- अभी श्रीलंका भले ही एक द्वीप हो, लेकिन करोड़ों वर्ष पहले यह भारतीय भूभाग से जुड़ा हुआ था। जलवायु में परिवर्तन की वजह से श्रीलंका और भारत के बीच पानी भर आया।
- इस बात की पुष्टि करते हैं भारत और श्रीलंका के एक समान जीव-जंतु। अध्ययनकर्ताओं ने छिपकली के जरिए इस रहस्य से पर्दा उठाया है।
- शोधकर्ताओं ने दोनों जगहों पर कॉमन हाउस गेको (घरेलू छिपकली) और उसके करीबी जीवों के इतिहास का अध्ययन किया। इस अध्ययन में जानने की कोशिश हुई कि भारत के साथ साझा भूवैज्ञानिक इतिहास से द्वीप की जैव विविधता कैसे प्रभावित हुई होगी।
- अध्ययन से पता चला है कि श्रीलंका के शुष्क क्षेत्र में रहने वाले जेकॉस प्रायद्वीपीय भारत में भी पाए गए थे। वैज्ञानिकों ने पाया है कि संभवत: जब भी यह द्वीप भारतीय भूभाग से जुड़ा था, तब ये जंतु द्वीप पर पहुंच गए होंगे।
आपने घर की दीवारों से चिपक कर रेंगते आम घरेलू छिपकली को जरूर देखा होगा। इस छिपकली का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है। दक्षिण एशिया के अधिकांश घरों में हर समय-काल में इस जीव को आश्रय दिया जाता रहा है। मानव जीवन के इतने करीब अपना जीवन गुजारने वाले इस हल्के रंगहीन सरीसृप से कई प्राचीन मिथक और अंधविश्वास जुड़े हुए हैं।
अब वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि इस जीव और इससे मिलती-जुलती प्रजातियों की मदद से एक और प्राचीन कहानी की सत्यतता परखी जा सकेगी। कहानी यह कि क्या भारत और श्रीलंका, दोनों देश कभी भूभाग के जरिए आपस में जुड़े थे? वर्तमान में इन दोनों देशों को एक संकरा समुद्र-खंड अलग करता है।
हालांकि, हिंद महासागर के एक खंड की वजह अलग होने के बावजूद भी भारत और श्रीलंका अपनी अधिकांश प्राकृतिक विरासत साझा करते हैं। विशाल हाथियों से लेकर छोटे कीड़े-मकोड़ों तक, कई जीव जो भारतीय हैं, वे श्रीलंका में भी पाए जाते हैं। लेकिन यहां के जीवों में कई अंतर भी दिखता है। अन्य द्वीप पारिस्थितिक तंत्रों की तरह, श्रीलंका भी कई स्थानिक प्रजातियों का घर है, जो दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं।
अलग होने की क्या है वजह?
नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस), बैंगलोर में एक इवोल्यूशनरी (विकासवादी) जीवविज्ञानी अपर्णा लाजमी ने कहा कि इस प्रश्न को हल करने का एक तरीका यह हो सकता है कि वहां पाए जाने वाले जीव-जंतुओं का अध्ययन किया जाए। यह समझने की कोशिश की जाए कि किसी विशेष क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियां कैसे एकत्रित होती हैं।”
कोई भी पारिस्थितिकी तंत्र अपनी प्रजातियों के समूह को कैसे विकसित करता है, इसके लिए दो सामान्य सिद्धांत हैं। इसमें एक है कि जीव-जन्तु दूसरे क्षेत्रों में अपना विस्तार करते जाते हैं। दूसरा सिद्धांत है कि नई चुनौतियों के मद्देनजर जीव-जन्तु खुद को बदलते रहते हैं।
पौधे और जानवर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए नए क्षेत्र में खुद का विस्तार करते रहते हैं। यह विस्तार इस पर निर्भर करता है कि ये जीव-जन्तु कहां तक खुद को ले जा सकते हैं।
इसको समझने के लिए शेरों का उदाहरण देखा जा सकता है। माना जाता है कि शेरों की उत्पत्ति लगभग दस लाख साल पहले अफ्रीका में हुई थी। शेर धीरे-धीरे यूरोप और एशिया में फैल गए क्योंकि ये महाद्वीप आपस में जमीन से जुड़े हुए थे।
कभी-कभी जीव कुछ अवरोधों के कारण जमीन के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक नहीं जा पाते। जैसे स्थलीय जानवरों के लिए महासागर एक बाधा है। या ये जीव बहुत अलग निवास स्थान या ऐसी जलवायु में नहीं जाते जहां वे वे जीवित नहीं रह सकते। समय के साथ वे अपने वर्तमान आवास के भीतर नए वातावरण या संसाधनों का लाभ उठाने के लिए खुद में परिवर्तन लाते रहते हैं जिसे अनुकूलन कहा जाता है। क्योंकि वे आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए अपने जीन और नए अनुकूलन को एक बड़े परिदृश्य में फैलाते हैं। ये जानवर उसी स्थान तक सीमित हो जाते हैं।
फैलाव या विविधीकरण?
