- केरल में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ के घोंसलों की संख्या घट रही है, जिसका मुख्य कारण ऊंचे घोंसले वाले पेड़ों का नुकसान है।
- अन्य तटीय राज्यों में भी इस पक्षी के प्रजनन स्थलों में कमी की रिपोर्ट सामने आई है। हालांकि, भारत में इस पक्षी की जनसंख्या प्रवृत्ति पर डेटा बहुत कम है।
- केरल में शोधकर्ताओं ने इस पक्षी के संरक्षण के लिए जन सहभागिता आधारित दृष्टिकोण अपनाया है।
पिछले कुछ सालों में केरल में सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ (white-bellied sea eagle), जिसे देश के कई हिस्सों में समुद्री बाज के नाम से भी जाना जाता है, के घोंसले बनाने वाली जगहों में काफी कमी देखी गई है। इस कारण से इसके संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत बढ़ गई है। केरल के कन्नूर जिले में स्थित एक गैर-सरकारी संगठन, मलाबार अवेयरनेस एंड रेस्क्यू सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ (MARC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन घोंसलों के कम होने का मुख्य कारण इन पक्षियों के घोंसले बनाने वाले पेड़ों की कटाई, पेड़ों का प्राकृतिक रूप से बूढ़ा होना या गिर जाना है।
साल 2021 में, MARC के शोधकर्ताओं को उत्तर केरल में किए गए सर्वेक्षण के दौरान समुद्री बाज के 22 घोंसले मिले। उसके अगले साल, 2022 में यह संख्या घटकर 18 रह गई और 2023 में टीम को केवल 15 घोंसले ही मिले।
केरल में यह समुद्री बाज आमतौर पर केवल उत्तर के दो जिलों—कन्नूर और कासरगोड—में ही देखे जाते हैं। पिछले तीन सालों में घोंसलों की संख्या में आई वार्षिक गिरावट के अलावा, MARC की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2000 से 2010 के बीच किए गए पिछले अध्ययनों में पाए गए 15 घोंसलों की जगहें अब समाप्त हो चुकी हैं। इसका कारण घोंसले वाले पेड़ों की कटाई या उनका प्राकृतिक रूप गिर जाना हो सकता है। समुद्री बाज अपने जीवन में एक ही साथी (monogamous) रखते हैं और अपने क्षेत्र में स्थायी रूप से रहते हैं। इनका जीवनकाल लगभग 30 वर्ष का होता है और यदि इनका आवास बाधित न हो, तो ये जीवन भर एक ही घोंसले का उपयोग करते हैं।
इस परियोजना के तहत, शोधकर्ताओं ने इस पक्षी के प्रजनन काल के दौरान दोनों जिलों की 150 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के साथ-साथ तटीय कस्बों, मुहानों, बैकवाटर और धार्मिक वनों (सेक्रेड ग्रोव्स) का सर्वेक्षण किया। उन्होंने पिछले अध्ययनों और सिटीजन साइंस डेटाबेस eBird से प्राप्त घोंसले संबंधी रिकॉर्ड का विश्लेषण किया, स्थानीय पक्षी प्रेमियों से जानकारी जुटाई और समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर आम जनता से भी जानकारी प्राप्त की। यही कार्यप्रणाली तीनों वर्षों में समान रूप से अपनाई गई।
केरल की खुद की ही एक क्षेत्रीय रेड लिस्ट में समुद्री बाज को फिलहाल “मध्यम संरक्षण प्राथमिकता” वाली श्रेणी में रखा गया है। MARC में इस अध्ययन का संचालन करने वाले वन्यजीव जीवविज्ञानी रोशनाथ रमेश और अमल यू.के. कहते हैं, “यह श्रेणीकरण 2010 तक के अध्ययनों के आधार पर किया गया था। हालांकि, हमारे वर्तमान निष्कर्षों के आधार पर हमने इसकी श्रेणी को ‘उच्च प्राथमिकता’ में बदलने की सिफारिश की है।”
यह क्षेत्रीय रेड लिस्ट भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग (Zoological Survey of India) के वेस्टर्न घाट रीजनल सेंटर द्वारा अन्य विशेषज्ञों के इनपुट के साथ तैयार की गई थी और 2023 में केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा प्रकाशित की गई। यह दस्तावेज़ IUCN के क्षेत्रीय स्तर के मूल्यांकन दिशानिर्देशों का पालन करता है और स्थानीय संरक्षण के लिए प्रजातियों की प्राथमिकता सूची भी प्रदान करता है।

