- शहरी नियोजन से लेकर निर्माण कार्य में प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं, जैसे कि नीले और हरे रंग की कवर शीट आदि, अर्बन हीट आइलैंड बनने में अपना योगदान देती हैं। यही वजह है कि एक शहर के अंदर और आसपास के तापमान में भिन्नता पाई जाती है।
- 2021 की गर्मी के दिनों में नई दिल्ली और मुंबई के विभिन्न मोहल्लों के तापमान को दर्ज किया गया और पड़ताल की गयी कि आखिर इस अंतर की वजह क्या है।
- अर्बन हीट आइलैंड के लिए पर्यावरण विशेषज्ञ शहरी विकास के तरीकों को प्रमुख कारण बताते हैं। वे भारतीय शहरों के भविष्य के लिए सामाजिक असमानताओं के प्रभाव और प्रभावी विकास की रणनीति की जरूरत पर बल देते हैं।
अर्बन हीट आइलैंड (UHI) प्रभाव के कारण ख़ास तौर से शहरी इलाकों में गर्मी का असर अधिक हुआ। इन इलाकों में गर्मी का बढ़ना कोई पहली या एक बार की घटना नहीं है। अर्बन हीट आइलैंड से तात्पर्य “एक शहर का अपने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म होना।”
2020 तक सभी शहरों को मिलाकर दुनिया की 56.2 प्रतिशत आबादी शहरी इलाकों में रह रही है। शहरी लोगों द्वारा उपयोग या उपभोग की जाने वाली वस्तुएं और शहरी भौगोलिक बसावट गर्मी को प्रभावित करती है। पेड़, पार्क, नमभूमि और जल निकायों जैसी बुनियादी पारिस्थितिक ढांचे की कमी शहरी स्थानों को गर्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शहरों के विकास के आधार पर आस-पड़ोस में अर्बन हीट आइलैंड के अलग-अलग अनुपात होने के कई कारण होते हैं, जो न केवल शहर और उसके आसपास के इलाकों में बल्कि एक शहर के भीतर भी तापमान में अंतर का कारण होता है।
इस घटना को स्पष्ट तौर पर समझने के लिए, हमने मुंबई और दिल्ली के अनेक मोहल्लों से आंकड़े जुटाए। इन आंकड़ों में 2021 की गर्मी के दौरान दर्ज किए गए न्यूनतम और अधिकतम तापमान शामिल हैं।
दिल्ली में, नेहरू प्लेस, गोविंदपुरी और ग्रेटर कैलाश-II में 3 मई, 2021 को तापमान दर्ज किया गया था। “गोविंदपुरी आमतौर पर बहुत कम आय वाला क्षेत्र है।” कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सस्टेनिबिलिटी इन बिल्ट एनवायरनमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर रोनीता बर्धन कहती हैं, “वहां (गोविंदपुरी में) तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना घातक है, जबकि, ग्रेटर कैलाश-II (एक उच्च आय वाला पड़ोसी इलाका) में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचना उतना घातक नहीं है जितना कि गोविंदपुरी में है।”
वह आगे बताती हैं कि ग्रेटर कैलाश-II में अपना घर ठंडा करने के लिए लोगों के पास एयर कंडीशनर है। हालांकि, यांत्रिक वेंटीलेशन से निकलने वाली गर्मी बाहरी तापमान को कृत्रिम रूप से बढ़ाती है, जिससे गोविंदपुरी जैसे शहरी इलाके में रहने वाले गरीब लोगों की परेशानी बढ़ती है। वह यह भी कहते हैं कि यदि हर कोई इनडोर वातावरण को ठंडा करने के लिए अपने एयर कंडीशनर चलाएगा, तो लाइन से लगे पेड़ों और कई पार्कों समेत उच्च आय वाले पड़ोस में तापमान बढ़ेगा।
शहरों में घटती हरियाली और जल क्षेत्र है एक प्रमुख कारण
शहरों के भीतर तापमान को नियंत्रित करने में वनस्पति और जल निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन हरे और नीले आवरण में कमी अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव का कारण बन सकता है। स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स के एसोसिएट डीन अमीर बजाज, शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक आवरण के नुकसान पर प्रकाश डालते हैं। “नौकरियां शहरों में हैं। लोग शहरों में चले जाते हैं, और इसलिए ग्रामीण आय में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं हुई है। समय के साथ लोगों की इच्छाएं भी बदली हैं। लोग कृषि को आगे बढ़ाने के बजाय अधिक आय के लिए शहरों में आना पसंद कर रहे हैं।” वे कहते हैं, “शहरों में मौके ज्यादा हैं, जहां नई समझ विकसित होती है। यह बताते हुए कि इससे शहरों का विस्तार हो रहा है और शहर की हरियाली तथा पानी के स्रोत पर कब्जा बढ़ रहा है, उन्होंने सवाल किया, “इस तरह लोग अपनी आय बढ़ाते हैं। यदि लोग इसी तरह शहरों की ओर भागते रहे, तो हम अपने घर कहां बनाएंगे?”
मुंबई के लिए चुने गए दो इलाके (महाराष्ट्र नेचर पार्क और बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स) मीठी नदी के दोनों किनारों पर एक-दूसरे के करीब हैं, लेकिन दोनों की विशेषताएं अलग-अलग हैं। महाराष्ट्र नेचर पार्क एक मानव निर्मित जंगल है, जिसे एक डंपिंग ग्राउंड पर विकसित किया गया है। यह मीठी नदी पर मैंग्रोव वन से घिरा हुआ है। जबकि बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स एक चहल-पहल वाला वाणिज्यिक और सरकारी परिसर है। इसे जमीन की निचली सतह पर बनाया गया है जिसमें मीठी नदी में उचित सतह के जल निकासी की कमी है।
यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, अर्बन हीट आइलैंड का असर उन शहरों में और बढ़ गया है जिनमें वनस्पतियों और जल निकायों की कमी है। आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की भविष्यवाणी करती है। “अर्बन हीट आइसलैंड अक्सर गर्मी के प्रभाव को बढ़ाता है।”
बर्धन, अर्बन हीट आइलैंड पर विकास से जुड़े इस प्रभाव की व्याख्या करते हुए कहते हैं, “हमें पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि शहरीकरण हमारे शहरों को सघन करेगा, यह तय है। हम इससे लड़ ही नहीं सकते और लड़ना गलत भी है, नहीं तो विकास कैसे होगा? हम इमारतों को बनाते वक्त उनके डिजाइन पर काम कर सकते हैं। हम अपने आस-पड़ोस को इस तरह से डिजाइन कर सकते हैं कि हम गर्मी का असर कुछ कम हो सके।”
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बिल्डिंग मेटेरिअल से 10 प्रतिशत गर्मी का उत्सर्जन होता है जबकि 50 प्रतिशत उत्सर्जन ऑपरेशनल एनर्जी से होता है। बर्धन, हमारे शहरों में गर्मी के बोझ को कम करने में मदद करने के लिए मेटेरियल और डिजाइन दोनों के मिश्रित तरीके से रास्ता निकालते हैं। “भौतिकी न केवल बाहर से अंदर तक आने वाली गर्मी को रोकने के लिए है बल्कि घर के अंदर खाली जगह भी बनाती है या घर के अंदर वेंटिलेशन की रणनीतियां बनाती है ताकि इनडोर गर्मी को बाहर निकाला जा सके।”
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बैनर तस्वीर: अलीशा वासुदेव / मोंगाबे।