- एनिमल ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स के विशेषज्ञ अजय कुमार ने मोंगाबे-हिन्दी के साथ साक्षात्कार में लेपर्ड कैट की कैप्टिव ब्रीडिंग को लेकर कई जानकारियां साझा की।
- कुमार के मुताबिक लेपर्ड कैट का आवास और भोजन दो महत्वपूर्ण चीजें हैं। यह भी जरूरी है कि उन्हें तनाव से कितना मुक्त रखा जाए। ऐसा होने पर वह प्रजनन कर सकेगा।
- वह मानते हैं कि अक्सर बिल्ली अपने बच्चे को खारिज कर देती है, इसलिए उनका प्रजनन कराकर अगली पीढ़ी तैयार करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है।
- उन्होंने कहा कि भारत में ‘जू कीपर’ की विशेषज्ञता कम होती है। वे काम करते हुए ही काम सीखते हैं। कैप्टिव ब्रीडिंग या ऐसी प्रजातियों के संरक्षण के लिए उनकी देखभाल करने वालों की भूमिका व रुचि महत्वपूर्ण है।
एनिमल ब्रीडिंग एवं जेनेटिक्स के विशेषज्ञ अजय कुमार झारखंड की राजधानी रांची में स्थित भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में वेटनरी ऑफिसर रहे हैं। कुमार ने बिरसा जू में अपने कार्यकाल के दौरान तेंदुआ बिल्ली (लेपर्ड कैट) की तीन बार सफल प्रजनन करवाया है। फिलहाल कुमार बोकारो जिले में वेटनरी ऑफिसर के रूप में तैनात हैं। छोटी बिल्लियों के प्रजनन को लेकर उन्होंने मोंगाबे-हिंदी से विस्तार में बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश…
सवाल: वाइल्ड लाइफ की कैप्टिव ब्रीडिंग कितना जरूरी है। इसका प्रजातियों की जंगली आबादी पर क्या प्रभाव पड़ेगा? मौजूदा आबादी को खतरे में डाले बिना कैप्टिव ब्रीडिंग कितना व्यावहारिक है?
जवाब: कैप्टिव ब्रीडिंग का मतलब है वन्यजीवों की कैप्टिविटी या बंदी अवस्था में ब्रीडिंग या प्रजनन। जंगली बिल्लियों का प्रमुख आवास जंगल होता है, वहां से बाहर लाकर हम चिड़ियाघर जैसे स्थानों पर उन्हें रखते हैं तो उसको कैप्टिविटी कहते हैं।
कैप्टिव ब्रीडिंग का उद्देश्य खतरे वाली प्रजातियों के व्यवहार का अध्ययन करना है। उसके आधार पर खतरे में आई प्रजाति पर ध्यान केंद्रित कर काम किया जाता है। कैप्टिव ब्रीडिंग के मुख्य रूप से दो कारण हैं, पहला कैप्टिव ब्रीडिंग में उस प्रजाति की संख्या बनाए रखें और दूसरा हम उस प्रजाति के कुछ जीवों को जंगल में भी छोड़ें जो उनका मूल आवास है। ऐसी प्रजातियों के मूल आवास में या तो आबादी कम हुई होती है या कम आबादी की वजह से इन-ब्रीडिंग होती है। इन-ब्रीडिंग का अर्थ है अपने नजदीकी रिश्तेदारों के बीच आपस में प्रजनन। इसे रोकने के लिए नर का इलाका बदलना होता है।
सवाल: लेपर्ड कैट का नेचुरल हैबिटेट में क्या डाइट होता है और बंदी अवस्था में या कैप्टिविटी में उसका क्या भोजन होता है? और यह कैसे उनके ब्रीडिंग पैटर्न को प्रभावित करता है?
जवाब: किसी भी प्रजाति के प्रजनन में दो महत्वपूर्ण पक्ष हैं- उनका आवास और भोजन। यह ध्यान रखना होता है कि वह जिस इलाके में रहता है वह उसके अनुकूल है या नहीं। अगर अनुकूल नहीं है तो वह ब्रीडिंग नहीं करेगा। हम लोगों को यह देखना पड़ता है कि उस प्रजाति को किस तरह का आवास पसंद है। उसको जमीन पर हॉरिजॉन्टल या वर्टिकल स्पेस पसंद है, क्या वह खुद शिकार कर खाना चाहता है या फिर वह जिस प्रजाति को ज्यादा पसंद से खाता है या खाना चाहता है, उसे हम वहां उपलब्ध करवाते हैं।
रिप्रोडेक्टिव बिहेवियर दुरुस्त रखने के लिए विटामिन ए व ई की जरूरत होती है। हम ऐसा खाना देते हैं, जिसमें कुदरती तौर पर से विटामिन ए व ई मिले। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे हम खाने के साथ सप्लीमेंट के रूप में देंगे। चिड़िया का मांस, पॉल्ट्री, सिजनल मीट, जैसे किसी मौसम में बटेर, डे ओल्ड चिक्स (एक दिन का मुर्गी का बच्चा) देते हैं। डे ओल्ड चिक्स देने से उनके शिकार करने की प्रैक्टिस बनी रहती है, जबकि भैंस का मांस देने से उनके दांत की कसरत हो जाती है।
हम उसके अनुकूल माइक्रो क्लाइमेटिक कंडीशन का निर्माण करते हैं, जैसा उसके लिए जंगल में होता है।
सवाल: जू में लोगों का लगातार आना और वन्य जीव को देखना कैसे उन पर असर डालता है?