समुद्री बाज एक कीस्टोन प्रजाति (keystone species) है जो तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है। कीस्टोन प्रजाति वह जीव होते हैं जो अपने पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और जिनके बिना पूरा तंत्र असंतुलित हो सकता है।
एक शीर्ष शिकारी (apex predator) होने के नाते, समुद्री बाज पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रजाति की स्वस्थ आबादी को पारिस्थितिकी तंत्र की अच्छी स्थिति का संकेतक भी माना जाता है। यह पक्षी दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के तटीय क्षेत्रों से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक देखा जाता है।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में समुद्री बाज को “कम चिंता” (Least Concern) वाली श्रेणी में रखा गया है, लेकिन यह भी उल्लेख किया गया है कि इस पक्षी की आबादी वैश्विक स्तर पर, विशेषकर दक्षिण ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में, घटने की आशंका है। भले ही इसकी आबादी पर स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसके वयस्क पक्षियों की संख्या करीब 2,600 से 41,000 के बीच मानी जाती है।
भारत में, सिटीजन साइंस डेटाबेस eBird के आंकड़े लंबे समय में समुद्री बाज के दिखने की घटनाओं (sightings) में तेज गिरावट दर्शाते हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (SoIB) रिपोर्ट, 2023 — जो eBird के आंकड़ों पर आधारित है — के अनुसार, दीर्घकालिक रुझान यह दिखाता है कि 2000 से पहले की स्थिति की तुलना में इसकी दिखने की घटनाएं दो-तिहाई तक घट गई हैं। SoIB ने इस प्रजाति को ‘मध्यम चिंता’ (moderate concern) की श्रेणी में रखा है।
बदलते आवास
ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस पक्षी के आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे घोंसलों की उत्पादकता (nest productivity) में कमी आ सकती है और इसकी आबादी पर भी असर पड़ सकता है।
समुद्री बाज आमतौर पर समुद्री तटों के पास ऊंचे पेड़ों जैसे बरगद, काजू और आम के पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, जहाँ से समुद्र दिखाई देता हो। सलीम अली पक्षी विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र (SACON) के वरिष्ठ वैज्ञानिक बाबू एस. कहते हैं, “यह पक्षी समुद्र की सतह पर शिकार करता है; यह अंदर गोता नहीं लगाता। इसलिए ऐसा लगता है कि यह उन पेड़ों का चयन करता है जहाँ से समुद्र दिखता हो।”
तटीय क्षेत्रों में ऊंचे पेड़ों के घटते जाने के कारण, इस प्रजाति को घोंसला बनाने की जगहों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
ओडिशा में शोधकर्ताओं ने यह देखा है कि समुद्री बाज अब अपने पारंपरिक प्राकृतिक आवास छोड़कर वैकल्पिक स्थलों की ओर रुख कर रहे हैं। एक अध्ययन में, जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ है, बेहरामपुर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्री बाज के केवल एक-चौथाई घोंसले ही प्राकृतिक आवासों में पाए गए, जबकि शेष तीन-चौथाई घोंसले मोबाइल टावर, पावर ट्रांसमिशन टावर आदि पर मिले।
इस अध्ययन की निगरानी कर रहे पर्यावरण वैज्ञानिक और संरक्षण पारिस्थितिकी विशेषज्ञ बी. अंजन कुमार प्रुस्टी, जो बेहरामपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग में प्रोफेसर भी हैं, कहते हैं, “गंजम, खोरधा और पुरी जिलों में अब तक 150 से अधिक समुद्री बाज की पहचान हो चुकी है, और जैसे-जैसे अध्ययन ओडिशा के अन्य तटीय क्षेत्रों तक फैलेगा, और अधिक घोंसलों की पहचान होने की संभावना है।”
