- पर्यावरण हितैषी उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत की विज्ञापन परिषद और सरकार ग्रीनवाशिंग रोकने के लिए उत्पादों की मार्केटिंग में पर्यावरण से जुड़े दावों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रही है।
- भारतीय विज्ञापन मानक परिषद ने विज्ञापनों में ग्रीनवाशिंग से निपटने के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। इसके तहत विज्ञापनदाताओं को अपने पर्यावरण संबंधी दावों के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराने होंगे। साथ ही, यह पक्का करना होगा कि ये दावे सही, सत्यापन के योग्य तथा उपभोक्ताओं के लिए स्पष्ट हों।
- भारत के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने पर्यावरण से जुड़े झूठे या भ्रामक दावों पर सख्ती के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें पर्यावरण हितैषी दावे करने वाली कंपनी की ओर से किए जाने वाले खुलासे को सत्यापन के लायक सबूत के जरिए साबित करना जरूरी बनाया गया है।
क्या पर्यावरण हितैषी होने का दावा करने वाले उत्पाद पर्यावरण के लिहाज से उतने ही अच्छे हैं जितना कि बताया जाता है? जैसे-जैसे पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे ‘हरित’ मार्केटिंग का आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है। इसमें उत्पादों पर अक्सर “पर्यावरण के अनुकूल”, “पर्यावरण हितैषी” या “हरित” जैसे लेबल लगे होते हैं। लेकिन इनमें से कितने दावे सही हैं?
पर्यावरण हितैषी बताए जान वाले उत्पादों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी और पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या ने ग्रीनवाशिंग के लिए अनुकूल माहौल तैयार कर दिया है। यह ऐसा तरीका है जिसमें कंपनियां झूठा दावा करती हैं कि उनके उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल हैं।
भारत में विज्ञापन उद्योग के लिए स्वैच्छिक, स्व-नियामक संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) ने पर्यावरण या हरित दावे करने वाले विज्ञापनों के लिए अपने दिशानिर्देशों के संभावित उल्लंघन के लिए 2021 में 116 विज्ञापनों के खिलाफ शिकायतों का निपटान किया।
बढ़ते ग्रीनवाशिंग के जवाब में, एएससीआई ने विज्ञापनों में ग्रीनवाशिंग से निपटने के लिए नए दिशा-निर्देशों के साथ विज्ञापन मानकों को और ज्यादा कड़ा कर दिया है, जो इस साल फरवरी से प्रभावी हो गए हैं।
इसके साथ ही, भारत सरकार ने ग्रीनवाशिंग की रोकथाम और इसके रेगुलेशन के लिए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए। इन दिशा-निर्देशों को अभी औपचारिक रूप दिया जाना है। इनमें यह सुझाव दिया गया है कि ‘ग्रीन’, ‘पर्यावरण के अनुकूल’, ‘पर्यावरण के प्रति जागरूकता’, ‘धरती के लिए अच्छा’, ‘क्रूरता-मुक्त’ और इसी तरह के अन्य दावों का इस्तेमाल सिर्फ पर्याप्त खुलासे के साथ ही किया जाना चाहिए। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की ओर से जारी किए गए मसौदा दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि पर्यावरण से जुड़े सभी दावों को सत्यापन के योग्य सबूतों से साबित किया जाना चाहिए।
आपका उत्पाद कितना पर्यावरण हितैषी है?
