- उत्तरी पश्चिम बंगाल में एक अध्ययन में पाया गया कि हाथियों की खाने को लेकर अपनी पसंद और नापसंद होती है। रिकॉर्ड की गई पौधों की 286 प्रजातियों में से उन्होंने लगभग 130 प्रजातियों को खाना पसंद किया था।
- अध्ययन में सामने आई हाथियों के खाने की ये पसंद लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के बिल्कुल उलट है कि हाथी आमतौर पर कुछ भी खा लेते हैं यानी वे ‘जेनरलिस्ट फीडर’ होते हैं। हालांकि इस बात की पुष्टि के लिए एक से ज्यादा मौसम में हाथियों पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
- हाथी जिन पौधों की प्रजातियों को खाना पसंद करते हैं, अध्ययन क्षेत्र में पाया गया कि उनमें से एक तिहाई मानव बस्तियों के आसपास मौजूद हैं। ऐसे में यहां मानव-हाथी संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
कोयम्बटूर में सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) के वैज्ञानिकों द्वारा PLOS One में हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि हर दिन 150 किलोग्राम जंगली चारे की जरूरत के बावजूद हाथी अपनी पसंद के खाने की तलाश में रहते हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा समर्थित यह ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें हाथियों के खाने की पसंद का आंकलन किया गया है। इस स्टडी में वन, चाय बागान और मानव बस्तियों वाले क्षेत्रों को शामिल किया गया था।
अध्ययन में शामिल लेखकों ने पाया कि पश्चिम बंगाल के उत्तरी जिलों में एशिया में सबसे अधिक संख्या में मानव-हाथी संघर्ष देखने को मिल रहा है। यह इलाका नम उष्णकटिबंधीय जंगलों के छोटे हिस्सों के अलावा चाय बागानों, कृषि भूमि और मानव बस्तियों के बीच बसा है। इसे अध्ययन के लिए एक आदर्श स्थान माना गया था। लेखक अध्ययन क्षेत्र के बारे में लिखते हैं, “हाथियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे लैंडस्केप का लगभग 75 फीसदी हिस्सा संरक्षित क्षेत्रों के बाहर का है। यह इस उप-आबादी की आवाजाही और कनेक्टिविटी के लिए गैर-संरक्षित क्षेत्रों के महत्व को रेखांकित करता है।” प्रमुख लेखक ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अध्ययन क्षेत्र में 500 से अधिक हाथी प्रति वर्ग किमी 700 मनुष्यों के साथ जगह साझा करते हुए पाए गए थे।
हाथी किस चारे को खाना ज्यादा पसंद करते हैं, इसका आंकलन करने के लिए हाथियों के लगभग 150 किलोमीटर रास्तों का सर्वेक्षण किया गया था और अलग-अलग जमीन पर उगने वाली कई तरह की पौधों की प्रजातियों की उपलब्धता का आकलन करने के लिए 123 भूखंडों का सर्वेक्षण किया गया। पैरों के निशान, गोबर के ढेर और पेड़ों पर शरीर को रगड़ने के निशानों से फीडिंग ट्रेल का पता लगाया गया और फिर पौधों की प्रजातियों की उपलब्धता के आधार पर उनकी खाने की पसंद और उसकी मात्रा का निर्धारण किया गया।
अध्ययन के दौरान 286 प्रजातियों को रिकॉर्ड किया गया था, जिसमें से हाथियों ने 130 से ज्यादा प्रजातियों को खाना पसंद किया था। अध्ययन में सामने आई हाथियों के खाने की ये पसंद लंबे समय से चली आ रही इस धारणा के बिल्कुल उलट है कि हाथी आमतौर पर कुछ भी खा लेते हैं यानी वो जेनरलिस्ट फीडर होते हैं। लेखकों ने दोहराया कि इस बात की पुष्टि के लिए एक से ज्यादा मौसम में हाथियों पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है। जिन 96 पौधों की प्रजातियों के चयन का आकलन किया गया था, उनमें से 21 प्रजातियों को हाथियों ने सबसे अधिक पसंद किया था।
उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों में चारे के लिए वृक्षों की प्रजातियां काफी ज्यादा थी, जबकि उष्णकटिबंधीय नम वनों में हाथियों के आहार में गैर-वृक्ष प्रजातियों का वर्चस्व रहा। अध्ययन में पाया गया है कि निजी भूमि में उगाए गए मूसा एसपी. (केले और प्लैंटेन की प्रजाति), अरेका कैटेचू (ताड़ की एक प्रजाति) और बांस की विभिन्न प्रजातियां उनके आहार पर हावी रहीं।
अध्ययन की प्रमुख लेखिका प्रियंका दास ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “एशियाई हाथियों के चारे की पसंद को लेकर अभी तक दो अध्ययन हुए हैं – एक बोर्नियो में और दूसरा नेपाल में। इस संबंध में भारत में किया गया कोई अध्ययन मुझे नहीं मिला।” वह भारत में अध्ययन के महत्व के बारे में बात कर रही थीं।
उत्तरी पश्चिम बंगाल में मानव-हाथी संबंध
दास ने 2020 की शुरुआत में उत्तरी पश्चिम बंगाल में अपना फील्ड वर्क पूरा किया। अपने अध्ययन के लिए इस क्षेत्र को साइट के रूप में चुनने के अपने फैसले पर उन्होंने कहा, “यह क्षेत्र पूर्वी हिमालयी जैव विविधता हॉटस्पॉट के अंतर्गत आता है। इस परिदृश्य में वनों में आए बदलाव और क्षरण का बहुत लंबा इतिहास रहा है। शुरुआत में अंग्रेजों ने यहां आकर जंगलों को बदल दिया और उसके बाद यहां गांव बसने लगे। संरक्षित वन छोटे हैं। हाथियों को भोजन, पानी और आश्रय की अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत बड़े क्षेत्र की जरूरत होती है। हम कह सकते हैं कि जंगल चाय बागानों और गांवों के समुद्र में द्वीपों की तरह हैं। इसलिए एक जगह से दूसरी जगह पर जाते हुए हाथियों का फसलों के पास से होकर गुजरना आम है। जाहिर है जब फसल उनके रास्ते में आएगी तो वो उसे अपना चारा बनाएंगे। यह आसानी से मिलने वाला भोजन है। तार्किक रूप से पौधों की प्रजातियों की उपलब्धता को संबोधित करना हमारे लिए एक मुश्किल काम रहा है।”
जलपाईगुड़ी के चलसा के रहने लावे अमीर कुमार छेत्री ने दास को उनके फील्ड वर्क और शोध में काफी मदद की थी। उन्होंने बताया, “हाथी इन इलाकों में इंसानों से पहले से रहते आ रहे हैं। यहां के लोगों को यह बात अच्छे से पता है। हमारा मानना है कि अगर हाथी हमारी फसलों को नष्ट भी कर देते हैं, तो भी हमारी उपज बर्बाद की गई फसल की मात्रा से चार-पांच गुना ज्यादा ही होती है।”
दास ने आगे कहा, “राजबंशी इस क्षेत्र के मूल निवासियों में से एक हैं। वो हाथियों को महाकाल कहते हैं। जब हाथी उनकी फसलों पर हमला करते हैं तो वे मुआवजा भी नहीं मांगते। उनका मानना है कि वो हाथी लोक में रहते हैं और फसल का नुकसान एक कर है जिसे वो चुका रहे है।”
हाथियों की चारा खाने की आदत
