- दिल्ली में सात बायोडायवर्सिटी पार्क हैं, जिन्हें बंजर भूमि को फिर से हरा-भरा बनाकर शहरी वनों के रूप में विकसित किया गया है। ये पार्क कई तरह के पर्यावरणीय फायदे देते हैं।
- जहां पर पुरानी खदानों के गड्ढे थे, वहां अब आर्किड और तितलियों के संरक्षण केंद्र बनाए गए हैं। इससे न सिर्फ जगह का स्वरूप बदला है, बल्कि स्थानीय पेड़-पौधों और जानवरों यहां तक कि कुछ संकटग्रस्त प्रजातियां को भी उपयुक्त आवास उपलब्ध कराया है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि बायोडायवर्सिटी पार्कों को शहर की जरूरी हरित संरचना की तरह देखा जाना चाहिए, जो वैश्विक और राष्ट्रीय पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप है।
दिल्ली के दक्षिणी हिस्से वसंत विहार से होकर गुजरने वाला पॉश पूर्वी मार्ग बंगलों, रिहायशी कॉलोनियों, नामी स्कूलों और विदेशी दूतावासों से होते हुए, आखिर में आपको एक हरे लोहे के गेट तक ले जाएगा। और इसी गेट के पार फैला है अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क।
यह गेट दिल्ली की शहरी हल-चल को पीछ छोड़, एक बड़े जंगल की ओर ले जाता है, जहां कई तरह के पेड़-पौधों और जीव जंतुओं की भरमार है। बायोडायवर्सिटी पार्क में कुछ कदम अंदर जाते ही, ताज़ी पत्तियों और सूक्ष्मजीवों से भरपूर मिट्टी की खुशबू आपका स्वागत करती नजर आएगी। तापमान सामान्य से थोड़ा कम ही होगा। पक्षियों की चहचहाट और उड़ती तितलियों का रंगीन मंजर दिखाई देगा। पेड़ों के झुरमुट से छन-छन कर जमीन पर आती सूरज की किरणें, मानों छुपम-छुपाई खेल रही हों। ये पेड़ अरावली पहाड़ों की स्थानीय प्रजाति के हैं।
यहीं, पार्क के भीतर बने कार्यालय में पारिस्थितिकीविद् एम. शाह हुसैन बैठते हैं। करीब 20 साल पहले वे यहां एक सर्वेक्षण करने आए थे, जब यह इलाका खंडहरनुमा था। हुसैन बताते हैं, “अब जब मैं ग्रीन कवर और पेड़ों के झुंडों को देखता हूं, तो विश्वास नहीं होता कि 20 साल पहले अरावली का यह हिस्सा एक बंजर खाली जमीन था, जिसमें पुरानी खदानों के गड्ढे थे, मलबा फैला हुआ था और हर जगह विलायती किकर (प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा) ने अपने पैर पसारे हुए थे।”
हुसैन अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रभारी वैज्ञानिक हैं और उस टीम का नेतृत्व करते हैं जिसने 692 एकड़ (280 हेक्टेयर, जो 524 फुटबॉल मैदानों के बराबर है) बंजर जमीन को एक शानदार हरे-भरे जंगल में बदल दिया है। अब यह सिर्फ हरियाली स्थल नहीं है, बल्कि प्रकृति की सैर, जंगल की पगडंडियों और स्कूल-कॉलेज के छात्रों के लिए एक पर्यावरण-शिक्षा केंद्र बन गया है।
हुसैन कहते हैं, “हर रोज यहां सैकड़ों लोग आते हैं, खासकर युवा। यह हमारे शहरी युवाओं को प्रकृति से जोड़ने का एक तरीका है।”
इस पार्क की हरियाली में एक अहम योगदान 55 साल के माली राम नारायण प्रसाद का भी है, जो वसंत विहार की एक झुग्गी बस्ती ‘भंवर सिंह कैंप’ से आते हैं। उन्होंने अपने हाथों और साधारण औजारों के सहारे इस जगह को संवारा है। वह गर्व से कहते हैं, “बीस साल पहले, यह जगह वीरान थी, बदरपुर रेत के लिए यहां बड़े पैमाने पर खनन किया जाता था। हर जगह गहरे गड्ढे और रेत से भरे ट्रक नजर आते थे। लेकिन अब, यह एक हरा-भरा जंगल है।”
अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क से जुड़े फील्ड बायोलॉजिस्ट रिज़वान खान बताते हैं कि खादानों के तीन गहरे गड्ढों को तितली, फर्न (एक प्रकार के पेड़-पौधे) और ऑर्किड्स के लिए संरक्षित क्षेत्र में बदल दिया गया है। इसमें से ऑर्किड्स का संरक्षण केंद्र दिल्ली का एकमात्र ऑर्किड कंजर्वेटरी है। एक संकरा और ऊबड़-खाबड़ रास्ता लगभग 30 फुट (लगभग नौ मीटर) नीचे एक खदान की ओर जाता है, जो अब पेड़ों के तनों से लिपटी विभिन्न ऑर्किड प्रजातियों का घर बन चुका है और प्रकृति के साथ जुड़े हुए सहजीवन को दर्शाता है।