ग्रीनवाशिंग ऐसा शब्द है जो ‘व्हाइटवाशिंग‘ शब्द पर आधारित है। यह ऐसी मार्केटिंग रणनीति के बारे में बताता है, जिसमें कंपनियां अपने उत्पादों या सेवाओं के पर्यावरण से जुड़े फायदों का झूठा दावा करती हैं या इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं। इसमें अक्सर अस्पष्ट या बिना किसी आधार वाले जैसे कि “प्राकृतिक”, “पर्यावरण के अनुकूल” या “हरा” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। “ग्रीनवाशिंग” शब्द को पहली बार 1986 में अमेरिकी पर्यावरणविद् जे वेस्टरवेल्ड ने गढ़ा था। अक्सर यह तरीका असल प्रतिबद्धता या पर्यावरण से जुड़े वास्तविक फायदे की कमी के बावजूद, पर्यावरण हितैषी होने के आकर्षण के चलते उपभोक्ताओं को लुभाता है। यह उन उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकता है जो पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार होने का विकल्प चुनना चाहते हैं।
भारत सरकार के मसौदा दिशा-निर्देशों में ग्रीनवाशिंग को “किसी भी भ्रामक या गुमराह करने वाले तौर-तरीकों के रूप में परिभाषित किया गया है। इनमें जरूरी जानकारी को छिपाना, छोड़ना या छिपाना, बढ़ा-चढ़ाकर बताना, अस्पष्ट, झूठे या पर्यावरण से जुड़े बिना आधार वाले दावे करना और भ्रामक शब्दों, प्रतीकों या तस्वीरों का इस्तेमाल करना, सकारात्मक पर्यावरणीय पहलुओं पर जोर देना और नुकसान पहुंचाने वाली विशेषताओं को कम करके आंकना या छिपाना शामिल है”।
सेंटर फॉर सोशल सेंसिटिविटी एंड एक्शन (सीएसएसए) की प्रोफेसर और अध्यक्ष दिव्या सिंघल कहती हैं, “ग्रीनवाशिंग ऐसा मुद्दा है जिसका सामना आज पूरी दुनिया कर रही है। बेशक, जैसे-जैसे भारत में पर्यावरण हितैषी उत्पादों की मार्केटिंग या जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है, इसने प्रतिस्पर्धी माहौल भी बनाया है, जहां कुछ कंपनियां अपने पर्यावरण संबंधी दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं।”
उन्होंने कहा, “कई कंपनियां बिना किसी पर्याप्त जानकारी या सबूत के ‘स्वच्छ‘, ‘हरा‘, ‘पर्यावरण के अनुकूल‘, ‘पर्यावरण के प्रति जागरूक‘, धरती के लिए अच्छा‘, कम से कम दुष्प्रभाव’, ‘क्रूरता-मुक्त‘ और ‘कार्बन-न्यूट्रल‘ जैसे सामान्य शब्दों का इस्तेमाल करती हैं। इससे उपभोक्ता गुमराह होते हैं। साथ ही, पर्यावरण को फायदा पहुंचाने वाली असल कोशिशें कमजोर होती हैं।”
विज्ञापन में पर्यावरण हितैषी दावों को रेगुलेट करना
पर्यावरण संबंधी दावे करने वाले विज्ञापनों के लिए एएससीआई के दिशा-निर्देश पारदर्शिता और जवाबदेही लाने और ग्रीनवाशिंग पर रोक लगाने के उद्देश्य से हैं। मसौदा दिशा-निर्देश पर्यावरण पर सकारात्मक असर, कार्बन ऑफसेट और बायोडिग्रेडेबल दावों सहित अलग-अलग हरित दावों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
एएससीआई ने इन दिशा-निर्देशों को जारी करते हुए कहा कि उत्पादों के बारे में व्यापक दावे करना आम बात है कि वे हरित हैं, जबकि असल में उत्पाद का महज छोटा-सा हिस्सा ही हरित है।
एएससीआई की सीईओ और महासचिव मनीषा कपूर ने कहा, “पर्यावरण पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव उपभोक्ता के फैसलों में अहम कारक बन गया है, जो अक्सर उन्हें पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लिए ज्यादा भुगतान करने के लिए प्रेरित करता है। एक पायलट प्रोजेक्ट के दौरान, हमने कई उद्योगों की पहचान की जो पर्यावरण के अनुकूल दावे कर रहे थे और ये दावे या तो सही नहीं थे या भ्रामक थे। प्रामाणिक हरित दावों के लिए दुनिया भर में चल रहे आंदोलन ने हमें भारत के लिए ये दिशानिर्देश बनाने के लिए प्रेरित किया।”
