- 2021 में राजस्थान के वन अधिकारियों ने एक हथिनी को तस्करों से बचाया था। तस्कर हथिनी को बिना ट्रांजिट परमिट के दूसरे राज्य में ले जा रहे थे।
- हथिनी की कस्टडी का मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। उधर हथिनी राजस्थान के डूंगरपुर में एक सरकारी नर्सरी में अपने भाग्य के फैसले का इंतजार कर रही है।
- केंद्र सरकार ने 2017 में हाथी पुनर्वास/बचाव केंद्रों के लिए मानदंड जारी किए हैं जिसमें आवास सुविधाओं के साथ-साथ तस्करों के हाथों से बचाए गए हाथियों का इलाज भी शामिल है। ऐसे हाथियों के लिए राजस्थान में भी अपने दिशानिर्देश हैं। हालांकि, राज्य के पास दिशानिर्देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं है।
राजस्थान में, 500 दिन पहले तस्करों से बचाई गई एक हथिनी अभी भी पुनर्वास के लिए उचित जगह का इंतजार कर रही है। इसकी तबीयत लगातार खराब होती जा रही है। दरअसल जहां इसे रखा गया है वहां बचाए गए हाथियों के इलाज के लिए उचित सुविधा नहीं है। अधिकारियों को नहीं पता कि आगे क्या होगा।
18 नवंबर, 2021 को, राजस्थान के वन विभाग ने राज्य की राजधानी जयपुर से लगभग 500 किलोमीटर दूर डूंगरपुर में रूपा (जिसे चंपा भी कहते हैं) नामक एक हथिनी को बचाया था। तस्करों को गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि तस्करों को फरवरी 2022 में जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन हथिनी अभी भी डूंगरपुर जिले के धंबोला शहर में एक सरकारी नर्सरी में अपने भाग्य का इंतजार कर रही है। डूंगरपुर जिले के उप वन संरक्षक (डीसीएफ) सुगना राम जाट बताते हैं कि हथिनी को सरकारी अधिकारियों की देखरेख में 2021 से अस्थायी रूप से यहां रखा गया है।
जाट ने बताया, “हथिनी को उत्तर प्रदेश से राजस्थान के रास्ते गुजरात ले जाया जा रहा था। सूचना मिलने के बाद, हमने गाड़ी का पता लगाया और उसे बचा लिया। जंगली जानवर के एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए वन विभाग ट्रांजिट परमिट जारी करता है। लेकिन ये परमिट आरोपी के पास नहीं था। हमने जानवर को अपनी नर्सरी में भेज दिया और ट्रांसपोर्टरों को गिरफ्तार कर लिया।”
हाथी किस क्षेत्र से है? फिलहाल इसका मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में लंबित है। डीसीएफ जाट ने कहा कि हाथी ले जाने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के बाद, हाथी का मालिक होने का दावा करने वाला एक व्यक्ति डूंगरपुर जिला न्यायालय पहुंचा। उनके पास उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा जारी किये गये दस्तावेज थे। जाट ने कहा, “उस आधार पर, निचली अदालत ने इस व्यक्ति को उसकी कस्टडी दे दी। लेकिन हमने इसे राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी। न्यायाधीशों ने उत्तर प्रदेश वन विभाग से दस्तावेजों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए कहा। उत्तर प्रदेश के अधिकारी पहले ही राजस्थान उच्च न्यायालय को एक रिपोर्ट सौंप चुके हैं। अब हथिनी के भाग्य का फैसला करना अदालत पर निर्भर है। हम हथिनी को आश्रय गृह भेजने के पक्ष में हैं, जहां उसे उचित देखभाल मिल सके।”
रूपा की बिगड़ती सेहत
पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया के एडवोकेसी प्रोजेक्ट्स की निदेशक खुशबू गुप्ता का कहना है कि इस तरह से बचाए गए किसी भी हाथी को मुख्य वन्यजीव वार्डन की हिरासत में रखा जाता है। वह राज्य की संपत्ति बन जाता है। अगर उसे उसके प्राकृतिक आवास में नहीं छोड़ा जा सकता है तो उसे किसी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर में रखा जाना चाहिए या फिर बचाव केंद्र में। गुप्ता कहते हैं कि अगर रूपा राज्य की हिरासत में है, तो उसे तुरंत पुनर्वास केंद्र में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 42 के तहत हाथी पुनर्वास/बचाव केंद्रों के लिए 2017 में मानदंड जारी किए हैं, जिसमें आवास सुविधाओं के साथ-साथ पकड़े गए हाथियों का इलाज शामिल है। बचाव केंद्रों के लिए 18 सूत्रीय दिशानिर्देशों में उस क्षेत्र का उल्लेख है जहां हाथियों को अधिकारी की निगरानी में रखा जाना चाहिए। हाथी का एक महावत या सहायक दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, हाथी पर अंकुश या फिर किसी अन्य दर्दनाक तरीके का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। दिशानिर्देश में कहा गया है कि हाथी को नियमित रूप से टहलने के लिए बाहर ले जाना चाहिए। रूपा जैसे हाथियों के लिए राजस्थान में भी अपने दिशानिर्देश हैं। ज्यादातर सात-बिंदु मानदंड केंद्रीय मानदंडों के जैसे ही हैं।
