- धरती पर जीवन का आरंभ 5000 लाख वर्ष पहले माना जाता है।
- कैम्ब्रियन एक्सप्लोजन के समय कई तरह के जीव अस्तित्व में आए।
- तकरीबन 4120 लाख वर्ष पहले डिवोनी युग के दौरान पहली बार कीट अस्तित्व में आए।
- लाखों वर्षों से कीटों ने कई आपदाएं झेली हैं और जीवित रहे। एकबार फिर कीटों के जीवन पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की वजह से खतरा बन आया है।
करीब 5000 लाख वर्ष पहले धरती पर कई उल्लेखनीय परिवर्तन हुए जिन्हें कैम्ब्रियन एक्सप्लोजन कहा जाता है। इस वजह से जीवन के कई स्वरूप सामने आए, जिनमें कुछ बहुत ही विशाल थे तो कुछ बिल्कुल सूक्ष्म। कुछ जीव धरती पर रहने लगे तो कुछ ने जीने के लिए समुद्र को चुना। पृथ्वी पर कीट इसी दौरान अस्तित्व में आए।
तकरीबन 4,120 लाख वर्ष पहले डिवोनियम या डिवोनी युग के दौरान कीट-पतंगों का अस्तित्व सामने आया। इस दौरान कई विशालकाय कीट भी अस्तित्व में आए, जिनके डैने 2.3 फीट तक फैले हुए थे।
2,510 लाख वर्ष पहले धरती पर भीषण आपदाएं आईं जिसमें यहां मौजूद जीवों का अस्तित्व खत्म होने लगा। इसे पर्मियाई काल के नाम से जाना जाता है। धरती पर रहने वाले 90 फीसदी जीव इन आपदाओं में नष्ट हो गए। 120 लाख वर्ष तक ऐसा ही समय रहा और इस दौरान कीटों का सबसे अधिक नुकसान हुआ।
कीटों की 10 प्रजाति में 8 लगभग विलुप्त हो गए। जीवविज्ञानी मानते हैं कि उस वक्त कीटों की 30 फीसदी आबादी पूरी तरह खत्म हो गई थी। कुछ कीट ऐसे खत्म हुए कि बाद में उनके होने तक का प्रमाण नहीं मिला।
हालांकि, कुछ कीट ऐसे भी थे जिन्होंने बदलती परिस्थितियों में खुद को ढाल लिया और जीवित रखा। न सिर्फ वे इन आपदाओं के दौरान जीवित रहे, बल्कि धरती के हर संभव स्थानों को अपना घर बना लिया। आज के समय जो कीट हमें दिखते हैं वे सभी प्रजातियां पर्मियाई काल के समय बच गई थीं।
कीटों को बढ़ने में पादप यानी पेड़-पौधों के प्रसार से भी मदद मिली। कीट और फूलने वाले पौधे पूरी पृथ्वी पर फैलते गए।
कीटों ने कई आपदाओं का सामना किया। वे भीषण बारिश, भयंकर गर्मी, धरती से निकलते गर्म लावा, भीषण भूकंप और वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बनडायऑक्साइड की मात्रा में कमी और बढ़ोतरी को सहते गए। धरती पर यह परिस्थितियां ऐसी दुरूह थीं कि बड़े जानवर जैसे डायनासोर इसे सह न सके और विलुप्त हो गए। इस दौरान कई स्तनपायी जीव धरती पर आ रही आपदाओं के दौरान खत्म होते गए, लेकिन कीट-पतंगों की कई प्रजातियां उसे झेलती गई।
धरती पर एक समय हिम युग था जहां हर तरफ बर्फ ही बर्फ था, और एक ऐसा भी समय आया जब सुपरनोवा यानी तारे का विस्फोट हुआ। हर परिस्थिति में खुद को बचाते हुए कीट अब तक सुरक्षित रहे।
वैज्ञानिक मानते हैं कि कीट के अस्तित्व पर अब भी एक बड़ी चुनौती है। इसमें उनके विलुप्त होने का खतरा है। दावा है कि पृथ्वी एक और व्यापक विलोपन घटना की गिरफ्त में है जिसे वैज्ञानिक छठा व्यापक विलोपन मानते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण हैं मधुमक्खियां?
विश्वभर में मधुमक्खियों की 25 हजार प्रजातियां पाई जाती है, जिनमें से 4000 प्रजातियों का विस्तृत लेखा जोखा उपलब्ध है। अनुमान है कि भारत में एक हजार प्रजाति की मधुमक्खियां पाई जाती हैं।
मधुमक्खियों का सीधा संबंध हमारे खाने से है, क्योंकि भारत में कई ऐसे पौधे हैं जिनका फूल मधुमक्खियों की मदद से फल में बदलता है। इस प्रक्रिया को परागण कहते हैं। मधुमक्खियों की कई प्रजातियां जैसे जंगली हनी बी, कार्पेंटर बी, बंबल बी और लीफ कटर बी इस काम को करती हैं।
एक शोध के मुताबिक मधुमक्खियों की 40 प्रतिशत आबादी पिछले 25 वर्ष में खत्म हो चुकी है।
परागण के लिए 73 प्रतिशत मधुमक्खयां जिम्मेदार हैं, जबकि कई दूसरे तरह के कीट पतंगे भी इसमें मदद करते हैं। इसमें तितली भी शामिल हैं।
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क्यों कम हो रही कीटों की आबादी?
कीटों की आबादी कम होने के पीछे उनके रहने का स्थान खत्म होना, खेती में कीटनाशकों का प्रयोग, तेजी से बढ़ता शहरीकरण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। बारिश में अनियमितता भी इसके पीछे की एक बड़ी वजह है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इन वजहों से भारत में कीटों की संख्या में कमी आ रही है। कई शोध में सामने आया है कि मोबाइल टावर से निकलने वाला विकिरण भी मधुमक्खियों पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। हालांकि, ऐसा साबित करने के लिए वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं।
कीटों की संख्या पर नजर रखना जरूरी
भारतीय कीटविज्ञानशास्त्री सी.ए. विराकटमथ के मुताबिक कुछ कीट काफी कम संख्या में निवास करते हैं। उनके खत्म होने से हमें पर्यावरण में परिवर्तन का संकेच मिलता है। पेड़ कटने की वजह से भी कीटों की संख्या में कमी आ रही है।
बैनर तस्वीरः पत्ती पर नीले-हरे कीट के अंडे। तस्वीर- मार्टिन लबार/फ्लिकर