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नुब्रा वैली में सी बकथ्रॉन की झाड़ियों के बीच एक यूरेशियाई लिंक्स। तस्वीर- स्टैनज़िन चंबा।

लद्दाख: आम नागरिकों की पहल से कारगर हो रहा वन्यजीव संरक्षण

लेह में रहने वाले 35 वर्षीय स्टैनज़िन चंबा प्रकृति की खोज में लद्दाख के नुब्रा घाटी में बीते पांच साल से जा रहे हैं। लेह शहर से लगभग 160 किलोमीटर…
नुब्रा वैली में सी बकथ्रॉन की झाड़ियों के बीच एक यूरेशियाई लिंक्स। तस्वीर- स्टैनज़िन चंबा।
नर हूलॉक गिब्बन। तस्वीर- मिराज हुसैन/विकिमीडिया कॉमन्स 

मेघालय में स्तनपायी जीवों की आबादी पर समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों का अच्छा असर

एक अध्ययन में पाया गया है कि कम्युनिटी रिजर्व (सीआर) यानी आदिवासी समुदायों द्वारा प्रबंधित संरक्षित क्षेत्र, संरक्षण प्राथमिकताओं और समुदायों की आजीविका की जरूरतों को संतुलित करने के लिए…
नर हूलॉक गिब्बन। तस्वीर- मिराज हुसैन/विकिमीडिया कॉमन्स 
ताड़ के पत्तों से बने नर्सरी बैग लिए हुए महिलाएं। तस्वीर- बालाजी वेदराजन।

मैंग्रोव रोपाई के लिए प्लास्टिक की जगह लेते ताड़ के पत्तों से बने नर्सरी बैग

फूस से बनी अपनी झोपड़ी के पास बैठकर, अचिक्कन्नु मछली पकड़ने के टूटे हुए जाल से बने बाड़ पर रखे ताड़ के सूखे पत्ते (बोरासस फ्लेबेलिफ़र) की तरफ हाथ बढ़ाती…
ताड़ के पत्तों से बने नर्सरी बैग लिए हुए महिलाएं। तस्वीर- बालाजी वेदराजन।
काम पर एक बेलर मशीन। पीईडीए के अनुसार, पंजाब में 42 नियोजित सीबीजी संयंत्रों में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल करके हर दिन 495 टन सीबीजी का उत्पादन किया जाएगा। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

[वीडियो] पराली से बायोगैस बनाना वायु प्रदूषण से निपटने का उम्दा विकल्प, लेकिन सामने हैं कई बाधाएं

साल 2022 में नवंबर के शुरुआती दिनों की एक शाम। पंजाब के संगरूर जिले की ये शाम पिछले कई सालों के मुकाबले बहुत अलग थी। आसमान साफ था। हवा में…
काम पर एक बेलर मशीन। पीईडीए के अनुसार, पंजाब में 42 नियोजित सीबीजी संयंत्रों में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल करके हर दिन 495 टन सीबीजी का उत्पादन किया जाएगा। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
ग्रेटर रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो। भारत में इसे भीमराज और भृंगराज के नाम से जाना जाता है। तस्वीर- बी मैड शहंशाह बापी/विकिमीडिया कॉमन्स।

[वीडियो] आवाज से मिल रहा जंगल के बेहतर होने का जवाब, साउंडस्कैप की मदद से निगरानी

 “हम लैंटाना (विदेशी प्रजाति का एक पौधा) के प्रकोप से आजाद हैं,” मध्य भारत में स्थानीय समुदाय के एक सदस्य बसंत झारिया मुस्कुराते हुए कहते हैं। यह क्षेत्र कभी आक्रामक…
ग्रेटर रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो। भारत में इसे भीमराज और भृंगराज के नाम से जाना जाता है। तस्वीर- बी मैड शहंशाह बापी/विकिमीडिया कॉमन्स।
खेतों को अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए नरवाई में आग लगा देना मिट्टी की सेहत को सबसे नुकसान में डाल देता है, इससे मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व ख़तम हो रहे हैं और मिट्टी कि उपजाऊ क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। तस्वीर- राकेश कुमार मालवीय/मोंगाबे

