भीषण गर्मी में तैनात सुरक्षा गार्ड के हीट-स्ट्रोक से बचने की कहानी

54 साल के देवी प्रसाद अहिरवार प्रवासी मजदूर हैं। वे सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करते हैं। वे जून में दिल्ली में जानलेवा गर्मी का सामना करने वाले सैकड़ों लोगों में से एक थे। वे उन चंद लोगों में से एक हैं जो जानलेवा हीट-स्ट्रोक से बच गए। इलेस्ट्रेशन – हितेश सोनार/मोंगाबे।

बदतर होती पहले से खराब सेहत

हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि देवी प्रसाद जैसे हाशिए पर रहने वाले समाज के जाति समूह खुले में किए जाने वाले काम में लगे हुए हैं। इन कामों में खूब शारीरिक मेहनत लगती है। जानलेवा गर्मी से होने वाली मुश्किलों और इस तरह की नौकरी में जाति की भूमिका के विश्लेषण से पता चला है कि इन समूहों के पास इससे बचाव के उपायों तक पहुंच की संभावना कम थी। वे अन्य समूहों की तुलना में जानलेवा गर्मी और बहुत ज्यादा तापमान के संपर्क में अधिक थे। अध्ययन में कहा गया है, “शिक्षा के स्तर और सामाजिक नेटवर्क में लगातार जाति-संबंधी गैर-बराबरी भी खास समूह द्वारा एक तरह के काम करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे सकती हैइसमें कम वेतन वाली नौकरियों में हाशिए पर पड़ी जातियों की तादाद बहुत ज्यादा होती है।”

देवी प्रसाद के जीवन की परिस्थितियां और जानलेवा गर्मी से उनके बेहोश होने तक की घटनाएं इस बारे में बताती हैं कि गर्मी का दुष्प्रभाव किस तरह बढ़ता जा रहा है। मूल रूप से मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के रहने वाले प्रसाद और उनका परिवार दशकों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी मजदूरों के रूप में काम कर रहा है। ना तो उनकी नौकरी सुरक्षित है। उनके पास किसी तरह का स्वास्थ्य लाभ भी नहीं है या उन्हें इतना वेतन भी नहीं मिलता है कि वे अच्छे से गुजर-बसर कर सकें।

पिछले साल देवी प्रसाद ने बिचौलियों के साथ काम करना शुरू किया जो प्रतिष्ठानों को मजदूर मुहैया कराते हैं। उन्हें नोएडा सेक्टर 50 में एक बंगले पर सुरक्षा गार्ड के तौर पर तैनात किया गया था। काम शुरू करने से पहले कोई औपचारिक अनुबंध नहीं हुआ था। प्रसाद के अनुसार, उनके नियोक्ता नियमित रूप से उनके 12,000 रुपये के मासिक वेतन के भुगतान में देरी करते थे। उन्होंने कहा, “इस बार जून का महीना आधा बीत जाने के बाद भी उन्होंने पांच हजार रुपये कम दिए थे। मुझे पैसों के लिए गर्मी के बावजूद काम करना पड़ा। मैं पांच हजार रुपये छोड़ नहीं सकता था, क्योंकि मैं किराया नहीं दे पाया था।” 

बरौला में अपने क्वार्टर में छोटे से पंखे के नीचे खड़ी देव प्रसाद की पत्नि बिनोदी अहिरवार। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।
बरौला में अपने क्वार्टर में छोटे से पंखे के नीचे खड़ी देवी प्रसाद की पत्नि बिनोदी अहिरवार। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।

देवी प्रसाद की पत्नि बिनोदी अहिरवार ने बताया कि उनको बेहोश होने से दो दिन पहले तक बेचैनी महसूस हो रही थी। जब आखिरकार उन्हें होश आया, तो उन्हें नौकरी देने वालों ने मदद करने से इनकार कर दिया और उनके काम करने की परिस्थितियों की कोई जवाबदेही नहीं ली। निर्माण मजदूर के तौर पर काम करने वाले देवी प्रसाद के बेटे संजय अहिरवार ने कहा, “उन्होंने (देवी प्रसाद के नियोक्ता) बस कॉल काट दिया और तब से अपना फोन बंद कर लिया है। नियोक्ता ने उनके (देवी प्रसाद) इलाज में मदद करने से इनकार कर दिया और अभी तक उनका बकाया पैसा नहीं चुकाया है।” उन्होंने कहा, “हमें लगता है कि वह इसलिए बच गए, क्योंकि जिस घर की वह रखवाली कर रहे थे उसके मालिक केंद्र सरकार में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे। उन्होंने ही देवी प्रसाद को भर्ती कराया और डेढ़ लाख रुपये का अस्पताल का बिल चुकाया।”

