- राजस्थान की स्पाइनी टेल्ड लिजार्ड का, उसके मांस, रक्त, तेल और त्वचा के लिए अवैध रूप से शिकार और व्यापार किया जाता रहा है।
- कृषि भूमि और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए घास के मैदानों को साफ किया जा रहा है, जिससे इस छिपकली प्रजाति के आवास को खतरा है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि छिपकलियां रेतीली और पथरीली मिट्टी के आवासों में रहती हैं, जिसे सरकार बंजर भूमि मानती है।
राजस्थान के पोखरण इलाके के विशाल, शुष्क घास के मैदानों में एक ऐसा छोटा, बिल में रहने वाला सरीसृप पाया जाता है, जिसे ढूंढ पाना आसान नहीं होता। स्पाइनली टेल्ड (सारा हार्डवीकी) भारत की एकमात्र शाकाहारी छिपकली है जो राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के कुछ हिस्सों के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है।
रेतीले और पथरीले मैदानों में पाई जाने वाली यह छिपकली बड़ी कॉलोनियों या लाउंज में रहती है, लेकिन इसे अपने बिल में अकेले रहना पसंद है। यह शिकारी पक्षियों, रेगिस्तानी लोमड़ियों और सांपों जैसे अन्य रेगिस्तानी जीवों के आहार का हिस्सा है। यह रेंगने वाला जीव दिन के समय सक्रिय रहता है और अपना अधिकांश दिन धूप सेंकने और भोजन की तलाश में बिताता है। सूर्यास्त के बाद सुरक्षा के लिए अपने बिल में लौट आता है।
हालांकि बिल उन्हें शिकारी जीवों से सुरक्षा देते हैं, लेकिन यही बिल शिकारी और अवैध व्यापारियों को उन तक पहुंच को आसान भी बना देते हैं। पोखरण के भदरिया ओरण में छिपकलियों की एक ऐसी ही कॉलोनी में, हाल ही में खोदे गए एक बिल के पास बैठे वन्यजीव संरक्षणवादी राधेश्याम बिश्नोई ने कहा, “यह बिल शिकारियों ने खोदा था।”

स्थानीय रूप से ‘सांडा’ या ‘सांधो’ के नाम से जानी जाने वाली इस स्पाइनी टेल्ड लिजार्ड की एक अलग, मोटी पूंछ होती है, जिस पर नुकीले कांटे होते हैं। ये छिपकली इसी पूंछ में अपने लंबे हाइबरनेशन सीजन (शीतनिद्रा) के लिए वसा जमा करती है – यह शुष्क वातावरण में जीवित रहने के लिए विकासित की गई एक रणनीति है। हालांकि, ये पूंछ छिपकली के जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन ये शिकारियों को भी अपनी ओर खींचती है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध होने और IUCN रेड लिस्ट द्वारा ‘संकटग्रस्त’ के रूप में वर्गीकृत होने के बावजूद, इस प्रजाति की इसके तेल के लिए मांग बनी हुई है। इसकी पूंछ में मौजूद चर्बी से निकाले गए तेल को ‘सांडे के तेल’ के नाम से बेचा जाता है। यह तेल दक्षिण एशियाई देशों में मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवा के रूप में बहुत मशहूर है।
2020 में छिपकली के आवास, जनसंख्या की स्थिति खतरों पर हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि जिन इलाकों में पहले ये छिपकली पाई जाती थी, उनमें से कई जगहों पर अब ये नहीं दिखती है।
पूंछ और एक स्वादिष्ट व्यंजन के लिए व्यापार
अपने फोन पर शिकारियों की तस्वीरें और वीडियो दिखाते हुए, बिश्नोई ने बताया, “कुछ शिकारी सुबह-सुबह बिलों के आस-पास जाल बिछा देते हैं। जब छिपकली बाहर आती है, तो वह फंस जाती है। या फिर वे बिलों को खोदकर उन्हें बाहर निकाल लेते हैं।” छिपकली को पकड़ने के बाद, उसकी रीढ़ की हड्डी को तोड़ दिया जाता है और वह हिल नहीं पाती।
पिछले एक दशक में समुदाय के कई अन्य लोगों के साथ गश्त के दौरान बिश्नोई ने कई शिकारियों को पकड़ा है।
बिश्नोई कहते हैं, “ये शिकारी मानसून के मौसम में सबसे अधिक सक्रिय होते हैं, जब मिट्टी नम हो जाती है और बिलों को खोदना आसान होता है। कभी-कभी, पीक सीजन में, हमें थार रेगिस्तान क्षेत्र में हर महीने शिकार के 8-10 मामले मिल जाते हैं।”
पश्चिमी राजस्थान में कांटेदार पूंछ वाली छिपकली का शिकार होना कोई दुर्लभ बात नहीं है, खासकर जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और चूरू में, जहां यह मुख्य रूप से पाई जाती है।
पश्चिमी राजस्थान में स्पाइनी-टेल्ड छिपकली के संरक्षण पर 2024 के एक अध्ययन के मुताबिक, “राजस्थान के रामदेवरा, बाप और दियात्रा इलाकों में शिकार, अवैध व्यापार और व्यापार मार्ग की गतिशीलता स्पाइनी-टेल्ड छिपकली की संख्या में गिरावट के प्रमुख कारण हैं, जबकि इस प्रजाति को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संरक्षित के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।”
2023 की एक रिसर्च के मुताबिक, स्थानीय लोगों का मानना है कि इस छिपकली का मांस और तेल पुरुषों में यौन शक्ति बढ़ाता है।

