उत्तरप्रदेश के दो जिले बिजनौर और मुजफ्फरनगर के बीच स्थित हैदरपुर तालाब या कहें वेटलैंड पर 234 प्रजाति के पक्षी आश्रित हैं।आकार में तीन हजार एकड़ का होने के बावजूद उत्तरप्रदेश में दूसरे जल स्रोतों के मुकाबले इसे कम ही पहचान मिली है। वन विभाग की अनदेखी की वजह से इस स्थान को शिकार, अवैध शराब निर्माण जैसी गतिविधियों से खतरा है।पक्षी-दर्शन के शौकीन एक व्यक्ति ने इस वेटलैंड का वास्तविक आकार खोजकर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।वेटलैंड में गंगा और सोलानी नदी का पानी भरा रहता है, जिससे पक्षियों, जलीय जीवों के अलावा आसपास के लोगों को भी लाभ मिलता है। पिछले तीन दशक में अनगिनत लोगों का बिजनौर के गंगा बैराज से गुजरना हुआ होगा। कभी पक्षियों को देखने तो कभी बैराज के खुशनुमा माहौल का आनंद लेने। पर किसी की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस प्राकृतिक धरोहर पर नहीं गई जिसे आशीष लोया ने 2013 में देख लिया। और न केवल देखा बल्कि बैराज के ऊपरी हिस्से की छानबीन भी की। इनके इस प्रयास ने एक उपेक्षित वेटलैंड को नया जीवन दे दिया। वर्ष 2013 में जब आशीष लोया की नजर इस क्षेत्र पर गयी उसके बाद आने वाले दो साल तक लागातर ये इस इलाके के चारों तरफ का दौरा करते रहे। हैदरपुर वेटलैंड के नाम से जाना जाने वाला यह इलाका 3,000 एकड़ में फैला हुआ है। करीब 1,200 एकड़ में वेटलैंड का मुख्य भाग है। बिजनौर और मुजफ्फरनगर जिलों के बीच स्थित यह वेटलैंड हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का अंग है। एक बार इस इलाके से रू-ब-रू होने के बाद इसे समझने की ऐसी जिज्ञासा हुई कि यहां से दस किलोमीटर दूर रहने वाले लोया लगभग रोज इस स्थान का दौरा करने लगे। गंगा और सोलानी नदी के बीच होने की वजह से दोनों नदियों का पानी यहां भरा रहता है। बरसात के मौसम में वेटलैंड बाढ़ रोकने और गर्मी के दिनों में जल संरक्षण के काम आता है। दो नदियों के बीच का यह इलाका हमेशा से पक्षियों को पसंद रहा है। पर 1984 में जब गंगा नदी पर बिजनौर बैराज का निर्माण हुआ तो इस इलाके ने वेटलैंड का स्वरूप ले लिया। अब इस वेटलैंड में करीब 234 प्रजाति के पक्षी देखे जा सकते हैं जिसमें 90 प्रजाति के प्रवासी पक्षी शामिल हैं। इन पक्षियों के यहां आने का सबसे मुफीद समय दिसंबर से फरवरी के बीच का होता है। यहां भेड़िए, मगरमच्छ, कचुए, दलदली हिरण भी देखे जा सकते हैं। हैदरपुर वेटलैंड में करीब 234 प्रजाति के पक्षी देखे जा सकते हैं जिसमें 90 प्रजाति के प्रवासी पक्षी शामिल हैं। तस्वीर- आशीष लोया “दिसंबर, जनवरी और फरवरी में यहां पक्षियों की संख्या 50 हजार के पार चली जाती है। यह जगह बहुत चर्चित तो नहीं है पर जैव-विविधता के मामले में बहुत समृद्ध है। जिन्हें पक्षियों से प्यार है, उनके लिए यह जगह स्वर्ग सरीखा है। मौसम के हिसाब से यहां का पानी घटता-बढ़ता रहता है। इस तरह अलग-अलग मौसम में वेटलैंड का दृष्य अलग होता है,” सहारनपुर डिविजन के कमिश्नर संजय कुमार बताते हैं। बावजूद इसके कि सैलानियों के लिए यह स्थान काफी रमणीय है, इसकी काफी अनदेखी होती रही है। वन विभाग ने यहां कोई सर्वेक्षण तक नहीं किया जिससे इस वेटलैंड का महत्व पता चल सके। अनदेखी की वजह से वेटलैंड के आसपास अवैध शराब बनाने जैसी गतिविधियां भी देखी जाती हैं। जीव-जंतुओं का अवैध शिकार करते और मवेशियों के साथ वेटलैंड का अतिक्रमण करते लोग भी यहां की जैव-विविधता के लिए खतरा हैं। आखिर कैसे खोजा गया इतना बड़ा वेटलैंड? आशीष लोया ने यहां वेटलैंड की मौजूदगी को काफी प्रयासों के बाद खोजा है। 