- राष्ट्रीय राजधानी में भीषण लू के बीच अधिकारियों ने नागरिकों को दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे के बीच बाहर निकलने से परहेज करने की सलाह दी है। उनके मुताबिक ऐसा करने से गर्मी से होने वाली बीमारियों के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
- हालांकि, दिल्ली में ऑटो रिक्शा चालकों के पास घर पर रहने का विकल्प नहीं है। उन्हें अपने काम की प्रकृति के कारण आश्रय की कमी और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- दिल्ली के ऑटो रिक्शा चालकों ने काम के घंटों में उल्लेखनीय कमी की बात कही है। इसकी वजह स्कूल बंद होना, वातानुकूलित कैब के प्रति बढ़ती पसंद और चरम गर्मी के समय सवारियों का बाहर निकलने से परहेज करना है।
- जानकारों का सुझाव है कि पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से लैस पार्किंग क्षेत्र या शेड बनाने जैसे उपायों को लागू करने से ऑटो रिक्शा चालकों सहित राइडर वाली अर्थव्यवस्था के श्रमिकों के सामने आने वाली दिक्कतों को कम किया जा सकता है। वे शहरों के लिए जलवायु के हिसाब से मॉडल विकसित करने में व्यापक नजरिए की जरूरत पर जोर देते हैं।
दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में लू का प्रकोप जारी है। मौसम विभाग ने लोगों को दोपहर के वक्त छाया या घर में रहने की सलाह दी है। इस समय सूर्य की किरणें सबसे तेज होती हैं। साथ ही, दोपहर 12 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक ऐसे काम से बचने की सलाह दी गई है जिसमें बहुत ताकत लगती है, ताकि लू से होने वाली बीमारियों से बचाव हो सके। लेकिन, इन सबके बावजूद दिल्ली के ऑटो चालकों के पास भीषण लू से बचने का विकल्प नहीं है। उन्हें घर चलाने के लिए इन विषम परिस्थितियों में काम करना ही पड़ता है। लू से उनकी आमदनी पहले ही घट चुकी है, क्योंकि इस दौरान बहुत कम लोग घर से निकलते हैं या ऑटो लेते हैं।
करीब 25 सालों से हरी-पीली ऑटो चला रहे सुखजीवन मिश्रा कहते हैं, “जोखिम के बावजूद मैं बेकार नहीं बैठ सकता। यह जीवनयापन का सवाल है। मैं अपने परिवार में कमाने वाला अकेला सदस्य हूं।”
वे सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक काम करते हैं। मिश्रा बताते हैं कि इन दिनों सड़क पर बहुत कम सवारी होने के कारण उनकी आमदनी में कमी आई है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के फरीदाबाद से दिल्ली आने वाले मिश्रा कहते हैं, “हमारी जिंदगी सड़क पर ही चलती है। हम सड़क पर नौ से दस घंटे या उससे ज़्यादा समय बिताते हैं।” वे इस बात पर दुख जताते हैं कि सवारियों की संख्या में कमी आई है, खास तौर पर दोपहर से लेकर देर शाम तक जब गर्मी अपने चरम पर होती है। शाम के समय आम तौर पर कारोबार में तेजी आती है, लेकिन तब तक ड्राइवर पहले ही तीन से चार घंटे का काम खो चुके होते हैं।
