- नर्डल्स, प्लास्टिक के छोटे-छोटे दाने जो कि प्लास्टिक उत्पाद बनाने के लिए फीडस्टॉक (कच्चा माल) के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, लोगों और जानवरों के लिए खतरनाक होते जा रहे हैं क्योंकि वे परिवहन के दौरान ज़मीन और जलमार्गों में बिखर जाते हैं।
- जीव नर्डल्स को भोजन समझकर ग्रहण करते हैं जो उनकी मौत का कारण बनते हैं और साथ ही ये प्लास्टिक को खाद्य श्रृंखला में शामिल कर देते हैं।
- हालांकि भारत प्लास्टिक कचरे के ‘प्रबंधन’ पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है जिसमें समुद्रतट की सफाई के अभियान और 2018 से बनाई जा रही समुद्री अपशिष्ट नीति शामिल है। कार्यकर्ताओं का तर्क है कि प्लास्टिक केवल कूड़े की समस्या नहीं है, जैसा कि सरकार पेश करना चाहती है।
- प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए प्लास्टिक जीवनचक्र के सभी तीन चरणों पर काम करने की आवश्यकता है – अपस्ट्रीम, जहां उत्पादन होता है; मिडस्ट्रीम, जहां इससे उत्पाद बनाए जाते हैं; और डाउनस्ट्रीम, जहां कचरे को संभालने की आवश्यकता होती है।
पिछले साल जुलाई 2023 का रविवार था, जब मुंबई में एक लाइफगार्ड ने शहर के अक्सा बीच पर पारदर्शी छोटी-छोटी बूंदें देखीं। यह समझ पाने में असमर्थ कि वे क्या थीं, उन्होंने तटीय संरक्षण फाउंडेशन (CCF) की टीम को बुलाया, जो मुंबई में तटीय और समुद्री पर्यावरण पर काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था है। CCF के सह-संस्थापक शौनक मोदी ने कहा, “वे मछली के अंडों की तरह दिख रहे थे। कौवे उन्हें खा रहे थे। जब हमारी टीम जाँच करने गई, तो उन्होंने उसे जलाया और पाया कि यह प्लास्टिक है।” इसके बाद, शहर के जुहू और वर्सोवा समुद्र तटों और मुंबई के उत्तर में एक जिले पालघर में इन छोटी गोलियों से भरे बैग पाए गए, जिन्हें आमतौर पर नर्डल कहा जाता है। यह भारत में नर्डल रिसाव की पहली रिपोर्ट की गई घटना थी।
नर्डल दाल के दाने के बराबर प्लास्टिक के छर्रे होते हैं, जो लगभग सभी प्लास्टिक उत्पादों के लिए कच्चा माल है। जैसे-जैसे दुनिया भर में प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ा, परिवहन के दौरान जहाजों, ट्रकों, ट्रेनों और औद्योगिक स्थलों से पर्यावरण में नर्डल के रिसाव की कई घटनाएँ हुई हैं। चूँकि नर्डल मछली के अंडों की तरह दिखते हैं, इसलिए समुद्री पक्षी, मछलियाँ और क्रस्टेशियन (कडे खोलवाला जलीयजीव) उन्हें खा लेते हैं, जिससे वे भुखमरी और अंग विफलता का शिकार हो जाते हैं।
मोदी ने कहा, “किसी दूसरे देश में यह एक बड़ा मुद्दा होता, लेकिन यहां किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। सरकार को कम से कम शिपिंग कंपनी से पूछताछ करनी चाहिए थी।” जुहू और पालघर बीच पर नर्डल्स के साथ-साथ दक्षिण कोरियाई कंपनी हनवा टोटल एनर्जी पेट्रोकेमिकल के लेबल वाली बोरियां भी मिलीं। स्कॉटलैंड स्थित चैरिटी फिड्रा, जो दुनिया भर में ‘नर्डल्स हंट्स’ का संचालन करती है, के अनुसार दक्षिण कोरिया प्राथमिक रूप से प्लास्टिक के सबसे पहले स्वरुप (प्लास्टिक उत्पाद निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली आधार सामग्री) का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
