- लोको पायलटों यानी ट्रेन चालकों का कहना है कि असम में हाथियों के गलियारों में बेहतर संचार प्रणाली नहीं है। हाथियों की ट्रेन से टक्कर का मुख्य कारण भी यही है।
- पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) आवाजाही का पता लगाने वाली प्रणाली (आईडीएस) की पायलट परियोजनाएं चला रहा है। इससे जानवरों की गतिविधियों का पता चल सकता है। ये सिस्टम संबंधित रेलवे अधिकारियों को अलार्म भेज सकता है और लोको पायलट को सावधान कर सकता है।
- असम में वन विभाग का मानना है कि प्रभावी निर्णय के लिए गार्ड और चालकों के सुझाव अहम हैं। हालांकि, विभाग का कहना है कि धन की कमी और अपर्याप्त वन कर्मचारियों के चलते सफलता कम मिल रही है।
“हत्यारा कहलाना किसी को पसंद नहीं है। किसी भी प्राणी की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराना विचलित करने वाला हो सकता है। हाथी की तो बात ही छोड़िए। कुत्ते, बकरी या गाय की मौत भी उतनी ही दुखदायी होती है,” पूर्वोत्तर भारत में काम करने वाले एक लोको पायलट ने अपनी ट्रेन से एक हाथी से टकराने के बाद अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा। उस हाथी की बाद में मौत हो गई थी।
एक और लोको पायलट कहते है, “कभी-कभी इंसान भी मर जाते हैं। आप किसी भी लोको पायलट की पीड़ा की कल्पना कीजिए। जिसकी ट्रेन के सामने कोई व्यक्ति या हाथी आ जाता है और वह टकराने वाला है। लेकिन वह बेबस है। क्या कभी किसी ने सोचा है कि ऐसे मामलों में हम किस मानसिक आघात से गुजरते हैं? आखिर हमारी ट्रेन से एक जीव की मौत हुई है। जान-बूझकर या अनजाने में।”
हाथी और ट्रेन की टक्कर पूरे देश में आम घटना है। खासकर असम में। हालांकि रेलवे और वन विभाग ने टकराव कम करने के लिए व्यापक उपाय किए हैं। जिसमें एक उपकरण भी लगाना शामिल है। यह उपकरण हाथियों के गलियारों में मधुमक्खियों की भनभनाहट को बढ़ाता है। लोको पायलट इस तरह के हादसों को आंखों के सामने होते हुए देखते हैं। वो सुरक्षा उपायों को लागू करने में लापरवाही का आरोप लगाते हैं।
लोको पायलट के अनुभव
“बात 30 दिसंबर, 2021 की है। मैं गुवाहाटी-सिलघाट डेमू (डीजल-इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) यात्री ट्रेन चला रहा था। हादसा अमोनी-सिलघाट सेक्शन में हुआ। उस खंड में हाथियों की आवाजाही का पहले से कोई संकेत नहीं था। न ही यह एक सीमांकित हाथी गलियारा है। लोको पायलट बिबेकानंद बिस्वास याद करते हुए कहते हैं कि मेरे इंजन ने मोड़ लिया ही था कि मैंने रेल पटरियों पर अपने सामने दो हाथियों को देखा।
उन्होंने बताया, “ट्रेन 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही थी। मेरे सहायक और मैंने आपातकालीन ब्रेक लगाया। एक हाथी ट्रैक पार करने में कामयाब रहा। लेकिन दूसरे के पीठ पर इंजन की हल्की टक्कर हुई और वह ट्रैक पर गिर गया। ट्रेन 50 मीटर और आगे बढ़ने के बाद रुक गई। हम गार्ड के साथ हाथी को देखने के लिए नीचे उतरे। वह जीवित था। हमने सोचा कि यह बच जाएगा। पास में घूम रहा 15-20 हाथियों का झुंड हमारी ओर आया और हम हमले के डर से भाग गए।”