एएससीआई दिशानिर्देश विज्ञापनदाताओं को इस बात के पर्याप्त सबूत देने की जरूरत को रेखांकित करते हैं कि उत्पाद या सेवाएं “पर्यावरण अनुकूल”, “पर्यावरण हितैषी”, “टिकाऊ” या “धरती के अनुकूल” हैं। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि विज्ञापनदाता किस तरह सही, स्पष्ट, सबूत-आधारित दावे कर सकते हैं जिन्हें उपभोक्ता समझ सकते हैं और उन पर भरोसा कर सकते हैं। साथ ही, उपभोक्ताओं को ज्यादा बेहतर विकल्प खोजने में मदद कर सकते हैं।
दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि विज्ञापनदाताओं को स्पष्ट रूप से बताना होगा कि क्या पर्यावरण संबंधी दावा पूरे उत्पाद से संबंधित है, सिर्फ उसकी पैकेजिंग से संबंधित है या दी जा रही सेवा से संबंधित है।
कपूर ने इन दिशा-निर्देशों के असर पर जोर दिया: “विज्ञापनों में पर्यावरण के अनुकूल दावों का नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाता है। पर्यावरण के अनुकूल दावे करते समय देखी जाने वाली मुख्य चुनौतियों में से एक यह है कि उत्पाद या सेवा असल में पर्यावरण के कितनी अनुकूल है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है। ‘पर्यावरण के अनुकूल‘, ‘100% पर्यावरण के अनुकूल‘, धरती के अनुकूल‘ और ‘टिकाऊ‘ जैसे भ्रामक दावे आम हैं और संभावित रूप से उपभोक्ता के फैसलों पर असर डाल सकते हैं। इन शब्दों के इस्तेमाल से अक्सर उपभोक्ता यह मान लेते हैं कि उस उत्पाद या सेवा का पूरा प्रभाव बेहतर या सकारात्मक है।”
उन्होंने आगे बताया कि ग्रीनवाशिंग पर एएससीआई के दिशा-निर्देश यह पक्का करने पर केंद्रित हैं कि विज्ञापन सिर्फ विश्वसनीय वैज्ञानिक सबूत या योग्य निकायों से विश्वसनीय प्रमाणपत्रों से साबित दावों तक ही सीमित रहें और अपने उत्पादों की हरियाली की सीमा का बढ़ा-चढ़ाकर दावा नहीं करें। इससे उपभोक्ताओं तक गलत सूचना पहुंचने से रोका जा सकता है और उन्हें सही जानकारी के आधार पर चयन करने की सुविधा मिलती है।
कार्बन ऑफसेट से जुड़े दावों के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार विज्ञापनदाताओं को यह बताना होगा कि उत्सर्जन में जिस कमी का वादा किया गया है, वह दो साल या उससे ज़्यादा समय में होगी या नहीं। इसके अलावा, विज्ञापनों को कानूनी रूप से अनिवार्य उत्सर्जन में कमी का दावा इस तरह नहीं करना चाहिए जैसे कि वे खुद की इच्छा से किए जाने वाले काम हों।
दिशा-निर्देश इस बात पर भी जोर देते हैं कि पर्यावरण लेकर दावों में उन उत्पाद या सेवा के “पूरे जीवन चक्र” को दिखाया दर्शाया जाना चाहिए, जिनका विज्ञापन किया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि विज्ञापनदाताओं को उत्पाद या सेवा के जीवन चक्र के सिर्फ़ एक पहलू पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं को पर्यावरण पर इसके कुल असर के बारे में गुमराह किया जा सके।
कपूर कहती हैं, “पर्यावरण/हरित दावों पर ये मसौदा दिशा-निर्देश यह पक्का करने के लिए अहम कदम हैं कि जो उपभोक्ता हरित ब्रैंड की मदद करना चाहते हैं, उनके पास बेहतर फैसला लेने के लिए सही जानकारी हो। ये दिशा-निर्देश विज्ञापनदाताओं के लिए मानक तय करते हैं और उपभोक्ताओं के सबसे अच्छे हितों में विज्ञापन में पारदर्शिता और प्रामाणिकता की संस्कृति को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं।”
भारत में कॉर्पोरेट लॉ फर्म एस.एस. राणा एंड कंपनी की मैनेजिंग एसोसिएट शिल्पी शरण, पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता से पैदा हुई चुनौतियों पर टिप्पणी करती हैं। वह कहती हैं, “पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए, ऐसी परिस्थितियां बन सकती हैं जहां व्यवसाय या ब्रैंड पर्यावरण संबंधी झूठे दावे करना शुरू कर दें।” वह ब्रैंड की ओर से ग्रीनवाशिंग की स्थिति पर आंकड़े साझा करते हुए कहती हैं, एएससीआई की ओर से किए गए अध्ययन में बताया गया है कि संगठनों द्वारा किए गए 79% पर्यावरण संबंधी दावे बढ़ा-चढ़ाकर किए गए थे या भ्रामक थे। YouGov मार्केट रिसर्च स्टडी के अनुसार, 71% भारतीय उपभोक्ताओं ने ग्रीनवाशिंग के बारे में जानकारी दी, जिनमें से 60% ने चिंता जताई। इसके अलावा, सिर्फ़ 29% उपभोक्ताओं ने संगठनों के पर्यावरण संबंधी दावों पर भरोसा करने की बात कही।