इस संरक्षित क्षेत्र यानी कंजर्वेटरी में पानी के छोटे तालाबों और अनेक तरह की वनस्पतियों के बीच लाठी बांस (डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्टस) और गिलोय (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) जैसी देशी प्रजातियां भी पनप रही है। खान कहते हैं, “ठंडा और नम वातावरण ऑर्किड के पनपने के लिए सबसे अनुकूल है।” बीस सालों से इस केंद्र की देखभाल कर रहे अन्य माली अनिल विश्वास ने बताया, “ऑर्किड मई और जून में सबसे ज्यादा खिलते हैं।”
हुसैन कंजर्वेटरी की दीवार में एक अंधेरी दरार की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “यह दिल्ली में ब्लिथ हॉर्सशू बैट का एकमात्र ज्ञात बसेरा है।”

राह दिखाती दिल्ली
अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क दिल्ली के सात जैव विविधता पार्कों में से एक है। हुसैन कहते हैं कि शायद भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किसी एक शहर में इतनी सारे बायोडायवर्सिटी पार्क नहीं होंगे। शहरी बायोडायवर्सिटी पार्क दरअसल ऐसे नेचर रिजर्व हैं जहां सैकड़ों स्वदेशी पौधे, जानवर, और सूक्ष्मजीव प्रजातियां स्थायी जैविक समुदायों में रहती हैं और महानगर को पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करती हैं।
दिल्ली के सात बायोडायवर्सिटी पार्क कुल मिलाकर 820 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनमें अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क (280 हेक्टेयर), यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क (185 हेक्टेयर), नीला हौज बायोडायवर्सिटी पार्क (3.88 हेक्टेयर), तिलपत वैली बायोडायवर्सिटी पार्क (70 हेक्टेयर), तुगलकाबाद बायोडायवर्सिटी पार्क (81 हेक्टेयर), नॉर्दर्न रिज बायोडायवर्सिटी पार्क (87 हेक्टेयर) और साउथ दिल्ली बायोडायवर्सिटी पार्क (113.3 हेक्टेयर) शामिल हैं।
इनमें नीला हौज बायोडायवर्सिटी पार्क खास है क्योंकि यह एक फिर से बहाल किया गया वेटलैंड ईकोसिस्टम है। कहा जाता है कि यह प्राकृतिक झील कभी राजपूत शहर किला राय पिथौरा के लिए पानी का एक बड़ा स्रोत थी और दिल्ली आने वाले व्यापारिक मार्ग का अहम जल स्रोत भी थी। अध्ययन बताते हैं कि यह अरावली क्षेत्र के एक बड़े जलग्रहण क्षेत्र का हिस्सा था, जो नालों के नेटवर्क के जरिए अंततः यमुना नदी तक पहुंचता था।
समय के साथ, नीला हौज को गंभीर अतिक्रमण का सामना करना पड़ा और यह गंदे पानी की निकासी के लिए एक डंपिंग ग्राउंड बन गया। 2008 में, राष्ट्रमंडल खेलों के लिए एक पुल के निर्माण के दौरान झील का कुछ हिस्सा भर दिया गया और इसका प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो गया। बाद में, स्थानीय निवासियों ने नीला हौज सिटीजन ग्रुप बनाया और एक जनहित याचिका दायर की। 15 फरवरी, 2012 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने झील की बहाली का आदेश दिया, जो अब यह एक बार फिर से समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बन चुका है।
