- जयपुर शहर से निकला कचरा आस-पास के गावों में रहने वालों का जीना दूभर कर रखा है। युवा अवस्था में लोग अस्थमा जैसी बीमारी झेलने के लिए अभिशप्त है।
- बिना सावधानी मेडिकल कचरे को भी इन डम्प यार्ड में फेंक दिया जाता है। गांव वालों ने जब इसका विरोध किया था इनपर सरकारी महकमें ने एफआईआर दर्ज करा दिया।
- कचरे के इस पहाड़ से न केवल इंसान बल्कि जानवरों का जीवन भी मुश्किल में हैं। गांव वालों का दावा है कि कई मवेशी इस पहाड़ में दब गए।
- यह सब तब है जब जयपुर स्मार्ट सिटी बनने की राह पर है और इस शहर पर इस मद में अब तक करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं।
महज 20 साल की उम्र में जोरावर सिंह कविया को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। राजस्थान की राजधानी जयपुर की विधानसभा से महज 25 किमी दूर सेवापुरा ग्राम पंचायत के रहने वाले जोरावर सिंह को जब डॉक्टर के पास ले जाया गया तो पता चला कि उन्हें अस्थमा का रोग हो गया है। जोरावर की मां दीपिका (52) और बहन मूमल (28) पहले से ही अस्थमा के मरीज हैं। अपनी तकलीफ बताते हुए तीनों रुआंसे हो जाते हैं और कहते हैं कि पिता नरपत सिंह गांव में नहीं रहते इसीलिए बीमारी से बचे हुए हैं। घर के तीनों सदस्यों का जयपुर के अस्थमा भवन में इलाज चल रहा है।
करीब 45 लाख आबादी वाली स्मार्ट सिटी जयपुर का कचरा यहां डंप होने से सेवापुरा ग्राम पंचायत के 10 गांवों की 15 हजार से ज्यादा की आबादी की जिंदगी नरक सी हो गई है। यह तब है जब पिंक सिटी के नाम से मशहूर इस शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं।
खेलने-कूदने के दिन में ऐसी बीमारी होने जाने के लिए जोरावर गांव में लगे कचरे के पहाड़ को ठहराते हैं। कहते हैं, ‘कचरे में सालभर आग सुलगी रहती है। गर्मी के सीजन में तो आस-पास का 5-6 किमी इलाका धुएं से भर जाता है। इससे बुजुर्गों, बच्चों को सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। क्षेत्र में 15-35 साल के कम से कम 100 लोगों को मैं जानता हूं जिन्हें अस्थमा है।’
मूमल कहती हैं, ‘शहर का कचरा हमारे लिए मौत बांट रहा है। गांवों के प्रत्येक परिवार में 2-3 लोग अस्थमा और स्किन एलर्जी से पीड़ित हैं। छोटे बच्चों को भी काफी परेशानियां हो रहीं हैं।’
लूनियावास गांव के मंगल गुर्जर और उनकी पत्नी जमरी देवी भी 7 साल से अस्थमा का इलाज करा रही हैं। मंगल कहते हैं, ‘जब हनुमानपुरा (डंपिंग यार्ड) की तरफ से हवा आती है तो हम गाड़ी में बैठकर दूसरी तरफ चले जाते हैं। कई बार तो जहरीली हवा के कारण हमें रात में ही घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ता है।’
सेवापुरा ग्राम पंचायत के सरपंच रोहिताश गुर्जर ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, ‘2003 से सेवापुरा पंचायत के हनुमानपुरा गांव में जयपुर नगर निगम ने डंपयार्ड बनाया था। तब हमें कहा गया कि जितना भी कचरा यहां आएगा, उसका तुरंत खाद बनेगा, लेकिन 17 साल में यहां कचरे का पहाड़ बन गया है। सरकार ने हम ग्रामीणों को बिना मांगे मौत सी जिंदगी दे दी है।’