कानून का कितना पालन
सत्तर वर्षीय लून नाथ जोगी पारंपरिक रूप से सांडा का शिकार करते आए हैं और उसे खाते रहे हैं। उन्होंने बताया, “पहले हम सांडा, लोमड़ी और कई अन्य वन्यजीव प्रजातियों को खाते थे। लेकिन पिछले एक दशक से सरकार ने शिकार पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। तो अब हमनें भी इन्हें खाना छोड़ दिया है।”
उन्होंने कहा कि समुदाय के कई लोगों ने आजीविका के दूसरे साधनों जैसे कि कृषि मजदूरी और दिहाड़ी मजदूरी की ओर रुख किया है।
वहीं पोखरण और डेजर्ट नेशनल पार्क के वन रक्षक और अधिकारियों का कहना है कि अवैध शिकार और अवैध व्यापार अभी भी जारी है, लेकिन यह काम अब छिपकर किया जाता है।
नाम न बताने की शर्त पर मोंगाबे इंडिया से बात करते हुए, इलाके के एक वन रक्षक ने कहा, “कुछ साल पहले, अगर हम किसी को स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड का शिकार करते हुए पकड़ते थे, तो वे कहते थे, ‘यह तो बस एक छिपकली है।’ यहां तक कि वन अधिकारी भी अक्सर शिकारियों – ज्यादातर स्थानीय लोगों – को सिर्फ चेतावनी या मामूली जुर्माना देकर छोड़ देते थे।”
क्या कड़ी सजा छिपकली प्रजाति को बचा सकती है?
बड़े पैमाने पर शिकार और अवैध शिकार की छिटपुट घटनाओं के चलते, इनकी आबादी में लगातार गिरावट आई है। इसी वजह से इस प्रजाति को भारत वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022 में अनुसूची II से अनुसूची I में स्थानांतरित कर दिया गया। तब से, स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड यानी सांडा के शिकार करने पर अधिकतम सजा तीन से सात साल है।
जैसलमेर के पूर्व जिला वन अधिकारी देवेंद्र कुमार भारद्वाज बताते हैं, “पहले, छिपकली का अवैध शिकार करने पर आसानी से समझौता हो जाता था और सजा भी सख्त नहीं थी। अगर हम शिकारियों को पकड़ भी लेते थे, तो वे सिर्फ 5,000 रुपये का जुर्माना देकर बच जाते थे।”
उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून का ठीक से लागू न होना ही समस्या नहीं है। गवाहों और सबूतों की कमी के कारण वन्यजीव अपराधों से संबंधित मामलों को साबित करना भी मुश्किल होता है, जिससे कई शिकारी इन खामियों का फायदा उठा लेते हैं।

कृषि और अक्षय ऊर्जा के कारण तेजी से नष्ट होते आवास
जीजीएस इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी में यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट मैनेजमेंट के प्रोफेसर और वन्यजीव जीवविज्ञानी सुमित डूकिया कहते हैं कि वैसे तो छिपकली का अवैध व्यापार और अवैध शिकार हमेशा से होता रहा है, लेकिन अब कृषि भूमि के विस्तार और अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं जैसे नए खतरे सामने आए हैं, जो शुष्क घास के मैदानों को खत्म कर रहे हैं।
वह बताते हैं, “जैसलमेर में नहर (इंदिरा गांधी नहर) और मुफ्त चरागाह जैसी विभिन्न सरकारी समर्थित सिंचाई परियोजनाओं के कारण उनके आवास तेजी से कम हुए हैं।”
हालांकि अभी तक किसी आधिकारिक गणना में छिपकली की आबादी की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन थार रेगिस्तान क्षेत्र के छह जिलों में 2020 की आबादी की स्थिति उनके आवास विनाश को प्रमुख खतरों में से एक के रूप में उजागर करती है। इसमें कहा गया है, “थार रेगिस्तान क्षेत्र में इंदिरा गांधी नहर परियोजना की शुरुआत के कारण मानव आबादी बढ़ रही है और कृषि का विस्तार हो रहा है।”
बिश्नोई ने कहा, “छिपकलियां रेतीली और पथरीली जमीन पर रहती हैं, जिसे सरकार बंजर भूमि मानते है। इन जगहों पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं लाई जा रही हैं। सनावारा, चनानी और देवीकोट में परियोजनाओं ने पहले ही छिपकलियों के आवास को नष्ट कर दिया है।”
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2022 में, IUCN रेड लिस्ट ने लगातार कम होती संख्या के कारण स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड को ‘डेटा डिफिशिएंट’ से बदलकर ‘संकटग्रस्त’ कैटेगरी में डाल दिया है।
भारद्वाज बताते हैं कि तेल के बारे में फैले अंधविश्वासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से ही अवैध शिकार खत्म होगा – यही विचार वाइल्डलाइफ एसओएस में सरीसृप संरक्षण परियोजनाओं के निदेशक और हर्पेटोलॉजिस्ट बैजू राज ने भी दोहराया।
स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड बाघ, भालू या हाथियों जैसी विदेशी प्रजाति नहीं है, जिन पर अधिक ध्यान दिया जाता है। नतीजतन, इन जैसी प्रजातियों को ठीक से दस्तावेजीकरण नहीं किया जाता, जिससे संरक्षण प्रयासों में बाधा आती है। राज आगे कहते हैं, “हमें उनके संरक्षण को बेहतर ढंग से सूचित करने और समर्थन करने के लिए ऐसी प्रजातियों का गहन अध्ययन और दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता है।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 7 नवंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: स्पाइनी-टेल्ड लिजार्ड। तस्वीर- टी.आर.शंकर रमन, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)