- समुद्री प्रदूषण को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में एक राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति की आवश्यकता है।
- 2024 के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने समुद्री कचरे से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए नीतियों और रणनीतियों की सूची बनाई थी। इसमें समुद्री कचरे के स्थलीय और समुद्री, दोनों स्रोतों से निपटने के उपाय शामिल थे।
- दूसरे विशेषज्ञ, जानबूझकर छोड़े गए, खोए हुए या फेंके गए मछली पकड़ने के उपकरणों (एएलडीएफजी) पर अधिक ध्यान देने की जरूरत पर जोर देते हैं।
देश में प्लास्टिक कचरे की तेजी से बढ़ती दर, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा है। भारत की 7,500 किलोमीटर से ज्यादा लंबी तटरेखा समुद्री कचरे विशेष रूप से प्लास्टिक से खतरे में है। यह तटीय इलाकों के पारिस्थितिक तंत्र और वहा रहने वाले समुदायों की सेहत पर दीर्घकालीक असर डाल रही है, जो चिंता का एक विषय है। इसे देखते हुए वैज्ञानिक भारत के लिए तत्काल एक राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।
हालांकि अधिकांश देशों की तरह, भारत में भी अभी तक कोई राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति नहीं है, लेकिन इस दिशा में प्रयास जारी हैं। फरवरी 2024 में, पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा की एक बैठक में कहा था कि हमारे देश में समुद्री कचरे की मात्रा पर नजर रखने और उसे समझने के लिए कई पहल, रिसर्च प्रोजेक्ट और सर्वे किए जा रहे हैं।
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने समुद्री कचरा प्रदूषण से निपटने के लिए चार नीतिगत विकल्प और 20 रणनीतियां प्रस्तावित की हैं। इन चार लक्ष्यों में समुद्री कचरे के भूमि-आधारित स्रोतों से निपटने के उपाय, समुद्र तटों पर कूड़े को कम करना, मछली पकड़ने और जलीय कृषि जैसे समुद्री कचरे के समुद्र-आधारित स्रोतों से निपटने के उपाय और स्रोत शमन उपाय शामिल हैं। यह रिपोर्ट पिछले साल समुद्री प्रदूषण बुलेटिन में प्रकाशित हुई थी।
भारत में समुद्री कचरे से निपटने के लिए नीति कैसे बनी
2018 में, भारत ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर प्लास्टिक प्रदूषण और समुद्री कचरे के खिलाफ यूएनईपी के स्वच्छ समुद्र अभियान में शामिल होने का फैसला किया। उस समय, यह पता लगाने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं थी कि कितना प्लास्टिक (माइक्रोप्लास्टिक सहित) समुद्र में जा रहा है। इसलिए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को फील्ड डेटा इकट्ठा करने और एक समुद्री कचरा कार्य योजना बनाने का काम सौंपा गया। एनसीसीआर ने आधारभूत डेटा और भारत की समुद्री कचरा नीति पर एक मसौदा पत्र तैयार करना शुरू कर दिया। रिसर्च में पानी, तलछट और जीवों जैसे कई माध्यमों से माइक्रोप्लास्टिक इकट्ठा करना और उनका विश्लेषण करना शामिल था। यह काम अलग-अलग जगहों जैसे लैगून, मैंग्रोव, नदियों के मुहाने, समुद्र तटों और खुले समुद्र में किया गया।
हालांकि भारत के पास अभी तक कोई राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों ने 2024 की एक रिपोर्ट में समुद्री कचरे के भूमि और समुद्र-आधारित दोनों स्रोतों से निपटने के लिए नीतियों और रणनीतियों का प्रस्ताव दिया था। तस्वीर- क्रिश्चियन याकूब, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)
एनसीसीआर टीम द्वारा 2023 में मरीन पॉल्यूशन बुलेटिन में प्रकाशित एक पहले के अध्ययन में, पूरे भारत के समुद्र तटों पर पाए जाने वाले कचरे का आकलन किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया कि समुद्र में प्लास्टिक कचरा सबसे अधिक था, जो 2019 में 65% और 2021 में बढ़कर 74% हो गया। इसमें भी सबसे ज्यादा भागीदारी सिंगल-यूज प्लास्टिक का रही। कचरे के प्रमुख स्रोत पर्यटन और लोगों द्वारा कचरा फैलाना था, जिनका योगदान 60% से अधिक था।
