- कश्मीर की नदियों में मछली पालन से लगभग 93,000 लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है।
- झेलम नदी और उसकी सहायक नदियों में बजरी, बोल्डर और रेत निकालने के लिए मशीनों से नदी तल में खनन किया जाता है। इससे मछली का आवास खतरे में है।
- नदी के तल में खनन, नदी में कचरा फेंकने और अन्य मानवीय गतिविधियां से मछली की संख्या में कमी आ रही है। इससे इस कारोबार से जुड़े लोगों का रोजगार खतरे में है।
कश्मीर की मीठे पानी की धाराओं में जलीय जीवन खतरे में है। इसकी वजह है-बेतहाशा खनन। झेलम नदी और उसकी सहायक नदियों में बजरी, बोल्डर और रेत निकालने के लिए मशीनों से खनन बढ़ रहा है। खनन नदी के किनारे ही नहीं बल्कि नदी के बीच में भी हो रहा है, जिससे मछलियां खतरे में हैं।
पहले खनन कश्मीर के स्थानीय लोगों तक ही सीमित था। लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया और उसके गैर-स्थानीय ठेकेदार भी खनन में शामिल हो गए।
हन्नान विश्वविद्यालय के जलीय विष विज्ञान के शोधकर्ता ओवैस इकबाल डार ने कहा, “नदी के किनारे से रेत या बजरी का अवैध खनन भी हो रहा है। इससे मछलियों का आवास खत्म हो रहा है। इससे मछलियां प्रजनन भी नहीं कर पातीं और उनके खाने लायक चीजें भी नदी से गायब हो रही हैं।”
पहलगाम के बाहरी इलाके में लिद्दर नदी के तट पर, सीवेज और निर्माण अपशिष्ट भी मीठे पानी को खराब कर रहे हैं।
इसका सीधा असर मछली के कारोबार पर पड़ रहा है। इस कारोबार से इलाके में 93,000 से अधिक लोग जुड़े हुए हैं।
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बैनर तस्वीरः रामबी आरा नदी में नदी तल पर होता खनन। तस्वीर- समीर मुश्ताक/मोंगाबे