हादसे की जानकारी कंट्रोल रूम को दी गई, ताकि अन्य ट्रेनों को सतर्क किया जा सके और संबंधित अधिकारियों को सूचित किया जा सके।
उन्होंने घटना को याद करते हुए कहा, “लेकिन अगली सुबह हाथी मर गया। वन विभाग ने हम पर आरोप तय किए। लेकिन कुछ साबित नहीं हो सका। हाथियों की गतिविधियों के बारे में उस क्षेत्र में उस दिन या उससे पहले कोई भी चेतावनी या जानकारी नहीं दी गई थी। मैं उसके लिए प्रार्थना करने मंदिर गया था। मुझे काम से एक हफ्ते की छुट्टी लेनी पड़ी। ऐसी मानसिक पीड़ा में गाड़ी चलाना असंभव था। लेकिन मैं सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था।”
दो दिन बाद, एक जनवरी, 2022 की रात को, लोको पायलट नंद किशोर मंडल को असम में पुरानीगुडम और समगुरी के बीच इसी सेक्शन में इसी तरह के हादसे का सामना करना पड़ा। वो जिस मालगाड़ी को चला रहे थे, वह 72-73 किमी प्रति घंटे की गति से चल रही थी। यह उस सेक्शन में 75 किमी प्रति घंटे की तय रफ्तार से कम थी।
मंडल ने कहा, “रेल पटरियों के दोनों तरफ केले और अन्य पौधे हैं। हाथी भोजन के लिए आते हैं। हाथियों के रंग के कारण उन्हें रात में पहचानना मुश्किल है। इसके अलावा, हमारे डेमू की हेडलाइट की दृश्यता सीमा मुश्किल से 100-115 मीटर है। मैंने लगभग 35 मीटर की दूरी पर एक हाथी देखा। हमने इमरजेंसी ब्रेक लगाए लेकिन ट्रेन के रुकने से पहले ही हम टकरा गए। वह (हाथी) मर गया।”
उन्होंने पूछा, “मैंने लोको पायलट के अपने 16 सालों में कई बार हाथियों का सामना किया है। मैंने उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन तक कई हादसों को रोका है। दुर्घटना के बाद, रेलवे अधिकारियों के बजाय संबंधित लोको पायलट के खिलाफ आरोप तय किए गए। मेरे साथ हत्यारे जैसा व्यवहार किया गया। तब से, मुझे समय-समय पर अदालत द्वारा बुलाया गया है। लेकिन क्या हमें अपना फर्ज निभाने के लिए परेशान नहीं किया जा रहा है?”
नाराज मंडल पूछते हैं, “एक बार पुलिस मेरे लिए आई थी। चूंकि मैं ड्यूटी पर था, उन्होंने मेरे सहायक लोको पायलट को उनकी पत्नी और बच्चों के सामने उनके घर से उठा लिया। हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है?”
अन्य लोको पायलट भी मानते हैं कि उन्हें हाथी के टकराने के मामलों में अपराधी की तरह व्यवहार किया जाता है। लेकिन उनकी कभी सराहना नहीं की जाती है, जबकि उन्होंने कई बार हादसों को रोका है।
लोको पायलट शैलेंद्र कुमार पूछते हैं, “अकेले मैंने तीन मौकों पर हाथियों को बचाया है। एक बार मैंने एक हिरण को भी बचाया है। कई लोको पायलट के पास सफलता की ऐसी कहानियां हैं। लेकिन हमारी तारीफ कभी नहीं होती है। अधिकारियों की तरफ से प्रशंसा का एक फोन भी नहीं आता। जब कुछ दुर्भाग्यपूर्ण होता है तो ऐसा उत्पीड़न क्यों?”