वे आगे बताते हैं, “मोबाइल टावरों पर घोंसलों का बनना इस बात का संकेत है कि पक्षी अपने मूल आवास खो रहे हैं, जिसका मुख्य कारण चक्रवात और/या मानवीय हस्तक्षेप है। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवातों और चरम मौसम घटनाओं की संख्या और आवृत्ति दोनों बढ़ रही हैं। पक्षी शायद अधिक अंदरूनी इलाकों की ओर नहीं जाते, संभवतः इसलिए क्योंकि वहां उन्हें भोजन और शिकार के मैदान जैसे संसाधनों के लिए अन्य पक्षियों से मुकाबला करना पड़ता है।”
साल 2018-2019 में ओडिशा के तटीय क्षेत्र में स्थित भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में यह पाया गया कि पहचाने गए 10 समुद्री बाज के घोंसलों में से पाँच मोबाइल टावरों पर और दो सूखे पेड़ों पर थे। यह अध्ययन ‘ई-प्लैनेट’ जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
अध्ययन में बताया गया कि घोंसला के इन स्थलों को मानव गतिविधियों से काफी परेशानियाँ हो रही थी। इसके साथ ही, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि अभयारण्य में मछलियों की घटती संख्या और मछली पकड़ने व पर्यटक नावों से होने वाले तेल रिसाव के कारण पानी का प्रदूषण भी इन पक्षियों के लिए खतरा बन सकता है।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और जीवविज्ञानी निमाई चरण पालेई एक और कारक की ओर ध्यान दिलाते हैं। वे कहते हैं, “सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ शिकार के लिए 10-15 किलोमीटर तक अंदरूनी क्षेत्रों में जाते हैं, जहां वे आर्द्रभूमियों, मुहानों आदि में मछलियाँ पकड़ते हैं। इस दायरे में खेतों और झींगा पालन केंद्रों (prawn factories) में कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है, जिससे पास के जलस्रोत प्रदूषित हो जाते हैं। ऐसे में जब ये बाज इन जलस्रोतों से मछली खाते हैं, तो वे भी कीटनाशकों की चपेट में आ सकते हैं।”
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे अन्य तटीय राज्यों से प्रकाशित शोध पत्रों में भी यह दर्ज किया गया है कि सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ अब पावर पाइलन (बिजली के खंभे) और मोबाइल टावरों पर घोंसले बना रहे हैं।

महाराष्ट्र में भी संरक्षणवादियों ने समय के साथ इन पक्षियों के आवासों में बदलाव देखा है।
सह्याद्री निसर्ग मित्र (SNM) के संस्थापक विश्वास कटदरे, जिनके नेतृत्व में 1996 से 2000 के बीच महाराष्ट्र के रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों में समुद्री बाज पर सर्वेक्षण किया गया था, बताते हैं कि समय के साथ इन पक्षियों ने अपने घोंसलों को बड़े पेड़ों से छोटे पेड़ों पर स्थानांतरित कर दिया है। वे कहते हैं, “पहले ये पक्षी पुराने और विशाल पेड़ों पर घोंसला बनाते थे। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं या इन पेड़ों की कटाई के कारण, इन्हें छोटे पेड़ों पर घोंसला बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जो इनके बड़े घोंसलों के लिए कम स्थिर होते हैं।”
साल 2020-2021 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी और रायगढ़ जिलों में मैंग्रोव फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से यह पता चला कि जून 2020 में आए चक्रवात निसर्ग के बाद समुद्री बाज के घोंसला बनाने के तरीके में बदलाव आया।
सर्वेक्षण टीम का हिस्सा रहे मोहन उपाध्ये बताते हैं, “चक्रवात से पहले ये पक्षी 80 से 100 फीट ऊंचे पेड़ों पर घोंसले बनाते थे। लेकिन जब चक्रवात निसर्ग में ऊंचे पेड़ क्षतिग्रस्त हो गए, तो पक्षियों ने छोटे पेड़ों पर, लगभग 30 से 40 फीट की ऊंचाई पर, दोबारा घोंसले बनाए।”