तो, लाजमी और उनके सहयोगियों के लिए सवाल था – इनमें से कौन सा सिद्धांत श्रीलंका पर लागू होता है, खासकर छिपकली के लिए जिसका वैज्ञानिक नाम हेमिडैक्टाइलस जेकॉस है?
यह देखते हुए कि यह एक द्वीप है, यह स्पष्ट लग सकता है कि श्रीलंका में कम से कम जेकॉस विविधीकरण के माध्यम से विकसित हुए होंगे। हिंद महासागर ने उन्हें भारत की ओर या उससे भी आगे अफ्रीका या दक्षिण पूर्व एशिया की ओर फैलने से रोका होगा। हालांकि, श्रीलंका द्वीप को भारत से अलग हुए जितना समय हुआ है उससे अधिक समय यह भारतीय भूभाग से जुड़ा रहा है।
लगभग 17 करोड़ 50 लाख वर्ष पहले, प्रायद्वीपीय भारत मेडागास्कर के साथ सुपरकॉन्टिनेंट गोंडवानालैंड का हिस्सा था। यह भारत के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से का विस्तार था। करीब 9 करोड़ साल पहले भारत ने गोंडवानालैंड से अलग होकर एशिया की तरफ अपना रास्ता बनाया। श्रीलंका इसका हिस्सा था। जब लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पहले यह टुकड़ा तिब्बती पठार से टकराया, मृत टेथिस समुद्र में हिमालय के उगने से भारतीय उपमहाद्वीप का निर्माण हुआ, तब भी श्रीलंका जुड़ा हुआ था।
2.5 करोड़ साल पहले, समुद्र का स्तर बढ़ गया था। इससे दक्षिण भारत का थोड़ा सा हिस्सा जलमग्न हो गया था। इस प्रक्रिया में एक छोटा आकार का द्वीप बन गया था। लेकिन हर कुछ हज़ार वर्षों में, जलवायु फिर से बदल जाएगी, समुद्र पीछे हट जाएगा, और द्वीप एक बार फिर मुख्य भूमि का हिस्सा बन जाएगा।
लाजमी कहती हैं कि श्रीलंका और प्रायद्वीपीय भारत भूमि के संपर्क माध्यम से कभी जुड़े रहे तो कभी फिर पानी की वजह से उनका जुड़ाव खत्म हुआ।
“इस वजह से हेमिडैक्टाइलस जेकॉस जैसे जानवरों को भारत से श्रीलंका या श्रीलंका से भारत स्थानांतरित करने का भरपूर अवसर मिला,” भारतीय विज्ञान संस्थान में लाजमी के डॉक्टरेट सलाहकार और साथी शोधकर्ता प्रवीण कारंत ने बताया। उन्होंने कहा, “इसलिए कुल मिलाकर श्रीलंका में पाए जाने वाले अधिकतर जीव-जन्तु भारत में भी पाए जाते हैं।
लेकिन कारंत बताते हैं कि श्रीलंका का एक स्वतंत्र जैविक इतिहास भी है। वह कहते हैं, “आखिरकार, वर्तमान में यह एक द्वीप है; और यह एक द्वीप की कुछ विशेषताओं को प्रदर्शित करता है जो इसे दिलचस्प बनाता है।”
यह वह जगह है जहां छिपकली पाई जाती हैं। लाजमी ने कहा कि हेमिडैक्टाइलस समूह की जेको प्रजातियां श्रीलंका की जैव विविधता की यात्रा को समझने के लिए एक उपयोगी मॉडल के रूप में कार्य करती हैं। क्योंकि कभी भारत और श्रीलंका में आम थीं। “जबकि इन दोनों क्षेत्रों में स्थानीय प्रजातियां पाई जाती हैं जो इन दोनों क्षेत्रों में व्यापक रूप से मौजूद हैं,” उन्होंने कहा।
उदाहरण के लिए, श्रीलंका में पाई जाने वाली हेमिडैक्टाइलस जेकोस की सात प्रजातियों में से चार घरेलू छिपकली सहित प्रायद्वीपीय भारत में भी पाई जाती हैं। तीन, चित्तीदार विशाल गेकोस हेमिडैक्टाइलस हुने, कैंडी लीफ-नोज्ड गेको हेमिडैक्टाइलस डिप्रेसस और कैंडी हाउस गेको हेमिडैक्टाइलस पिएरेसी श्रीलंकाई हाइलैंड्स के गीले वर्षावनों के लिए स्थानिक हैं। कैंडी हाउस गेको हेमिडैक्टाइलस पिएरेसी को हाल ही में एक स्थानिक प्रजाति के रूप में खोजा गया था और शोधकर्ताओं द्वारा इसका अध्ययन नहीं किया गया था।
कुछ प्रजातियां इतनी व्यापक कैसे हैं जबकि अन्य प्रजातियां एक द्वीप तक ही सीमित हैं?