अब तीसरी फसल के लिए भी पराली जला रहे किसान, मिट्टी के लिए बड़ा खतरा

मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर आता है। यहां के नर्मदापुरम जिले की मिट्टी को एशिया की सबसे उपजाऊ मिट्टी माना जाता है और गेहूं उत्पादन…
खेतों को अगली फसल के लिए तैयार करने के लिए नरवाई में आग लगा देना मिट्टी की सेहत को सबसे नुकसान में डाल देता है, इससे मिट्टी के सूक्ष्म पोषक तत्व ख़तम हो रहे हैं और मिट्टी कि उपजाऊ क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। तस्वीर- राकेश कुमार मालवीय/मोंगाबे
थिरुनेली सीड फेस्टिवल में दर्शाई गईं चावल की विभिन्न किस्में। तस्वीर- मैक्स मार्टिन/मोंगाबे

जलवायु अनुकूल पारंपरिक बीज और कृषि उपज का जश्न मनाता थिरुनेली का सीड फेस्टिवल

पंचरिमेलम की संगीत मंडली ने त्योहार की गूंज को केरल के मंदिर में सुरों के रंगों से सजाया हुआ था। वहीं खड़े एक बुजुर्ग अपने युवा प्रशंसकों से बीज के…
थिरुनेली सीड फेस्टिवल में दर्शाई गईं चावल की विभिन्न किस्में। तस्वीर- मैक्स मार्टिन/मोंगाबे
झाबुआ जिले में सामुदायिक श्रमदान 'हलमा' में शामिल होने जा रहीं भील महिलाएं। झाबुआ-अलीराजपुर के 1,322 गांवों में 500 कुओं की मरम्मत और गहरीकरण,मेड बधान, नलकूप सुधारने, चैकडैम, बोरीबधान बनाने जैसी जल संरचनाओं के निर्माण का काम हलमा से भील समुदाय ने किए हैं। तस्वीर- सतीश मालवीय/मोंगाबे

हलमा: सामुदायिक भागीदारी से सूखे का हल निकालते झाबुआ के आदिवासी

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के सूखे पहाड़ गर्मी की शुरुआत में ही आग उगल रहे हैं। साढ़ गांव की बाड़ी बोदरी फलिया की एक बेहद जर्जर झोपड़ी में 12…
झाबुआ जिले में सामुदायिक श्रमदान 'हलमा' में शामिल होने जा रहीं भील महिलाएं। झाबुआ-अलीराजपुर के 1,322 गांवों में 500 कुओं की मरम्मत और गहरीकरण,मेड बधान, नलकूप सुधारने, चैकडैम, बोरीबधान बनाने जैसी जल संरचनाओं के निर्माण का काम हलमा से भील समुदाय ने किए हैं। तस्वीर- सतीश मालवीय/मोंगाबे
‘राष्ट्रीय बायोगैस विकास कार्यक्रम’ बायोगैस संयंत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी मुहैया कराने के मकसद से 1981 में शुरू किया गया था। तस्वीर- कृषि अधिकारी, जिला परिषद, कोल्हापुर 

चुनौतियों के बावजूद शौचालयों से जुड़े बायोगैस अपनाने में प्रगति की राह पर कोल्हापुर

पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में चौधरवाड़ी गांव की 35 वर्षीय रूपाली चौधरी का उनकी शादी के बाद ज्यादातर समय परिवार के लिए खाना पकाने में बीतता है। पहले…
‘राष्ट्रीय बायोगैस विकास कार्यक्रम’ बायोगैस संयंत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी मुहैया कराने के मकसद से 1981 में शुरू किया गया था। तस्वीर- कृषि अधिकारी, जिला परिषद, कोल्हापुर 
ओडिशा में लगभग 7,829 महिला स्वयं सहायता समूह पिछले पांच सालों से गांव के तालाबों में पोषण-संवेदनशील मछली पालन में शामिल हैं। तस्वीर- डेटौर ओडिशा/वर्ल्डफिश 

मछली पालन से पोषण को प्रोत्साहित करती ओडिशा की महिलाएं

लगभग डेढ़ दशक पहले तक ‘मोला मछली’ ओड़िया खाने का अभिन्न अंग थी। यह एक स्वदेशी प्रजाति की मछली है जिसे एंबलीफेरिंगोडोन मोला भी कहा जाता है। लेकिन बदलती जलवायु…
ओडिशा में लगभग 7,829 महिला स्वयं सहायता समूह पिछले पांच सालों से गांव के तालाबों में पोषण-संवेदनशील मछली पालन में शामिल हैं। तस्वीर- डेटौर ओडिशा/वर्ल्डफिश 
उत्तरी लखीमपुर, असम में मिसिंग जनजाति का एक घर। बाढ़ग्रस्त इलाकों में रह रहे लोग बाढ़ से बचने के लिए चांग घोर अवधारणा को अपना रहे हैं। तस्वीर- pranabnlp /विकिमीडिया कॉमन्स