ग्राम पंचायत के हनुमानपुरा गांव में जयपुर शहर के सॉलिड वेस्ट डंपयार्ड के कारण पंचायत के लुनियावास, हनुमानपुरा, रामपुरा, सेवापुरा, खेरबाड़ी, जगन्ननाथपुरा, दीपपुरा, उदयपुरिया और नांगल गांव में हजारों लोग बीमारियों के साथ जीने को अभिशप्त हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इन गांवों में करीब 2400 परिवार हैं जिनकी जनसंख्या 15 हजार से ज्यादा है। लगभग 50 हेक्टेयर (करीब 66 एकड़) में फैले सेवापुरा के इस डंपयार्ड का ग्रामीण कई साल से विरोध कर रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि शुरूआत के 4-5 साल तो सब सामान्य था, लेकिन आज यहां 35-40 फीट ऊंचा कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है।
जयपुर में अस्थमा विशेषज्ञ डॉक्टर वीरेन्द्र सिंह से मोंगाबे ने बात की। वे बताते हैं, ‘शहरी कचरे में आधे से ज्यादा मात्रा प्लास्टिक की होती है। इसमें जब आग लगती है तो ये बेहद जहरीली धुंआ बनाता है। इससे सीओपीडी यानी सांस संबंधी बीमारियां बनने का ज्यादा खतरा होता है। बुजुर्गों और बच्चों के लिए ये बेहद खतरनाक है। मेरे पास भी सेवापुरा क्षेत्र से काफी संख्या में मरीज आते हैं।’
डॉक्टर कहते हैं, ‘कचरे के कारण आस-पास वैक्टीरिया और वायरस भी पनपते हैं। बारिश के दिनों में इसी कचरे में पानी जाता है जो बेहद गंदा और बदबूदार होता है। इसके कारण स्थानीय लोगों में स्किन एलर्जी की शिकायतें काफी आ रही हैं।’
वे कहते हैं, ‘नियमानुसार तो डंपिंग यार्ड के एक किमी क्षेत्र में कोई रिहायश होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन सेवापुरा में तो गांव के ठीक ऊपर ही कचरे का पहाड़ बन गया है।’
ग्रामीणों की शिकायत है कि इतनी बड़ी आबादी और बीमारियों के लिहाज से संवेदनशील इलाका होने के बाद भी गांव में एक प्राथमिक उपचार केन्द्र तक नहीं है। छोटी-छोटी बीमारियों के लिए ग्रामीणों को जयपुर शहर जाना पड़ता है।
क्या स्मार्ट सिटी जयपुर को अनुमान है अपने कचरे का!
जयपुर नगर निगम से मिले आंकड़ों बताते हैं कि शहर रोजाना 1477 टन कचरा पैदा होता है। इस कचरे को सेवापुरा, मथुरादासपुरा और लांगणियावास गांव में बने यार्ड में खाली किया जाता है। अकेले सेवापुरा में करीब 700 टन कचरा डंप किया जाता है।
इसके अलावा मथुरादासपुरा में 175 बीघा भूमि पर डंपयार्ड बनाया गया है जिसमें रोज करीब 300 टन कचरा डंप किया जाता है। इस कचरे को ना तो कंपोस्ट किया जाता है और ना ही गीला और सूखा कचरा अलग रखा जाता है। मथुरादासपुरा से करीब चार किमी दूर ही लांगणियावास कचरा डिपो है। यहां करीब 250 टन कचरा रोजाना डंप किया जा रहा है। करीब 1477 टन कचरे में से जयपुर नगर निगम सिर्फ 250 टन कचरा ही अलग (सेग्रिगेट) कर पाता है। करीब 250 टन कचरा नगर निगम इकठ्ठा ही नहीं कर पाता।
निगम अधिकारियों का कहना है कि लांगणियावास में 7 हजार टन क्षमता के एक कंपोस्ट प्लांट के लिए एक निजी कंपनी से अनुबंध हो गया है। जल्द ही जमीन भी उपलब्ध करा दी जाएगी।
