बढ़ते शहरीकरण और कंक्रीट के जंगल से पूरे ग्रेटर नोएडा की तस्वीर बदल रही है। अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है और तालाब तथा अन्य वेटलैंड की स्थिति नाजुक होती जा रही है। मोटे तौर पर स्थायी या अस्थायी जल जमाव के क्षेत्र और उसके आस-पास के स्थान को वेटलैंड कहा जा सकता है।पानी की जरूरतों को देखते हुए जलाशय खासकर शहरी क्षेत्र के जलाशयों का पुनरुद्धार बहुत जरूरी है। इनके खत्म होने से न केवल पानी की किल्लत बढ़ेगी बल्कि जैव-विविधता भी प्रभावित होगी।पेशे से इंजीनियर रामवीर तंवर ने इन वेटलैंड को बचाने के लिए अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी। इनके प्रयास से नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अब तक 20 से अधिक तालाबों का पुनरुद्धार किया जा चुका है। वो रामवीर तंवर के स्कूल के दिन थे। स्कूल की छुट्टी होते ही रोज घर की तरफ भागना। घर पहुंचना और कुछ खाने-पीने के समान के साथ मवेशियों को लेकर खेत की तरफ चल देना। रामवीर को बचपन के वे दिन आज भी याद आते हैं। गांव में तालाब के एक किनारे मवेशी हरी मुलायम घास चरने में मगन होते और दूसरी तरफ रामवीर आराम फरमाते। कभी कभी तो होमवर्क भी वहीं पूरा होता। इन्हीं दिनों में रामवीर को तालाब से जुड़ाव हो गया। समय गुजरा और 2014 में रामवीर तंवर मकैनिकल इंजीनियर बन गए। इसी दौरान उनके गांव डाढ़ा-डाबरा के तालाब पर विकास और बढ़ती जनसंख्या की मार पड़ी और वह सूखने लगा। अपने बचपन के कुछेक सुंदर यादों में शुमार तालाब की इस दुर्दशा ने रामवीर तंवर को देश के एक बड़े मुद्दे से रु-ब-रु कराया। यह कि ना केवल उनके गांव का सुंदर तालाब बल्कि पूरे देश के जलाशय संकट में हैं। दूसरी तरफ देश में पानी की किल्लत भी बढ़ती जा रही है। यह सब देखते हुए इन्होंने अपने गांव में जल-संरक्षण अभियान की शुरुआत की। भूजल के गिरते स्तर से जूझ रहे गांव वालों ने इस अभियान को हाथों-हाथ लिया। इनका हौसला बढ़ा और इंजीनियर का सपना लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले तंवर ने खुद को पूर्णरूप से जलाशयों के संरक्षण के कार्य में लगा दिया। “जब लोग तालाब और झील इत्यादि के बारे में सोचते हैं तो एक सुंदर तस्वीर उभरती है। हरियाली, राहत देनी वाली ठंढी हवा और साथ में पक्षियों के चहकने की आवाज। दुर्भाग्य से सच्चाई इसके विपरीत है। पूरे देश में वेटलैंड का अतिक्रमण हो रहा है और इन्हें कूड़ा फेंकने की जगह में तब्दील किया जा रहा है,” तंवर कहते हैं। इस 26 साल के जवान ने अब तक लगभग 20 तालाबों का पुनरुद्धार किया है। इनमें अधिकतर तालाब इनके जिले गौतम बुद्ध नगर में ही स्थित हैं। संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण है लोगों में जागरूकता “जब हम लोग किसी तालाब या जलाशय के पुनरुद्धार के लिए काम शुरू करते हैं तो हमारे जेहन में तीन चीजें होती हैं- प्रकृति, हेरिटेज और भूजल। लेकिन मूल लक्ष्य को पाने के लिए सबसे अहम होता है लोगों की सोच बदलना, प्लास्टिक और अन्य कूड़े से निपटना,” तंवर का मानना है। हरेक एकड़ तालाब की सफाई के लिए उनकी टीम के लोग लगभग तीन क्विंटल प्लास्टिक और अन्य कूड़े का निपटान करते हैं। रामवीर तंवर के सहयोगी सूरजपुर के तालाब को साफ करने निकले हैं। फोटो- रामवीर तंवर किसी भी तालाब की सफाई का काम शुरू करने