कैसे असम का मिसिंग समुदाय वास्तुशिल्प डिजाइन के जरिए बाढ़ से मुकाबला कर रहा है

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे मेधिपामुआ गांव में दिसंबर की गुनगुनी धूप हर तरफ फैली है। गांव के कुछ पुरुष, महिलाएं और बच्चे झुंड बनाकर जमीन से कुछ फीट ऊपर…
उत्तरी लखीमपुर, असम में मिसिंग जनजाति का एक घर। बाढ़ग्रस्त इलाकों में रह रहे लोग बाढ़ से बचने के लिए चांग घोर अवधारणा को अपना रहे हैं। तस्वीर- pranabnlp /विकिमीडिया कॉमन्स
मध्य प्रदेश के सतना जिले के धतूरा गांव में टमाटर की तुड़ाई करता एक किसान। इस गांव में किसानो ने खेती के तरीकों में बदलाव किया है। पानी की खपत कम करने के लिए मंचिंग पॉलीथिन का प्रयोग किया गया जिससे पानी की बचत हुई। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

[वीडियो] क्लाइमेट स्मार्ट विलेज: जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए कैसे तैयार हो रहे हैं मध्य प्रदेश के ये गांव

मध्यप्रदेश के सतना जिले में धतूरा गांव के किसान देवशरण पटेल (53) कंधे पर बैट्री से चलने वाली कीटनाशक छिड़कने की मशीन लादे खेतों की ओर जा रहे हैं। कुछ…
मध्य प्रदेश के सतना जिले के धतूरा गांव में टमाटर की तुड़ाई करता एक किसान। इस गांव में किसानो ने खेती के तरीकों में बदलाव किया है। पानी की खपत कम करने के लिए मंचिंग पॉलीथिन का प्रयोग किया गया जिससे पानी की बचत हुई। तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
लोको पायलट महत्वपूर्ण हाथी गलियारों के आसपास सुरक्षा उपायों को लागू करने में लापरवाही का आरोप लगाते हैं। तस्वीर: पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे।

ट्रेन से हाथियों की टक्कर के बाद असम के लोको पायलटों के अनुभव, क्या है समाधान

"हत्यारा कहलाना किसी को पसंद नहीं है। किसी भी प्राणी की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराना विचलित करने वाला हो सकता है। हाथी की तो बात ही छोड़िए। कुत्ते, बकरी…
लोको पायलट महत्वपूर्ण हाथी गलियारों के आसपास सुरक्षा उपायों को लागू करने में लापरवाही का आरोप लगाते हैं। तस्वीर: पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे।
गन्ना किसान महाराष्ट्र के सतारा में एक चीनी मिल के पास तुलाई और बिक्री के लिए इंतजार कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे

गन्ने के कचरे से बायो-सीएनजी: स्वच्छ ईंधन में चीनी मिलों की बढ़ती भूमिका

गन्ना उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की चीनी मिलें स्वच्छ ईंधन के लिए एक नया प्रयोग कर रही हैं। ये मिलें परिवहन ईंधन के नए स्रोत बायो-सीएनजी के उत्पादन में गन्ने के…
गन्ना किसान महाराष्ट्र के सतारा में एक चीनी मिल के पास तुलाई और बिक्री के लिए इंतजार कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे
गुमला जिले के गुनिया गांव के सीताराम उरांव अपने तरबूज के खेत में काम कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे

सर्द रातों में सिंचाई की समस्या का समाधान बनती सौर बिजली

राजस्थान के गंगानगर जिले में लुढ़कता पारा नए रिकॉर्ड बना रहा है। हालात ऐसे हैं कि लोग गर्म रजाई में भी ठिठुर रहे हैं। ऐसे वक्त में मोहनपुरा गांव के…
गुमला जिले के गुनिया गांव के सीताराम उरांव अपने तरबूज के खेत में काम कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे
बल्ली द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में लगाए गए नए मैंग्रोव। विशेषज्ञों का कहना है कि उन क्षेत्रों में जहां लहर का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, वहां मैंग्रोव तब तक नहीं बचेंगे जब तक कि मैंग्रोव को लहरों से सुरक्षित नहीं किया जाता। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।