टकराव रोकने के लिए बेहतर समन्वय जरूरी
हेडलाइट की कम दृश्यता रेंज, विशेष रूप से डेमू और इलेक्ट्रिक इंजन की बड़ी चुनौती है। मोंगाबे-इंडिया से बात करने वाले लोको पायलट का कहना है कि रेंज, आमतौर पर सिर्फ 100 मीटर से कुछ ज्यादा होती है। ट्रेन की स्टॉपिंग, दूरी की तुलना में कम होती है, जो ट्रेन की गति के आधार पर लगभग 600-700 मीटर होती है।
इसलिए लोको पायलट दृश्यता रेंज बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि रेलवे अधिकारियों की दलील है कि रेंज बढ़ाने के बावजूद, इंसानी आंखें शायद ही 100 मीटर से ज्यादा स्पष्ट रूप से देख सकती हैं। यही नहीं पावर बढ़ाने और हेडलाइट की रेंज रात में जंगली जानवरों को प्रभावित करेगी।
दूसरी चुनौती जिस पर लोको पायलट रोशनी डालते हैं। वह गति पर पाबंदी और सावधानी आदेशों के संबंध में असम वन विभाग और पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) के बीच फैसलों में समन्वय की कमी और खींचतान है। गति पर पाबंदी, चाहे स्थायी हो या अस्थायी, वास्तव में हाथी गलियारों की पूरी लंबाई में एक जैसे नहीं होते हैं।
किसी दिए गए दिन के लिए सावधानी आदेश में नीचे दी गई तस्वीर में असंगतता देखी जा सकती है।
मोंगाबे-इंडिया से बात करने वाले लोको पायलट ने बताया, “जैसा कि स्पष्ट है, पाबंदी वाली गति सीमा नियमित अंतराल पर कुछ सौ मीटर में आवंटित की जाती है। बीच की दूरियों में, हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम ट्रेन को बहुत अधिक गति से, यहां तक कि 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ाएं। हमें नियमित अंतराल पर गति को नियंत्रित करने की जरूरत होती है, मतलब की हर कुछ सौ मीटर पर। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम तय समय से पीछे चल रहे होते हैं। बढ़ी हुई गति के साथ, हाथी से टकराने की संभावना ज्यादा होती है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हाथी उन खास छूट वाले सेक्शन का उपयोग नहीं करेंगे क्योंकि वे हाथी गलियारों से सटे हुए हैं।“
सावधानी आदेश में अक्सर कई सेक्शन में एक अस्पष्ट ‘सावधानी‘ टिप्पणी से ज्यादा कुछ नहीं लिखा होता है। खास गति प्रतिबंधों का संकेत देने में विफल रहता है। नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य लोको पायलट ने कहा, “ऐसे मामलों में, भले ही हम 10 किमी प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ रहे हों और ट्रेन किसी हाथी से टकरा जाए, तो शर्तिया तौर पर लोको पायलट को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। कौन जानता है कि ऐसे मामलों में कितनी धीमी गति उचित है?”
उन्होंने कहा कि ऊपर की ओर ढलान वाली पटरियों पर, खासकर पूरी तरह से लदी हुई मालगाड़ियों में अचानक ब्रेक लगाने से बड़े जोखिम वाले कारक सामने आते हैं। इस प्रकार, चढ़ाई वाले हिस्सों पर हाथियों की मौजूदगी की पहले से चेतावनी का बहुत ज्यादा महत्व है, जिस पर वन विभाग विफल रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि वन रक्षकों द्वारा अपर्याप्त गश्त और हाथियों की आवाजाही पर शुरुआती चेतावनी की कमी है। उन्होंने आग्रह किया रेलवे नियमित रूप से पटरियों के किनारे पेड़ों को साफ करे।
हालांकि ज्यादातर लोको पायलट ने पटरियों के साथ-साथ बिजली की बाड़ लगाने के विचार का विरोध किया। उनका मानना है कि इंसानों को जानवरों की बेरोकटोक आवाजाही को प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि पहले ही बहुत बाधा उत्पन्न हो चुकी है। इसके बजाय, उन्होंने हाथी गलियारों के बारे में बताने वाले पुराने होर्डिंग की जगह तुरंत नए होर्डिंग लगाने की मांग की, क्योंकि अधिकांश के फीके रंगों के चलते रात में देखना मुश्किल होता है।
पायलट स्तर पर एनएफआर की पहचान प्रणाली
पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में रेलवे नेटवर्क के लिए जिम्मेदार पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने कहा कि वन विभाग केवल व्हाट्सएप ग्रुप या फोन कॉल पर चेतावनी संदेश डालकर जिम्मेदारी से भाग रहा है। यह पक्का किए बिना कि संबंधित लोको पायलट तक चेतावनी पहुंच गई है। दूसरी ओर, रेलवे कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल के रूप में फील्ड अधिकारियों और ड्यूटी पर लोको पायलट द्वारा सेल फोन के उपयोग की अनुमति नहीं देता है। इस तरह के विपरीत नियम चेतावनियों के कुशल संचार में एक बड़ी बाधा साबित हुए हैं। इससे, ज्यादातर मामलों में ट्रेन के चलने और रेडियो रेंज से दूर होने पर स्टेशन मास्टर से चेतावनी लोको पायलट तक नहीं पहुंच पाती है। विशेष रूप से, एक सामान्य संचार चैनल की गैर-मौजूदगी इस संबंध में एक प्रमुख बाधा साबित हुई है।
एनएफआर ने यह भी कहा कि वन विभाग ने हाथी गलियारों की लंबाई का कोई निश्चित सीमांकन नहीं किया है। एनएफआर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (सीपीआरओ) सब्यसाची डे कहते हैं, “गलियारे लगभग 20-30 किलोमीटर के विस्तार में नियमित अंतराल पर मुश्किल से 100-150 मीटर हैं। ऐसे में गति को बनाए रखना मुश्किल है। और हमें एक मिनट की भी देरी से होने वाले आर्थिक नुकसान पर विचार करना होगा। वर्तमान में हम हाथी गलियारों के चलते प्रतिदिन 232.54 मिनट खो रहे हैं; नुकसान भी बहुत अधिक है और यह करदाताओं का पैसा है। किसी ट्रेन की कछुआ चाल पूरे रेल नेटवर्क में भीड़ कर देती है।
एनएफआर के अनुसार, नुकसान के बावजूद असम के अधिकांश क्षेत्रों में रेलवे ने लोको पायलट द्वारा हाथियों को देखे जाने की रिपोर्ट के आधार पर न्यूनतम गति प्रतिबंध लगाए हैं। हालांकि इन इलाकों को हाथी गलियारों के रूप में सीमांकित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, “हाथी को स्पॉट करने की जिम्मेदारी वन विभाग पर है। लेकिन उनकी तरफ से पहल नहीं होने के बावजूद हम हाथियों की सुरक्षा के उपाय कर रहे हैं।”
हाथियों को बचाने और उनकी आवाजाही में सुधार करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल तंत्र के अपने सबसे नए परीक्षण में, एनएफआर असम में लुमडिंग से हवाईपुर सेक्शन और पश्चिम बंगाल में चालसा और हासीमारा के बीच इंट्रयूजन डिटेक्शन सिस्टम (आईडीएस) की पायलट परियोजना चला रहा है। आईडीएस में, पटरियों की पूरी लंबाई के साथ चल रही रेलवे की मौजूदा ऑप्टिकल फाइबर केबल को हाथियों की आवाजाही की बहुत ज्यादा संभावना वाले क्षेत्रों में प्रत्येक तरफ लूप में फिर से व्यवस्थित किया जाता है। यह सिस्टम, संबंधित रेलवे अधिकारियों को ऑडियो-विजुअल अलार्म भेजकर 30-40 मीटर आगे की गतिविधियों का पता लगा सकता है। इस प्रकार लोको पायलट को समय पर सावधान किया जा सकता है।
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पटरियों की निगरानी के लिए सभी रेल पटरियों में ऑप्टिकल केबल लगे होते हैं। आईडीएस के तहत, हाथियों के आवागमन के इतिहास वाले क्षेत्रों में, ट्रैक से जुड़े केबल के अलावा, लगभग 500 मीटर के बड़े लूप में ऑप्टिकल केबल बिछाई जाएंगी। केबल कंपन को पकड़ता है और संबंधित अधिकारियों को संकेत भेजता है। हाथी के हिलने-डुलने के चलते पकड़े गए किसी भी कंपन को ट्रैक पर पहुंचने से पहले ही संकेत दे दिया जाएगा। इस तरह लोको पायलट को सावधान किया जा सकता है।
“आईडीएस हाथियों के झुंड के साथ-साथ किसी भी अन्य आवाजाही में हाथियों की संख्या की पहचान भी कर सकता है। सब्यसाची डे ने कहा, पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद एनएफआर में सभी हाथी गलियारों में इस सिस्टम को तैनात करने के प्रस्तावों पर काम किया जा रहा है।
