चंबल नदी के किनारे इंडियन स्किमर नामक प्रवासी पक्षी प्रजनन के लिए आते हैं। रेत माफिया और शिकारियों से इन्हें बचाने के लिए 44-वर्षीय जगदीश दिन-रात उनकी पहरेदारी करते हैं।चंबल का इलाका समृद्ध जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। लेकिन बढ़ते खनन की वजह से जीव-जन्तुओं के रहने का स्थान तेजी से खत्म हो रहा है।जगदीश न सिर्फ इंडियन स्किमर के घोसले और अंडों की पहरेदारी करते हैं, बल्कि गांव वालों को इस पंख वाले विशेष मेहमान को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं।इंडियन स्किमर को हाल ही में विलुप्तप्राय पक्षी के तौर पर अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में रखा गया है। चम्बल के एक गांव जैतपुर से जगदीश जब लाठी, टॉर्च, कलम और डायरी लेकर निकलते हैं तो ऐसा लगता है कि गांव की चौकीदारी करने निकल रहें हैं। कुछ हद तक यह बात सही भी है। बस फर्क इतना है कि गांव की नहीं बल्कि इंडियन स्किमर या पंछीड़ा के घोंसलों की चौकीदारी करने निकल रहे होते हैं। इनके घोंसलों में पड़े अंडों की चौकीदारी। अब यह पक्षी विलुप्त होने की श्रेणी में आ गया है। अपनी चौकीदारी के दौरान जगदीश करीब चार किलोमीटर के दायरे में मौजूद दर्जनों घोंसलों का मुआयना करते हैं। मुश्किल से हिन्दी के कुछ शब्द और अंकों का ज्ञान रखने वाले जगदीश पांचवीं पास हैं। अपने इसी ज्ञान के सहारे यह टॉर्च जलाकर घोंसलों के मौजूदा हालात की टोह लेते हैं। अपनी पॉकेट डायरी में घोंसले के नाम के साथ-साथ उसमें मौजूद अंडों की संख्या दर्ज करते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई जानवर, पक्षी या इंसान इन अंडों को निशाना न बनाये। कभी घड़ियाल से डरने वाले इस जगदीश की कहानी में नया मोड़ तब आया जब बैंगलुरु से आए एक वैज्ञानिक के साथ इन्हें कुछ समय गुजारने का मौका मिला। बात 2009 की है। जगदीश बेरोजगार थे। काफी संघर्ष के बाद इन्हें चम्बल अभयारण्य में चौकीदारी का काम मिला। यहां प्रवासी पक्षी, घड़ियाल और जंगली जानवर देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। जगदीश को इन पर्यटकों से बात करने का मौका मिलने लगा। शुरुआती दिनों में अपनी रोजी-रोटी के संघर्ष में लगे जगदीश को तो यही अजीब लगता था कि ये पर्यटक लोग जानवरों को देखकर इतने उतावले क्यों हो जाते हैं! इनको लगता था कि यहां इंसानों की जान नहीं बच रही और ये लोग इन पशु-पक्षियों के पीछे दीवाने हुये जा रहे हैं। यह सब इन्हें अतिरेक लगता था। और फिर बैंगलुरु से आए उस एक वैज्ञानिक से मुलाकात हुई। जगदीश को उस वैज्ञानिक का नाम याद नहीं। लेकिन उस वैज्ञानिक से मिली समझ ने दुनिया देखने का इनका नजरिया ही बदल दिया, जगदीश बताते हैं। नदी में जलस्तर कम होने से ऐसे रेत के टीले बनते हैं, जो इंडियन स्किमर पक्षी का घर बन जाते हैं। तस्वीर- रिटो 1987/विकिमीडिया कॉमन्स घड़ियाल से जगदीश के डर को देखकर उस अनाम वैज्ञानिक ने बताया कि घड़ियालों को इंसानों से अधिक खतरा है। घड़ियाल वैसे भी इंसान को खा नहीं सकता। बल्कि इंसान को देखते ही भाग खड़ा होता है। उसी वैज्ञानिक से पता चला था कि इंसानों ने ऐसी स्थिति कर दी कि पृथ्वी से घड़ियाल गायब होने लगे थे। बात सही भी है। दुनिया में घड़ियालों की संख्या में अस्सी के दशक में भारी कमी आई थी और तब केवल 200 घड़ियाल ही बचे थे। उस समय देश