देवी प्रसाद के हीटस्ट्रोक के इलाज के लिए भारी-भरकम मेडिकल बिल किसी भी राज्य या केंद्र सरकार की स्वास्थ्य बीमा योजना में कवर नहीं किया गया था, क्योंकि ना तो देवी प्रसाद और ना ही उनके परिवार के सदस्यों को इसके फायदों के बारे में पता था। वे आयुष्मान भारत, कर्मचारी राज्य बीमा योजना या किसी अन्य स्वास्थ्य लाभ के लिए पंजीकृत नहीं थे। विनोद कुमार ने कहा, “हमें इलाज के लिए अस्पताल से निकाल दिया जाता, क्योंकि उन्होंने कहा कि कोई बिस्तर उपलब्ध नहीं है। लेकिन, अधिकारी दयालु थे और मदद के लिए आगे आए। हम इसके लिए बहुत आभारी हैं।”

अध्ययनों में पाया गया है कि बुनियादी सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच बदलती जलवायु के असर से पैदा होने वाले मुश्किल हालात को कम करने में मदद कर सकती है। ग्लोबल सेंटर ऑन अडेप्टेशन का कहना है, “गरीबी और खुशहाली के बुनियादी संकेतक यानी पोषण, कैलोरी सेवन, खपत, उत्पादक और गैर-उत्पादक संपत्ति, स्वास्थ्य और स्वच्छता, साक्षरता और शिक्षा और कुछ मामलों में प्रवास और अपराध – उनसे बहुत अलग नहीं हैं जिनका इस्तेमाल हम बदलते मौसम के अनुसार ढलने की क्षमताओं को मापने के लिए करते हैं। इन संकेतकों पर सामाजिक सुरक्षा के सकारात्मक प्रभाव के मजबूत सबूत हैं और इसलिए लचीलापन, खासतौर पर इससे पार पाने और कुछ हद तक इस हिसाब से जीने की क्षमताएं बढ़ाने में मदद करने के लिए जरूरी है।”

अपने बेटे के घर पर आराम करते हुए देव प्रसाद। लू लगने से वे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो गए हैं और भविष्य में नौकरी की संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।
अपने बेटे के घर पर आराम करते हुए देवी प्रसाद। लू लगने से वे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो गए हैं और भविष्य में नौकरी की संभावनाओं को लेकर चिंतित हैं। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।

सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनाओं में अंतर के अलावा, बुनियादी ढांचा बेहतर नहीं होने से देवी प्रसाद की स्थिति और खराब हो गई। वह अपने किराए के कमरे से काम करने के लिए लगभग 1.5 किलोमीटर पैदल चलकर तपती धूप में जाते थे। बरौला के भीड़-भाड़ वाले इलाके में उनका क्वार्टर कंक्रीट से बना था। इसकी छत नीची थी और इसमें एक छोटी खिड़की थी जिससे हवा बमुश्किल आती थी। छत पर लगा छोटा पंखा बिजली उपलब्ध होने पर हवा तो देता था, लेकिन यह कमरे को पर्याप्त रूप से ठंडा नहीं कर पाता था जिसकी ईंट और कंक्रीट की दीवारें बाहर से गर्मी सोख लेती थीं।

काम वाली जगह पर कंक्रीट, कांच और प्लाईवुड की छत से बना छोटा-सा केबिन छाया देता था। यहां दीवार पर छोटा पंखा लगा था। प्रसाद ने कहा, “लेकिन उस केबिन के अंदर इतनी गर्मी थी कि मैं बाहर बैठना पसंद करता था।” शरीर में पानी की कमी से बचने के लिए, उन्होंने 10 लीटर की पानी की बोतल खरीदी थी जो गर्म हो जाती थी। वे तब तक उससे पानी पीते रहे जब तक कि उसे बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ी। आस-पास ठंडे पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी।

परेशानी बढ़ाने वाले इन कारकों और बढ़ती उम्र व बीड़ी पीने की आदत के बावजूद देवी प्रसाद हीट-स्ट्रोक से बच गए। जबकि कई लोग किस्मत के इतने धनी नहीं थे। दिल्ली में हीटस्ट्रोक से दो सौ से ज्यादा मौत होने की जानकारी मिली है। बाद में देवी प्रसाद को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल प्रशासन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया यहां आधे जून तक आपातकालीन हीट-स्ट्रोक रोगियों में लगभग पचास फीसदी की मौत हो गई।  सफदरजंग अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “उनकी नब्ज स्थिर रही, उन पर दवा का असर दिखा और धीरे-धीरे वे खुद से सांस लेने लगे।”

बरौला का भीड़भाड़ वाला इलाका जहां देव प्रसाद रहते हैं। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।
बरौला का भीड़भाड़ वाला इलाका जहां देवी प्रसाद रहते हैं। तस्वीर- सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।

लेकिन, हीटस्ट्रोक ने उन्हें बिस्तर पकड़ा दिया है और वे ना तो चल सकते हैं और ना ही खुद से बाथरूम जा सकते हैं। उनकी बोली लड़खड़ाती है और उन्हें ठीक होने में लंबा वक्त लगेगा। इसमें खर्च भी खूब आएगा। पत्नी बिनोदी ने कहा, “उनके पैरों में घाव हो गए हैं, जिनका इलाज करवाना जरूरी है, लेकिन मैं उन्हें कहां ले जाऊं? और हम इसका खर्च किस तरह उठा पाएंगे?” 