आज, नीला हौज़ संजय वन (जो वसंत कुंज के पास एक आरक्षित वन है) के पास की एक ऐसी शानदार जगह बन गया है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र है। यहां सुबह और शाम जॉगिंग करने वाले आम लोगों के साथ-साथ प्रवासी पक्षी भी आते हैं। पार्क के फील्ड बायोलॉजिस्ट दिनेश एलबर्टसन बताते हैं, “इस बायोडायवर्सिटी पार्क की खास बात इसमें एक ‘बनाया गया वैटलैंट’ है जो झील में जाने से पहले अपशिष्ट जल को साफ करता है। यहां तक कि पानी को साफ करने के लिए कोई मशीन या बिजली का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि हवा और पौधों/घास की प्राकृतिक प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।”
अरावली और नीला हौज़ बायोडायवर्सिटी पार्कों की तरह, दिल्ली के अन्य पांच पार्क भी बंजर भूमि को संवार कर बनाए गए हैं। वजीराबाद के पास यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क सबसे पहले विकसित किया गया था, और अब इसमें जैविक रूप से समृद्ध आर्द्रभूमि, घास के मैदान, फलदार पेड़ और औषधीय जड़ी-बूटियां हैं।
ये पार्क दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की फंडिंग और दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल मैनेजमेंट ऑफ डीग्रेडिड इकोसिस्टम (सीईएमडीई) के सहयोग से बनाए गए है। उसी संस्थान से हुसैन भी जुड़े हुए हैं।
वह कहते हैं, “ये पार्क हमें कई तरह के पर्यावरणीय फायदे देते हैं और एक ऐसा शहर बनाने में मदद करते हैं जो जलवायु बदलावों का सामना कर सके।” वह आगे कहते हैं, “ये पार्क न सिर्फ कार्बन अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन के असर को कम करते हैं, बल्कि शहर की गर्मी और वायू प्रदूषण को भी कम करते हैं, भूजल को रिचार्ज करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और शहर में बाढ़ के खतरे को घटाते हैं। इसके अलावा, इन पार्कों में घूमने से मानसिक शांति मिलती है और अब तो शोध भी यही साबित कर रहे हैं।”
दिल्ली के जैव विविधता पार्कों की इस सफलता ने एक बड़े संरक्षण मॉडल को बढ़ावा दिया है। डीडीए द्वारा 2021 में प्रकाशित एक पुस्तक में कहा गया है, “डीडीए जैव विविधता पार्कों के परिणामों के आधार पर, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश भर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बायोडायवर्सिटी पार्क स्थापित करने के लिए एक नई योजना शुरू की है।”

शहरों की बंजर भूमि को बहाल करने का रास्ता
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सीईएमडीई के प्रोफेसर एमेरिटस सीआर बाबू ने डीडीए द्वारा प्रकाशित पुस्तक में लिखा है, “दिल्ली को भले ही सबसे हरा-भरा कहा गया हो, लेकिन इसकी हरियाली (19%) दुनिया के बड़े शहरों मॉस्को, सिंगापुर, सिडनी और लंदन की तुलना में आधी से भी कम है।”
दिल्ली में हरियाली होने के बावजूद, यह अक्सर प्रदूषण, बाढ़ और गर्मी के कारण होने वाली पर्यावरणीय समस्याओं के लिए चर्चा में रहता है। तेजी से शहरीकरण और हरियाली की कमी ने दिल्ली की इन समस्याओं को और बढ़ा दिया है। आईआईटी रुड़की की एक हालिया अध्ययन में सामने आया है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्रों अनियंत्रित निर्माण और जलवायु परिवर्तन से दिल्ली में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। वहीं प्रोफेसर सी.आर. बाबू बताते हैं कि दिल्ली की पहाड़ियां, जो कभी धूल भरी आंधी के खिलाफ प्राकृतिक ढाल का काम करती थीं, अब विलायती कीकर (प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा) से घिरी हुई हैं। 2014 की एक पुस्तक में दिल्ली की पहाड़ियों के बारे में कहा गया है कि बेतरतीब विकास और मानवीय दबाव ने इन पहाड़ियों की निरंतरता समाप्त हो गई है।