मार्च में दिल्ली सरकार की ओर से जारी दिल्ली सांख्यिकी पुस्तिका के मुताबिक लगभग 93,654 ऑटो रिक्शा सिर्फ दिल्ली में ही चलते हैं, जो राजधानी भर में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। इस आंकड़े में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के अन्य शहर जैसे नोएडा और फरीदाबाद शामिल नहीं हैं। इसके अलावा, दिल्ली में 1,18,506 दूसरे यात्री वाहन भी हैं, जिनमें ई-रिक्शा भी शामिल हैं।
![दिल्ली के कनॉट प्लेस में छाया में खड़े होकर सवारियों का इंतजार करता हुआ ऑटो रिक्शा चालक। तस्वीर - पल्लवी घोष।](https://imgs.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2024/06/11074643/An-auto-driver-seen-standing-in-the-shade-in-Connaught-Place-while-waiting-for-a-cusotmer-to-arrive-1250x890-1-768x512.jpeg)
गर्मी के अलावा ऑटो चालकों की बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें राइड-हेलिंग ऐप से सवारियों का नुकसान हो रहा है। एक अन्य ऑटो चालक बिरेंद्र सिंह कहते हैं, “इस गर्मी में लोग वातानुकूलित कैब लेना पसंद करते हैं। कोई भी गर्मी में बाहर नहीं निकलता। हम ही हैं जो यहां पेड़ की छांव में आराम कर रहे हैं।” सिंह के अनुसार, सवारियां सुबह 11 बजे तक ऑफिस के समय उपलब्ध रहती हैं, उसके बाद इनकी तादाद कम हो जाती है। शाम से पहले यह आंकड़ा नहीं बढ़ता है। सिंह रात 9 बजे तक ऑटो चलाते हैं। कुछ दिन यह समय बढ़कर रात 10 बजे तक भी हो जाता है।
इसके अलावा, दिल्ली में भीषण गर्मी के चलते समय से पहले स्कूल बंद होने से भी सवारियों की संख्या में कमी आई है। शिक्षा निदेशालय ने दिल्ली के स्कूलों को इस शैक्षणिक साल के लिए 11 मई से 30 जून तक गर्मी की छुट्टियां मनाने का निर्देश दिया था। मिश्रा और सिंह दोनों के अनुसार, स्कूल बंद होने से आमदनी घटी है, खासकर स्कूल के बाद दोपहर के समय।
तो क्या उनके काम के घंटों में बदलाव करने से कुछ मदद मिलेगी? मिश्रा और सिंह दोनों इसका जवाब “नहीं” में देते हैं।
उनका कहना है कि काम के घंटों को सुबह और शाम के घंटों या उससे आगे तक सीमित करना व्यावहारिक नहीं हो सकता है। जैसे, मिश्रा को दिल्ली पहुंचने में करीब एक घंटा लगता है और उन्हें अपने घर से आने-जाने में लगने वाले समय का भी ध्यान रखना पड़ता है। अगर वे गाड़ी नहीं चला रहे हों, तब भी ऑटो चालक अपने खाली समय में गर्मी में सड़क पर ही रहते हैं। आराम करने के लिए पर्याप्त छायादार जगह नहीं है जहां ऑटो चालक आराम कर सकें। राष्ट्रीय राजधानी ऑटो टैक्सी चालक संघ के उपाध्यक्ष राधेश्याम नागर का कहना है कि दिल्ली भर में पार्किंग के लिए करीब 450 क्षेत्र तय हैं, लेकिन सभी ड्राइवरों को नहीं पता कि ये जगहें कहां हैं। जब उन्हें पता भी होता है, तब भी ऐसे क्षेत्रों में छाया हो भी सकती है और नहीं भी। इसके अलावा, नागर कहते हैं कि दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले ऑटो रिक्शा की संख्या (अनुमानित कम से कम 1,00,000) की तुलना में ऐसे पार्किंग क्षेत्रों की संख्या बहुत कम है।