इन जेको प्रजातियों के जीनों का अध्ययन करके, शोधकर्ताओं ने एक प्रोफ़ाइल बनाई कि प्रत्येक प्रजाति कब विकसित हुई। ये जीव भारत में उत्पन्न हुए या श्रीलंका में।
उन्होंने इस जानकारी की तुलना इस क्षेत्र में उस समय की भूवैज्ञानिक घटनाओं से की, जिसमें यह भी शामिल है कि दोनों देश कितनी बार जुड़े थे और इन प्रजातियों के विकास के दौरान जलवायु कैसे बदली।
सिकुड़ते वर्षावन की वजह से अलग हुए छिपकली
श्रीलंका में पाए जाने वाले सभी सात प्रजातियों की उत्पत्ति भारत में हुई और फिर वे द्वीप की ओर चली गईं। वहां सबसे पहले पहुंचने वालों में वर्षावन की जो प्रजातियां चित्तीदार विशाल छिपकली और कैंडी लीफ-नोज्ड छिपकली थे।
भारत और श्रीलंका के लिए आम चार छिपकली प्रजातियां अलग-अलग समय के दौरान द्वीप पर पहुंचीं। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि कुछ प्रजातियां, जैसे घरेलू छिपकली ने गलती से श्रीलंका में जाने वाले मनुष्यों के साथ यात्रा की होगी। महत्वपूर्ण रूप से आज भी, सभी चार प्रजातियां दोनों क्षेत्रों में समान आवासों में पाई जाती हैं। शुष्क क्षेत्र के झाड़ी, चट्टान और घास के मैदानों में।
पिछले अध्ययनों में पाया गया है कि श्रीलंका में आर्द्र क्षेत्र में, जीव अलगाव के कारण विकसित हुए प्रतीत होते हैं। लाजमी ने कहा, “ श्रीलंका का गीला क्षेत्र हेमिडैक्टाइलस स्थानिक है, जबकि शुष्क क्षेत्र की प्रजातियां दोनों मुल्कों में देखने को मिलती हैं।”
लाजमी ने कहा, “हमें लगता है कि सूखने से पहले, भारत और श्रीलंका के वर्षावन बेहतर तरीके से जुड़े हुए थे, जिससे आर्द्र आवास में रहने वाली प्रजातियों का फैलाव हुआ।” सिडनी के ऑस्ट्रेलियाई संग्रहालय के टैक्सोनोमिस्ट रोहन पेथियागोडा ने इस अध्यन को भारत और श्रीलंका के बीच जैविक संबंधों को बताने वाला बेहतरीन काम बताया। लाजमी ने एक जीव के विकासवादी इतिहास का उपयोग कर किसी क्षेत्र के बड़े इतिहास की एक झलक दिखाई है। “हम इन परिवर्तनों के विवरण और सीमा के बारे में बहुत कम जानते हैं, लेकिन उम्मीद है कि इस तरीके से दो अलग-अलग क्षेत्र के जलवायु और वनस्पति अध्ययनों के साथ-साथ विभिन्न जीवों का अध्ययन करने से अतीत की अधिक बारीक तस्वीर बनाने में मदद मिलेगी,” उन्होंने कहा।
बैनर तस्वीरः अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता अपर्णा लाजमी पश्चिमी घाट के जंगलों में छिपकली की तलाश कर रही हैं। तस्वीर साभार- अपर्णा लाजमी।