- दिल्ली और हरियाणा सीमा के पास स्थित बंधवारी लैंडफिल अब कचरे का पहाड़ बनता जा रहा है। यहां रोजाना लगभग 2000 टन कचरा फेंका जाता है जिस वजह से कचरे का पहाड़ लगभग 40 मीटर लंबा हो गया है।
- लैंडफिल के कचरे की वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं। इससे भूजल प्रदूषण, दुर्गंध की समस्या के साथ मवेशियों का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। बंधवारी के निवासी और पर्यावरण कार्यकर्ता इस लैंडफिल का विरोध करते रहे हैं।
- हालांकि, इस लैंडफिल से कुछ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलता है। इस तरह वे इस प्रदूषण फैलाने वाली जगह पर आर्थिक रूप से निर्भर हो गए हैं।
- इस वीडियो में विशेषज्ञ बता रहे हैं कि कैसे लैंडफिल साइट पर नियमों का पालन नहीं हो रहा है। इस अनुचित कचरा प्रबंधन के कारण सामाजिक-आर्थिक नुकसान हो रहा है।
दिल्ली से सटे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील अरावली के जंगल में स्थित लैंडफिल कचरे का पहाड़ बनता जा रहा है। यह स्थान कभी बंधवारी गांव की सीमा में आता था, इसलिए इसे बंधवारी लैंडफिल के नाम से भी जानते हैं। गुरुग्राम और फरीदाबाद से रोजाना 2,000 टन कचरा यहां फेंका जाता है। कचरे का पहाड़ बढ़ते-बढ़ते अब 40 मीटर से अधिक ऊंचा हो गया है।
यहां कचरे की उचित छंटाई नहीं होती है। यहां गीले कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरा और खतरनाक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे को भी डंप किया जाता है। इस लैंडफिल के आसपास पानी रिसता रहता है और यह पानी मिट्टी और भूजल को तेजी से दूषित कर रहा है। वर्षों से लैंडफिल का विरोध कर रही एक सामाजिक कार्यकर्ता और गुरुग्राम निवासी वैशाली राणा का कहना है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने लैंडफिल और उसके आसपास के 14 स्थानों पर परीक्षण किया और पाया कि यहां का पानी दूषित है। सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बंधवारी में भूजल ‘पीने के लिए उपयुक्त नहीं है‘।
यह बताते हुए कि कैसे बंधवारी लैंडफिल, दिल्ली और दिल्ली एनसीआर क्षेत्रों में तीन अन्य लैंडफिल से अलग है, राणा कहती हैं, “यह एक वन क्षेत्र है। यह अरावली है जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय से संरक्षण प्राप्त है। इसमें एक और बात है – लैंडफिल अधिक ऊंचाई पर है और बाकी गांव थोड़े नीचे हैं।”
बंधवारी निवासी धर्मवीर हर्सना बताते हैं कि किसी भी निवासी ने क्षेत्र में लैंडफिल की अनुमति नहीं दी। “जब नगर निगम ने 2004 में गांव के तत्कालीन सरपंच से पूछा, तो उन्होंने बंधवारी के निवासियों के साथ चर्चा किए बिना उस क्षेत्र में लैंडफिल की अनुमति देने के लिए सहमति व्यक्त दी,” वे कहते हैं।
लोग लैंडफिल का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें बीमार होने का डर परेशान करता है। अपने जीवनयापन के लिए कई लोग यहां अपने मवेशियों पर निर्भर हैं। जहरीले पानी की वजह से मवेशियों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है जोकि गांव वालों की चिंता का विषय है।
“ऐसा नहीं है कि केवल बंधवारी गांव के लोग ही प्रभावित हैं। बगल के गांव मांगर, बलियावास, डेरा, फतेहपुर में भी लोग परेशान हैं,” बंधवारी के एक अन्य निवासी अजीत सिंह दायमा कहते हैं।
हालांकि, सभी लोग सीधे तौर पर लैंडफिल का विरोध नहीं करते हैं। लैंडफिल से गांव के कुछ लोगों को रोजगार भी मिलता है, जिससे वे इसके खिलाफ बोलने से हिचकिचाते हैं। “आखिरकार, अधिकांश पर्यावरणीय समस्याएं आर्थिक समस्याएं भी हैं। और इसे समझना बहुत जरूरी है। इस लैंडफिल साइट के दो पहलू हैं। नौकरी और रोजगार मिलने की वजह से समुदाय का एक हिस्सा इससे लाभान्वित हो रहा है। और दूसरा पक्ष आर्थिक रूप से लाभान्वित नहीं हो रहा, उल्टा उन्हें इससे परेशानी हो रही है। पहले पक्ष को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, लेकिन इसके बदले उन्हें कुछ मिल भी रहा है,” कहते हैं चंद्रभूषण का जो नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक आईफॉरेस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।
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कचरे के इस पहाड़नुमा विशाल ढेर को कम करने के प्रयास में नगरपालिका अधिकारियों ने कचरे से ऊर्जा संयंत्र के साथ बिजली उत्पादन के लिए कचरे को जलाने का प्रस्ताव दिया है। इससे होने वाले प्रदूषण का डर भी लोगों को सता रहा है और इस वजह से लोग इस प्रस्तावित प्लांट का भी विरोध कर रहे हैं। इसकी बड़ी वजह है बंधवारी में प्रस्तावित ऊर्जा संयंत्र में मौजूदा कचरे के उपचार की योजना अभी पूरी तरह से लागू नहीं हुई है। कचरे के उपचार से मतलब इसका उचित निपटान है जिसमें कचरे की छंटाई या वर्गीकरण शामिल है। ऐसा न होने की वजह से कचरे का पहाड़ दिनोंदिन ऊंचा ही होता जा रहा है।
बैनर तस्वीर: दिल्ली-हरियाणा सीमा के पास बंधवारी लैंडफिल दूर से देखा जा सकता है। तस्वीर- शाज़ सैयद/मोंगाबे