ऑटो रिक्शा चालकों को अगर आराम करना है तो उन्हें कुछ कामचलाऊ करने की जरूरत हो जाती है। लेकिन इसके साथ कई मुश्किलें भी हैं। सिंह कहते हैं, “हम कभी-कभी पेड़ों के नीचे आराम कर लेते हैं, लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं। हम आराम करने के लिए जगह खोजने की कोशिश करते हैं, लेकिन हमें जुर्माना लगने का जोखिम रहता है।” वे आगे कहते हैं कि उनके जैसे ड्राइवरों को अक्सर ऐसी जगहों पर पार्किंग करने के लिए चालान (यातायात उल्लंघन का नोटिस) मिलता है जो पार्किंग के लिए तय नहीं हैं। इसलिए अगर ड्राइवर थोड़ी देर के लिए छायादार जगह पर अपना ऑटो रिक्शा पार्क कर भी लेते हैं, तो वे लंबे समय तक वहां नहीं रह पाते। कुछ ऑटो रिक्शा चालकों का कहना है कि वे अपना खाली समय रिहायशी इलाकों में बिताते हैं, जहां आमतौर पर पर्याप्त हरियाली होती है। हालांकि, मिश्रा कहते हैं कि सभी इलाके “ऐसे” नहीं होते हैं।
ऐसी स्थिति में, जहां भीषण गर्मी में आराम कर भी लिया जाता है, तो थकावट और थकान होती है। अगर वे सुबह और शाम काम करना चाहते हैं और दोपहर में आराम करना चाहते हैं, तो उन्हें अपना समय बाहर बिताना पड़ता है, जो कि उनके लिए फायदेमंद नहीं है। सिंह कहते हैं, “हम थक जाते हैं। हम भी इंसान हैं। सड़क पर घंटों बिताने के बाद, गर्मी से थोड़ी राहत मिलने पर, शायद ही कोई ऊर्जा बच पाती है। अगर मौसम सुहाना है, तो कोई भी व्यक्ति कुछ अतिरिक्त घंटे काम कर सकता है, लेकिन ऐसी परिस्थितियों में यह संभव नहीं है।”
खास तौर पर 29 मई को जब दिल्ली-एनसीआर का ज़्यादातर हिस्सा 45 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान में तप रहा था, कई ऑटो रिक्शा चालक अपनी रोजाना की कमाई को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे। 12 साल से ऑटो रिक्शा चला रहे जीतेंद्र कुमार कहते हैं कि उन्हें पूरे दिन एक भी सवारी नहीं मिली और वे कमाई की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते रहे। शाम को बारिश के कारण जब तापमान कम हुआ, तो उन्हें आख़िरकार दो से तीन सवारी ही मिल पाई। हालांकि, मिश्रा जैसे कुछ लोगों को इतनी भी सवारी नहीं मिली। मिश्रा ने अपना काम सुबह 9 बजे शुरू किया, लेकिन फिर भी उन्हें दिन के आखिर तक 100 रुपये की मामूली कमाई के साथ संतोष करना पड़ा, क्योंकि वे पूरे दिन में सिर्फ़ एक ही सवारी को ले जा पाए।
![कालकाजी मंदिर मेट्रो स्टेशन के बाहर सवारी के इंतजार में खड़े ऑटो रिक्शा। तस्वीर - पल्लवी घोष।](https://imgs.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2024/06/11074711/Autos-lined-up-outside-Kalkaji-Mandir-metro-station-768x512-1.jpeg)
और भी बहुत नुकसान
मिश्रा कहते हैं कि उन्हें खुशी है कि अब तक गर्मी की वजह से वे बीमार नहीं पड़े हैं। वे कहते हैं, “भगवान की कृपा से मुझे इतने सालों में कभी भी गर्मी से जुड़ी कोई बीमारी नहीं हुई। मुझे मधुमेह नहीं है और न ही उच्च रक्तचाप का कोई इतिहास है। इसलिए, मैं चलता रहता हूं।”
हालांकि, बिजेंद्र सिंह की कहानी पूरी तरह अलग है। सिंह 1989 से ऑटो रिक्शा चला रहे हैं। पिछले साल उन्हें सिरदर्द, थकान, चक्कर आना और ऐंठन जैसे गर्मी के लक्षणों के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी, इसलिए वे एक महीने के लिए सड़क पर नहीं चल पाए। वे कहते हैं, “मैंने एक महीने की कमाई खो दी।” इस अनुभव के बावजूद, सिंह वापस आ गए हैं और लू के बीच दिल्ली की सड़कों पर अपना सबकुछ जोखिम में डाल रहे हैं।
