई रोक है।
पंजाब सरकार ने इसी साल 7 अप्रैल को एक पत्र जारी कर पंजाब में हाइब्रिड धान और पूसा 44 की खेती पर रोक लगा दी। सरकार का तर्क है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना की एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में हाइब्रिड धान की खेती का असर भूजल पर पड़ रहा है।
पंजाब के बड़े बीज विक्रेताओं ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की, जिसकी पांच सुनवाई होने के बाद 19 मई को अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया। हालांकि फैसला कब सुनाया जाएगा यह नहीं बताया गया है।
चूंकि, हाइब्रिड धान से पैदावार ज्यादा होती है इसलिए विर्क हाइब्रिड धान की ही खेती करना चाहते हैं। हालांकि, अब उनकी नजर पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय पर टिकी है। विर्क ने बताया कि इस बार वह मानसून की चिंता नहीं कर रहे हैं, न ही मानसून के बारे में बात कर रहे हैं। उनकी बातचीत का विषय यही है कि क्या अब पंजाब में हाइब्रिड व पूसा 44 किस्मों की धान की खेती होगी या नहीं।
यह सवाल अकेले विर्क का ही नहीं, बल्कि हर उस धान उत्पादक किसान का है, जो गैर-बासमती धान की खेती करता है।

केंद्र बनाम राज्य सरकार
पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में बीज कंपनियों के एडवोकेट हरीश मेहला ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में दलील दी कि राज्य सरकार के पास बीजों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है। बीज अधिनियम, 1966 की धारा 5 के तहत केंद्र सरकार ने इन बीजों को प्रमाणित किया है और उन्हें पंजाब राज्य में इन बीजों की सिफारिश भी की गई है।
राज्य सरकार ने यह निर्णय केंद्र की सहमति के बिना लिया, जो कि वैधानिक रूप से गलत है। सभी डीलर बीज अधिनियम, 1966 के तहत लाइसेंस प्राप्त हैं और वही बीज बेच रहे हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा प्रमाणित किया गया है।
हालांकि राज्य सरकार का दावा है कि पंजाब बीज सुधार अधिनियम 1949 के तहत रोक लगायी गई है। “पूर्वी पंजाब सुधारे गए बीज और पौधे अधिनियम, 1949” के तहत उन्हें राज्य स्तर पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त है। इस अधिकार का प्रयोग करते हुए हमने बीज की बिक्री पर रोक लगायी है।
सीनियर एडवोकेट व राज्य और केंद्र के संबंधों के जानकार जगमाल सिंह जटैन ने बताया कि किसी भी बीज को लेकर नोटिफिकेशन केंद्र सरकार की ओर से ही होती रही है। अब यदि किसी भी बीज पर रोक लगानी है तो निश्चित ही यह केंद्र का अधिकार है, राज्यों का नहीं।
“हालांकि पंजाब में हाइब्रिड धान के बीजों पर रोक की बात है तो क्योंकि यह मामला अब पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय में हैं। अदालत ने अभी तक इस पर अपना निर्णय नहीं दिया है। फिर भी हम कह सकते हैं कि राज्य इस तरह से मनमाने तरीके से रोक नहीं लगा सकता। ऐसे कई उदाहरण है,जब कोर्ट ने राज्यों के इस अधिकार को सीमित करते हुए केंद्र को ही अधिकार दिया है,” उन्होंने मोंगाबे हिंदी को बताया।
घाटे का सौदा?
कृषि विशेषज्ञ और इस क्षेत्र में किसानों के साथ काम करने वाले रोहित चौहान पंजाब सरकार के इस निर्णय को गैर वाजिब मानते हैं। उनका कहना है कि हाइब्रिड धान का उत्पादन सामान्य धान से 10-15 प्रतिशत ज्यादा है। इससे जाहिर है, किसानों की आमदनी भी ज्यादा होगी। इसलिए हाइब्रिड धान की खेती को रोकना तर्कसंगत नहीं है। वह यह भी तर्क देते हैं कि जब हरियाणा और देश के दूसरे हिस्सों में हाइब्रिड धान पर रोक नहीं हैं तो फिर पंजाब सरकार ही क्यों यह निर्णय ले रही है।
किसान संगठनों के अनुसार, पंजाब में 31.94 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है। इसमें से 70 प्रतिशत से ज्यादा रकबा हाइब्रिड और पूसा 44 का होता है। चौहान कहते हैं कि इन आंकड़ों से आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों को कितना आर्थिक नुकसान होगा।
पंजाब के प्रगतिशील किसान अमृतसर जिले के गांव छज्जाविंड निवासी परेंद्र सिंह, 50, व अमृतसर शहर के कश्मीर एवेन्यू बटाला रोड निवासी सुभाष चंद्र, 65, ने बताया कि पारंपरिक धान की तुलना में हाइब्रिड धान से 10-15 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन होता है, जिससे प्रति एकड़ जमीन पर औसतन 5000-8000 रुपए का लाभ होता है।

पटियाला के किसान रामतीर्थ, 43, ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भेज कर बताया कि वह एक प्रगतिशील किसान हैं और पिछले 20 सालों से धान की खेती कर रहे हैं। हाइब्रिड धान से 10-12 हजार रुपए अतिरिक्त लाभ होता है। इस किस्म को तैयार होने में 135 से 140 दिन लगते हैं। नाइट्रोजन खाद भी तीन बैग लगते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि हाइब्रिड धान पर जो रोक लगाई जा रही हैं, उसे हटाया जाए।
वहीं, जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री व पंजाब खेती-बाड़ी के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने सरकार के इस निर्णय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि पारंपरिक बीजों से धान का उत्पादन काफी अच्छा हो रहा है। हाइब्रिड धान से ज्यादा उत्पादन का दावा सही नहीं हैं।
हाइब्रिड धान की खेती पर खर्च ज्यादा आता है। ज्यादा न्यूट्रेंट लगते हैं। इससे जमीन की उत्पादन क्षमता भी प्रभावित होती है। सरकार का यह निर्णय एकदम सही है। उन्होंने कहा कि जहां तक किसानों की बात है, उन्हें समझाना होगा कि हाइब्रिड धान लाभ का नहीं अपेक्षाकृत घाटे का ही सौदा है।
निर्णय के पीछे पंजाब सरकार के तर्क
पंजाब सरकार ने हाइब्रिड धान और पूसा 44 की खेती पर रोक लगाते हुए कई अलग-अलग तर्क दिए हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना की रिपोर्ट के आधार पर वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि हाइब्रिड धान को पकने में ज्यादा समय लगता है। इस वजह से पानी की खपत ज्यादा होती है और भूजल पर अतिरिक्त दबाव बनता है।
वहीं पंजाब के कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह इस निर्णय को फसलों बैक्टीरियल ब्लाइट से बचाने का एक कदम मानते हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब में 1985 में बैक्टीरियल ब्लाइट का प्रकोप हुआ था। इसकी रोकथाम के लिए कोई कैमिकल उपचार उपलब्ध नहीं है। इसलिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक कमेटी ने सरकार को सिफारिश की है कि प्रदेश में धान की वह किस्म उगाई जाए, जिसमें बैक्टीरियल ब्लाइट का असर न हो। हाइब्रिड किस्म ब्लाइट के प्रति संवेदनशील है। इतना ही नहीं हाइब्रिड से यह असर धान की दूसरी किस्मों पर भी आ जाता है। इस वजह से प्रदेश में हाइब्रिड धान व पूसा 44 पर रोक लगाई गई है।
इसके साथ ही पंजाब के कृषि मंत्री ने मोंगाबे हिंदी को बताया कि हाइब्रिड धान के बीच काफी महंगे हैं। इसलिए अतिरिक्त आमदनी का जो तर्क दिया जा रहा है, वह सही नहीं है। यदि हाइब्रिड धान की खेती के पूरे खर्च को देखा जाए तो इससे नुकसान ही होगा। यह भी एक वजह है कि सरकार ने हाइब्रिड धान पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया (एफसीआई) के मानकों पर चावल भी खरा नहीं उतरता। चावल में टूटने की शिकायत आती है।