2024 की रिपोर्ट में सुझाए गए समाधानों में शामिल हैं: प्रमुख भारतीय नदियों में कचरा आने से रोकने के लिए खास तरह के अवरोधक लगाना, सिंचाई ट्यूबिंग, मल्च फिल्म और फसल कवर जैसे कचरे को रीसायकल करने के कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, प्लास्टिक के विकल्पों पर शोध करना, समुद्र तटों को अलग-अलग क्षेत्रों में बांटना और कचरा फैलाने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना, और समुद्री कचरा प्रबंधन को तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं में शामिल करना।
शिपिंग और अपतटीय गतिविधियों से जुड़ी अन्य सिफारिशों में प्लास्टिक सामग्री की पहचान करके उनके प्रवेश पर रोक लगाना और बारकोड स्कैनिंग का इस्तेमाल करके प्रवेश और निकास बिंदुओं पर सामग्रियों की जांच करना शामिल था। इसके अलावा ग्रीन प्रोक्योरमेंट नीतियों जैसे कि ई-कॉमर्स पैकेजिंग में कागज, गत्ते और टेप जैसी रिसाइकिल की जा सकने वाली चीजों का इस्तेमाल करने का भी सुझाव दिया गया था।
रिपोर्ट के लेखकों में से एक और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय समुद्री अनुसंधान केंद्र से हाल ही में रिटायर हुए वैज्ञानिक प्रवरकर मिश्रा कहते हैं, “यह रिपोर्ट प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए एक बड़ा प्लान बनाने की शुरुआत है।” वह आगे कहते हैं कि “इसकी अहमियत इस बात में है कि इसमें अलग-अलग लक्ष्य और तरीके बताए गए हैं। साथ ही, ये प्लास्टिक प्रदूषण कहां से शुरू होता है और कहां तक जाता है, इस बात को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश की गई है।” मिश्रा ने बताया कि इन सुझावों को अलग-अलग मंत्रालयों को भेज दिया गया है, ताकि वो उन पर विचार कर सकें और अपनी राय दे सकें।
ताकत और कमजोरियां
सुगंधी देवदासन मरीन रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसडीएमआरई) के डायरेक्टर एडवर्ड पैटरसन ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि “ये पेपर समुद्री कचरे से होने वाले प्रदूषण से निपटने का एक पूरा तरीका बताता है।” एसडीएमआरई 2017 से तमिलनाडु के समुद्र तटों पर समुद्री कचरे को कम करने की पहल पर काम कर रहा है। पैटरसन कहते हैं कि ये पेपर समुद्री कचरे के बढ़ते पभाव, खास तौर पर सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के बढ़ने पर ध्यान देता है और तुरंत एक्शन लेने की आवश्यकता पर जोर देता है।

बेंगलुरु में क्राइस्ट यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर मैजेश टॉमसन के मुताबिक, “इस रिसर्च पेपर में कचरे की समस्या से जुड़े कई पहलुओं को लिया गया है और इसका दायरा बहुत बड़ा है।” उन्होंने ये भी कहा कि “ये साक्ष्यों पर आधारित है और इसके उद्देश्य बिल्कुल साफ हैं।”
टॉमसन आगे कहते हैं, “यह नीति निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और बेहतर पर्यावरण का मार्ग प्रशस्त करेगी।”
वहीं पैटरसन का मानना है कि इस अध्ययन में कुछ खामियां भी हैं। उदाहरण के लिए, वैसे तो प्लास्टिक पर काफी जोर दिया गया है, लेकिन नीति समुद्री कचरे में योगदान देने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारकों, जैसे कि मछली पकड़ने के जानबूछकर फैंके, खोए या छोड़ दिए गए उपकरण (एएलडीएफजी) पर पूरी तरह से ध्यान नहीं देती है। पैटरसन कहते हैं, “तटीय पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण के लिए एएलडीएफजी पर नियंत्रण और उसे कम करना बेहद जरूरी है।”
2024 के अध्ययन कहता है,” एएलडीएफजी या ‘घोस्ट गियर’ महासागरों में तैरते मलबे में 10% योगदान देता है और समुद्री वातावरण और जाहजों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करता है।” इसमें यह भी स्वीकार किया गया है कि मछली पकड़ने के उपकरणों को वापस लाने और सही तरीके से निपटान के लिए एक कानून बनाना बेहद आवश्यक है।
पैटर्सन के मुताबिक, अध्ययन समुद्री कचरे के जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभाव पर बात नहीं करता है। उन्होंने कहा, “समुद्री कचरा मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और सीग्रास बेड जैसे पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित करता है, जो महत्वपूर्ण कार्बन सिंक हैं और पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खतरे में हैं।” इस संबंध को जानने के लिए नीति में इस बात पर स्पष्ट रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए था।