47-वर्षीय लोया मूल रूप से महाराष्ट्र के अकोला से हैं, और बिट्स पिलानी से पढ़ाई करने के बाद वे कुछ वर्षों के लिए न्यूयॉर्क चले गए। इस दौरान लोया आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के साथ जुड़े रहे। वर्ष 2008 में वे भारत वापस आए और वर्ष 2013 से बिजनौर में ही बस गए। बचपन से इन्हें पक्षियों को देखने का शौक रहा है। यह शौक यहां भी बना रहा। लोया बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के सदस्य भी रहे हैं। बिजनौर के इस वेटलैंड की तरफ आकर्षित लोया ने इसके सभी छोरों का पता लगाना शुरु किया। कुछ हिस्सों में वे पैदल घूमे तो कुछ तक पहुंचने के लिए मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया। इस खोजबीन के दौरान उन्हें समझ आया कि यह इलाका कोई साधारण नहीं बल्कि एक विशाल वेटलैंड है। अगर कोई बैराज से देखना चाहे तो पूरे इलाके को नहीं देख सकता। शायद यही वजह रही कि इस तरफ पहले किसी का ध्यान नहीं गया। वर्ष 2015 तक दो साल की कड़ी मेहनत के बाद लोया इस स्थान के महत्व को लेकर निश्चिंत हुए। उन्होंने वहां मौजूद पक्षियों की तस्वीरें ई-बर्ड नामक वेबसाइट पर अपलोड करना शुरू किया। मौजूदा समय में लोया हैदरपुर वेटलैंड और गंगा बैराज से इस वेबसाइट पर योगदान देने वालों में सबसे आगे हैं। वर्ष 2019 में उन्होंने पक्षियों की तस्वीर और वीडियो तत्कालीन वन संरक्षक वीके जैन को दिखाया। जैन ने इस स्थान का महत्व समझते हुए वहां एक चौकी की स्थापना की। इस पहल का मकसद पक्षियों का शिकार रोकना था। दलदल में रहने वाला हिरण हैदरपुर वेटलैंड में पाया जाता है। हाल ही में 148 हिरणों का एक समूह यहां देखा गया। यह इलाका 3,000 एकड़ में फैला हुआ है। तस्वीर- आशीष लोया यह वेटलैंड दो जिलों के पांच गांवों की सीमा से सटा हुआ है। यानी इस वेटलैंड में प्रवेश करने के ढेरों रास्ते हैं। इसी वजह से यहां की अवैध गतिविधियों को रोक पाना, वन विभाग के लिए बड़ी चुनौती है। सहारनपुर संभागीय आयुक्त के तौर पर संजय कुमार ने जून 2019 में पदभार ग्रहण किया। उन्होंने भी लोया के पहल को समझकर प्रशासनिक रूप से उसमें सहयोग किया। डब्लू-डब्लूएफ-इंडिया ने हैदरपुर बर्ड फेस्टिवल का आयोजन कर पहली बार वर्ष 2020 में इस वेटलैंड के महत्व को दुनिया को बताने की कोशिश की गयी। फरवरी में हुए इस दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान बीएनएचएस के पूर्व प्रमुख असद रहमानी भी मौजूद रहे। अब हैदरपुर को रहमानी ने अपनी किताब में एक महत्वपूर्ण जैव-विविधता के स्थल के तौर पर शामिल किया है। पिछले वर्ष नवंबर में लोया ने डब्लूडब्लूएफ इंडिया और वन विभाग के साथ मिलकर हैदरपुर वेटलैंड में पक्षियों को गिनने का दो दिवसीय अभियान भी चलाया था। हैदरपुर वेटलैंड के संरक्षण में स्थानीय लोगों का साथ बर्ड फेस्टिवल के दौरान यह घोषणा हुई कि इस