![कालकाजी मंदिर के पास पानी की टंकी जहां ऑटो चालक अपनी बोतल भरते हैं। 30 मई को यहां पानी नहीं था, जो इस गर्मी में दिल्ली में सबसे गर्म दिनों में से एक था। तस्वीर - पल्लवी घोष।](https://imgs.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2024/06/11074740/A-water-kiosk-near-Kalkaji-Mandir-Temple_there-was-no-water-on-May-30-768x512-1.jpeg)
ड्राइवर आमतौर पर पानी की बोतलें साथ लेकर चलते हैं, लेकिन इससे पूरे दिन काम नहीं चल पाता है। ठंडे पानी के लिए कई विकल्प हैं, जैसे कि पानी के खोखे, आश्रम, गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जिद, पानी बेचने वाले और निजी उपक्रम। सिंह कहते हैं, “काम के घंटों के दौरान हम अपने भरण-पोषण के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पानी पर निर्भर रहते हैं।” हालांकि, इस संबंध में भी कुछ मुद्दे हैं। मिश्रा एक घटना को याद करते हैं जब उन्होंने एक आश्रम से अपनी बोतल भरी थी और उसमें एक मरा हुआ कीड़ा मिला था। वे कहते हैं, “इसके बाद मैं वहां से पानी भरना बंद कर दिया।” वे आगे कहते हैं, “कुछ और नहीं तो हम पैक किया हुआ मिनरल वाटर ही खरीदते हैं।”
सेहत से जुड़े जोखिमों के बावजूद, दिल्ली के ऑटोवालों के लिए कमाई में कमी मुख्य चिंता बनी हुई है।
जानकार बोले, आसान नहीं समाधान
पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ पार्किंग क्षेत्र या शेड बनाने जैसे बचाव वाले उपायों से कुछ राहत मिलेगी। हालांकि, जलवायु के हिसाब से शहर बनाने की संभावना अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है।
![कालकाजी मंदिर मेट्रो स्टेशन के पास संभावित सवारियों का इंतजार करते ऑटो रिक्शा चालक। तस्वीर - पल्लवी घोष।](https://imgs.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2024/06/11074814/Auto-drivers-waiting-for-potential-customers-near-the-Kalkaji-Mandir-metro-station-768x512-1.jpeg)
असमानता, विकास और पर्यावरण में महारत रखने वाली शहरी योजनाकार डिंपल बेहल कहती हैं, “जब शहरों के लिए जलवायु के हिसाब से मॉडल की बात आती है, तो बड़ा विजन जरूरी होता है। शासन के नजरिए से, इस क्षेत्र में ज्यादातर काम अलग-अलग स्तर पर होता है। सरकारी विभागों के बीच ज्यादा सहयोग से स्थानीय संदर्भ के अनुसार समग्र, दीर्घकालिक कार्य योजना बनाने में मदद मिल सकती है।”
दिल्ली में हरियाली पर्याप्त है, लेकिन मई में तापमान 50 डिग्री के करीब पहुंच गया। इसके साथ लू चलने जैसे पर्यावरण से जुड़े कारक भी होते हैं। इस स्थिति में आर्थिक रूप से कमजोर आबादी, खास तौर पर राइडर वाली अर्थव्यवस्था में काम करने वाले लोगों को बचाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इनमें ऑटो चालक भी शामिल हैं।