उपभोक्ताओं को ग्रीनवॉशिंग से बचाना
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत भारत के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने विज्ञापनदाताओं, सेवा प्रदाताओं और उत्पाद विक्रेताओं द्वारा किए गए पर्यावरण संबंधी दावों में भ्रामक या गुमराह करने वाले तौर-तरीकों से निपटने के लिए इस साल फरवरी में मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए। इन विनियमों के तहत ग्रीनवाशिंग में शामिल होना प्रतिबंधित है, जिसमें पर्यावरण संबंधी खासियतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है या छुपाया जाता है जबकि नुकसान पहुंचाने वाले पहलुओं को कम करके आंका जाता है।
इन मसौदा दिशा-निर्देशों के मुख्य प्रावधानों में सही, सटीक और सत्यापन के योग्य पर्यावरण संबंधी दावों की जरूरत शामिल है, जो सबूत और खुलासे से साबित हो सकें। विज्ञापनों को अस्पष्ट या संदिग्ध भाषा से बचना चाहिए और पर्यावरण संबंधी दावे करते समय स्पष्ट तुलना पेश की जानी चाहिए। मसौदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी को दिखाने वाले किसी भी विजुअल या टेक्स्ट संबंधी दावों को विश्वसनीय स्रोतों द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिए और ये स्रोत विज्ञापन के भीतर या क्यूआर कोड या यूआरएल लिंक के जरिए दिए जाने चाहिए। इसके अलावा, “स्वच्छ”, “हरा”, “पर्यावरण के अनुकूल” या “क्रूरता-मुक्त” जैसे सामान्य दावों के साथ उपभोक्ताओं को गुमराह करने से बचने के लिए योग्यता और प्रमाण भी होने चाहिए।
एक बार स्वीकृत हो जाने पर मसौदा दिशा-निर्देश सभी विज्ञापनों, सेवा प्रदाताओं, उत्पाद विक्रेता, विज्ञापनदाता या किसी विज्ञापन एजेंसी या उसे एन्डोर्स करने वालों पर लागू होंगे, जिनकी सेवा ऐसी चीजों या सेवाओं के विज्ञापन के लिए ली जाती है।
हालांकि, दिशा-निर्देश ऐसे विज्ञापनों या संचार पर लागू नहीं होंगे जो किसी उत्पाद या सेवा के लिए खास नहीं हैं। जैसे, कोई कंपनी अपने मिशन वक्तव्य में पर्यावरण हितैषी सिद्धांतों का पालन करने के बारे में बयान दे सकती है। मसौदा दिशानिर्देश दस्तावेज़ में स्पष्ट किया गया है कि हालांकि, वह कंपनी बिना जरूरी सबूत और खुलासे किए यह दावा नहीं कर सकती कि उसके सभी उत्पाद “पर्यावरण हितैषी तरीकों से बने” हैं।
एक बार औपचारिक रूप से तैयार हो जाने के बाद ग्रीनवाशिंग से जुड़े मसौदा दिशा-निर्देश साल 2019 के उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत आएंगे। शरण ने टिप्पणी की, “हमें उम्मीद है कि 2019 के उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत ग्रीनवाशिंग दिशा-निर्देशों की जल्द ही आधिकारिक घोषणा की जाएगी।” “यह इन दिशा-निर्देशों को मजबूत करने, अनुपालन पक्का करने और उपभोक्ताओं के बीच पर्यावरण से जुड़े भ्रामक दावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में अहम कदम होगा।”
2019 के उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत उत्पादों की पर्यावरण गुणवत्ता के बारे में गलत विज्ञापन देना गैर-कानूनी है। पर्यावरण से जुड़े भ्रामक दावे करने वाले व्यवसायों को जवाबदेह ठहराया जा सकता है। ऐसे दावों से प्रभावित उपभोक्ताओं को न्याय और मुआवज़े के लिए उपभोक्ता अदालतों में शिकायत करने का अधिकार है।
इस साल मार्च में एएससीआई और उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से जारी साझा प्रेस रिलीज में कहा गया, “विज्ञापन के क्षेत्र में एएससीआई की संहिता और संबंधित दिशा-निर्देश केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा लागू किए गए कई दिशा-निर्देशों के अनुसार हैं। इसके मद्देनजर, सीसीपीए ने माना है कि भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित एएससीआई की संहिता का कोई भी उल्लंघन संभावित रूप से 2019 के उपभोक्ता संरक्षण कानून और उससे संबंधित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हो सकता है।”
