- ओवरफिशिंग (एक हद से ज्यादा मछलियां पकड़ना), प्रदूषण, अवैज्ञानिक तटीय निर्माण, आवास का नुकसान और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तटीय जैव विविधता को खतरे में डाल रहे हैं।
- अब समुद्रीय तट के आसपास मछलियां कम मिलती हैं। इसलिए छोटी नाव वाले मछुआरे गहरे पानी में जाने पर मजबूर हो जाते हैं। उन्हें बढ़ते जोखिम, ईंधन और उपकरणों पर खर्च और खराब मौसम का सामना करना पड़ता है।
- तट के आस-पास मछलियों की संख्या को बहाल करने के लिए वैज्ञानिक मछली के आवास और समुद्री कृषि के बेहतर संरक्षण के साथ-साथ गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए बेहतर प्रशिक्षण और उपकरण का सुझाव देते हैं।
डेविडसन एंथोनी एडिमा ने दक्षिण-पश्चिमी भारत के तटीय इलाके में 12 साल की उम्र में मछली पकड़ना शुरू किया था। तब उनके पास लकड़ी के लट्ठे से बनी नाव ‘कट्टुमरम’ थी, जिसे पाल और चप्पू से चलाया जाता है। आज तीन दशक बाद उनके पास एक छोटी फाइबरग्लास बोट है, जिसमें लगी आउटबोर्ड मोटर उसे गहरे पानी में आसानी से ले जाती है। मगर इसके बावजूद आज उनके लिए मछलियां पकड़ने का काम समुद्र, आकाश और मौसम की स्थिति की तरह अनिश्चित हो गया है। यह पहले की तुलना में बेहद लंबा, महंगा और जोखिम भरा काम है।
डेविडसन और फातिमापुरम गांव के उनके साथी केरल में तिरुवनंतपुरम के नजदीकी सेंट एंड्रयूज गांव में अरब सागर के रेतीले तटों पर अपनी लगभग 50 छोटी नावों को लैंड करते हैं और यहीं से उन्हें पानी में उतारते हैं। वहीं दूर कुछ स्थानीय नावें और किनारे पर सीन फिशिंग करने वाले मछुआरों का एक समूह दुर्लभ सुंदर समुद्र तट पर, वॉकिंग और जॉगिंग कर रहे लोगों के बीच खड़े होने की जगह पा लेता है।
अमूमन तो वह तट से 35 किमी के दायरे में मछली पकड़ते हैं। लेकिन जब मछली नहीं मिलती तो कभी-कभी गहरे पानी में चले जाते हैं। तट से लगभग 100 किमी दूर जहां बड़े-बड़े यंत्रीकृत जहाज चलते हैं। डेविडसन की नाव में लगे 40, 15 और 8 हॉर्स पावर के तीन आउटबोर्ड इंजन इतनी दूरी को तय करने में सक्षम हैं। बड़ी लहरों को काटने और खराब मौसम से जल्द बचने के लिए रिजर्व में रखी बड़ी मोटर काम आती है। डेविडसन एक ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के साथ नेविगेट करते हैं, तो वहीं उनके कुछ साथी रेडियो सेट और फिश-फाइंडर (पानी में मछली का पता लगाने के लिए एक उपकरण) का इस्तेमाल करते हैं। जलवायु परिवर्तन और बदलते मौसम में मछुआरों को अपनी सुरक्षा और काम में माहिर होने के लिए तकनीक पर अच्छा-खासा पैसा खर्च करना पड़ता है। इसके लिए वह अकसर ऊंची दरों पर प्राइवेट लोन लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
इतने तकनीकी बदलाव के बाद भी स्थानीय जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन, बेड़े में बढ़ती नावें, मछलियों की कम होती संख्या, ईंधन की बढ़ती कीमतें, अनिश्चितताएं और बाजार की गतिशीलता ने इस पूरे काम को अनिश्चित और जोखिम भरा बना दिया है।
समुद्र के बदलते रंग
डेविडसन ने नवंबर से फरवरी तक समुद्र की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा, “समुद्र पहले तो एक पालने की तरह शांत होता है। मानो यह आपको धीरे-धीरे हिचकोले देते हुए सहला रहा हो। जून से सितंबर के दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून सीज़न के बाद तेज़ हवाएं और लहरें चलने लगती हैं। उस दौरान थेलिवु नालुकल (मलयालम में साफ दिन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला शब्द) मछुआरों के लिए राहत के रूप में आता है।” उन्होंने आगे कहा, “कभी-कभी, जब समुद्र बहुत साफ होता है, तो हम उसकी गहराई में उस हद तक झांक सकते हैं, जहां तक वह दिखाई देता है। लेकिन तब हमें दिन के दौरान किनारे के करीब मछलियां नहीं मिलती हैं।” उन्होंने बताया कि मछुआरों को लहरों के साथ दूर समुद्र में तैरती मछलियों का पीछा करना पड़ता है।