अध्ययन में देखा गया है कि हाथी काफी सोच-समझकर निर्णय लेते हैं। वह सबसे पहले ज्यादा चारे वाले भूखंड का चयन करते हैं, फिर उस हिस्से को चुनते हैं जिस पर उन्हें जाना होता है और सबसे आखिर में खाने के लिए प्रजातियों का चयन किया जाता है। वन, चाय बागान, कृषि भूमि और मानव बस्तियों वाले भूखंडों में उपलब्ध चारे के आधार पर हाथियों की खाने की पसंद और नापसंद की गणना की गई। जैसे-जैसे आवासों में कैनोपी कम होते गए (घने से खुले जंगल की ओर), आक्रामक (विदेशी) प्रजातियों का घनत्व गहरा होता चला जाता है। ऐसे में हाथियों के खाने वाली प्रजातियों की उपलब्धता कम हो जाती है। इसके अलावा, यह भी देखा गया कि हाथियों द्वारा पसंद की जाने वाली 32 फीसदी प्रजातियां मानव बस्तियों में पाई गईं। ऐसे में मानव-हाथी संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। अध्ययन में संरक्षण रणनीतियों पर दोबारा गौर करने और उन्हें मजबूत करने की मांग की गई है।
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हालांकि एशियाई हाथियों द्वारा खाए जाने वाले चारे को अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन चारा को लेकर उनकी पसंद के बारे में बहुत कम जानकारी है। इस अध्ययन का उद्देश्य इस संबंध में और अधिक रिसर्च किए जाने को लेकर बातचीत शुरू करना है।
उत्तरी पश्चिम बंगाल में तैनात एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर मोंगाबे-इंडिया को बताया, “वन्यजीवों और लोगों के बीच नकारात्मक संपर्क उनके (वन्यजीवों) आवासों के नुकसान और विखंडन जैसे कई कारकों का परिणाम है।” वह आगे कहते हैं, “तार्किक रूप से कहूं तो, पुनर्वास बहाली का निश्चित रूप से नकारात्मक अंतःक्रियाओं की संख्या पर सीधा प्रभाव होना चाहिए। लेकिन जब आप भारतीय हाथी जैसी प्रजाति से निपटते हैं, जो काफी बुद्धिमान और अनुकूलनीय है, तो सिफारिशों की सफलता की सीमा का अनुमान लगाना तब तक मुश्किल है जब तक कि हम उन्हें क्षेत्र में लागू नहीं कर देते और एक समय-सीमा में परिणामों की निगरानी नहीं कर लेते हैं।
दास ने बताया कि उन्होंने वन विभाग को एक प्रस्ताव दिया है, जिसे उन्होंने अपनी कार्य योजना में शामिल करने पर सहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा, “हमने गैर-देशी प्रजातियों के रोपण को रोकने की भी सिफारिश की, जिस पर वे सहमत हो गए हैं। वे गोरुमारा वन्यजीव प्रभाग की पारिस्थितिक बहाली शुरू करेंगे, जो एक लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है। मेरा मकसद इस पहल के साथ जुड़ना है।”
चूंकि अध्ययन शुष्क मौसम में किया गया था, इसलिए लेखक बारिश के मौसम के लिए अध्ययन करने और बीज फैलाव और वन पुनर्जनन में हाथियों की भूमिका का अध्ययन करने का सुझाव देते हैं। भविष्य की सिफारिश के रूप में, वे यह भी लिखते हैं कि यह समझने के लिए कि क्या हाथियों की आबादी पोषण संबंधी तनाव से गुजर रही है, वनों की प्रजातियों की पोषण संरचना को समझना होगा। यह इस संबंध में की जाने वाली बातचीत या चर्चा में जानकारी का विस्तार कर देगा।
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बैनर तस्वीर: पश्चिम बंगाल में चारा खाता हाथी। उत्तरी पश्चिम बंगाल में एक अध्ययन में पाया गया कि हाथी की भी खाने को लेकर अपनी पसंद और नापसंद होती है। पौधों की रिकॉर्ड की गई 286 प्रजातियों में से उन्होंने लगभग 130 प्रजातियों को खाना पसंद किया था। तस्वीर- प्रियंका दास