में 96 और चंबल में घड़ियालों की संख्या 46 आंकी गई थी। यहां हर साल 100 घड़ियाल कम हो रहे थे। उसके बाद मुरैना जिले में चंबल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र को चंबल घड़ियाल अभयारण्य घोषित किया गया था। घड़ियाल संरक्षण के इस प्रयास से स्थिति में कुछ सुधार हुआ। उस विद्वान से बात कर जगदीश को लगा कि इनके गांव-जवार का घड़ियाल जैसे जीव से बैर फिजूल है और अधकचरे ज्ञान की वजह से है। इसी बातचीत में उन्हें और जीव-जंतुओं के संकट का पता चला और जगदीश के मन में इन जीवों के संरक्षण करने की इच्छा जागी। अपने गृह क्षेत्र को देखने की नई नजर मिली, जगदीश कहते हैं। चम्बल क्षेत्र अपनी जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र में करीब 500 के करीब स्तनपायी जीव, पक्षी, मछलियां, और सरीसृप जैसे घड़ियाल और गोह जैसे जीव पाए जाते हैं। यहां की जैव-विविधता पर एक अध्ययन के मुताबिक यहां डॉल्फिन, मगरमच्छ, घड़ियाल और मछलियों की दर्जनों प्रजाति पाई जाती है। इसी घने बीहड़ों के बीच से मुड़ती हुई चंबल की धारा, रेत के टीलों के प्राकृतिक सुंदरता के बीच में बसा जगदीश का गांव है। यूं तो मध्य प्रदेश में आता है पर राजस्थान की सीमा से भी लगा है। इंडियन स्किमर पक्षी का एक झुंड। इनकी लंबी चोंच पानी को चीरने का काम करती है ताकि ये अंदर तैर रही मछलियों का शिकार कर सके। तस्वीर– वाइल्डमिश्रा/विकिमीडिया कॉमन्स इनके गांव से सटे नदी में बनते रेत के टीलों पर घड़ियाल आराम फरमाते हैं। यहां आसपास शिकार के लिए दौड़ लगाते सियार और न जाने कौन-कौन से जानवरों की रहनवारी है। लेकिन विडंबना यह है कि इस गांव में जीवन के चार दशक बिता चुके जगदीश के पास इस प्राकृतिक खूबसूरती का बयान कम और समय के साथ इसकी खूबसूरती के ह्रास होने का रोना ज्यादा है। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले 500 के करीब जीवों में 30 से अधिक आईयूसीएन की रेड लिस्ट में हैं यानी उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पिछले एक दशक से वन्य जीव और पक्षियों को बचाने में जुटे जगदीश बताते हैं, “रेत के टीले या टापू कई जानवरों के घर हैं, लेकिन बीते वर्षों में बेतहासा रेत खनन की वजह से उनका घर छिनता जा रहा है। मैं अपने गांव के आसपास के रेत के टीलों को खनन माफिया से बचा रहा हूं।” रेत खनन का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है एक खूबसूरत पक्षी इंडियन स्किमर (Rynchops albicollis) पर। आईयूसीएन रेड लिस्ट में विलुप्तप्राय पक्षी में शामिल इंडियन स्किमर को जगदीश कुछ संस्थाओं के साथ मिलकर बचाने में लगे हैं। पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने इंडियन स्किमर के घोसलों की रक्षा करनी शुरू की है। “स्थानीय भाषा में हम इंडियन स्किमर को पंछीड़ा कहते हैं। तकरीबन एक दशक पहले मुझे पता चला कि यह पक्षी इस क्षेत्र में एक खास मकसद से आता है। यहां घोंसला बनाकर मादा पक्षी अंडे देती है। रेत के टापू ही इनके लिए तत्कालीन घर के समान होते हैं। मेरा संरक्षण के प्रति रुझान तब से ही बना हुआ है,” जगदीश बताते हैं। इंडियन स्किमर या पंछीड़ा को दूर से ही देखकर पहचाना जा सकता है। काले रंग का सर जैसे कोई काली टोपी लगा रखी हो, इसकी चोंच ऊपर की अपेक्षा नीचे अधिक चौड़ी होती है। मछली पकड़ने में बिजली सी फुर्ती इसकी पहचान है।