तिरुवनंतपुरम के 78 किमी तट से सटे उथले पानी को चट्टानी या सैंडी रीफ और मछली के समृद्ध आवास बनाने वाले जहाजों के अवशेषों के लिए जाना जाता है। डेविडसन ने कहा, “बस स्टैंड में खड़ी बसों की तरह मछलियां भी कुछ समय के लिए इन जगहों पर रहने के लिए आया करती हैं। यहां नियमित आने वाले मेहमानों में कलावा (ग्रुपर), चेमीन (स्नैपर), मोथा (ब्लैक किंग फिश), ओलप्पु (बाराकुडा) और अन्य मछलियां खास हैं। लेकिन वे अब इन जगहों पर दिखाई नहीं देती। थेडू (कैटफ़िश) और पंजुकादियां (भारतीय हलिबूट) जैसी कुछ मछलियां तो पूरी तरह से गायब हैं।”
दक्षिण पश्चिम भारत में गायब होती समुद्री मछलियों पर 2021 में एक अध्ययन किया गया था। इसमें कभी काफी लोकप्रिय रही स्थानीय मछलियों जैसे नवारा (मुलेट), चेन्नावारा (लाल मुलेट), तलवों, सुन्न मछली और टारपीडो रे के गायब होने का जिक्र था। वैज्ञानिकों ने यह भी नोटिस किया कि ओवर फिशिंग, आवास पारिस्थितिकी में बदलाव और समुद्र के गर्म होने के कारण ऑयल सार्डिन मछली की संख्या में काफी उतार-चढ़ाव आया है। इसके अलावा उन्होंने जेलीफ़िश की प्रचुरता पर भी ध्यान दिया, जो गर्म पानी में मछली के लार्वा को खा जाती है।
प्रदूषण भी एक बढ़ती समस्या है। यहां के तटीय जल की सफाई में शामिल संरक्षणवादियों का कहना है कि मछुआरों द्वारा समुद्र में फेंके गए प्लास्टिक के कचरे और घोस्ट नेट में मछलियां फंस जाती हैं, वहीं मजबूत धाराओं के बहाव में यह कचरा नेट रीफ को भी नुकसान पहुंचाता है। डेविडसन ने कहा, “मछुआरों द्वारा फेंक दिए गए जाल रीफ को ढक देते हैं और मछली इन जगहों पर जाने से बचती हैं।” पर्यावरण एनजीओ थानाल की रिपोर्ट के अनुसार, तिरुवनंतपुरम शहर के पास वेली के पर्यटक समुद्र तट से हाल ही में किए गए एक सफाई अभियान में 2500 प्लास्टिक के टुकड़े, 90 किलो सैंडल, 319 कांच की बोतलें, 32 किलो थर्माकोल, 2 किलो कागज और 10 किलो अन्य कचरा निकाला गया। थानाल के एक प्रवक्ता ने कहा, “महासागर का कचरा एक गंभीर प्रदूषण समस्या है। यह इंसानों, समुद्री वन्यजीवों की सेहत और स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।”
मछुआरे यह भी शिकायत करते हैं कि अकसर शनिवार को जब ज्यादातर स्थानीय मछुआरे छुट्टी पर होते हैं तो पड़ोसी जिलों से मछली पकड़ने वाली नावें तट के बहुत करीब होती हैं। तब फिर वहां छोटी मछलियों (जुवेनाइल फिश) को पकड़ना आम हो जाता है।
जलवायु परिवर्तन और अन्य कारक
केरल यूनिवर्सिटी, तिरुवनंतपुरम के जलीय जीव विज्ञान और मत्स्य पालन विभाग के प्रोफेसर और विभाग प्रमुख ए. बीजूकुमार ने कहा, “वैश्विक जलवायु परिवर्तन की वजह से केरल के तट पर काफी बदलाव आया है।” उन्होंने आगे बताया, “समुद्र में बढ़ते तापमान की वजह से समुद्र के संसाधनों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं में भी बदलाव आया है, जिससे मछुआरों के जीवन और आजीविका पर काफी असर पड़ा है।”