यह पूछे जाने पर कि क्या रेलवे ट्रैक पार करने वाली किसी अन्य प्रजाति के जानवरों की भी पहचान की जा सकती है, सीपीआरओ का जवाब था, “हां। सभी प्रजातियों में एक अलग कंपन होता है। हालांकि कभी-कभी हिरण और कुत्तों को छोड़कर अन्य प्रजातियों के साथ टकराव कम हैं। सिस्टम सभी प्रजाति के जानवरों पर काम करेगा। लेकिन हाथियों से टकराना सबसे बड़ी चिंता है और मुख्य फोकस उन्हीं पर है।”
डे ने पश्चिम बंगाल मॉडल की सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्य ने हाथियों के साथ टक्कर रोकने और हादसों को लगभग 70% तक कम करने का अभूतपूर्व काम किया है।
‘ज्यादा फंड और वन कर्मियों की जरूरत‘
विशेष प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) अनिंद्य स्वारगोवरी ने कहा, “असम वन विभाग में हम हाथियों के संरक्षक हैं। और हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम उन्हें बचाएं और जरूरत के हिसाब से एनएफआर के साथ समन्वय बनाएं। प्रभावी फैसलों के लिए गार्ड और ट्रेन चालकों के सुझाव अहम हैं।
उन्होंने कहा कि जहां मौजूदा तकनीक को प्रभावी तौर पर काम में लाकर टक्करों में काफी कमी आ सकती है, वहीं अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। “हमें हाथियों के आवाजाही वाले क्षेत्रों में नियमित दूरी पर वन कैंप की आवश्यकता है। इन्हें हाई-पावर लाइट, रेडियो सेट से लैस करने की जरूरत है और इन्हें नजदीकी रेलवे स्टेशनों से जोड़ा जाना चाहिए। प्रभावी संचार के लिए रेलवे को इन शिविरों में अधिकारियों को तैनात करने के लिए कहा जा सकता है। फिलहाल, हमारे पास कोई संवाद का कोई उचित और स्थायी माध्यम नहीं है।”
प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने कहा कि असम में हाथियों के झुंड की निगरानी का कोई किफायती तरीका नहीं अपनाया गया है। “हाथियों के झुंड बहुत बड़े हैं। इनमें सैकड़ों हाथी शामिल होते हैं। लेकिन वे चरने के लिए 15-30 के छोटे समूहों में अलग हो जाते हैं, पास में रहते हैं। अगर कम से कम एक या दो हाथियों पर रेडियो कॉलर लगाए जाते हैं, तो झुंड पर आसानी से नजर रखी जा सकती है। लेकिन किसी भी डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर ने झुंड की निगरानी नहीं की है। यही नहीं मेरे सुझावों के बावजूद किसी ने इसके लिए प्रस्ताव भी नहीं भेजा है।”
स्वारगोवरी ने हाथियों को बचाने में वन विभाग की कमी के लिए कुछ अधिकारियों के लापरवाह रवैये के साथ-साथ धन की कमी, वन कर्मचारियों की कम संख्या और जमीनी हकीकत को लेकर शीर्ष अधिकारियों की बेरुखी की तरफ इशारा किया।
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हालांकि इन सबके बीच आंकड़े एक सकारात्मक तस्वीर भी पेश करते हैं। एनएफआर द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चलता है कि रेल टक्करों से सालाना बचाए जाने वाले हाथियों की संख्या, मरने वालों की तुलना में कहीं अधिक है। जनवरी 2017 से 16 नवंबर 2022 के बीच 39 हाथियों की मौत दर्ज की गई। जबकि 1,314 हाथियों को बचाया गया। वहीं 30/50 किमी प्रति घंटे के लगभग 65 स्थायी गति प्रतिबंध लगाए गए। एनएफआर के कुल रेलवे नेटवर्क में ये प्रतिबंध 170 किमी के इलाके में लगाए गए।
कुल मिलाकर, डे और स्वारगोवरी दोनों इस बात से सहमत हैं कि हाथियों की मौत के लिए सिर्फ दो विभाग पूरी तरह जवाबदेह नहीं हो सकते हैं। बल्कि समग्र सामाजिक विकास की प्रक्रिया में उचित दिशा-निर्देशों की कमी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। “दोनों के दायरे से बाहर की वजहों ने हाथियों को टक्कर के प्रति संवेदनशील बना दिया है। हालांकि, मौजूदा उपायों में सुधार और विभाग के साथ-साथ स्थानीय लोगों के साथ समन्वय जानवरों की सुरक्षा में प्रभावी होगा।”
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बैनर तस्वीर: लोको पायलट महत्वपूर्ण हाथी गलियारों के आसपास सुरक्षा उपायों को लागू करने में लापरवाही का आरोप लगाते हैं। तस्वीर: पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे।