- एक अध्ययन के मुताबिक, गोवा और काकीनाडा में शार्क के ज्यादा शिकार करने की वजह उनका वहां आसानी से उपलब्ध होना है। हालांकि लोगों की बढ़ती मांग से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
- भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा शार्क पकड़ने वाला देश है। अगर बाजार को ठीक से समझा जाए तो शार्क संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियां बनाने में मदद मिल सकती है।
- भले ही अध्ययन स्थलों पर शार्क का मांस मुख्य व्यापारिक उत्पाद हो, लेकिन राष्ट्रीय प्रतिबंध के बावजूद शार्क के पंख (फिन) का व्यापार आज भी जारी है।
भारत के आंध्र प्रदेश के काकीनाडा (पूर्वी तट) और गोवा (पश्चिमी तट) में किए गए एक नए अध्ययन में शार्क के व्यापार की जांच की गई। अध्ययन में पाया गया कि इन दोनों जगहों पर शार्क के फिन (पंख) की बजाय शार्क का मांस मुख्य रूप से बेचा जाने वाला उत्पाद है। शार्क का शिकार करने का मुख्य कारण सप्लाई से जुड़ा हुआ है, यानी यह ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि मछुआरे क्या पकड़कर लाते हैं और क्या बेचते हैं, न कि उपभोक्ता की मांग पर। हालांकि, स्थानीय स्तर पर शार्क के मांस की खपत बढ़ रही है। अध्ययन के मुताबिक, राष्ट्रीय प्रतिबंध होने के बावजूद शार्क फिन का निर्यात, खासकर काकीनाडा में अब भी जारी है।
भारत में शार्क की लगभग 160 प्रजातियों पाई जाती हैं – जिनमें से लगभग 11% लुप्त होने के कागार पर हैं। भारत शार्क का शिकार करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में शार्क का शिकार किया जाता हैं। इन्हें या तो सीधे निशाना बनाकर और या फिर कभी दूसरी मछलियों के साथ पकड़ लिया जाता है। भारत के वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत 26 किस्म की शार्क और रे मछलियां सुरक्षित प्रजाति में शामिल हैं। शार्क के पंख काटने और उसके निर्यात पर प्रतिबंधित है। अध्ययन का कहना है कि अगर यह समझ लिया जाए कि बाजार “सप्लाई” के कारण ज्यादा चल रहा है या “डिमांड” के कारण, तो शार्क को बचाने के लिए सही जगह पर सही कदम उठाए जा सकते हैं।
इस साक्षात्कार -आधारित अध्ययन में अधिकांश उत्तरदाताओं ने माना कि शार्क पकड़ में कमी आ रही रही है। यह बात राष्ट्रीय स्तर की रिपोर्टों से भी मेल खाती है, जिनमें कहा गया है कि भारत के तटों पर शार्क और रे मछलियों की संख्या या तो घट रही है या पहले से कम हो गई है। ब्लैक-टिप शार्क भले ही ज्यादा संख्या वाली प्रजाति है, लेकिन आबादी के मॉडल बताते हैं कि गोवा में किशोर शार्क की पकड़ दर अस्थिर है। शोधकर्ताओं के अपने रिसर्च पेपर में कहा है, हमारा अध्ययन गोवा और काकीनाडा में शार्क के शिकार और उसके व्यापार की संभावित अस्थिर प्रकृति को उजागर करता है और स्थायी उपायों के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर देता है।
टीम ने शार्क के व्यापार की स्थिरता में सुधार के लिए स्पलाई चेन के अलग-अलग स्तर – मछुआरों से लेकर व्यापारियों और उपभोक्ताओं तक- पर कई तरह के कदम उठाने की जरूरत की बात कही। शोधकर्ताओं का कहना है कि “हमारे सुझाए गए उपाय या तो सीधे शार्क के शिकार पर नियंत्रण करने का काम करेंगे या फिर अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक-आर्थिक कारणों को मजबूत या नियंत्रित करके अधिक टिकाऊ और न्यायसंगत मत्स्य पालन संभव बनाएंगे।”
आईसीएआर-सीएमएफआरआई के फिनफिश मत्स्य पालन प्रभाग की प्रमुख शोभा जो किझाकुदन कहती हैं, “यह एक अच्छा अध्ययन है; भारत में शार्क संरक्षण के प्रति बढ़ती जागरूकता और जिम्मेदारियों को देखते हुए इसकी बहुत जरूरत है।” हालांकि किझाकुदन इस शोध में शामिल नहीं थी। उन्होंने आगे कहा, “अध्ययन में सुझाए गए नीतिगत कदम भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी किए गए ‘नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर शार्क्स – इंडिया’ के साथ बेहतर तरीके से मेल खाते हैं।”

गोवा बनाम काकीनाडा
साल 2022 और 2023 में, शोध टीम ने सप्लाई चेन से जुड़े लोगों, खासकर मछुआरों और व्यापारियों, से गोवा और काकीनाडा में अर्ध-संरचित साक्षात्कार किए (एक ऐसा साक्षात्कार जिसमें कुछ सवाल पहले से तय होते हैं, लेकिन बातचीत के दौरान अन्य नए सवाल भी पूछे जा सकते हैं)। गोवा पश्चिमी भारत का एक छोटा तटीय राज्य है, जहां मत्स्य पालन से जुड़े 41 गांव और पांच बड़े फिशिंग हार्बर हैं। वहीं काकीनाडा आंध्र प्रदेश (पूर्वी भारत) का एक बड़ा मछली व्यापार केंद्र है। यहां दो फिश लैंडिंग सेंटर भी हैं, जिनमें से कुम्बाभिषेकम फिशिंग हार्बर इस क्षेत्र में शार्क व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र है।
गोआ के मछुआरे छोटे पैमाने पर काम करते हैं, जिनमें गिलनेट का उपयोग करने वाले मछुआरे भी शामिल हैं जो मौसम के हिसाब से युवा ब्लैकटिप शार्क को निशाना बनाते हैं, और अन्य मछुआरे भी, जो पूरे साल कई तरह के जाल और उपकरणों से विभिन्न शार्क प्रजातियों को बायकैच के रूप में पकड़ते हैं। वहीं काकीनाडा में, साक्षात्कार में शामिल मछुआरों ने मुख्य रूप से मोटर चालित नौकाओं का इस्तेमाल किया जो गिलनेट और लाइनों का इस्तेमाल करते हैं और बड़े आकार की शार्क पकड़ते हैं। काकीनाडा के व्यापारियों में नीलामी करने वाले भी शामिल थे, जो गोआ में मुख्य भूमिका में नजर नहीं आए।
गोवा में छोटे पैमाने के मछुआरे ऐसे सप्लाई चेन के हिस्सेदार हैं जो मौसम के हिसाब से किशोर शार्क का शिकार करते हैं और बाजार में उनकी अच्छी पहुंच है। अध्ययन की मुख्य लेखिका त्रिशा गुप्ता, जिनका अध्ययन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी पर आधारित था, कहती हैं “गोवा के मछुआरों को सप्लाई चेन, व्यापारियों और कीमतों की अच्छी समझ होती है, और वे तय कर सकते हैं कि अपनी मछलियों को कहां बेचना है।” गोवा में ज्यादातर मछुआरों ने बताया कि उनके कई अलग-अलग बाजार और व्यापारियों से संपर्क हैं, और जो सबसे अच्छी कीमत देता है, वे उसे ही अपनी मछलियां बेच देते हैं।
इसके विपरीत, काकीनाडा के मछुआरों को बाजार से कम लाभ मिलता है और उनकी मोलभाव करने की क्षमता भी कम है। अब गुप्ता जूलॉजिकल सोसाइटी के EDGE ऑफ एक्जिस्टेंस प्रोग्राम में संरक्षण वैज्ञानिक हैं, वह समझाती हुए कहती हैं, “उन्हें असल कीमतों के बारे में बहुत कम जानकारी थी। उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी पकड़ी गई मछली कहां जा रही है और कैसे बेची जा रही है, क्योंकि यह सब नीलामी लगाने वालों के जरिए होता है।” उन्होंने आगे कहा, “इसलिए, वे इस प्रक्रिया में ज्यादा शामिल नहीं होते और अंत में, उन्हें बहुत कम आर्थिक लाभ मिलता है; मुनाफे में उनका हिस्सा कम होता है।” नीलामी लगाने वाले लगभग 30 लोग होते हैं, जो नावों से पकड़ी गई सभी मछलियों को सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को नीलामी कर देते हैं। वे कुछ नावों को कर्ज भी देते हैं और उनके साथ निश्चित अनुबंधों में बंधे होते हैं।
गोवा में छोटे पैमाने के मछुआरे मौसम के हिसाब से किशोर शार्क को निशाना बनाते हैं। हालांकि ब्लैकटिप शार्क की प्रजनन क्षमता अपेक्षाकृत ज्यादा है और हर दो साल में लगभग 11 बच्चे तक पैदा कर सकती है। लेकिन गोवा में किशोर शार्क का शिकार ज्यादा हो रहा है और मॉडल बताते हैं कि अगर ऐसे ही उनका शिकार होता रहा, तो उनकी संख्या कम हो जाएगी और वो खत्म भी हो सकती हैं।