लेकिन जलवायु स्थानीय परिवर्तनों का एकमात्र कारण नहीं है। उदाहरण के लिए, सतह पर पाई जाने वाली कई मछलियों की संख्या कम हो रही है जो आमतौर पर यहां समुद्र में प्रचुर मात्रा में होती थी। बीजूकुमार ने कहा, “हिंद महासागर में ऑक्सीजन की कमी और छोटी मछलियों को जरूरत से ज्यादा पकड़ना इन बदलावों की वजह है।” उन्होंने बताया कि यूट्रोफिकेशन (जलाशयों का पोषक तत्वों से समृद्ध होना) एक और समस्या है। घुलित ऑक्सीजन की घटती सांद्रता केरल के पास अरब सागर के कुछ हिस्सों को ऑक्सीजन न्यूनतम क्षेत्र बना देती है। अध्ययनों से पता चलता है कि बिना सोचे-समझे तैयार की गईं तटीय संरचनाएं जैसे पोर्ट और हारबर मछली के आवासों को नष्ट कर सकते हैं और मछली पकड़ने के काम को जोखिम भरा बना सकते हैं।
एक खतरनाक काम
मछुआरों के लिए सबसे गंभीर खतरा अरब सागर के बदलते तूफान के पैटर्न से है। इसे ऐतिहासिक रूप से भारत के पूर्वी हिस्से में बंगाल की खाड़ी की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता था। लेकिन अब अरब सागर के गर्म होने से अत्यधिक तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात बन रहे हैं। उत्तर हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों पर 2021 के एक अध्ययन में चक्रवाती तूफानों (62 किमी प्रति घंटे से अधिक की हवा) और बहुत गंभीर चक्रवाती तूफानों (112 किमी प्रति घंटे से अधिक की हवा) की तीव्रता (इंटेसिटी), आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) और अवधि में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए 2017 में, बंगाल की दक्षिण-पश्चिमी खाड़ी में बना चक्रवात ओखी, 2500 किमी तक चला और दक्षिण भारत के तट के पास एक बहुत ही भयंकर चक्रवाती तूफान में तेजी से बदल गया। इसकी वजह से समुद्र में फंसे 365 मछुआरे मारे गए। जलवायु परिवर्तन से यहां चक्रवातों का खतरा बढ़ने की आशंका है।
मछली पकड़ना दुनिया में सबसे खतरनाक कामों में से एक माना जाता है। मछुआरों को अक्सर दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ता हैं। इनमें से ज्यादातर घटनाओं के लिए मौसम जिम्मेदार होता है, तो वहीं कुछ घटनाओं की वजह जहाजों और खतरनाक बंदरगाह संरचनाओं से टकराना है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच सालों में तिरुवनंतपुरम के 145 मछुआरों समेत केरल के तट से दूर समुद्र में 345 मछुआरे मारे गए हैं। इस सूची में ओखी में लापता हुए 91 मछुआरे शामिल नहीं हैं।
साल 2011-2016 के दौरान कोल्लम, तिरुवनंतपुरम और कन्याकुमारी जिलों में मछली पकड़ने वाली नौकाओं से जुड़ी कम से कम 643 दुर्घटनाएं दर्ज की गईं। उनमें से 75 फीसदी छोटी, मोटर चालित नावें थीं। दुर्घटना के कारणों में नावों के पानी में उतरने और लैंडिंग के दौरान ऊंची लहरों का आना, पलटना, पानी में गिरना और दूसरे जहाज से टकरा जाने पर गियर को नुकसान पहुंचना शामिल है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चलता है कि विकासशील देशों में मछली पकड़ने के दौरान होने वाली दुर्घटनाएं सख्त कानूनों की कमी, समुद्र के लिए अयोग्य छोटी और खतरनाक नावें, छोटी नौकाओं में दूर तक देख पाने की कम क्षमता, मौसम की जानकारी का अभाव और मौसम की परवाह किए बिना मछली पकड़ने की मजबूरी के कारण होती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अवैज्ञानिक तटीय संरचनाएं मछली पकड़ने के जोखिम को और बढ़ा देती हैं।
ऊंची लहरों के दौरान मछुआरे स्थानीय रेतीले समुद्र तटों के बजाय बंदरगाहों की ओर रुख करते हैं। ये जगहें भी उनके लिए खतरनाक स्थान बन रही हैं। सितंबर 2022 में, सेंट एंड्रयूज से 10 किमी उत्तर में एक बंदरगाह के पास नाव पलटने से चार लोगों की मौत हो गई थी। दक्षिण में 27 किमी दूर विझिंजम बंदरगाह के निकट तटीय जल एक और जोखिम भरा क्षेत्र है। सितंबर 2022 में भी समुद्री मछली पकड़ने में लगी दो नावें असामान्य ऊंची लहरों में फंस गई थीं। दुर्घटना में जीवित बचे 11 मछुआरों