दुनिया भर में पर्यावरण हितैषी दिशा-निर्देश
Ipsos की ओर से 2021 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार 64% भारतीय उपभोक्ताओं का मानना है कि कंपनियों द्वारा पर्यावरण संबंधी असल दावों को पक्का करने के लिए सख्त कानून और नियम जरूरी हैं।
भारतीय उपभोक्ताओं के बीच ग्रीनवाशिंग जागरूकता और इसके उपभोग पर पड़ने वाले प्रभाव पर एक अध्ययन में सीएसएसए की सिंघल अपने 2020 के अध्ययन के नतीजों पर विचार करते हुए उपभोक्ता शिक्षा की अहम भूमिका पर जोर देती हैं। वह बताती हैं कि शोध ने महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया है, जहां भारत में कई विज्ञापन बिना किसी ठोस सबूत के संगठनों की सतही हरित छवि को बढ़ावा देते हैं। इससे अक्सर ऐसे दावे सामने आते हैं जो सतही और अस्पष्ट होते हैं, जो जांच के दौरान टिक नहीं पाते।
वह जागरूक उपभोक्ताओं की अहमियत पर आगे कहती हैं: “हमने पाया कि जितने ज़्यादा उपभोक्ता ग्रीनवाशिंग को समझते हैं, वे खरीद से जुड़े अपने फैसलों में उतने ही ज़्यादा सतर्क हो जाते हैं।” वह उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा ‘जागो ग्राहक जागो‘ अभियान जैसी देशव्यापी पहलों को लागू करने की वकालत करती हैं जिसका उद्देश्य उपभोक्ता अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाना है। उनके अनुसार, इन अभियानों, जिन्हें वह ‘सच्चाई ग्रीन की‘ या ‘ग्रीन का सच‘ (‘ग्रीन‘ के बारे में सच्चाई) नाम दे सकती हैं, का उद्देश्य लोगों को ग्रीनवाशिंग के बारे में और ज्यादा शिक्षित करना और उन्हें झूठे दावों की पहचान करने के लिए टूल उपलब्ध कराना चाहिए।
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उपभोक्ता को बेहतर विकल्प देने और पारदर्शी मार्केटिंग तरीकों पर यह बढ़ता जोर दुनिया भर की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है। दुनिया भर में, नियामक निकाय यह पक्का करने के लिए कड़े उपायों की जरूरत को पहचान रहे हैं कि ग्रीन मार्केटिंग ईमानदार और प्रमाणित दोनों हो।
साल 2022 में, यूरोपीय संघ ने ग्रीन ट्रांज़िशन के लिए उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के निर्देश के साथ अहम कदम उठाए, जिसमें ग्रीनवाशिंग के खिलाफ़ कड़े उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह निर्देश खास तौर पर भ्रामक दावों को टार्गेट करता है। साथ ही, यह पक्का करता है कि उत्पादों के बारे में पर्यावरण संबंधी कथन सत्यापन के योग्य हैं, विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर देते हुए कि पर्यावरण हितैषी लेबल को प्रतिष्ठित प्रमाणन योजनाओं की ओर से साबित किया जाना चाहिए। या फिर, सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए और पर्यावरण से जुड़े अस्पष्ट दावों पर सख्त प्रतिबंध है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय व्यापार आयोग के पर्यावरण से जुड़े मार्केटिंग दावों के इस्तेमाल के लिए गाइड के जरिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं। ये गाइड पर्यावरण मार्केटिंग से जुड़े दावों के बारे में है। इसमें “पर्यावरण के अनुकूल” या “पर्यावरण हितैषी” जैसे व्यापक, बिना शर्त वाले दावे करने के खिलाफ चेतावनी दी गई है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि डिग्रेडेबल उत्पादों को निपटान के एक साल के भीतर खत्म हो जाना चाहिए, जब तक कि वे सख्त मानदंडों को पूरा ना करें।