“मैंने बृहन्मुंबई नगर निगम के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ से शिकायत की, लेकिन उनका एकमात्र जवाब था कि समुद्र तटों की सफाई कर दी गई है। उन्होंने नियमित समुद्र तट की सफाई की, जो उनकी नियमित जिम्मेदारियों का एक हिस्सा है। मुझे यकीन है कि अगर हम आज जुहू समुद्र तट पर एक फुट रेत खोदें, तो हमें वहां नर्डल्स मिलेंगे,” मोदी ने कहा। मोदी ने बताया कि एक महीने बाद, अगस्त 2023 में, समुद्री पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करने वाले दक्षिण कोरिया स्थित नेटवर्क, अवर सी ऑफ ईस्ट एशिया नेटवर्क (OSEAN) ने मुंबई में रिसाव के बारे में हनवा टोटल एनर्जीज पेट्रोकेमिकल को एक पत्र भेजा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा समुद्री कूड़े और प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक वैश्विक अभियान, स्वच्छ समुद्र अभियान के अनुसार, दुनिया के समुद्रों में 51 ट्रिलियन माइक्रोप्लास्टिक कण हैं। भारत 2018 में अभियान में शामिल हुआ और तब से, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र, चेन्नई (NCCR) ने अपनी समुद्री अपशिष्ट नीति का मसौदा तैयार करने से पहले भारत के समुद्र तट पर समुद्री कूड़े की किस्म और सीमा को समझने के लिए कई समुद्र तट पर सफाई अभियानों का समन्वय किया है। एनसीसीआर के पास भारतीय तट पर समुद्री कूड़े और माइक्रोप्लास्टिक की उत्पत्ति, मार्ग, क्षरण और पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक कार्यक्रम है। “हमारे द्वारा किए गए तटीय सफाई अभियानों में सार्वजनिक कूड़ा समुद्रतट कूड़े का सबसे बड़ा स्रोत बनकर सामने आया। इनमें से 19% खाद्य प्रदार्थों के खाली रैपर थे, उसके बाद प्लास्टिक के कप और बोतलें थीं। औसतन, आज समुद्रतट के हर किलोमीटर में एक टन प्लास्टिक है,” एनसीसीआर के वैज्ञानिक प्रवाकर मिश्रा ने बताया।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, सामान्य स्थिति में और आवश्यक कदमों के अभाव में, जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों में प्रवेश करने वाला प्लास्टिक कचरा 2016 में प्रति वर्ष 9-14 मिलियन टन से लगभग तीन गुना बढ़कर 2040 तक प्रति वर्ष 23-37 मिलियन टन तक पहुंच सकता है। विश्व आर्थिक मंच के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया के महासागरों में मछलियों के वजन से अधिक वजन प्लास्टिक का हो सकता है।
प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर तो काफी ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन प्लास्टिक उत्पादन प्रक्रिया (जीवन चक्र के ऊपरी हिस्से) और इससे निर्मित उत्पादों (मध्यम हिस्से) से होने वाले प्रदूषण पर कम ध्यान दिया जा रहा है। “कई दशकों से प्लास्टिक प्रदूषण को कचरे के कुप्रबंधन का मुद्दा समझा जाता रहा है। पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल्स उद्योग का तर्क है कि यह इस समस्या का हिस्सा नहीं है, और हमारे अधिकांश राष्ट्रीय कानून इसी तर्क से प्रभावित हुए हैं। सरकारों ने ‘प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन’ के लिए धन जुटाया है, जबकि उत्पादन में तेजी से वृद्धि हो रही है। हमने पिछले 10 वर्षों में पिछली सदी की तुलना में अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया है,” दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के कार्यक्रम प्रबंधक सिद्धार्थ घनश्याम सिंह कहते हैं।
“मुंबई में नर्डल स्पिल पर सरकार की प्रतिक्रिया देश के ढ़ीले रवैये को दर्शाती है। हम एक बड़ी आपदा के आने का इंतजार नहीं कर सकते, जब तक कि कोई तंत्र लागू न हो जाए,” सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी में निदेशक-शोध और टीम लीड (तेल और गैस) स्वाति शेषाद्री ने कहा।