विषम परिस्थितियों की पहचान करना

राज्य, जिला और नगर निगम के स्तर पर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की ओर से हीट एक्शन प्लान के विश्लेषण से पता चला कि ज्यादातर योजनाएं कमजोर समूहों की पहचान करने और उन तक पहुंचने में लचर थीं। जिन 37 एक्शन प्लान का मूल्यांकन किया गया, उनमें से सिर्फ दो ने ही विषम परिस्थितियों का खुद से आकलन किया था। जबकि ज्यादातर ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों में बताए गए समूहों को ही कमजोर मान लिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नतीजे दिखाते हैं कि कमजोर समूहों की पहचान ठीक तरह से नहीं हुई, जिसके चलते संसाधन सही लोगों तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसमें यह भी पाया गया कि एक्शन प्लान मनरेगा जैसी मौजूदा सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं और नीतियों के जरिए गर्मी के दुष्प्रभावों को कम करने की तकनीकों को एक साथ लाने में चूक गए। रिपोर्ट कहती है, “जिन एक्शन प्लान की समीक्षा की गई उनमें से किसी ने भी सभी सूचीबद्ध हस्तक्षेपों में नीति एकीकरण को शामिल नहीं किया था। खेती-बाड़ी, पानी, रहने की जगह, बुनियादी ढांचे और शहरी डिजाइन जैसे कई कामों को मौजूदा नीतियों से जोड़कर क्षमता और वित्त का पूरा फायदा उठाया जा सकता है।”

थिंक टैंक iFOREST के हालिया विश्लेषण के अनुसार, इन ऐक्शन प्लान में कानूनी और वित्तीय सपोर्ट का भी अभाव है, जो उन्हें लागू करने में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। iFOREST ने जिन एक्शन प्लान का विश्लेषण किया, उनमें किसी भी शहर ने इन्हें (एक्शन प्लान) शहरी नियोजन में शामिल नहीं किया।

बरौला में देव प्रसाद के किराए के कमरे के बाहर इकट्ठा हुए उनके पड़ोसी। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।
बरौला में देवी प्रसाद के किराए के कमरे के बाहर इकट्ठा हुए उनके पड़ोसी। तस्वीर: सिमरिन सिरुर/मोंगाबे।

मानक संचालन प्रक्रियाओं के बावजूद, आपातकालीन वार्ड में आने वाले हीट स्ट्रोक के मामलों की संख्या देखकर चिकित्सा कर्मचारी हैरान रह गए। सफदरजंग अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि हीट स्ट्रोक के लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है, ताकि लोग बिना देरी किए आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले सकें। साथ ही, काम के बीच आराम के लिए समय निकालना, ताकि गर्मी से जुड़ी मुश्किलें कम हो सके। ये कुछ ऐसे बड़े सबक हैं, जो अस्पतालों को इस दौरान मिले हैं।


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थिंक टैंक सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव में जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन के फेलो और समन्वयक आदित्य वलियाथन पिल्लई ने कहा कि कमजोर समूहों तक असरदार ढंग से पहुंचने के लिए जरूरी है कि भीषण गर्मी के दौरान काम के घंटों में होने वाले नुकसान की भरपाई को सरकार अनिवार्य बनाए। उन्होंने कहा, “हर क्षेत्र में यूनियनों और बड़ी कंपनियों जैसे संस्थागत समूह हैं, जिनके जरिए सरकार जागरूकता बढ़ा सकती है, बीमा प्रणाली तैयार कर सकती है और सामाजिक सुरक्षा के अलग-अलग तरीके तैयार कर सकती है। भौगोलिक क्षेत्र में कमजोर समूहों की पहचान करना हीट एक्शन प्लान के लिए उपयोगी है, लेकिन इन संस्थागत समूहों के साथ जुड़ाव भी होना चाहिए, ताकि हाशिए पर जी रही आबादी की ज़रूरतें पूरी हो सकें।” 

देवी प्रसाद के परिवार का कहना है कि पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद भी वे उन्हें सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी पर वापस नहीं जाने देंगे। संजय ने कहा, “हम उन्हें वापस गांव भेज देंगे। वह वहां खेती कर सकते हैं या फिर दुकान चला सकते हैं। लेकिन, हम नहीं चाहते कि उन्हें फिर से ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़े।”

 

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बैनर तस्वीर: सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले 54 साल के देवी प्रसाद अहिरवार जो हीटस्ट्रोक से बचने में सफल रहे। इलेस्ट्रेशनहितेश सोनार/मोंगाबे।

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