सलीम अली पक्षी विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र (SACON) के बाबू एस, जिन्होंने महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में समुद्री बाज पर अध्ययन किया, बताते हैं कि 2014-2017 के बीच उनके सर्वेक्षण के दौरान घोंसलों की संख्या बढ़कर 46 हो गई थी, जबकि 1999-2000 में SNM द्वारा की गई गणना में यह संख्या 32 थी।
वे इस वृद्धि का श्रेय जिले के तटीय क्षेत्रों में लगे काजू के पेड़ों की संख्या में बढ़ोतरी को देते हैं। हालांकि, बाबू एस. यह भी चेतावनी देते हैं कि तटीय क्षेत्रों में काजू के पेड़ों की कटाई आम बात है, जिससे इन पक्षियों का आवास प्रभावित हो सकता है।
इसलिए अध्ययन में यह सुझाव दिया गया है कि: तटीय क्षेत्रों में स्थानीय पेड़ों का रोपण किया जाए, या स्थानीय और बाहरी प्रजातियों का मिश्रित वृक्षारोपण किया जाए, साथ ही समुद्र तटों पर पर्यटन और मनोरंजन गतिविधियों को सीमित किया जाए ताकि समुद्री बाज के घोंसलों को किसी प्रकार की परेशानी या बाधा न पहुँचे।
बेहतर निगरानी और आंकड़ों की जरूरत
भारत में समुद्री बाज पर बढ़ते खतरों के बावजूद, इसकी जनसंख्या प्रवृत्तियों पर कोई राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन नहीं हुआ है। इसी कारण, देश के विभिन्न तटीय राज्यों के वैज्ञानिक विश्वसनीय आधारभूत आंकड़ों (baseline data) के संग्रहण और घोंसलों की नियमित निगरानी (nest monitoring) की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।
केरल से MARC की रिपोर्ट में आगे के अध्ययन जैसे कि इन पक्षियों को रिंगिंग और बैंडिंग के ज़रिए चिह्नित करना ताकि उनके घरेलु क्षेत्र और फैलाव की सीमा का पता चल सके, प्रजाति वितरण मॉडलिंग (species distribution modelling), छोटे पैमाने पर समुद्री (pelagic) सर्वेक्षण आदि सुझाए गए हैं।
MARC के सचिव और शोधकर्ता रोशनाथ रमेश कहते हैं, “हमारा एक अनुमान है कि जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है और उसमें उत्पादकता घट रही है। केरल के समुद्री बाज सार्डीन मछलियों की उपलब्धता के साथ उत्तर की ओर, मैंगलोर की दिशा में जा रहे हैं। यही कारण हो सकता है कि केरल में इनकी संख्या घट रही है। हालांकि, इस परिकल्पना को सिद्ध करने के लिए हमें आंकड़ों की आवश्यकता है।”
वन्यजीव जीवविज्ञानी और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) में वैज्ञानिक-एफ के पद पर कार्यरत सुरेश कुमार का कहना है कि देशभर में समुद्री बाज की घटती साइटिंग और स्थानीय स्तर पर हो रहे परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए इन पर व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। वे यह भी कहते हैं कि विश्व स्तर पर भी फिश ईगल्स (मछली पकड़ने वाले गरुड़ों) की आबादी में गिरावट देखी जा रही है।
कुछ तटीय क्षेत्रों में इस दिशा में प्रयास शुरू हो चुके हैं। महाराष्ट्र में, सह्याद्री निसर्ग मित्र (SNM) लगभग 20 साल बाद एक बार फिर एक सर्वेक्षण करने की योजना बना रहा है, ताकि इस पक्षी की स्थिति में आए बदलाव को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
गोवा में संरक्षण से जुड़े कई एनजीओ राज्य वन विभाग और राज्य जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर समुद्री बाज पर एक सर्वेक्षण कर रहे हैं। इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे पराग रंगणेकर, जो गोवा बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क से जुड़े हैं, कहते हैं, “यह गोवा में इस पक्षी पर किया गया पहला सर्वेक्षण है। हम इसे काफी समय से करने की योजना बना रहे थे, लेकिन SoIB रिपोर्ट में बताए गए गिरते रुझान ही इसकी प्रेरणा बने।”