हालांकि इन दावों पर नगर निगम की मेयर (हेरिटेज) मुनेश गुर्जर ही सवाल खड़े कर देती हैं। मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए उन्होंने बताया, ‘निगम की आर्थिक स्थिति अभी बेहद खराब है। ऐसे में हम नए काम नहीं कर पा रहे हैं। जैसे ही पैसे का इंतजाम होगा, हम इन डंपयार्ड के बारे में सोचेंगे। तब तक आने वाले बजट से प्रभावित गांवों में केमिकल का छिड़काव करा देंगे ताकि मक्खी-मच्छरों से निजात मिले।’
शहर की यह विवशता केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के सालाना सर्वेक्षण में पिंक सिटी की रैंकिंग में भी दिखती है। केंद्र सरकार के 2020 में आए इस सर्वेक्षण में जयपुर को सफाई के मामले में 28वां रैंक दिया गया था। इसके पिछले साल यानी 2019 में इस शहर को 44 वां स्थान मिला था। ब्रिटेन के मशहूर स्वास्थ्य जर्नल लैन्सेट में प्रकाशित एक अध्ययन में राजस्थान को वायु प्रदूषण से होने वाले आर्थिक नुकसान के मामले में छठा रैंक दिया गया था।
डिजीज बर्डन प्रोफाइल 1990 से 2016 के अनुसार सीओपीडी से होने वाली मौतों में राजस्थान देश में पहले स्थान पर है। प्रति एक लाख में से 111 मौत सीओपीडी बीमारियों से होती है। यही रिपोर्ट बताती है कि राजस्थान को सीओपीडी का खतरा सबसे ज्यादा है। इससे मौत और दिव्यांगता का प्रतिशत (3.35) है जो देश में सबसे ज्यादा है।
ग्रामीणों पर भारी कचरे की बीमारी
करीब 60 साल की रामा देवी बुनकर 2010 से स्किन एलर्जी से पीड़ित हैं। इसके कारण वे 60 की उम्र में ही 80 साल की नजर आने लगी हैं। उनके शरीर में खुजली और जलन रहती है। कहती हैं, ‘जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में 10 साल से इलाज करा रही हूं, लेकिन बीमारी ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही। 3 दिन के लिए भी दवाई बंद करो तो खुजली और जलन शुरू हो जाती है। कचरे ने मेरी जिंदगी खराब कर दी है।’
स्किन एलर्जी, गंदगी, बदबू और मक्खियों के कारण डंपयार्ड के पास के कई परिवार पलायन भी कर रहे हैं। हनुमानपुरा की भूरी डूंगरी ढाणी में रहने वाले कैलाश गुर्जर और उनके 4 अन्य भाइयों ने 5 साल पहले ढाणी छोड़ 2 किमी दूर घर बना लिया है। कैलाश बताते हैं, ‘वहां मक्खियों का प्रकोप इतना था कि सूरज उगने से पहले ही खाना बनाकर रखना पड़ता था। सुबह उठने पर हमारे होठों पर मक्खियों की गंदगी जम जाती थी। गर्मियों में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। बारिश के दिनों में कचरे से गंदा पानी रिस कर ढाणी की गलियों में जमा हो जाता है, जिसमें असहनीय बदबू आती है। इसी सब से परेशान होकर मैंने अपने पिता का घर छोड़ दिया। गांव के कम से कम 10 परिवार इसी तरह अपने पुश्तैनी घर छोड़कर जा चुके हैं।’
लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव के अलावा कचरे का असर यहां के सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि रिश्तेदारियों में हमारा गांव कचरे वाला कहा जाने लगा है। ग्रामीण भागीरथ सिंह कविया कहते हैं, ‘कचरे के कारण लड़कों की शादी ही नहीं हो रही। कोई अपनी बेटी गंदगी, बदबू और प्रदूषित गांव में देना नहीं चाहता। बेटी को गांव में नहीं रखने की शर्त पर ही शादी हो रही हैं। गांव में तीस से ज्यादा उम्र के लड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है।’