जवाब: जू में वन्य जीवों को पर्यटक लगातार देखते हैं, इससे जानवर तनाव में रहता है। उनके तनाव को कम करने के लिए हम प्रजनन करने वाले जोड़ों को लोगों की नजर से दूर (ऑफ द विजिटर एरिया) रखते हैं। इससे वह परेशान नहीं होता है और कुदरती जीवन जीता है। अगर उसका स्वास्थ्य ठीक है तो वह प्रजनन करेगा, इसी का फायदा उठाकर हमने लेपर्ड कैट की सफल ब्रीडिंग करवाई थी। हमने उन्हें ऑफ द विजिटर एरिया में रखा, उनके डाइट को उनके अनुकूल कर दिया, उन्हें पोषक आहार दिया, इसका नतीजा तुरंत आया।
हम लोगों ने रांची के बिरसा चिड़ियाघर में मार्च 2012 में लेपर्ड कैट असम स्टेट जू, गुवाहाटी से लाया था और क्वारंटाइन पीरियड में ही उनकी ब्रिडिंग हुई और सफलतापूर्वक उनका शावक हो गया। लेपर्ड कैट का गर्भाधान काल बहुत कम, 70 दिन का होता है। जून 2012 में दो बच्चे हुए, एक नर, एक मादा। फिर 2014 व 2015 में भी ब्रीडिंग हुई। मैं बिरसा जू में अगस्त 2020 तक था।
सवाल: फिर बाद में बिरसा जू में लेपर्ड कैट की ब्रीडिंग क्यों नहीं हो पायी?
जवाब: यहां नजदीक से नजर रखने की जरूरत है। सलेक्शन ऑफ ब्रीडिंग पेयर यानी प्रजनन के लिए चुना गया जोड़ा बहुत महत्वपूर्ण है, कौन सा नर किसके साथ सहज है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरी बात, यह तय करना चाहिए था कि अब सारे प्रोजनी (progeny – संतान या संतती) यहां के ही हैं, यानी सब क्लोज रिलेटिव हैं तो नर को बाहर से ले आना चाहिए था, ताकि यह प्रक्रिया आगे बढे।
लेपर्ड कैट वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत शेड्यूल 2 का जानवर है तो इस पर बहुत जोर नहीं दिया जाता है। यह एक करिश्माई जानवर नहीं है, इसलिए इस पर ज्यादा फोकस नहीं किया जाता है। यह भी जरूरी है कि देश के अलग-अलग जू में उसकी ब्रीडिंग हुई हो तभी एक्सचेंज प्रोग्राम भी हो सकेगा।
सवाल: कैप्टिविटी में लेपर्ड कैट की स्वस्थ आबादी कैसे बनाए रखें। खासकर के उसकी जेनेटिक विविधता और स्वास्थ्य को लेकर?
जवाब: जब कोई जानवर बंदी अवस्था में आता है तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह कहता है कि जो नर है हम उसको परेशान नहीं करें, उसकी संतान (progeny) को हम अलग-अलग जू में एक्सचेंज कर दें, जैसे हम पूर्वी भारत में हैं तो पूर्वाेत्तर या कहीं और से उसे ले आएं। ये जितने ज़्यादा दूर के रिलेटिव होंगे, उतनी अधिक उनमें जैनेटिक डायवर्सिटी या जैनेटिक विविधता आएगी। यह देखना होगा कि दूर-दूर से उनका कोई ब्लड रिलेशन – खून का रिश्ता नहीं हो।
साइंटिफिक ब्रीडिंग के लिए कई बार हम नर को ब्रीडिंग लोन पर भी लाते हैं। जैसे किसी दूसरे जू से पांच महीने छह महीने के लिए हमने लोन पर ले लिया और फिर ब्रीडिंग करवाने के बाद उसे वापस कर दिया। अगर ऐसा लगता है कि किसी जू में सारा इन-ब्रीड पॉपुलेशन (एक ही कुल या ब्लड रिलेशन वाले) आ जाएगा तो उसको कम करने के लिए दूसरे जू से लोन पर ले लेते हैं।
सवाल: क्या उनकी जेनेटिक डायवर्सिटी पर कैप्टिविटी का असर पड़ता है?
जवाब: जेनेटिक डायवर्सिटी पर कैप्टिविटी का असर नहीं पड़ेगा सिर्फ हमको कंट्रोल ब्रीडिंग को अपनाना है। सलेक्टिव कंट्रोल ब्रीडिंग मे हम यह चुनते हैं कि यह मेल हम फीमेल को प्रोवाइड करेंगे और यह जोड़ा होगा जो प्रजनन करेगा। उससे उसकी जैनेटिक डायवर्सिटी हमेशा बनी रहती है।
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सवाल: लेपर्ड कैट की कैप्टिव ब्रीडिंग में क्या चुनौतियां हैं?