में से एक सहयाराजू सुसा माइकल अपनी उम्र के पचासवें दशक में हैं। उन्होंने कहा कि वे अप्रत्याशित तेज हवा और लहरों में फंस गए थे। अचानक हवा तेज हो गई। जिस नाव में वह मछली पकड़ रहे थे, वह पलट गई और चालक दल के पांच सदस्य पानी में गिर गए। वह कहते हैं, “हम तैरते हुए सोच रहे थे कि क्या हम बच पाएंगे या फिर मर जाएंगे। और हम जोर-जोर से चिल्लाने लगे। दूसरी नाव से बचे तीन लोग भी हमारे साथ हो लिए थे। उन्होंने कहा, “हम आठों लोग डेढ़ घंटे तक तैरते रहे। एक नाव ने हमारी आवाज सुनी और हमें बचा लिया…. उन्हें हमें उठाना पड़ा क्योंकि हमारे हाथ और पैर जम गए थे।”
सहयाराजू ने लगभग तीन साल पहले तट के करीब सोलो राफ्ट फिशिंग बंद कर दी थी क्योंकि वह अब उतनी फायदेमंद नहीं रही और वैसे भी अब वह बूढ़े हो रहे हैं। सहयाराजू का बेटा कुमार एक समुद्री जीवविज्ञानी और स्वदेशी वैज्ञानिक हैं। उन्होंने कहा कि पिछले पांच से दस सालों में कई रीफ मछली प्रजातियां घटी हैं। इसलिए अब छोटे परंपरागत मछुआरों के लिए यह काम मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा, “किनारे के करीब कोई मछली नहीं है और कंपटीशन काफी ज्यादा है। यहां अब स्थिति सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट जैसी हो गई है। जो लायक है वहीं यहां बना रह सकता है। इस प्रतियोगिता में राफ्ट का कोई मौका नहीं है।”
नई चुनौतियों के अनुकूल
आईसीएआर-सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के नेतृत्व में 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, ऑफशोर फिशिंग के लिए विविधीकरण एक समाधान है। के.के. कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च (ACARR) के सह-लेखक बैजू कहते हैं कि परंपरागत मछुआरों को नई तकनीकों को अपनाने, बड़े जहाजों का इस्तेमाल करने और गहरे पानी में जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण और सुरक्षा उपायों की जरूरत है। साथ ही ये भी सुनिश्चित किया जाना है कि मछली पकड़ना उनके लिए भरोसे का सौदा है और आर्थिक रूप से उन्हें मजबूत करेगा।” उन्होंने कहा कि इसके लिए सुरक्षा उपकरण और भरोसेमंद मौसम संचार प्रणाली जरूरी है। कई राज्यों ने इन विचारों का समर्थन किया है। गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए मछुआरों के समूहों को प्रशिक्षित और सुसज्जित करने के लिए केरल सरकार ने कदम उठाया है।
कुमार सहयाराजू ने कहा कि तटीय मछुआरे गहरे समुद्र में जाकर मछली पकड़ने का जुआ खेलते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें वहां ढेर मछलियां मिल जाएंगी। लेकिन छोटे मछुआरों के लिए एक सुरक्षित और अधिक टिकाऊ विकल्प मेरीकल्चर (मछली और अन्य समुद्री जीवन की खेती) और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली है। स्थानीय मछुआरों को इन विकल्पों का अनुभव नहीं है। और न ही स्थानीय जैव विविधता पर कोई व्यापक डेटा उपलब्ध है। उन्होंने इसका जिक्र इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फिशरीज एंड एक्वाटिक स्टडीज पेपर में भी किया है। वह इस पेपर के सह-लेखक हैं। उन्होंने कहा, “सटीक अध्ययन और संरक्षण उपाय (मरीन बायोडायवर्सिटी रजिस्टर और ऑडिटिंग, समुद्री-संरक्षित क्षेत्र…. समुद्री स्थानिक योजना) की जरूरत है।” उन्होंने टिप्पणी की कि निश्चित रूप से इसके लिए बॉटम अप इकोसिस्टम प्लानिंग दृष्टिकोण को अपनाया जाना चाहिए।
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बैनर तस्वीरः केरल, तिरुवनंतपुरम के विझिंजम बाजार में मछलियां बेचती मछुआरने। तस्वीर- इंडिया वाटर पोर्टल/ फ़्लिकर