उन्होंने इस निर्णय को हर साल की पराली जलाने की समस्या से जोड़ते हुए बताया कि हाइब्रिड धान के पौधे की लंबाई सामान्य धान के पौधे से ज्यादा है। पंजाब में धान की कटाई हार्वेस्टर से होती है। अब धान का जो पुआल बच जाता है, उसका सही से प्रबंधन नहीं हो पाता। इस किस्म के धान के पुआल में न तो हैप्पी सीडर ठीक से काम कर पाते। न ही पुआल को मिट्टी में मिलाने वाले यंत्र ज्यादा कारगर होते। क्योंकि उनका निर्माण करते वक्त यह ध्यान ही नहीं रखा गया कि ज्यादा ऊंचाई के पुआल को भी मिट्टी में आसानी से मिला दें। धान की कटाई के बाद किसानों को गेहूं की बुवाई करनी होती है। अब जब हाइब्रिड धान का पुआल मिट्टी में नहीं मिल पाता तो किसान आग लगा देते हैं। जो सर्दी के दिनों में स्मॉग की एक बड़ी वजह बनता है।

बीज विक्रेताओं को झटका
बीज डीलर बरिंदर सिंह ने बताया कि कम से कम एक साल पहले सरकार को यह निर्णय लेना था। जिससे बीज कंपनियां आवश्यक तैयारी कर लेती। पंजाब व हरियाणा में बड़े पैमाने पर हाइब्रिड धान का बीज प्रयोग होता है। इससे न सिर्फ किसानों को सीधा आर्थिक नुकसान हो रहा है बल्कि बीज कंपनियां समेत बीज विक्रेताओं के सामने भी आर्थिक संकट आ गया है। हाइब्रिड सीड एक सीजन के बाद एक्सपायर हो जाता है। पहले से तैयार किया जाता है। अचानक सरकार ने यह निर्णय ले लिया, जो बीज बच गया, इसका क्या करें?
अपीलकर्ता के एडवोकेट हरीश मेहला ने बताया कि सरकार ने यह निर्णय अचानक लिया। इस वजह से पंजाब में पारंपरिक धान के बीज का भी संकट पैदा हो गया। स्थिति यह रही कि किसान हरियाणा और दूसरे राज्यों से बीज खरीदने पर मजबूर हो रहे हैं। सरकार का निर्णय तब आया,जब पंजाब में बीज विक्रेताओं ने बड़ी मात्रा में हाइब्रिड धान का बीज के आर्डर बुक करा दिए थे। इसका भुगतान भी हो चुका था। पटियाला के बीज विक्रेता बरिंदर सिंह ने बताया कि बड़ी संख्या में किसानों ने हाइब्रिड धान की नर्सरी की भी बिजाई कर ली है। अब उन पर तो दोहरा खर्च आ जाएगा।
पंजाब में पर्याप्त मात्रा में पारंपरिक धान का बीज भी नहीं है। पटियाला जिले के गांव अलीपुर वजीरपुर साहिब के किसान इंद्रप्रीत सिंह रंधावा, 65, ने बताया कि वह 24 एकड़ में धान की खेती करते हैं। उन्हें पारंपरिक धान का मात्र पांच एकड़ का बीज मिला है। इसी तरह से अमृतसर के किसान अजनाला अटारी के किसान सुखदेव सिंह चहल, 48, ने बताया कि वह हरियाणा से ब्लैक में धान का बीज खरीद कर लाए हैं।
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सिर्फ पंजाब ही क्यों?
युवा किसान संघ के अध्यक्ष सरवन सिंह ढींढसा, 32, ने बताया कि क्या सिर्फ ब्लाइट की समस्या पंजाब में हैं? हरियाणा में नहीं है? हरियाणा में तो हाइब्रिड धान की किस्मों पर कोई रोक नहीं है। जबकि हरियाणा और पंजाब में धान को लेकर परिस्थितियां एक जैसी हैं। फिर पंजाब में ही क्यों हाइब्रिड धान पर रोक लगाई जा रही है। उन्होंने बताया कि एफसीआई का जो तर्क पंजाब सरकार दे रही है, वह सही नहीं है। आखिर हरियाणा में भी तो हाइब्रिड धान की खेती हो रही है। वहां यह धान सरकारी खरीद में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी। एफसीआई को पंजाब में ही हाइब्रिड धान से दिक्कत है, यह दिक्कत हरियाणा से क्यों नहीं है।
पटियाला जिले के गांव अकालगढ़ के किसान हरजोत सिंह चीमा, 43, ने बताया कि दिक्कत यह है कि सीजन के दौरान पंजाब सरकार ने हाइब्रिड धान पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। यह सही नहीं है। कम से कम किसानों को इसके लिए वक्त देना चाहिए था।
बैनर तस्वीरः धान की फसल की गुणवत्ता जांचता एक किसान। तस्वीर– सीआईएटी/नील पामर/फ्लिकर (CC BY-SA 2.0)