इंसानों के अलावा जानवरों पर भी कचरे का कुप्रभाव पड़ रहा है। सेवापुरा के उम्मेद सिंह कहते हैं, ‘जब से यहां कचरा डंप होने लगा है, हमारी गायें घास की जगह कचरा खाती हैं। गायें कई बार गीले कचरे में बने दलदल में फंस जाती हैं। निगम के ट्रक उसके ऊपर ही कचरा डाल कर चले जाते हैं। उम्मेद के दावों के मुताबिक छः साल में कचरे के पहाड़ में एक हजार से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है।’
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सरपंच पर हो रखी है एफआईआर
सेवापुरा के सरपंच रोहिताश ने बताया कि कोरोना काल में क्वेंरेंटीन सेंटर्स का मेडिकल वेस्ट इसी डंपयार्ड पर डाला गया। जब ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो मुझ सहित चार लोगों पर प्रशासन ने केस दर्ज करा दिया। अभी कोर्ट में ट्रायल चल रही है और एक पेशी अब तक हुई है।
रोहिताश बताते हैं, ‘हमने समस्या से निजात के लिए मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, नगरीय विकास मंत्री सहित कई अधिकारी और नेताओं को पत्र लिखे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। रोहिताश का आरोप है कि नगर निगम ने 2003 में डंपयार्ड के लिए पंचायत की एनओसी तक नहीं ली है।
क्षेत्र के विधायक और भाजपा राजस्थान के अध्यक्ष सतीश पूनिया से मोंगाबे ने बात की। उन्होंने कहा, ‘मैंने कई बार विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही। ग्रामीणों की समस्याएं जायज हैं। डंपयार्ड को थोड़ा दूर शिफ्ट किया जा सकता है। कचरे को पूरा कंपोस्ट किया जाना चाहिए।’ पूनिया का कहना है कि ग्रामीणों ने डंपयार्ड के लिए निगम को एनओसी दी थी। हालांकि दिसंबर 2018 से पहले राजस्थान में भाजपा की ही सरकार थी और सेवापुरा की समस्या तब भी इतनी ही गंभीर थी।
क्या कहते हैं सॉलिड वेस्ट नियम?
सॉलिड-वेस्ट नियम-2016 के नियमों के अनुसार नगर निकायों को मुख्य तौर पर पांच जिम्मेदारियां दी गई हैं। इनमें कम से कम कचरा पैदा करना, रिसाइकलिंग, कंपोस्टिंग, ऊर्जा निर्माण और लैंडफिल साइट्स का निर्माण करना है। जयपुर में पैदा हो रहे गीले और सूखे कचरे को अलग भी नहीं किया जाता। ऐसे में पुनः इस्तेमाल होने लायक कचरे की संभावना ही नहीं बनती। कचरे की कंपोस्टिंग में भी जयपुर नगर निगम फिसड्डी है। इसके बाद कचरे से ऊर्जा बनाने का काम भी स्थानीय निकायों के जिम्मे है, लेकिन राजस्थान के किसी भी शहर में यह काम फिलहाल नहीं हो रहा है। नियमों के अनुसार बचे हुए कचरे को लैंडफिल साइट में डाल दिया जाता है, लेकिन जयपुर सहित प्रदेश के किसी भी शहर में ये सुविधा नहीं है।
सेवापुरा में 250 टन/ प्रतिदिन की क्षमता का एक कंपोस्ट प्लांट लगा है, लेकिन यहां सिर्फ 10-15 टन कचरा ही रोजाना कंपोस्ट हो पा रहा है। सरपंच रोहिताश का कहना है कि बीते एक साल से ये प्लांट बंद था, पिछले महीने ही वापस शुरू किया गया है।
बैनर तस्वीरः जयपुर स्मार्ट सिटी के कचरे से बना पहाड़। यहां कलकत्ता से आए जहांगीर आलम कचरा चुन रहे हैं। दिनभर कचरे के इस ढेर पर मेहनत करने के बाद जहांगीर करीब 300 रुपए तक का कचरा जमा कर लेते हैं। तस्वीर-माधव शर्मा