“अभी हमारे पास सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ को लेकर कोई ठोस डेटा-आधारित साक्ष्य नहीं है। एक बार जब हम इस सर्वेक्षण से आधारभूत जानकारी (baseline) स्थापित कर लेंगे, तब हम इन घोंसलों की निगरानी नियमित रूप से कर सकेंगे,” वे आगे कहते हैं। नवंबर 2024 तक, उनकी टीम ने 24 घोंसलों की पहचान कर ली थी।
आशाजनक संरक्षण मॉडल
केरल में MARC (Malabar Awareness and Rescue Centre for Wildlife) ने समुद्री बाज की सुरक्षा के लिए समुदाय आधारित संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत स्थानीय समुदाय के भागीदारों, जैसे कि घोंसले वाले पेड़ों के मालिक, मछुआरे, और वे लोग जो घोंसलों की निगरानी करते हैं और जानकारी साझा करते हैं, को सम्मानित किया जाता है। लगभग 30 लोगों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है जो नियमित रूप से घोंसलों की जानकारी और तस्वीरें साझा करता है।
रोशनाथ रमेश का मानना है कि समुद्री बाज के घोंसले अधिकतर शहरी क्षेत्रों में पाए जाने के कारण इसके संरक्षण में जनभागीदारी अनिवार्य है। वे कहते हैं, “मछुआरे इस पक्षी से परिचित हैं और इसकी आवाज़ से इसे पहचान सकते हैं, इसलिए वे सक्रिय रूप से संरक्षण प्रयासों में शामिल रहते हैं।” “घोंसले वाले पेड़ों के मालिक भी किसी समस्या की स्थिति में हमें संपर्क करते हैं,” वे आगे बताते हैं।
कन्नूर ज़िले के चल बीच पर, 3-4 स्थानीय संरक्षणकर्ताओं का एक समूह इस कार्यक्रम के तहत एक घोंसले की सुरक्षा कर रहा है। इस समूह में शिजिल कोट्टायी, एक मछुआरे, और सुनील अरिप्पा, एक फार्मासिस्ट, जो रोज़ाना बीच पर स्थित घोंसले वाले पेड़ का निरीक्षण करते हैं शामिल हैं। वे बताते हैं, “हम पिछले कुछ सालों से इन पक्षियों को यहां देख रहे हैं, लेकिन MARC के सर्वेक्षण के बाद हमें इनके बारे में जानकारी मिली और हमने उनका घोंसला पहचाना।” “यहां पक्षियों को कोई सीधा ख़तरा नहीं है, लेकिन हम यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई उन्हें परेशान न करे और बारिश के दौरान पेड़ को कोई नुकसान न हो।”

इसी कार्यक्रम से जुड़े कन्नूर ज़िले के रमंथली में रहने वाले लक्ष्मणन टी. के पास वह ज़मीन है जहां यह घोंसले वाला पेड़ स्थित है। वे बताते हैं, “कुछ साल पहले तक यहां समुद्र के पास ऊंचे पेड़ों पर 3-4 समुद्री बाज के जोड़े घोंसला बनाते थे। लेकिन समय के साथ पेड़ों के मालिकों ने ये पेड़ काट दिए। अब केवल एक जोड़ा ही बचा है।” “करीब चार साल पहले, इस जोड़े ने मेरे प्लॉट में एक ऊंचे पेड़ पर घोंसला बनाया, जो समुद्र तट से एक किलोमीटर दूर है।”
हालांकि यह पेड़ तेज़ हवाओं की स्थिति में गिर सकता है और उनके घर को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन लक्ष्मणन कहते हैं कि वे फिलहाल इंतज़ार करने को तैयार हैं। “मैं पहले इस पेड़ को काटने की सोच रहा था, लेकिन कार्यक्रम का हिस्सा बनने के बाद अब इसका संरक्षण कर रहा हूं,” वे बताते हैं। “मैं देखूंगा कि क्या यह जोड़ा भी पास की जमीनों की तरह इस घोंसले को छोड़कर चला जाएगा।”
गोवा में, रंगणेकर बताते हैं कि सर्वे के बाद वे भी ऐसा ही एक कार्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहे हैं। उनकी टीम यह भी प्रयास कर रही है कि घोंसले वाले पेड़ों को स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) के पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR) में शामिल किया जाए ताकि उनका औपचारिक संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 जनवरी 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: केरल के कन्नूर जिले के चाल बीच पर समुद्री बाज का घोंसला। यह पक्षी आमतौर पर ऊँचे पेड़ों पर बड़े आकार के घोंसले बनाते हैं। तस्वीर: अनिल प्रसाद द्वारा