- भारत के कुछेक राज्यों में एविएन इंफ्लूएंजा या बर्ड फ्लू के मामले सामने आते रहे हैं। इससे न केवल लोगों को स्वास्थ्य संबंधी चिंता बढ़ती है बल्कि नीति-निर्माताओं के माथे पर भी बल पड़ता है।
- यह वायरस ऑर्थोमेक्सोविरिडे परिवार का हिस्सा है जिसकी वजह से फ्लू फैलता है। वायरस को ए, बी, सी और डी जैसे चार प्रकार में बांटा गया है।
- वैसे तो यह वायरस पुराना है, लेकिन जब इसका कोई नया स्ट्रेन आता है तो महामारी की आशंका बढ़ जाती है। लोगों में वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता न होने की वजह नए स्ट्रेन का प्रभाव अधिक होता है। क्योंकि यह नया स्ट्रेन तेजी से फैलता है और अधिक घातक होता है।
भारत में बीते कुछ सप्ताह से एविएन इंफ्लूएंजा (बर्ड फ्लू) के मामले सामने आ रहे हैं। इस वजह से राज्य सरकारों को हजारों-हजार मुर्गे-मुर्गियों और बत्तख इत्यादि को मारने का फैसला लेना पड़ा।
सबसे पहले केरल, गुजरात, हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों से मृत पक्षियों की तस्वीरें सामने आईं। इन तस्वीरों के सामने आने के बाद न केवल सामान्य लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ी बल्कि सरकारों के माथे पर भी बल पड़ गए। सबको यह डर सता रहा था कि यह बर्ड फ्लू कहीं पक्षियों से होते हुए लोगों में न फैल जाए।
लोगों की चिंता के मद्देनजर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लोगों में जागरुकता फैलाने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। वायरस जनित बीमारियों की सही पहचान और उसके महामारी में बदलने की स्थिति को भांपने की क्षमता का विकास जरूरी होता है। आइए इस वायरस के पीछे के विज्ञान को समझते हैं।
क्या है इंफ्लूएंजा वायरस?
इंफ्लूएंजा वायरस के अंतर्गत ऑर्थोमेक्सोविरिडे परिवार के कई वायरस आते हैं। इन्हीं की वजह से फ्लू जैसी बीमारियां फैलती हैं। इस वायरस का शिकार होने पर सांस लेने में तकलीफ होती है। आंख, नाक और गले में संक्रमण की शिकायत भी सामने आती है। इंफ्लूएंजा को चार प्रकार में बांटा गया है- ए, बी, सी और डी। इनमें ए वायरस मनुष्यों पर सबसे घातक असर दिखाता है। ऐसे वायरस में यह क्षमता होती है कि ये जानवरों से मनुष्यों के भीतर प्रवेश कर जाएं। इंफ्लूएंजा बी मनुष्य से मनुष्य के भीतर ही संक्रमण फैला सकता है। सी के लिए कहा जाता है कि इससे काफी सामान्य संक्रमण ही होता है। डी वायरस सिर्फ मवेशियों में ही पाया जाता है। भारत में अक्टूबर से मार्च के बीच लोगों में सर्दी जुकाम के लिए इंफ्लूएंजा ए और बी जिम्मेदार होता है।
इंफ्लूएंजा ए वायरस भी कई तरह का होता है। इसके विभिन्न प्रकार का प्रारूप वायरस के बाहरी आवरण और उसके भीतर मौजूद प्रोटीन के प्रकार पर निर्भर करता है, जैसे हेमाग्लगुटिनिन (एच) और न्यूरामिनिडेस (एन)। इसके अलावा, एच वायरस के 18 प्रकार होते हैं और एन के भी 11 अलग-अलग प्रकार होते हैं। इसे एच1 से एच18 और एन1 से एन11 के नाम से जाना जाता है। इन सभी प्रकारों के क्रम-परिवर्तन और संयोजन से 198 तरह की बीमारियां पैदा होती है। हालांकि, अब तक महज 131 तरह की बीमारियों का ही पता चल पाया है।
वायरस महामारी का रूप कैसे लेता है?
किसी भी वायरस से जुड़ा संक्रमण विकराल रूप तब लेता है जब उसका कोई नया स्ट्रेन सामने आता है। इंसानों में नए वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती है इसलिए इस नए स्ट्रेन का असर अधिक घातक और तेजी से फैलने वाला होता है। वायरस में म्यूटेशन एंटेजेनिक शिफ्ट और जेनेटिक बदलावों की वजह से होता है। इसे आसान भाषा में समझें तो वायरस की संरचना में अगर कोई बदलाव होता है तो इंसान के ऊपर उसका घातक असर हो सकता है। इंसानी शरीर में किसी वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण होता है, लेकिन वायरस अपनी संरचना बदलकर और अधिक घातक होता जाता है। वायरस किसी शरीर में प्रवेश कर उस शरीर के भीतर मौजूद संरचना पर हमला करता है।
इस प्रक्रिया के दौरान कई बार वायरस की प्रकृति बदल जाती है जिसके फलस्वरूप म्यूटेशन यानी वायरस में बदलाव होता है। इसे वायरस के नए स्ट्रेन के नाम से जाना जाता है। इस नए वायरस से लड़ने के लिए शरीर तैयार नहीं होता और इंसानों के लिए यह घातक हो जाता है।
वायरस ऐसे में तेजी से फैलने लगता है और अधिक से अधिक लोगों को अपना शिकार बनाता है। अधिक संक्रमण फैलने की स्थिति को महामारी की संज्ञा दी जाती है। ऐसी स्थिति में वायरस फैलते हुए एक देश से दूसरे देश के लोगों को संक्रमित करता जाता है।
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क्या एवियन इंफ्लूएंजा से भी इंसानों को खतरा है?
इंसानों में एविएन इन्फ्लूएंजा के प्रवेश करने की आशंका कम है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होगा यह कहना मुश्किल है। यह वायरस सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। इसके अलावा किसी वस्तु के जरिए भी यह शरीर में प्रवेश कर सकता है, जैसे वायरस से संक्रमित बर्तन। एक बार वायरस से संक्रमण होने पर शुरुआत में तेज बुखार आ सकता है।
बुखार के अलावा बीमारी गंभीर होने पर उल्टी, दस्त, पेट दर्द, निमोनिया आदि लक्षण भी दिख सकते हैं। ऐसा संक्रमण के चार से पांच दिन में हो सकता है। वर्ष 2015 के एक शोध के मुताबिक बच्चे और 65 वर्ष से अधिक उम्र वर्ग के लोग और किडनी, डायबिटीज, अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हैं, उनमें यह संक्रमण घातक साबित हो सकता है।
हाल ही में जो संक्रमण हुआ है उसके पीछे एच5एन8 वायरस रहा। इसका असर प्रवासी पक्षियों में दिखा था। इसकी वजह से हजारो बतख मरे हुए मिले। ये वायरस पॉल्ट्री यानी खाने वाली मुर्गियों और दूसरे जीवों को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेता है।
अब तक तकरीबन 40 हजार पक्षियों को केरल में मार दिया दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के मुताबिक पॉल्ट्री का सेवन करने के लिए उसे उच्च तापमान पर पकाना चाहिए ताकि वायरस नष्ट हो सके।
बैनर तस्वीरः बर्ड फ्लू का असर बतखों पर भी देखा गया है। भारत के कई राज्यों में हजारों मुर्गी और बतखों को मारना पड़ा। तस्वीर– लॉरी ग्राहम / ऑस्ट्रेलियन एड