डेटा डायनेमिक्स
भारत में प्राथमिक प्लास्टिक का उत्पादन 1990 में 0.9 मिलियन टन प्रति वर्ष से बढ़कर 2021 में 21 मिलियन टन हो गया है, जो 23 गुना की वृद्धि है। सीएसई के सिंह ने कहा, “इसमें से लगभग 87% पैकेजिंग और घरेलू सामान जैसे कमोडिटी प्लास्टिक के लिए है।” लगभग 99% प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से आने वाले रसायनों से प्राप्त होता है। सिंह ने बताया कि भारत में, 67% पेट्रोकेमिकल निर्माण क्षमता का उपयोग पॉलिमर (प्लास्टिक) के निर्माण के लिए किया जाता है।
भारत में पेट्रोकेमिकल उत्पादन क्षमता का 73.75% हिस्सा निजी खिलाड़ियों के पास है। सिंह ने कहा, “44.68% के साथ, रिलायंस इंडिया लिमिटेड के पास यहाँ सबसे बड़ी हिस्सेदारी है।” “भारत 100% से अधिक निर्यात बढ़ाकर खुद को बुनियादी पेट्रोकेमिकल्स, विशेष रूप से पॉलिमर के प्रमुख निर्यातक के रूप में स्थापित करने की योजना बना रहा है। ऐसा लगता है कि प्लास्टिक पेट्रोलियम उद्योग के लिए प्लान बी है,” उन्होंने कहा।
केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मई 2023 में कहा, “आने वाले वर्षों में वैश्विक पेट्रोकेमिकल मांग में वृद्धि में भारतीय पेट्रोकेमिकल उद्योग का लगभग 10% योगदान होने की उम्मीद है। भारत की लगभग 80% पेट्रोकेमिकल क्षमता पेट्रोलियम रिफाइनरियों के साथ एकीकृत है। यह पेट्रोकेमिकल फीडस्टॉक निश्चितता के मामले में भारत को बढ़त देता है।
प्लास्टिक निर्माण में ज्वलन मंदक, यूवी स्टेबलाइजर्स, रंग आदि जैसे गुणों को प्रदान करने के लिए लगभग 13,000 रसायनों का उपयोग किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, इनमें से 7,000 का उनके खतरनाक गुणों के लिए विश्लेषण किया गया है, और 3200 संभावित चिंता के रसायन पाए गए हैं। इनमें फथलेट्स, बिस्फेनॉल ए, बायोसाइड्स और सुगंधित हाइड्रोकार्बन शामिल हैं।
नर्डल्स, एक प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक
मई 2021 में, श्रीलंका के पास सिंगापुर स्थित एक्स-प्रेस फीडर्स द्वारा संचालित कंटेनर शिप एमवी एक्स-प्रेस पर्ल में आग लग गई। आग लगने के बाद, श्रीलंका के समुद्रतट नर्डल्स और जले हुए प्लास्टिक से भर गए। हिंद महासागर में लगभग 1,680 मीट्रिक टन छर्रे गिरने के साथ, संयुक्त राष्ट्र ने इस घटना को “इतिहास का सबसे बड़ा प्लास्टिक रिसाव” कहा। इसने डॉल्फ़िन, कछुए और मछलियों को मार डाला, साथ ही इस द्वीप राष्ट्र में पर्यटन और मछली पकड़ने से चलने वाली आजीविका को नष्ट कर दिया। “समुद्र तट की रेत के विरूद्ध यूवी विकिरण और घर्षण के प्रभाव में पर्यावरण में काफी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक शामिल हो गया है। नतीजतन, समुद्री जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला में माइक्रोप्लास्टिक और भारी धातुओं का अंतर्ग्रहण बढ़ेगा जो कि समुद्री भोजन और नमक के माध्यम से मनुष्यों में जैविक रूप से संचित हो सकता है,” श्रीलंका रिसाव के बारे में दिसंबर 2022 के एक अध्ययन में कहा गया।