[वीडियो] सुंदरबनः तटीय कटाव और मवेशियों की वजह से मुश्किल में मैंग्रोव के नए पौधे

भारत के सुंदरबन में स्थित एक द्वीप पखिरालय घाट के पश्चिम में 700 से 800 मीटर हिस्से में मैंग्रोव (समुद्री तट पर उगने वाला पौधा या झाड़ी) को लगाना, 2020…
बल्ली द्वीप पर मृत मैंग्रोव के बगल में लगाए गए नए मैंग्रोव। विशेषज्ञों का कहना है कि उन क्षेत्रों में जहां लहर का वेग अधिक है, और कटाव तेज है, वहां मैंग्रोव तब तक नहीं बचेंगे जब तक कि मैंग्रोव को लहरों से सुरक्षित नहीं किया जाता। तस्वीर- सुभ्रजीत सेन/मोंगाबे।
पराली जलाने के स्थान पर मशीनों को किराए पर लेने या खरीदने की लागत छोटे और सीमांत किसान वहन नहीं कर सकते। तस्वीर- 2011CIAT / नील पामर / फ़्लिकर

[वीडियो] तमाम सरकारी ‘समाधानों’ के बावजूद उत्तर भारत में क्यों लौट रहा है पराली संकट

देश में पराली जलाने यानी धान के अवशेष को खेतों में जलाने की समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। पराली जलाने की समस्या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा संकट…
पराली जलाने के स्थान पर मशीनों को किराए पर लेने या खरीदने की लागत छोटे और सीमांत किसान वहन नहीं कर सकते। तस्वीर- 2011CIAT / नील पामर / फ़्लिकर
गणेश प्रतिमाओं से इस साल दो मिट्टी एकत्रित हुई है उसे अगले साल मूर्तियां बनाने में इस्तेमाल में लाया जाएगा। तस्वीर- वेदसूत्र / विकिमीडिया कॉमन्स

पुणे में गणेश प्रतिमाओं की मिट्टी को दोबारा उपयोग में लाकर पर्यावरण बचाने की पहल

दिनेश गोले महाराष्ट्र के पेण में रहने वाले एक मूर्तिकार हैं जो कई वर्षों से गणेश उत्सव के लिए मूर्तियां बनाते हैं। पेण, पुणे से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी…
गणेश प्रतिमाओं से इस साल दो मिट्टी एकत्रित हुई है उसे अगले साल मूर्तियां बनाने में इस्तेमाल में लाया जाएगा। तस्वीर- वेदसूत्र / विकिमीडिया कॉमन्स
स्माल विंड सोलर हाइब्रिड में ग्रिड-कनेक्शन के साथ-साथ ऑफ-ग्रिड सिस्टम के माध्यम से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। तस्वीर- कैरल एम. हाईस्मिथ आर्काइव, लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस, प्रिंट्स एंड फोटोग्राफ्स डिवीजन/विकिमीडिया कॉमन्स

भारत के अक्षय-ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करने में छोटी पवन चक्कियां कितनी उपयोगी हैं?

चेन्नई के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर सेंथिल कुमार ने हाल ही में दक्षिणी तमिलनाडु में मदुरै के पास अपने गृहनगर सुंदरपंडियम के दौरे पर पहली बार बिजली कटौती के कारण होने…
स्माल विंड सोलर हाइब्रिड में ग्रिड-कनेक्शन के साथ-साथ ऑफ-ग्रिड सिस्टम के माध्यम से ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। तस्वीर- कैरल एम. हाईस्मिथ आर्काइव, लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस, प्रिंट्स एंड फोटोग्राफ्स डिवीजन/विकिमीडिया कॉमन्स
भारत में रणथंभौर के शुष्क पर्णपाती वन। 2001 से 2010 के बीच वनों ने वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 20-30% अवशोषित कर लिया है। 2001 और 2019 के बीच वनों ने प्रति वर्ष लगभग 7.6 गीगाटन CO2 को अवशोषित किया। तस्वीर- पाहुल महाजन/विकिमीडिया कॉमन्स।

कार्बन सिंक क्या हैं?