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इन चुनौतियों को देखते हुए, विशेषज्ञ शहर में हरित प्रयासों का विस्तार करने की आवश्यकता का सुझाव देते हैं। पारिस्थितिक योजना, लैंडस्केप डिज़ाइन और टिकाऊ वास्तुकला के विशेषज्ञ अक्षय कौल के मुताबिक, दुनियाभर में बंजर शहरी भूमि को बहाल करने में सफलता मिली है। उनका कहना है, “दुनिया के शहरों ने ऐसी जगहों को शहरी जंगल, बायोडायवर्सिटी पार्क, और हरे सार्वजनिक क्षेत्र में बदला है, जो न केवल पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान करते हैं बल्कि जलवायु-प्रतिरोधी शहरों के निर्माण में भी मदद करते हैं।” वह आगे बताते हैं, “दिल्ली में कई खुली और खराब जगहें हैं जिन्हें फिर से बहाल कर भूजल पुनर्भरण, बाढ़ नियंत्रण और गंदे पानी के उपचार जैसे फायदे हासिल किए जा सकते हैं।” अक्षय कौल एक कंसल्टेंसी चलाते हैं जो पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील मास्टर प्लानिंग, परिदृश्य और सतत वास्तुकला में विशेषज्ञता रखते हैं।
ये पर्यावरणीय मुद्दे केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं हैं। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि पूरे भारत में, वर्षा के बदलते पैटर्न के कारण शहरी बाढ़ में वृद्धि हुई है, जिससे बुनियादी ढांचे, व्यवसायों और जीवन को भारी नुकसान हुआ है, और इसके दूरगामी आर्थिक प्रभाव भी पड़े हैं।
कौल शहरी हरित स्थानों पर फिर से विचार करने के महत्व पर जोर देते हैं। “हरी-भरी शहरी आम जगहों को केवल सौंदर्यीकरण परियोजनाओं के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हमें खुले स्थानों, शहरी जंगलों और जैव विविधता पार्कों को देखने के तरीके में एक बदलाव की आवश्यकता है। उन्हें जलवायु लचीलापन, पेरिस समझौते के प्रति हमारी प्रतिबद्धता और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन सिंक बनाने के नजरिए से देखा जाना चाहिए।”
हुसैन भी इससे सहमत हैं और कहते हैं कि बायोडायवर्सिटी पार्क सजावट के लिए नहीं बनाए जाते हैं। “जलवायु-प्रतिरोधी शहरों के निर्माण के लिए ये जरूरी हैं। उदाहरण के लिए, नीला हौज़ स्पंज की तरह काम करता है, अतिरिक्त पानी को रोककर धीरे-धीरे छोड़ता है। जब शहरों को विकसित करने की योजना बनाते हैं, तो आमतौर पर हम सड़क, नालियों और जलापूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देते हैं। इसी तरह, बायोडायवर्सिटी पार्क और शहरी वनों को भी अनिवार्य हरित अवसंरचना माना जाना चाहिए।”
वैश्विक समुदाय भी शहरी वनों पर आधारित समाधान के महत्व को पहचानता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) भी शहरी वनों, ग्रीन रूफ, ग्रीन वॉल और ब्लू जोन जैसी पहलों की अहमियत पर जोर देता है। ये उपाय स्थानीय तापमान को नियंत्रित करके शहरों को ठंडा और ज्यादा रहने लायक बनाते हैं।
भारत में भी इस दिशा में पहल हुई है। 2020 में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नगर वन योजना (एनवीवाई) शुरू की, जिसका लक्ष्य शहरों में 1,000 नगर वन और उद्यान (नगर वाटिका) बनाना है। यह पहल स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों को शामिल करके शहरी वानिकी को बढ़ावा देती है।
‘जन भागीदारी के माध्यम से शहरी वन’ नामक एक दस्तावेज में लिखा है, भारत ने 2030 तक वन और वृक्ष आवरण बढ़ाकर 2.5 से 3.0 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसमें शहरी वन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 6 मार्च 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में एक पुरानी खदान के गड्ढे को दिल्ली के एकमात्र आर्केड संरक्षण क्षेत्र में बदल दिया गया है। तस्वीर: निधि जामवाल।