[वीडियो] सूखाग्रस्त इलाके में लगा 13000 एकड़ का सोलर पार्क, कितनी बदली किसानों की जिंदगी?

पावागढ़ का सोलर पार्क देश का सबसे बड़ा सौर पार्क है। इस प्रोजेक्ट के तहत 28 साल के लिए जमीन पट्टे पर ली गई थी। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबेपावागढ़ का सोलर पार्क देश का दूसरा सबसे बड़ा सौर पार्क है। इस प्रोजेक्ट के तहत 28 साल के लिए जमीन पट्टे पर ली गई थी। तस्वीर- अभिषेक एन चिन्नप्पा/मोंगाबे

चराग तले अंधेराः सोलर पार्क के पास बार-बार कटती बिजली

जहां हजारों एकड़ में सौर पैनल लगे हैं उसी इलाके में बिजली की समस्या हो रही है। ग्रामीण चक्करैया एक किराना बेचने के लिए एक दुकान चलाते हैं। जमीन से होने वाली आय से उन्होंने दुकान शुरू किया था। दुकान में रंग-बिरंगी चीजें रखी हैं, पर बिजली जाने से उनकी चमक खो गई है। बिजली न होने से रेफ्रिजरेटर में रखा दूध खराब हो गया, सो वह ब्लैक कॉफी पीने की पेशकश करते हुए कहते हैं, “हमने शुरुआत में गांव के लिए सौर ऊर्जा न मांगकर गलती की। वे हमारी जमीन पर बिजली का उत्पादन करते हैं और इसे कहीं और भेजते हैं।”

ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें हर दूसरे दिन बिजली कटौती होती है, कभी-कभी 8 से 10 घंटे बाद बिजली आती है।

जिस गांव में बिजली पैदा हो रहा हो वहां के लोग बिजली की दिक्कत से जूझ रहे हों, यह बात एनर्जी पॉवर्टी यानी ऊर्जा गरीबी का एक उदाहरण है। इस तरह का विरोधाभास देश में तेजी से ऊभर रहा है। विभिन्न ऊर्जा प्रणालियों के सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभाव पर काम करने वाली शोधकर्ता प्रिया पिल्लई ने कहा कि सौर और जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा प्रणालियों के संचालन के बीच उल्लेखनीय समानताएं हैं।

“सिंगरौली (मध्य प्रदेश में) में भारत की कोयला आधारित ऊर्जा का 10 प्रतिशत उत्पादन होता है। यहां के गांवों में बिजली की पहुंच नहीं है। यदि बिजली का उत्पादन करने वाले गांवों में बिजली वितरित की जाती है, तो ग्रामीण इन प्रणालियों को खुले मन से स्वीकारते,” पिल्लई ने कहा।

उन्होंने जोर देकर कहा कि गांवों में बिजली का उत्पादन जो शहरों या ग्रिड में जाता है, यह एक असमान वितरण है। ऊर्जा न्याय की दृष्टि से यह एक बड़ी समस्या है जिसपर स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में ध्यान देने की जरूरत है।

हालांकि, अमरनाथ ने कहा कि पूरे राज्य को पावागढ़ में उत्पन्न सौर ऊर्जा से लाभ हुआ है, जिसमें इसके निवासी भी शामिल हैं, यह अप्रत्यक्ष रूप से ग्रिड के माध्यम से हुआ है। “अगर उन्हें केवल सौर ऊर्जा दी जाती, तो वे शाम को और ऑफ-सीजन के दौरान क्या करते जब बिजली उत्पादन कम होता?” उन्होंने पूछा।

पावागड़ा के थिरुमणि गांव में मशाल की रोशनी में सब्जी खरीदती महिला। सोलर पार्क को जमीन पट्टे पर देने वाले गांवों को नियमित बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे
पावागड़ा के थिरुमणि गांव में मशाल की रोशनी में सब्जी खरीदती महिला। सोलर पार्क को जमीन पट्टे पर देने वाले गांवों को नियमित बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे

यहां के निवासियों ने कहा कि सोलर पार्क की स्थापना से पहले किसानों से बेहतर जल निकासी व्यवस्था, बेहतर स्कूलों और अस्पतालों के वादे किए गए थे, जिनमें से किसी को पूरा नहीं किया गया। समझौते में भी इनका उल्लेख नहीं किया गया। यहां मूलभूत जरूरतों के लिए आधारभूत संरचना की कमी है। जहां सोलर पार्क के साथ सड़कें दोनों ओर स्ट्रीट लाइट के साथ अच्छी तरह से बिछाई गई हैं, वहीं गांवों से गुजरने वाली सड़कें, कुछ गड्ढों से भरी, कुछ कच्ची, एक अलग कहानी कहती हैं।

गांवों के ऊपर से बिजली के बड़े-बड़े तार गुजरते हैं। पास के नागलामाडिके गांव में स्वामी विवेकानंद निजी सहायता प्राप्त स्कूल के बगल में एक ट्रांसमीटर स्टेशन बनाया गया है। शिक्षकों में से एक ने चिंता व्यक्त की कि ट्रांसमीटरों की निकटता बच्चों में स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) फंड और कंपनियों के वार्षिक स्थानीय क्षेत्र सुधार फंड का इस्तेमाल कहीं और हो रहा है। कायदे से इन फंड का इस्तेमाल परियोजना प्रभावित गांवों पर होना चाहिए था। हालांकि, अमरनाथ ने आश्वासन दिया कि स्थानीय क्षेत्र की विकास परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा 57 करोड़ (570 मिलियन रुपये) की मंजूरी दी गई है, जिसमें 23 करोड़ रुपए पहले ही वितरित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा, “आरओ का पानी उपलब्ध कराने, स्कूलों और अस्पतालों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, तिरुमणि में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज सभी परियोजना का हिस्सा हैं।”

रोजगार में विविधता की कमी एक बड़ी आर्थिक चुनौती

रायचार्लू के रास्ते में मोंगाबे-हिन्दी की मुलाकात थिरुमणि निवासी अमरेंद्र से होती है। वे एक खाली खेत पर अपने दो भैंसों को चरा रहे थे। 32 एकड़ जमीन पार्क को सौंपने के बाद भी उन्हें अभी तक पार्क में नौकरी नहीं मिली है। उनसे नौकरी का वादा किया गया था। उनका कहना है कि ठेकेदारों के माध्यम से नौकरियों का आवंटन किया जाता है जो उन लोगों को तरजीह देते हैं जिन्हें वे जानते हैं। इसी तरह, अशोक एक आईटीआई स्नातक है जिसे सोलर पार्क में घास काटने के लिए नौकरी की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने मना कर दिया।

कई किसानों ने कहा कि गांवों से बहुत कम लोगों ने पार्क में नौकरी की है, उनमें से ज्यादातर दैनिक मजदूरी के काम में लगे हुए हैं जैसे घास काटने या सौर पैनलों की धुलाई का काम। अब तक, ग्रामीणों को समझौते से जो सबसे अच्छा काम मिला है, वह सुरक्षा गार्ड या मैकेनिक का काम है।

अमरनाथ मानते हैं कि जमीन देने वाले 50 फीसदी से ज्यादा जमीन की मालिक महिलाएं हैं। हालांकि, बावजूद इसके कंपनियों में एक भी महिला कार्यरत नहीं है। यहां तक ​​कि तकनीशियन भी ज्यादातर बाहर से आए पुरुष हैं। बाहरी लोगों को नौकरी देने के आरोपों का जवाब देते हुए अमरनाथ कहते हैं कि अधिकांश स्थानीय लोगों को नौकरियां मिली। अमरनाथ ने कहा कि 80 प्रतिशत पद ग्रामीणों द्वारा भरे गए थे। उनके अनुसार, युवाओं को सूर्यमित्र योजना के तहत कौशल विकास में प्रशिक्षित किया गया है। जबकि ग्रामीणों का कहना है कि उन प्रशिक्षित युवाओं को भी तकनीकी नौकरियों से वंचित कर दिया गया है। रायचारलू के अक्कलप्पा सहित किसानों ने आरोप लगाया कि कंपनियों को स्थानीय लोगों के लिए “अविश्वास” था और वे उन्हें तकनीकी नौकरियों से वंचित कर रहे थे।