दोनों जगहों पर, थोक विक्रेताओं के पास बाजार में सबसे अधिक पहुंच थी, उनकी मोलभाव करने की क्षमता भी सबसे अधिक थी और वे दूसरी सप्लाई चेन से भी जुड़े थे। काकीनाडा में, थोक विक्रेताओं ने शार्क के फिन के व्यापार पर एकाधिकार कर लिया है और मांस के व्यापार में भी वे अहम भूमिका निभाते हैं। जब स्थानीय मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो थोक विक्रेता दूसरे बंदरगाहों से शार्क मंगवाते हैं, जिससे इन जगहों पर शार्क का शिकार और उन्हें पकड़कर रखने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। शोधकर्ताओं ने बताया, “हालांकि हमने पाया कि शार्क का शिकार ज्यादातर सप्लाई पर आधारित है, लेकिन बाजार ज्यादा जटिल है और उसमें कुछ हद तक मांग-आधारित विशेषताएं भी नजर आती हैं।”
प्रतिबंधों के बावजूद शार्क फिन का व्यापार चल रहा है, क्योंकि काकीनाडा में थोक व्यापारी बड़ी शार्क के फिन चेन्नई भेजते रहे हैं। पहले के अध्ययनों में भी चेन्नई को भारत से शार्क फिन के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र माना गया था।
शार्क के मांस की खपत
निष्कर्ष बताते हैं कि ऊंची कीमतों के बावजूद गोवा और काकीनाड़ा में शार्क के मांस की खपत काफी ज्यादा है और संभव है कि देश के बाकी हिस्सों में भी ऐसा हो। शोधकर्ताओं ने बताया, “ब्लैकटिप शार्क और बुल शार्क (सी. ल्यूकस) को लोग ज्यादा पसंद करते हैं, हालांकि इनकी कीमत काफी अधिक होती है। वहीं, गोवा में हैमरहेड शार्क (एस. लेविनी) और काकिनाडा में टाइगर शार्क (गेलियोसर्डो क्यूवियर) कम पसंद की जाती हैं, इसलिए ये सस्ती मिलती हैं। शार्क मांस की बढ़ती मांग चौंकाने वाली नहीं है। 2019 में हुई एक स्टडी ने बताया था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शार्क फिन का व्यापार नहीं, बल्कि शार्क मांस का घरेलू बाजार ही शार्क पकड़ने का मुख्य कारण है। हाल ही में हुए एक सर्वे में यह भी सामने आया कि तटीय इलाके के छोटे रेस्टोरेंट शार्क मांस की घरेलू सप्लाई चेन में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
गुप्ता के मुताबिक, इस विषय पर और रिसर्च की जरूरत है ताकि यह समझा जा सके कि शार्क मांस की मांग और खपत का पैटर्न कैसा है — कौन लोग यह मांस खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं और इसके पीछे उनकी क्या वजहें हैं। वह कहती हैं, “इस जानकारी के आधार पर मांग को कम करने वाले कैंपेन और वैकल्पिक प्रोटीन स्रोत तैयार किए जा सकते हैं।”

सीएमएफआरआई की किझाकुदन इस बात से सहमत नहीं हैं कि शार्क के मांस की मांग, उसके शिकार की मुख्य वजह है। वह आईसीएआर-सीएमएफआरआई और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन का हवाला देती हैं, जिसमें भारतीय तटीय राज्यों में शार्क मांस की खपत के पैटर्न और अलग-अलग तरह के उपभोक्ताओं पर सर्वे किया गया था। किझाकुडन कहती हैं, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि कुछ राज्यों में शार्क की खपत अपेक्षाकृत अधिक है, हालांकि, वहां शार्क को ‘जरूरी’ नहीं माना जाता है। ज्यादातर उपभोक्ता शार्क मांस की जगह अन्य मछलियों को अपनाने के लिए तैयार थे।”
उन्होंने कहा, “मैं भारत में शार्क मांस की बढ़ती मांग के विचार को लेकर सावधानी बरतने की सलाह दूंगी। हां, हमें अभी भी अवैध फिन व्यापार की रिपोर्ट मिल रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शार्क का बड़े पैमाने पर मांस के लिए शिकार किया जा रहा है।” उन्होंने आगे कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मछुआरों के हितों की सुरक्षा के साथ-साथ शार्क संरक्षण के प्रयासों को भी गति मिलनी चाहिए।”
शार्क संरक्षण के लिए हस्तक्षेप और नीतियां
अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने मछुआरों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए व्यापार को स्थाई बनाने के लिए कई प्रबंधन हस्तक्षेप और नीतियां सुझाईं हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है।
काकीनाडा में (जहां मछुआरों को बाजार से लाभ कम मिलता है) गुप्ता मछुआरों को लोन देने वाली नीतियों के जरिए उनकी पहुंच बेहतर बनाने का सुझाव देती हैं। इसके साथ ही, वह उन तक बाजार की जानकारी उपलब्ध कराने और मछुआ सहकारी समितियों जैसे स्थानीय संस्थानों को मजबूत करने की भी सिफारिश करती हैं। वह कहती हैं कि ऐसे उपाय मछुआरों को मिलने वाले लाभों का हिस्सा बढ़ा सकते हैं और इसलिए, वे गैर-टिकाऊ तरीकों को कम अपनाएंगे। गुप्ता समझाती हैं, “जब मछुआरों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाएगा, तभी वे स्थाई उपाय चुन सकते हैं और उन्हें अपना सकते हैं। यह तब तक संभव नहीं है जब तक उन्हें वित्तीय सुरक्षा नहीं मिलती।”
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मछुआरों की पहुंच को मजबूत और बेहतर बनाने वाली नीतियां व्यापारियों के एकाधिकार को कम करने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने आगे कहा, “व्यापार प्रबंधन को बढ़ाना, जैसे कि व्यापारियों का बेहतर तरीके से पंजीकरण और लाइसेंसिंग, सप्लाई चेन में निगरानी और ट्रेसेब्लिटी सुधारने में सहायता कर सकता है।”
गोवा में मछुआरों को अपेक्षाकृत अधिक अवसर और सुविधा मिलती है और वे सप्लाई-आधारित मत्स्य पालन के लिए शार्क को निशाना बनाते हैं, हमें वहां ऐसी नीतियों की आवश्यकता हो सकती है जो सामाजिक प्रोत्साहनों के जरिए मत्स्य पालन को बेहतर ढंग से नियंत्रित करें। उन्होंने बताया कि सामाजिक प्रोत्साहन नकारात्मक या सकारात्मक, दोनों हो सकते हैं। सकारात्मक प्रोत्साहनों का एक उदाहरण शार्क के अनुकूल मछली पकड़ने के तरीकों को अपनाने के लिए मछुआरों को पुरस्कृत करना या अखबार में लेख देकर सम्मानित करना है। नकारात्मक प्रोत्साहनों के लिए, गुप्ता समझाती हैं, “अगर ग्रामीणों को, उनके गांवों को और व्यक्तिगत रूप से उन्हें शार्क मछली पकड़ने के तरीकों के कारण बदनाम झेलनी पड़े? क्या यह उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए यह काफी नहीं होगा?”
गोवा में मछली पकड़ने की सीमा तय की जा सकती है या पूरी तरह से मछली पकड़ने पर रोक लगाई जा सकती है और मछुआरों को वैकल्पिक आय और खाद्य स्रोत उपलब्ध कराए जा सकते हैं। यह सब समुदाय की भागीदारी से किया जाएगा। गुप्ता कहती हैं, “अगर समुदाय मिलकर शार्क मछली पकड़ना पूरी तरह बंद करने पर सहमत हो जाए, उन्हें कुछ विकल्प दिए जाएं और सरकार भी इसे लागू करे, तो यह काम कर सकता है, लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें समुदाय की अधिक भागीदारी और मेहनत की जरूरत होगी।”

शार्क फिन की तस्करी को रोकने के लिए, शोधकर्ताओं ने चेन्नई में निर्यात प्रतिबंधों को कड़ाई से लागू करने की सिफारिश की है। वे सप्लाई चेन में बेहतर निगरानी और ट्रेसेब्लिटी की भी मांग करते हैं, जिससे उत्पाद कहां जा रहे हैं, इसे समझने में मदद मिलेगी और इसके आधार पर उचित व्यापार प्रतिबंध लगाना संभव होगा।
गुप्ता आगाह करती हैं, “भारत में शार्क और रे के मांस के व्यापार और खपत के बारे में अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो हमें पता नहीं है। हमें इस तरह के और शोध की जरूरत है जो व्यापार का नक्शा तैयार करें और यह भी समझें कि व्यापार को आगे बढ़ाने वाले कारक क्या हैं ताकि उचित हस्तक्षेप किया जा सके।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 3 मार्च, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: गोवा में छोटे पैमाने पर मत्स्य पालन से जुड़े गिलनेट मछुआरे। तस्वीर: त्रिशा गुप्ता।