टॉमसन का कहना है कि “नेशनल मरीन लिटर पॉलिसी (एनएमएलपी) को ठीक से लागू करने और नियमों को सख्ती से पालन करने की जरूरत है। साथ ही यह भी विचार करना होगा कि ये नीति हाशिए पर रहने वाले समुदायों को कैसे प्रभावित करेगी।” इसके अलावा, प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों में नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों, मछुआरों और विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों से ली गई जानकारी शामिल होने चाहिए ताकि एक पूरी रिपोर्ट प्राप्त की जा सके।

राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति की रूपरेखा
पैटर्सन के अनुसार, इस समस्या से व्यापक रूप से निपटने के लिए समुद्री कचरे की राष्ट्रीय नीति को रोकथाम और सुधार दोनों तरह के उपाय शामिल करने चाहिए। वह कहते हैं, “हालांकि (भारतीय) सरकार की ओर से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना और नियमित जागरूकता कार्यक्रम चलाना सराहनीय है, लेकिन समुद्री कचरे के अन्य स्रोतों, विशेष रूप से जानबूझकर फैंके, खोए या छोड़ दिए गए उपकरणों (एएलडीएफजी) से निपटने पर अभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।”
एक मजबूत नीति में कई अहम बातें होनी चाहिए। सभी मछली पकड़ने के उपकरणों पर पहचान के निशान लगाना जरूरी हो, जिससे अगर कोई उपकरण खो जाए तो उसकी जिम्मेदारी तय की जा सके। मछुआरों को भी अपने खोए हुए उपकरणों की रिपोर्ट करनी होगी, ताकि उन पर नजर रखी जा सके और उन्हें ठीक से प्रबंधित किया जा सके। इसके अलावा, मछली पकड़ने के उपकरण बनाने वाली कंपनियों को पुराने उपकरणों को इकट्ठा करने, रीसायकल करने या सुरक्षित तरीके से नष्ट करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। और अंत में, कचरा हटाने और खोए हुए उपकरणों को वापस लाने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए इनाम देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
पैटर्सन कहते हैं कि ये सभी बातें, लगातार जागरूकता कार्यक्रमों, अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय सहयोग और नियमों के सख्ती से लागू करने के साथ मिलकर एक अधिक व्यापक और प्रभावी राष्ट्रीय समुद्री कचरा नीति बनाएंगी।
वहीं टॉमसन कहते हैं, “हमें एक कदम आगे बढ़कर यह सोचना होगा कि प्लास्टिक कचरे और प्रदूषण को शुरुआती स्तर पर ही कैसे रोका जाए।” लगभग 80% समुद्री कचरा नदियों द्वारा लाया जाता है और किसी शहर की स्थानीय झीलें और धाराएं भी इस कचरे के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार होती हैं।
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समुद्री कचरा नीति में कई महत्वपूर्ण कदम शामिल होने चाहिए। इनमें सभी तरह के सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग पर प्रतिबंध, प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग पर रोक, और हर शहर के नगर निगमों को कचरे को इकट्ठा करने, अलग करने, रीसायकल करने और जलाने के लिए उचित नियम और विनियम बनाने का आदेश देना शामिल है। इसके अलावा, शहरों में अधिक रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने को बढ़ावा देना होगा और लैंडफिल के उपयोग को कम करने पर ध्यान देना होगा, क्योंकि प्लास्टिक कचरे का 79% हिस्सा वहीं जाता है।
टॉमसन ने सुझाव दिया है कि तटीय शहरों को समुद्र तटों पर प्रदूषण कम करने के लिए उचित नियम बनाने चाहिए। इसके अलावा, समुद्री वातावरण में मछली पकड़ने के उपकरणों और जालों को फेंकने से रोकने के लिए तटीय क्षेत्रों की नियमित निगरानी भी जरूरी है। साथ ही, उन्हें कुशल अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र स्थापित करने चाहिए जो कचरे और प्लास्टिक को समुद्र में जाने से रोक सकें।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 21 फरवरी 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: मुंबई के तटों पर समुद्री कचरे का जमाव। तस्वीर- मार्विन 101, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 3.0)