कार्बन सिंक ऐसे स्थान या उत्पाद हैं जो कार्बन को ऑर्गेनिक या इनऑर्गेनिक यौगिकों के रूप में अलग-अलग समय के लिए संग्रहित करते हैं। प्राकृतिक या कृत्रिम प्रक्रियाओं के माध्यम…
भारत में रणथंभौर के शुष्क पर्णपाती वन। 2001 से 2010 के बीच वनों ने वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 20-30% अवशोषित कर लिया है। 2001 और 2019 के बीच वनों ने प्रति वर्ष लगभग 7.6 गीगाटन CO2 को अवशोषित किया। तस्वीर- पाहुल महाजन/विकिमीडिया कॉमन्स।
देश का 30% भौगोलिक क्षेत्र संरक्षित करने के लिए अब निजी प्रयासों से जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र चिन्हित किए जा रहे हैं। तस्वीर- वर्षा सिंह

जैव-विविधता को सहेजने के लिए सामुदायिक भागीदारी से बढ़ेगा संरक्षित क्षेत्र

जैव-विविधता पर गहराते संकट को हल करने के लिए दुनिया भर में कई तरह की कोशिशें चल रही हैं। इन्हीं में से एक है  साल 2030 तक धरती के 30…
देश का 30% भौगोलिक क्षेत्र संरक्षित करने के लिए अब निजी प्रयासों से जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र चिन्हित किए जा रहे हैं। तस्वीर- वर्षा सिंह
स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को बढ़ाना भारत में चुनौतीपूर्ण है। नतीजतन, लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में, खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जलाते हैं। फोटो: संयम बहगा/विकिमीडिया कॉमन्स।

खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देने के लिए एलपीजी सब्सिडी तंत्र में बदलाव जरूरी है

हाल के महीनों में एलपीजी की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद क्या यह भारत में खाना पकाने का सबसे लोकप्रिय ईंधन बना रह सकता है? व्यापक रूप से लोकप्रिय…
स्वच्छ, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित खाना पकाने के विकल्पों को बढ़ाना भारत में चुनौतीपूर्ण है। नतीजतन, लोग, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में, खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जलाते हैं। फोटो: संयम बहगा/विकिमीडिया कॉमन्स।
हरसिद्धि प्रखंड के सोनवरसा गांव में 400 साल पुराने बरगद के पेड़ की पहचान की गई और स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे संरक्षित किया गया है। तस्वीर- शशि शेखर

चंपारण के गार्डियन: पुराने पेड़ों को बचाने की एक अनोखी पहल

दुनियाभर में पेड़ों को बचाने के लिए कई अभियान चल रहे हैं। लेकिन बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में पुराने दरख्तों को सहेजने का एक अनोखा अभियान चल रहा है।…
हरसिद्धि प्रखंड के सोनवरसा गांव में 400 साल पुराने बरगद के पेड़ की पहचान की गई और स्थानीय लोगों के सहयोग से इसे संरक्षित किया गया है। तस्वीर- शशि शेखर
सीएआईएफ 20 से अधिक भारतीय और वैश्विक ब्रांडों के साथ विभिन्न पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और 'हरित सूक्ष्म-उद्यमियों' को तैयार करने की पहल में सक्रिय रूप लगी हुई है। फोटो: सीएआईएफ।

‘टेक, मेक, वियर एंड थ्रो’ के दौर में भारत की सर्कुलर फैशन का अर्थतंत्र

हाल के वर्षों में, कपड़ा उद्योग से होने वाले पर्यावरण और सामाजिक नकारात्मक प्रभावों की आलोचना होती रही है। कपड़ा उद्योग का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कई वजहों से हुआ…
सीएआईएफ 20 से अधिक भारतीय और वैश्विक ब्रांडों के साथ विभिन्न पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और 'हरित सूक्ष्म-उद्यमियों' को तैयार करने की पहल में सक्रिय रूप लगी हुई है। फोटो: सीएआईएफ।
(बाएं से) नशीमन अशरफ, महरीन खलील और उल्फत मजीद। तस्वीर- मेहरीन खलील और उल्फत मजीद और हिरा अज़मत

केसर, जैव विविधता और हिमनद: कश्मीर की महिला वैज्ञानिक कर रही हैं क्षेत्र के जलवायु गतिविधियों का नेतृव

