चंबल सफारी में चौकीदार का काम करने वाले जगदीश इंडियन स्किमर के घोसलों की रक्षा करते हैं। एक दशक पहले इन्होंने घड़ियाल से संरक्षण का काम शुरू किया था। इलस्ट्रेशन- तान्या टिम्बले

आतंक के साये में इंडियन स्किमर का संरक्षण

इस खूबसूरत प्रवासी पक्षी के संरक्षण के प्रयास 2016 में शुरू किया गया। इंडियन स्किमर संरक्षण से जुड़े एक प्रोजेक्ट की वैज्ञानिक परवीन शेख ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि चंबल क्षेत्र में उनकी संस्था बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) वर्ष 2016 से काम कर रही हैं। संस्था ने कई सारे प्रयास किये लेकिन कुछ कारगर साबित नहीं हुआ। इस संस्था को एहसास हुआ कि अंडों की पहरेदारी ही सबसे बेहतर उपाय है। इसलिए वर्ष 2019 संरक्षण के लिए पहरेदारी का तरीका अपनाया गया, जिसमें जगदीश ने सहयोग किया।

आवार कुत्ते, जंगली जानवर और मवेशी इस पक्षी के अंडे को खराब कर देते हैं। जैतपुर गांव के आसपास पानी कम होने पर इनके घोसले तक जानवर आसानी से पहुंच जाते हैं। ऐसे में एक ही उपाय दिखता है, इन घोसलों की रखवाली,” वह कहती हैं।

रखवाली के साथ-साथ रेत के इन टीलों को चारे तरफ से घास-फूस से घेर भी दिया जाता है, जिससे जानवर आसानी से वहां न आ सके। लाखन गुर्जर, गब्बर और छोटू जगदीश के साथ उनके दल में हैं।

जगदीश ने मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हैं बताया कि पंछीड़ा के घोंसलों पर जानवर अक्सर रात में हमला करते हैं। दिन में रेत माफिया से इनका घर बचाने के अलावा मवेशियों से भी इनके घोसले का बचाव करना होता है।

“बीएनएचएस की मदद से मैंने चार लोगों का दल बनाया है। इस दल के लोग बारी-बारी से दिन-रात पक्षियों के घोसले की रक्षा करते हैं। रेत का काम करने वाले लोग भले ही खतरनाक हों, लेकिन स्थानीय भाषा में उन्हें समझाने से वह टीलों को नुकसान नहीं पहुंचाते,” जगदीश कहते हैं। वह मुरैना के गुर्जर समाज से आते हैं।

शेख कहती हैं कि इंडियन स्किमर के लिहाज से भारत और चंबल का क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। चंबल में 80 फीसदी इंडियन स्किमर आते हैं। देश के दूसरे नदियों जैसे गंगा, यमुना, सोन आदि में भी इंडियन स्किमर आते हैं, लेकिन चंबल में इसकी संख्या बाकी नदियों के मुकाबले बढ़ी है। भारत के अलावा इसे पाकिस्तान, म्यांमार और बंगलादेश में इस पक्षी को देखा गया है। इनकी संख्या मात्र दो से तीन हजार के बीच है।

मार्च और जून के बीच ये पक्षी अपना घोसला बनाते हैं और प्रजनन करते हैं।

जगदीश रोजाना एक डायरी में अंडों की स्थिति नोट करते हैं और उसे मुंबई स्थित बीएनएचएस के दफ्तर भेजते हैं। पांचवी पास जगदीश हिन्दी और गणित की समझ रखते हैं, जो इनके संरक्षण के काम में काफी मददगार है। तस्वीर- परवीन शेख
जगदीश रोजाना एक डायरी में अंडों की स्थिति नोट करते हैं और उसे मुंबई स्थित बीएनएचएस के दफ्तर भेजते हैं। पांचवी पास जगदीश हिन्दी और गणित की समझ रखते हैं, जो इनके संरक्षण के काम में काफी मददगार है। तस्वीर- परवीन शेख

“जगदीश अपनी टोली के साथ रोजाना पक्षी के अंडों को गिनते हैं और मुंबई स्थित दफ्तर में इसकी रिपोर्ट देते हैं। संरक्षण का काम अंडा देने से लेकर बच्चों के उड़ने लायक होने तक चलता है, यानी लगभग दो महीने,” परवीन ने बताया।

अपने काम में आने वाली चुनौतियों पर जगदीश कहते हैं, “यह सच है कि रेत खनन से जुड़े लोग खतरनाक होते हैं। मुझे कई बार उनका सामना करना होता है। मैं उन्हें कहता हूं कि मेहमान पक्षियों को बचाना मेरा धर्म है और आपलोग रेत कहीं और से निकालो। मुझे मेरा काम करने दो। वह अक्सर मेरी बात मान लेते हैं,” जगदीश का कहना है। वह कहते हैं कि चंबल में खनन के अलावा कोई रोजगार नहीं है, इसलिए लोगों की मजबूरी है कि वह गैरकानूनी काम करें।

राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा से गुजरती चंबल नदी। तस्वीर-यन/विकिमीडिया कॉमन्स
राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा से गुजरती चंबल नदी। तस्वीर-यन/विकिमीडिया कॉमन्स

रेत खनन से जैव-विविधता को खतरा

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 में चंबल नदी पर जीव-जन्तुओं का घर बचाने के लिए रेत खनन पर रोक लगा दी थी। जानकार मानते हैं कि रेत खनन से जैव-विविधता को खतरा हो सकता है। हालांकि कानूनी रोक के बाद गैर कानूनी तौर पर यहां खनन जारी है। इन्हें रेत माफिया के तौर पर जानते हैं।

नदी का पानी उतरने पर यहां छोटे-छोटे रेत के टापू बनते हैं जिसपर इस माफिया की नजर होती है।

“हर साल चंबल नदी में काफी रेत जमा होता है। रेत के इन टीलों पर प्रवासी पक्षियों अपना आशियाना बनाते हैं। खनन की वजह से इस आशियाने पर संकट उत्पन्न हो जाता है। खनन से जुड़े लोगों से वन विभाग के कर्मचारी भी खौफ खाते हैं,” ग्वालियर के मुख्य वन संरक्षण वीएस अन्नीगिरी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया। उनके अंतर्गत ही चंबल का यह इलाका आता है।

“चंबल का इलाका 420 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस विशाल क्षेत्र में सारी गैरकानूनी गतिविधियों पर नजर रखना मुश्किल होता है। हालांकि, इस इलाके से पक्षी के शिकार की कोई घटना सामने नहीं आई, लेकिन खनन अभी भी हमारे लिए चुनौती है,” अन्नीगिरी कहते हैं।

बैनर तस्वीरः जयपुर की तान्या टिम्बले ने जगदीश का इलस्ट्रेशन मोंगाबे-हिन्दी के लिए बनाया है। उनकी कला राजस्थान की संस्कृति से काफी प्रभावित है। वह प्रकृति के दृश्यों को इंसानी संवेदना की नजर से अपनी कला में उतारती हैं।

Article published by Manish Chandra Mishra
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