अक्कलप्पा के अनुसार, युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण नौकरियों की कमी गांवों के सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर रही है। यूं चो पावागढ़ में केवल एक लाइसेंस प्राप्त बार है, लेकिन छोटे ढाबों में शराबखोरी बढ़ रही है। ये ढाबे पार्क बनते समय शुरू हुए थे। अब यहां शराब मिलने लगा है। महेश कहते हैं, “शराब निश्चित रूप से बढ़ रही है।”

उन्होंने कहा कि वार्षिक धार्मिक और फसल से संबंधित कार्यक्रम बंद हो गए हैं और नई संपन्नता ने ग्रामीणों को “कम सामाजिक” बना दिया है।

पावागढ़ के नागलामाडिके गांव में शराब की दुकान पर जाता एक व्यक्ति। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे
पावागढ़ के नागलामाडिके गांव में शराब की दुकान पर जाता एक व्यक्ति। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे

 

ओब्बलपति (32) पास के सौर पार्क में सुरक्षा गार्ड का काम करते हैं। वह एक मध्यम आयु वर्ग के राजेंद्र के साथ क्याथागनाचेरलु के गांव के चौक पर एक पेड़ के नीचे पगडे (पासा का एक पारंपरिक खेल) खेल रहे हैं। अपनी जमीन को पट्टे पर देने के बाद से उनके पास काफी खाली समय है। नियमित आय ने उसे आर्थिक रूप से सुरक्षित रखा है।

जमीन के बदले में एक अधिक आरामदायक जीवन मिलने में भी लैंगिक असमानता को स्थापित किया है।

जबकि कई पुरुष पेड़ों के नीचे या दिन के दौरान शराब का आनंद लेते थे, अधिकांश महिलाएं पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में और पास के खेतों में दैनिक मजदूरी पर काम करना जारी रखती हैं। परिवार की नियमित बढ़ी आय से लोगों की जीवनशैली पर अधिक फर्क नहीं पड़ा है। गोपाल जो पास के एक खेत में काम करते हैं, उनकी वार्षिक आय 42,000 रुपए है। उन्हें पट्टे पर दी गई दो एकड़ जमीन से यह आय मिलती है। हालांकि यह पैसा उनके घर चलाने के लिए अपर्याप्त है।

पार्क में नौकरियां नियमित आय प्रदान करती हैं। लेकिन अध्ययन के बाद इसके खतरे भी सामने आ रहे हैं। लंबे समय तक ऐसा चला तो आर्थिक जोखिम बढ़ सकता है। यह काम आजीविका में विविधता का विकल्प नहीं देता। यहां जमीन पर सिर्फ बिजली पैदा किया जा रहा है। जबकि अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी ओरेगॉन में पाइन गेट सौर पार्क में फूल उगाकर मधुमक्खियों और तितलियों जैसे परागणकों को प्रोत्साहित किया जाता है। इससे आसपास की खेती में मदद हो रही है।

 

आरती मेनन ने कर्नाटक में पावागढ़ के गांवों की यात्रा की। उन्होंने इंटरन्यूज के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के लिए 2021 में भारत में अक्षय ऊर्जा: उद्यमिता, नवाचार और चुनौतियों की कहानी अनुदान के हिस्से के रूप में मेगा सौर पार्कों से संबंधित सामाजिक-पारिस्थितिक मुद्दों पर दो-भाग की श्रृंखला की। यह स्टोरी इस कड़ी की दूसरी स्टोरी है। पहली स्टोरी पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं।

 

बैनर तस्वीरः पावागढ़ सौर पार्क का नाम शक्ति स्थल रखा गया है। इसे विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोलर पार्क माना जाता है। तस्वीर- अभिषेक एन. चिन्नप्पा/मोंगाबे

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