इस जलवायु परिवर्तन से स्थानीय पारिस्थितिकी, आजीविका और उन्हें बनाए रखने वाले नेटवर्क के लिए खतरा है। वैज्ञानिक नशीमन अशरफ, उल्फत मजीद और महरीन खलील अलग-अलग पृष्ठभूमि से हैं और…
(बाएं से) नशीमन अशरफ, महरीन खलील और उल्फत मजीद। तस्वीर- मेहरीन खलील और उल्फत मजीद और हिरा अज़मत
पटना पक्षी अभयारण्य के पास उड़ते पक्षी। तस्वीर- विराग शर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स

भूदान ने बदली ज़िंदगी, बहेलिये बन गए पक्षियों के पैरोकार

‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा..।’ हिन्दी क्षेत्र में कौन होगा जिसने यह कहानी न सुनी होगी! इस कहानी में जिस बहेलिया समुदाय को पक्षियों के लिए खतरा बताया गया…
पटना पक्षी अभयारण्य के पास उड़ते पक्षी। तस्वीर- विराग शर्मा/विकिमीडिया कॉमन्स
बारापुल्ला नाले की पहले और बाद की स्थिति। तस्वीर- एकेटीसी

दिल्ली की 700 साल पुरानी निजामुद्दीन बस्ती में लौट रही पुरानी रौनक

दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती अपने आप में एक अलग दुनिया है। इसे सूफी संतों और धार्मिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। लोधी कॉलोनी और खान मार्केट जैसे पड़ोसी…
बारापुल्ला नाले की पहले और बाद की स्थिति। तस्वीर- एकेटीसी
साल 2020 में जैविक खेती अपनाने वाले नारायण गायकवाड़ 2021 में पहली फसल से हुए गन्ने को दिखाते हुए। वो कहते हैं, "अगर हम अब भी जैविक खेती को नहीं अपनाते हैं तो बहुत देर हो जाएगी।” तस्वीर- संकेत जैन/मोंगाबे

[फ़ोटो] गन्ने की जैविक खेती से जमीन और ज़िंदगी संवारता 74 साल का एक किसान

चौहत्तर साल के नारायण गायकवाड़ ने कभी नहीं सोचा था कि खेती के अपने तौर-तरीकों पर उन्हें फिर से विचार करना होगा। वे 60 सालों से भी ज्यादा समय से…
साल 2020 में जैविक खेती अपनाने वाले नारायण गायकवाड़ 2021 में पहली फसल से हुए गन्ने को दिखाते हुए। वो कहते हैं, "अगर हम अब भी जैविक खेती को नहीं अपनाते हैं तो बहुत देर हो जाएगी।” तस्वीर- संकेत जैन/मोंगाबे
कुएं की खुदाई में मारुवन परियोजना की टीम की मदद करते स्थानीय लोग। गौरव गुर्जर द्वारा फोटो।

जापानी विधि से राजस्थान के मरुस्थल में तैयार हो रहा वन

जंगली पेड़ों के जानकार गौरव गुर्जर जोधपुर में पले-बढ़े हैं। पढ़ाई और रोजगार के लिए वे अपने घर से दूर जाने वाले गौरव गुर्जर को इसका अंदाजा यह नहीं था…
कुएं की खुदाई में मारुवन परियोजना की टीम की मदद करते स्थानीय लोग। गौरव गुर्जर द्वारा फोटो।
भुवनेश्वरी चंदोला, रावतगांव की आखिरी बची हुई ग्रामीणों में से एक हैं। वह अपने पति ओमप्रकाश चंदोला और मेजर गोर्की के साथ ऐसे फल और सब्जियां उगाने की कोशिश कर रहीं हैं जो अब उनके गांव में नहीं उगती हैं। तस्वीर- अर्चना सिंह

एक फौजी की कोशिश से दोबारा आबाद हुए उत्तराखंड के ‘भुतहा गांव’

उत्तराखंड को देव भूमि के नाम से जाना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में यह राज्य जलवायु परिवर्तन, कुदरती हादसों और उसकी वजह से हो रहे पलायन को लेकर…
भुवनेश्वरी चंदोला, रावतगांव की आखिरी बची हुई ग्रामीणों में से एक हैं। वह अपने पति ओमप्रकाश चंदोला और मेजर गोर्की के साथ ऐसे फल और सब्जियां उगाने की कोशिश कर रहीं हैं जो अब उनके गांव में नहीं उगती हैं। तस्वीर- अर्चना सिंह