जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं बिहार के लीची किसान

बिहार में अकेले मुजफ्फरपुर जिले में 12 हजार हेक्टेयर भूमि पर लीची की खेती होती है। बिहार में लीची का वार्षिक उत्पादन तीन लाख टन है और 400 से 500 करोड़ रुपये अनुमानित का इसका कारोबार है।

लीची पर आजीविका के लिए किसान व्यापारी के अलावा बड़ी संख्या में मजदूर निर्भर हैं, जो उसकी तोड़ाई करते हैं और फिर उसका गुच्छा बनाकर पैकेजिंग करते हैं। जाहिर सी बात है कि नाजुक फसल होने के कारण उसका गुच्छा बनाना कौशल का काम है। हालांकि तोड़ाई करने वाले मजदूरों को रोजाना 400 रुपये की जबकि गुच्छा बनाने वालों को 150 रुपये प्रति दिन की मजदूरी मिलती है। गुच्छा बनाने का काम ज्यादातर महिलाएं करती हैं।

बिहार बागवानी निदेशालय में संयुक्त निदेशक राधा रमन ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “बिहार में 36 हजार 673 हेक्टेयर भूमि पर लीची की खेती होती है और करीब तीन लाख टन लीची का हर साल उत्पादन होता है, जिसमें 80 प्रतिशत हिस्सेदारी शाही लीची की होती है।” 


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राधा रमन कहते हैं, “किसानों को व्यापारी मिल सकें, इसके लिए हम उनकी मुलाकात करवाते हैंरेल्वे से हम उसकी ढुलाई के लिए पत्राचार करते हैं, दरभंगा एयरपोर्ट पर कारगो सुविधा उपलब्ध हो इसके लिए कोशिशें की जा रही हैं, वहां एक पैक हाउस भी बन रहा है।

पूसा कृषि विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ एग्री बिजनेस एंड रूरल मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ राम दत्त ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “लीची की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है, इसके लिए इसकी मार्केटिंग के लिए वैल्यू चेन बहुत जरूरी है।”

 

बैनर तस्वीरः मुजफ्फरपुर के मणिका गांव स्थित लीची का बगान। लीची की खेती प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल के माजदिया, कालियाचक व कृष्णानगर इलाके, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले व उसके आसपास के कुछ जिलों व पंजाब के पठानकोट में होती है। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे

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