छोटे और हल्के होने के कारण, नर्डल पानी पर तैरते हैं और समुद्री धाराओं, नालों और नदियों द्वारा दूर-दूर तक ले जाए जाते हैं। वे फटे हुए बैग से पर्यावरण में मिल सकते हैं। “नर्डल प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण (जो अपक्षय द्वारा माइक्रोप्लास्टिक नहीं बन पाया है) का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं। ग्लोबल नर्डल हंट शुरू करने के बाद से, प्लास्टिक आपूर्ति श्रृंखला से 4.5 मिलियन टन से अधिक नर्डल पर्यावरण में आ चुके हैं, जो बैंकॉक के आकार के क्षेत्र को कवर करने के लिए पर्याप्त हैं,” ग्रेट ग्लोबल नर्डल हंट 2013-2023 की दस साल की रिपोर्ट में कहा गया है, यह दुनिया भर में नर्डल प्रदूषण को रोकने के लिए फिड्रा द्वारा चलाया गया एक स्वयंसेवी नेतृत्व वाला अभियान है। रिपोर्ट में कहा गया है, “16 प्रलेखित बड़े पैमाने पर शिपिंग घटनाएं हुई हैं, जिनके कारण नर्डल रिसाव और छह प्रमुख ट्रेन पटरी से उतरी हैं, लेकिन कई और घटनाएं दर्ज नहीं की गई हैं।”
पर्यावरण से एक बार में नर्डल को पूरी तरह से साफ करना मुश्किल होता है। वे पर्यावरण में अन्य रसायनों को भी अपनी सतह पर आकर्षित करते हैं, जैसे कि जहरीले लगातार कार्बनिक प्रदूषक (पीओपी)। उनकी सतह पर बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीवों की बायोफिल्म भी बनती है, जो ई. कोली जैसे रोगजनकों को आश्रय दे सकती है।
यूरोप (प्राथमिक प्लास्टिक वैश्विक बाजार का 37%) और एशिया-प्रशांत (वैश्विक बाजार का 34%) समुद्र में छर्रों के नुकसान में अधिकतम योगदान देते हैं। फिड्रा द्वारा कमीशन की गई वैश्विक प्लास्टिक छर्रों की आपूर्ति श्रृंखला का मानचित्रण करने वाली रिपोर्ट में कहा गया है, “दुनिया के उन क्षेत्रों में प्लास्टिक छर्रों के प्रदूषण के स्पष्ट सबूत हैं, जहां प्लास्टिक निर्माताओं और कन्वर्टर्स की उच्च सांद्रता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “प्लास्टिक उद्योग के पैमाने में अनुमानित वृद्धि को देखते हुए, यदि भंडारण, हैंडलिंग, परिवहन और छर्रों के रिसाव के रोकथाम की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो लगातार तीव्र और दीर्घकालिक छर्रों के नुकसान का जोखिम भी बढ़ने की उम्मीद है।”
नागरिक समाज समूह और सरकारें समुद्री परिवहन को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन से अपील कर रही हैं कि वह समुद्र में प्लास्टिक के छर्रों को समुद्री प्रदूषक के रूप में वर्गीकृत करके आगे प्रदूषण को रोके, ताकि उन्हें लेबल करते हुए, संग्रहीत किया जा सके और अधिक सुरक्षित तरीके से परिवहन किया जा सके और किसी भी रिसाव से तुरंत निपटा जा सके।
पेट्रोकेमिकल्स और तट
“नर्डल्स हमारे तटों पर आने वाली कई समस्याओं का एक छोटा लेकिन नवीनतम हिस्सा हैं। अगर प्रदूषण को स्रोत पर ही नहीं रोका जाता है, तो समुद्र तट की सभी सफाई एक दिखावा है,” मोदी ने एक वार्षिक कार्यक्रम की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसमें भारत के पश्चिमी तट पर टार बॉल्स को धोया जाता है। “यह एक पेट्रोलियम रिफाइनरी से रिसाव है। ऐसा हर साल होता है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है,” उन्होंने कहा।
शेषाद्रि ने कहा, “अधिकांश पेट्रोकेमिकल उद्योग तट के पास स्थित हैं, जिससे ये क्षेत्र तेल और नर्डल रिसाव तथा कोयला उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।” दिसंबर 2023 में, तमिलनाडु के चेन्नई में बाढ़ के कारण चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड से तेल रिसाव हुआ। तेल जैव विविधता हॉटस्पॉट एन्नोर क्रीक के माध्यम से समुद्र में प्रवेश कर गया। तेल रिसाव के कारण क्रीक के मैंग्रोव का 60 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्रभावित हुआ।
“ये सभी घटनाएँ इस पैमाने की दुर्घटनाओं के प्रबंधन में भारत के खराब ट्रैक रिकॉर्ड को साबित करती हैं। इन कंपनियों द्वारा स्थानीय समुदायों पर किए जाने वाले प्रदूषण की सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य लागतों को भी ध्यान में नहीं रखा जाता है। मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए समुद्र में दूर तक जाना पड़ रहा है। कभी-कभी, वे अनजाने में अंतर्राष्ट्रीय सीमाएँ भी पार कर जाते हैं और जेल में पहुँच जाते हैं। साथ ही, मछुआरों ने यह भी बताया है कि अब उनके द्वारा पकड़ी गई 40% मछलियों में प्लास्टिक शामिल है,” शेषाद्रि ने कहा। यह एक बड़े स्वास्थ्य संकट की ओर भी इशारा करता है। मोदी ने कहा, “अधिकांश तटीय समुदायों के लिए मछली प्रोटीन का एकमात्र स्रोत है, और अब वे इसे खो रहे हैं। मुंबई के मछुआरे अब शायद ही कोई मछली पकड़ पाते हैं, इसके लिए कूड़े भी जिम्मेदार है।”
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शेषाद्री के अनुसार, पॉलिमर कारखानों, प्लास्टिक उत्पाद निर्माण संयंत्रों और अपशिष्ट-से-ऊर्जा सुविधाओं को प्रदूषण भुगतान सिद्धांत के तहत जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “इन विरासत प्रभावों को दूर न करना लागतों को बाहरी और सामाजिक बनाता है, और इस प्रकार जीवाश्म ईंधन के उपयोग को प्रोत्साहित करता हैं।”
वैश्विक प्लास्टिक संधि
सार्वजनिक नीति अधिवक्ता सत्यरूपा शेखर ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हम मांग कर रहे हैं कि 2040 तक प्लास्टिक उत्पादन में कम से कम 75% की कमी की जाए।” उनकी रुचि शहरी शासन, डेटा न्याय और प्लास्टिक प्रदूषण में है।
हालाँकि, भारत सरकार की इस पर सहमत नहीं है। मार्च 2022 में, UNEP ने 193 सदस्य देशों के साथ प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतर-सरकारी वार्ता समिति (INC) का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को उसके जीवनचक्र के सभी चरणों में समाप्त करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन पर पहुचाना है। नवंबर 2023 में केन्या में आयोजित INC की तीसरी बैठक में, भारत प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर से निपटने के लिए प्रस्तुत सभी विकल्पों से असहमत था। “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि समस्या का कारण अप्रबंधित और बिखरा हुआ कचरा है, जो पर्यावरण में लीक हो जाता है और मानव कल्याण और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। साथ ही, हमें विरासत में मिले प्लास्टिक कचरे के कारण होने वाले प्लास्टिक प्रदूषण से अलग तरीके से निपटना चाहिए, और इससे प्लास्टिक के सतत उपभोग और उत्पादन की हमारी समझ पर असर नहीं पड़ना चाहिए,” INC-3 में भारत सरकार की प्रस्तुति में कहा गया है।
“लेकिन चुनौती यह है कि प्लास्टिक हर चरण में प्रदूषण करता है। चाहे वह नर्डल हो या उपयोग में हो। उदाहरण के लिए, सिंथेटिक कपड़ों से पर्यावरण में निकलने वाले हजारों माइक्रोफाइबर और इसे फेंकने के बाद बनने वाले कचरे के लिए हमारी वाशिंग मशीनों में कोई फिल्टर नहीं है। समुद्र को बचाने का मतलब प्लास्टिक की थैलियों को पकड़ने के लिए जाल का इस्तेमाल करना नहीं है,” शेखर ने कहा।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 18 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: नर्डल्स मछली के अंडों की तरह दिखते हैं। समुद्री पक्षी, मछलियाँ और क्रस्टेशियन उन्हें खाकर भूख से मर जाते हैं और अंग काम करना बंद कर देते हैं। तस्वीर- शौनक मोदी/तटीय संरक्षण फाउंडेशन।