से पहले, तंवर और उनके साथी लोगों में जागरूकता फैलाने का काम करते हैं। जैसे तालाबों का संरक्षण क्यों जरूरी है! इन लोगों की कोशिश यह रहती है कि स्थानीय लोगों को इस बदलाव का हिस्सा बनाया जाए। “हमें याद है, एक बार हम लोग गौतम बुद्ध नगर के घंघोला गांव में काम कर रहे थे। लोगों से बातचीत करने के बाद हम लोगों ने तालाब की सफाई शुरू की। लेकिन अचानक उस गांव के लोग विरोध पर उतर आये। मशीन और गाड़ियों पर पत्थरबाजी होने लगी। शायद, उन्हें हमारी नियत पर संदेह था कि हम लोग उनके इस गंदे तालाब में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हैं! हम लोगों ने काम रोक दिया और फिर से बातचीत का एक दौर चला। इससे पता चलता है कि लोगों को साथ में लेना कितना जरूरी है,” रोहित अधाना का कहना है। रोहित भी रामवीर तंवर के दल के सदस्य हैं। रामवीर के दल के सदस्यों को न केवल बाहर बल्कि घर में भी विरोध झेलना पड़ता है। घरवालों को भी यह समझाना मुश्किल होता है कि ये लोग अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर तालाब और झीलों की सफाई में क्यों लग गए। तंवर और अधाना, दोनों की यही कहानी है। तंवर कहते हैं, “अपने घर में हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई करने वाला सबसे पहला मैं ही हूं। लोगों को मुझसे काफी उम्मीदें थीं। जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ी तो घर के लोग काफी निराश हुए। पर समय के साथ सबने इस काम के महत्व को पहचाना।“ रामवीर तंवर के प्रयास से सूरजपुर को मिला फायदा अपने जिले गौतम बुद्ध नगर और नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में तंवर के काम का व्यापक असर हो रहा है। इनके प्रयास से भूजल का स्तर बढ़ा, लोगों में तालाबों के संरक्षण को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त इनके सफलता की कहानी से लोगों में अपने आस-पास के जलाशयों के संरक्षण को लेकर दिलचस्पी भी बढ़ी है। जैसे रामवीर के गांव के पास के सूरजपुर के प्राकृतिक वेटलैंड को ही लें। इनके निरंतर प्रयास से अब वन अधिकारी भी सामने आ रहे हैं और इस वेटलैंड को बचाने के प्रयास से जुड़ रहे हैं। “सूरजपुर वेटलैंड जिला प्रशासन के अधीन आता है। पर हमारे तालाब बचाने के प्रयास से वृहत्तर पारिस्थितिकी तंत्र को भी लाभ मिल रहा है। हमलोगों ने सूरजपुर के पास ही एक तालाब का पुनरुद्धार किया था। हाल ही में हमने देखा कि यहां अब प्रवासी पक्षी भी आने लगे हैं,” कहते हैं रामवीर तंवर। आजमपुर गांव में तालाब की सफाई करते रामवीर और उनके सहयोगी। फोटो- रामवीर तंवर ये आगे कहते हैं कि प्रशासन की तरफ से अभी और प्रयास करने की जरूरत है ताकि सूरजपुर के वेट्लैन्ड को रामसर कन्वेनशन की सूची में स्थान मिल जाए। ऐसा होने से सूरजपुर के वेट्लैन्ड को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी और इससे इसके पुनरुद्धार के प्रयासों में तेजी आएगी। सूरजपुर वेट्लैन्ड की आबोहवा में कई तरह के पक्षी देखे जाते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यहां पक्षियों के 44 परिवार की 186 प्रजातियां देखी जा सकती हैं। पक्षियों के इन 186 प्रजातियों में से 102 स्थानीय हैं। 