सिंघल ने इसी तरह के ग्रीनवाशिंग दिशानिर्देश लाने के भारत की कोशिशों की अहमियत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत का नजरिया प्रो-ऐक्टिव है। लेकिन, इसकी तुलना यूरोपीय संघ के 2026 के लिए तय आगामी कड़े नियमों से करने पर पता चलता है कि भारत के लिए अभी भी अपनी पारदर्शिता और प्रवर्तन रणनीतियों को बेहतर करने की गुंजाइश है।
अनुपालन, सबकी साझा जिम्मेदारी
ग्रीनवाशिंग से निपटने के लिए बनाए गए दिशानिर्देशों का अनुपालन पक्का करना बहुआयामी कोशिश है, जिसमें कॉर्पोरेट क्षेत्रों से लेकर नियामक निकायों और खुद उपभोक्ताओं तक अलग-अलग हितधारक शामिल हैं।
पर्यावरण संगठन पूवुलागिन नानबर्गल के अधिवक्ता वेट्रिसेल्वन बताते हैं कि इन दिशा-निर्देशों की संभावना सभी संबंधित पक्षों द्वारा सख्ती से लागू कराने और इनके अनुपालन पर निर्भर करती है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि हालांकि दिशा-निर्देश ईमानदार विज्ञापन के लिए आधार बनाते हैं, लेकिन सख्त निगरानी और दंड की गैर-मौजूदगी ग्रीनवाशिंग को जारी रहने दे सकती है।
कानूने के जानकार शरण ने जोर देकर कहा, “इन दिशानिर्देशों का अनुपालन पक्का करने की जिम्मेदारी सामूहिक प्रयास है।”
यह साझा जिम्मेदारी कानूनी क्षेत्र तक फैली हुई है, जिससे इन दिशा-निर्देशों का समर्थन करने के लिए मजबूत कानूनी ढांचे की जरूरत को बल मिलता है। कंपनियों द्वारा भ्रामक हरित दावों को रोकने के लिए भारत में पहले से ही कई कानूनी तंत्र स्थापित किए जा चुके हैं।
उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 इनके मूल में है, जो पर्यावरण संबंधी भ्रामक दावों सहित व्यापार के अनुचित तरीकों से संबंधित मुद्दों की निगरानी के लिए केंद्रीय प्राधिकरण को मजबूत बनाता है। यह कानून ना सिर्फ ग्रीनवाशिंग के विनियमन की सुविधा प्रदान करता है, बल्कि गैर-अनुपालन के लिए जरूरी दंड का भी प्रावधान करता है।
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) भी उत्पादों और सेवाओं के इको-लेबलिंग के लिए मानक तय करके ग्रीनवाशिंग को रोकने में अहम भूमिका निभाता है, जो कंपनियों को पर्यावरणीय दावे करने में मार्गदर्शन देता है।
फरवरी 2023 में, भारत में प्रतिभूति और जिंस बाजार के लिए नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने ग्रीन डेट सिक्योरिटीज के जारीकर्ताओं के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जो पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के उद्देश्य से वित्तीय साधन हैं। ये दिशा-निर्देश पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की लगातार निगरानी और नामित परियोजनाओं के साथ सख्त अनुपालन पक्का करने के महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
उद्धरण:
जोग, डी., और सिंघल, डी. (2020)। भारतीय उपभोक्ताओं के बीच ग्रीनवाशिंग की समझ और उनके ग्रीन उपभोग पर इसका प्रभाव। ग्लोबल बिजनेस रिव्यू, 1–21।
https://doi.org/10.1177/0972150920962933
साजिद, एम., ज़कारिया, के.ए., मोहम्मद सूकी, एन., और उल इस्लाम, जे. (2024)। जब ग्रीन होना गलत हो जाता है: ब्रैंड से बचने और नकारात्मक वर्ड-ऑफ-माउथ पर ग्रीनवाशिंग के प्रभाव। जर्नल ऑफ़ रिटेलिंग एंड कंज्यूमर सर्विसेज, 78, 103773। https://doi.org/10.1016/j.jretconser.2024.103773
परायिल, जे. जे. (2023)। ग्रीनवाशिंग का खुलासा: पर्यावरण से जुड़ी भ्रामक प्रथाओं पर वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य। जर्नल फॉर रीअटैच थेरेपी एंड डेवलपमेंटल डायवर्सिटीज, 6(10s), 1771-1775। https://jrtdd.com/index.php/journal/article/view/2318/1590
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 28 मई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: लास वेगास में सुपरमार्केट। तस्वीर- हैरिसन कीली/ विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY 4.0 DEED)।