हालांकि, आश्रयों और बंद पार्किंग वाली जगहों जैसे बचाव के उपायों से तुरंत राहत मिल सकती है, लेकिन जानकारों का कहना है कि गर्मी और अन्य चरम मौसमी स्थितियों से निपटने के लिए सावधानीपूर्वक योजना और दूरदर्शिता की जरूरत होती है।
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट में सस्टेनेबल सिटीज की कार्यकारी कार्यक्रम निदेशक और इंडिया रॉस सेंटर की निदेशक जया ढिंडाव बताती हैं, “ये (शेड, शेल्टर और बंद पार्किंग स्थल) छाया देने, गर्मी से अस्थायी राहत, प्राथमिक चिकित्सा (ओआरएस वगैरह) और वाहन के परफॉर्मेंस को बनाए रखने और गर्मी के जोखिम को कम करने के लिए आराम करने के लिए जरूरी हैं। बुनियादी ढांचे की योजना के नजरिए से, ऐसी परियोजनाओं को आदर्श बनना होगा, यह देखते हुए कि गर्मी और अन्य जलवायु खतरे ज्यादा से ज्यादा गंभीर होते जाएंगे और लगातार बढ़ते जाएंगे।”
उन्होंने तीन अहम पहलुओं पर जोर दिया: नियोजन और निर्माण मानदंडों और विनियमों में एकीकृत स्थान की जरूरतें, पूंजी और रख-रखाव लागत का आवंटन। साथ ही, यह पक्का करना कि डिजाइन और सामग्री निष्क्रिय रूप से ठंडा रखने और ऊर्जा कुशलता को सुविधाजनक बनाएं और कम रख-रखाव का बोझ डालें।
ढिंडाव कहते हैं, “इन संरचनाओं को शहरी विकास योजनाओं में शामिल करने से बहुत ज्यादा गर्मी की स्थितियों से पार पाने की शहरों की क्षमता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है।”
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ऑटो रिक्शा चालकों को ऑटोमोटिव उद्योग में प्रगति से लाभ मिल सकता है। जैसे, निर्माता जमा होने वाली गर्मी को कम करने के लिए परावर्तक और इन्सुलेटिंग सामग्री को शामिल करके वाहन डिजाइन को बेहतर बना सकते हैं, ड्राइवरों को ठंडे क्षेत्रों में भेजने और गर्मी के असर, वाहन को ठंडा रखने के तरीकों और गर्मी के तनाव से निपटने की रणनीतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए स्मार्ट पार्किंग समाधान विकसित कर सकते हैं। जानकारों का कहना है कि निर्माता ठंडा रखने के लिए सामुदायिक परियोजनाओं, जैसे कि हरियाली को बढ़ावा देना या सार्वजनिक कूलिंग स्टेशन स्थापित करके जलवायु परिवर्तन से निपटने में बेहतर शहरों बनाने में भी योगदान दे सकते हैं।
ढिंडाव बताते हैं, “कई वाहन निर्माताओं के उदाहरण हैं जिन्होंने शहरों/समुदायों को ठंडक पहुंचाने में योगदान दिया है। जापान में टोयोटा और निसान, फोर्ड और जनरल मोटर्स द्वारा शहरी वनों और हरित छतों (ग्रीन रूफिंग) की पहल की गई है। इसी तरह, वोक्सवैगन और हुंडई ने शहरी हीट आइलैंड को कम करने और रहने योग्य वातावरण बनाने के लिए अपनी सुविधाओं के आसपास हरित क्षेत्र और पार्क बनाने में मदद की है।”
जानकार इस बात पर सहमत हैं कि बहुत ज्यादा तापमान की समस्या से निपटने तथा इस वातावरण में रहने वाले लोगों के लिए कई क्षेत्रीय कोशिशों को एक साथ लाने की जरूरत होगी।
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बैनर तस्वीर: ऑटो के रियरव्यू मिरर पर बंधा हुआ तौलिया। ड्राइवर अक्सर गर्मी से राहत पाने के लिए अपना चेहरा ढकने के लिए गीले तौलिये या कपड़े का इस्तेमाल करते हैं। तस्वीर – पल्लवी घोष।