स्थान को इको टूरिज्म के स्थान के तौर पर तैयार किया जाएगा। इसके बाद यहां जीव-जंतुओं का ख्याल रखने के लिए गाड़ियों की आवाजाही कम की गई। लोगों की सुविधा के लिए किराए पर साइकिल दी जाती है जिससे वे वेटलैंड के अंदरुनी हिस्से में जा सकते हैं। पानी में बोटिंग की अनुमति तो है लेकिन सिर्फ सीमित इलाके तक ही। पक्षी प्रेमियों को उम्मीद है कि पर्यटन की वजह से यहां लोगों की भीड़ नहीं बढ़ेगी ताकि संरक्षण के काम में खलल न पड़े। प्रशासन ने यहां पर्यटकों के लिए आठ व्यू पॉइंट बना रखे हैं। इसमें से एक दो मंजिला वाच टावर भी है। इसके अलावा यहां 15 किलोमीटर का नेचर ट्रेल है। लोगों को इस स्थान के बारे में बताने के लिए प्रशासन ने पक्षियों की तस्वीरें जानकारी के साथ लगा रखी हैं। इस स्थान को पॉलीथिन मुक्त भी घोषित किया गया है। लोया कहते हैं कि वन विभाग और प्रशासन ने अबतक ठीक कदम उठाए हैं लेकिन इसे साधारण पिकनिक स्थल न बनाकर बर्ड सेंचुरी की तरह विकसित किया जाना चाहिए। लोया स्थानीय समुदाय की भागीदारी का महत्व समझते हैं इसलिए लोगों के लिए योग और प्राणायाम की कक्षा लगाकर उन्हें प्रकृति से जोड़ने का प्रयास करते हैं। “लोगों को जोड़ने के बाद मैंने उन्हें पक्षियों को पहचानने की ट्रेनिंग दी। इस दौरान कई बर्ड वाचिंग कैंप आयोजित किए गए। इनमें शामिल लोगों को गंगा मित्र की उपाधि दी गई,” लोया ने बताया। इस दौरान पक्षियों की संख्या का अनुमान 50 हजार लगाया गया। “पक्षियों की संख्या 50 हजार से ऊपर भी जाएगी। अभी प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हुआ है,” संजय कुमार ने बताया। स्थानीय लोगों के साथ पक्षियों को निहारते हुए आशीष लोया। प्रशासन ने हैदरपुर तालाब के पास वाच टावर बनाए हैं, जहां से पक्षियों को देखा जा सरकता है। तस्वीर- आशीष लोया क्या इस वेटलैंड को मशहूर होने की कीमत चुकानी पड़ेगी! हैदरपुर वेटलैंड जबतक गुमनाम था, यहां कुछ मछुआरों और शिकारियों को छोड़कर किसी की नजर नहीं थी। क्या इसका नाम मशहूर होने से यहां के जीवों पर कोई असर होगा? इस सवाल का जवाब देते हुए रहमानी मानते हैं कि ऐसा नहीं होगा। अब प्रशासन की इसपर नजर पड़ेगी तो मछली मारने के काम को भी नियंत्रण में लाया जा सकेगा। साथ में शिकार पर रोक लगेगी। रहमानी मछली मारने पर रोक लगाने का समर्थन नहीं करते, बल्कि इसपर निगरानी रखने का सुझाव देते हैं। वन विभाग के कुमार कहते हैं कि शिकार पर लगाम लगाने के लिए विभाग के कर्मचारी इसकी निगरानी रखते हैं। अच्छी बात है कि इस इलाके में कोई बड़ा प्रदूषण नहीं है। हालांकि, इपोमिया नामक पौधे से पानी गंदा जरूर हो रहा है। सोलानी नदी का पानी यहां आकर मिलता है जो कि आसपास के गांवों से निकलने वाले कचरे की वजह से साफ नहीं रही। “अगर वेटलैंड में आसपास के गांव वालों ने अंधाधुंध मछली पकड़ा तो इसके गंभीर नुकसान होंगे। इस समस्या का हल गांव वालों को कोई वैकल्पिक आय का साधन देकर किया जा सकता है। संरक्षण के काम में स्थानीय लोगों की मदद भी ली जा सकती है,” वेटलैंड इंटरनेशनल साउथ एशिया के एक्वेटिक इकोलॉजी से जुड़े अज़गर नवाब ने कहा। इसका एक रास्ता सुझाते हुए लोया का कहना है कि लोगों को मछली न मारने के एवज में कुछ दिया जाना चाहिए।