53 ठंढ में आने वाले प्रवासी पक्षी हैं और 28 गर्मियों में आते हैं। इनमें से तीन एक जगह से दूसरी जगह जाने के दरम्यान यहां रुकते हैं। इसीलिए सूरजपुर का वेटलैंड काफी महत्वपूर्ण है। यहां वेटलैंड को समझना भी जरूरी है। नमी वाली भूमि या जलयुक्त क्षेत्र को वेटलैंड कहते हैं। इनमें दलदल, नदी, झील, बाढ़ के क्षेत्र, समुद्र के किनारे की झाड़ी, बांध, नहर, झरने और अन्य तरह की आर्द्र क्षेत्र भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अनुसार दुनिया के स्वच्छ जल की लगभग सारी जरूरत इन्हीं वेटलैंड की वजह से पूरी होती है। यूएनएफसीसीसी ने अक्टूबर 2018 में कहा था कि दुनिया के करीब सौ करोड़ लोग इन्हीं वेटलैंड पर निर्भर हैं और दुनिया की 40 फीसदी के करीब जीव इन्हीं वेटलैंड में जन्म लेते हैं और जीवन व्यतीत करते हैं। फरवरी 2, 1971 को ईरान के रामसर में वेटलैंड को लेकर एक सम्मेलन किया गया था। इसी सम्मेलन में वेटलैंड को बचाने को लेकर एक खांचा तैयार किया गया जिसमें राष्ट्रीय प्रयास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भी बात की गयी थी। इस सम्मेलन के इतने सालों बाद भी वेटलैंड की स्थिति कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि स्थिति बदतर ही हुई है। मीरपुर गांव में ग्रामीणों को जागरूक करते रामवीर। फोटो- रामवीर तंवर इस समस्या पर बात करते हुए तंवर कहते हैं कि स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए इन महत्वपूर्ण जगहों को लोग अपने कूड़ेदान के तौर पर देखते हैं। यहां कूड़ा-कचरा से लेकर, कारखानों से निकलने वाले गंदे अवशिष्ट इत्यादि सबकुछ खपाया जा रहा है। लोग यह समझ ही नहीं पाते कि हमारे परिस्थतिकी को बचाए रखने में इन वेटलैंड की कितनी बड़ी भूमिका है। और पढ़ें: मुश्किल में मिथिला के तालाब, लोगों के प्रयास से आ रहे सकारात्मक बदलाव “भारत के ग्रामीण क्षेत्र में लोग अब भी इन जलाशयों पर निर्भर है। गांव में मछली-पालन से लेकर धान की खेती और अन्य कामों के लिए तालाब का इस्तेमाल होता है। इसलिए यहां लोग तालाब-पोखर के महत्व को समझते हैं और बचाने की कोशिश करते हैं। शहरी क्षेत्र में ऐसा नहीं है इसलिए यहां वेटलैंड खत्म भी हो रहे हैं,” तंवर का कहना है। पानी के संकट से बचने के लिए वेटलैंड को बचाना जरूरी तालाब और अन्य वेटलैंड के क्षेत्र के अतिक्रमण और दिन-ब-दिन इनकी गिरती स्थिति की वजह से पानी की भारी किल्लत होनी शुरू हो चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक संस्था वाटरएड के एक अध्ययन के अनुसार देश के भूजल का स्तर 2000 से लेकर 2017 के बीच 23 फीसदी नीचे गिरा है। ऐसे में अगर इन वेटलैंड का संरक्षण किया जाए तो इसके सकारात्मक परिणाम होंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जून 2020 में जब मॉनसून का आगमन नहीं हुआ था तब नोएडा और ग्रेटर नोएडा के इलाकों में भूजल का स्तर काफी गिर गया था। पिछले साल यानी 2019 के मुकाबले कई जगह तो भूजल का स्तर नौ मीटर नीचे चला गया था। इन स्थिति को देखते हुए रामवीर तंवर जैसे वेटलैंड चैंपियन का महत्व बढ़ जाता है। वेटलैंड इंटरनेशनल साउथ एशिया के निदेशक रितेश कुमार कहते हैं कि भारत के पानी की समस्या का समाधान इन्हीं वेटलैंड के पुनरुद्धार में छिपा है। बैनर तस्वीर- रामवीर तंवर के प्रयास से नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अब तक 20 से अधिक तालाबों का पुनरुद्धार किया जा चुका है। इलस्ट्रेशन- स्वाति खरबंदा