इधर कानूनी प्रक्रिया चल रही है, उधर रूपा की हालत बिगड़ती जा रही है। वह न तो ठीक से खड़ी हो पाती है और न ही ठीक से खा पाती है।
डूंगरपुर के डीसीएफ जाट ने बताया कि तबियत बिगड़ने के कारण अप्रैल 2023 में उसके गोबर और रक्त के नमूने उत्तर प्रदेश में बरेली के इज्जतनगर स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) भेजे गए थे। डॉक्टरों ने पाया कि वह एंडोथेलियोट्रोपिक हर्पीस वायरस (ईईएचवी) से पीड़ित है।
नाम न छापने की शर्त पर आईवीआरआई के एक अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है। अधिकारी ने कहा, ”ईईएचवी एक घातक बीमारी है। अगर हाथियों में तनाव का स्तर बढ़ जाता है तो यह बीमारी और बढ़ जाती है। हमें उसके खून, गोबर और सीरम के नमूने मिले। हमने पाया कि हथिनी EEHV बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी में जानवर सामान्य दिखता है, लेकिन तनाव इसे घातक बना सकता है।” अस्पताल ने राजस्थान के वन अधिकारियों को हथिनी को बेहतर पोषक तत्व, विटामिन और खनिज देने का सुझाव दिया है ताकि वह जल्दी ठीक हो सके।
पिछले डेढ़ साल से रूपा को बार-बार बीमारी का सामना करना पड़ा है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में सही तरीके का भोजन न मिलने और टहलने के लिए सीमित जगह को उसके खराब स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार बताया गया है।
डीसीएफ डूंगरपुर, सुगना राम जाट ने कहा कि राजस्थान में कोई हाथी बचाव केंद्र नहीं है। उन्होंने बताया, “हमने हाथी को दिए जाने वाले टीकाकरण या बीमारियों या दवा के लिए एक रजिस्टर बना रखा है। लेकिन सभी जरूरतों को पूरा करना संभव नहीं है। यही बड़ा कारण है कि हमने अदालत से इसे उत्तर प्रदेश में उचित पुनर्वास केंद्र में भेजने का अनुरोध किया है। यह हाथी के लिए मददगार होगा लेकिन मामला अदालत में लंबित है।”
राज्य फिर से विचार करे
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण कहते हैं, उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित हाथी अस्पताल को वन विभाग उसे रूपा का हमेशा के लिए घर मान रहा है।
मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा मकसद सिर्फ बचाए गए हाथी को मानवीय देखभाल, उपचार और लंबे समय तक चिकित्सा सहायता और पुनर्वास प्रदान करना है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान में जब्त या बचाए गए जानवरों के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे की जरूरत है। मुकुंदरा वन्यजीव एवं पर्यावरण सोसायटी, कोटा के अध्यक्ष तपेश्वर सिंह ने कहा कि राजस्थान में बचाए गए वन्यजीवों के पुनर्वास के लिए कोई उचित बुनियादी ढांचा नहीं है। राज्य को इसकी जरूरत है।
सिंह ने कहा, “सिर्फ तस्करों से ही नहीं, बल्कि भौगोलिक दृष्टि से भी, मानव-पशु संघर्ष से बचाने के लिए कोटा से मगरमच्छ, उदयपुर से तेंदुआ और शेखावाटी/हाडोती क्षेत्रों से काले हिरण जैसे कई जंगली जानवरों को हर साल बचाया जाता है। उन्हें चिड़ियाघर भेज दिया जाता है। हालांकि चिड़ियाघर में हमेशा बजट की कमी रहती है क्योंकि सरकार चिड़ियाघर के अधिकारियों को केवल प्रदर्शित जानवरों के लिए ही बजट देती है। ऐसे जानवरों की हालत और भी ख़राब हो जाती है। इसलिए, भले ही हमारे पास बचाए गए हाथियों के लिए एक दिशा निर्देश है, हमें राज्य स्तर पर आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ जंगली जानवरों के पुनर्वास के लिए एक व्यापक नीति की जरूरत है।”
मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए पेटा से जुड़ी खुशबू गुप्ता ने कहा, “कैद से बचाए गए हाथी को कैद के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात से ठीक करने के लिए हाथी पुनर्वास केंद्र में विशेष देखभाल की जरूरत होती है, जो राजस्थान में संभव नहीं है। यहां कोई पुनर्वास केंद्र नहीं है। राज्य हथिनी की बेहतरी के लिए अदालत से पुनर्वास केंद्र में हाथी की अंतरिम देखभाल का आदेश देने का आग्रह कर सकता है।”
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बैनर तस्वीर: एक पकड़े गए हाथी को वन शिविर में ले जाया जा रहा है। प्रतिकात्मक तस्वीर। तस्वीर– आनंद ओसुरी / विकिमीडिया कॉमन्स