जवाब: किसी भी कैट की ब्रीडिंग में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके बिहेवियर या व्यवहार की स्टडी रिपोर्ट आपके पास बहुत कम है, ऐसे में यहां सबसे पहले आपको उसके व्यवहार व स्वभाव को स्टडी करना होता है कि वह क्या पसंद करता है, उस हिसाब से उसे वे चीजें या माहौल उपलब्ध कराना होता है। जब उनके बच्चे का जन्म हो जाता है तो उनका ध्यान रखना होता है। कैट कई बार अपने बच्चे को खारिज कर देती हैं। मदर कैट की मातृत्व क्षमता (मदरिंग एबिलिटी) कम होती है, वह बच्चा होने के बाद भी उसे रिजेक्ट (खारिज कर देना) कर देगी, ऐसे में बच्चे को मां की जो देखभाल मिलनी चाहिए वह नहीं मिलती है। सौभाग्य से बिरसा चिड़ियाघर में सभी बिल्लियों ने अपने बच्चों का खूब ख्याल रखा। यहां यह भी चुनौती होती है कि उनकी देखभाल के लिए समर्पित लोग चाहिए, किसी जू में डॉक्टर हैं, डायरेक्टर हैं तो वे अपना पूरा समय नहीं दे सकते, उसके लिए तीन लोग अलग-अलग शिफ्ट में लगाना होता है, उनमें कोई ड्यूटी करने वाला होगा तो कोई सिर्फ अटेंडेंस बनाने वाला भी होगा। तो यह जरूरी है कि समर्पित लोग चाहिए।
सवाल: आपके इस प्रोजेक्ट से क्या सबक सीखा जा सकता है जिसे समान चुनौतियों वाली अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण पर लागू किया जा सकता है?
जवाब: सबसे पहले उसका स्पीशीज बिहेवियर महत्वपूर्ण है। आपको उसको हर हाल में फॉलो करना है। ऐसा नहीं सोच सकते कि ले आये, एक मेल एक फीमेल को छोड़ दिये हैं तो ब्रीड कर ही जायेगा। उसके बिहेवियर के हिसाब से उस तरह का हाउसिंग सिस्टम डेवलप करना होगा जैसे छिपने की जगह जो उसे प्राकृतिक रूप से मिलती है, वैसा ही उपलब्ध करवाना होगा। उसे न्यूट्रिशन के साथ माइक्रो क्लाइमेटिक कंडिशन उपलब्ध करवाना होगा।
उसके लिए समर्पित कीपर चाहिए, भारत में कीपर का शैक्षणिक स्तर बहुत निम्न होता है। हमारे यहां वे मजदूर की तरह हैं या स्किल्ड लेबर हैं, वह स्किल जो वह काम करते-करते डेवलप करते हैं, लेकिन विदेश में ऐसी स्थिति नहीं है।
सवाल: कैप्टिव ब्रीडिंग या बंदी प्रजनन कार्यक्रम, अक्सर, भारत में सफल नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, इसे संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में पेश किया गया था, लेकिन यह चल नहीं सका। बंदी प्रजनन दृष्टिकोण कितना व्यावहारिक है, इस पर आपके क्या विचार हैं?
जवाब: कैप्टिविटी में ब्रीडिंग के लिए स्पीशीज की प्राथमिकता तय करनी होगी। सेंट्रल जू अथॉरिटी ने कैप्टिविटी में ब्रीडिंग के लिए स्पीशीज की प्राथमिकता तय कर रखी है। उसी में से ब्रीडिंग के लिए स्पीशीज को ढूंढना है। फिर पेयर के लिए यह देखना होगा कि अपने जिन्हें चुना है, वह एक दूसरे से लेस रिलेटेड यानी कम से कम संबंधित हों, ताकि इन-ब्रीडिंग डिप्रेशन हमें उनके बच्चों में दिखाई न दे।
हालांकि कभी – कभी साइंटिफिक ब्रीडिंग मे हम इन-ब्रीडिंग के टूल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जैसे किसी स्पीशीज की प्योर लाइन तैयार करनी होती है तब।
सवाल: पूर्वी भारत या काफी अधिक वन संपदा वाले राज्य झारखंड में किस तरह के स्मॉल कैट हैं?
जवाब: झारखंड में जंगल कैट बहुत है, लेकिन उनकी ब्रीडिंग नहीं हो पा रही है। पॉपुलेशन जिस हिसाब से बढ़नी चाहिए वह नहीं हो पा रहा है। इनके जो प्रीडेटर (भक्षण करने वाले दूसरे जानवर) हैं, हो सकता वह ज्यादा हो गए हों। दूसरी बात अगर ये ब्रीड कर रहे हैं तो इनके बच्चे सर्वाइव नही कर पा रहे हैं।
मेरा मानना है कि हर राज्य में स्थानीय प्रजाति को तय करना चाहिए कि यह हमारे राज्य का प्रमुख जीव है। उसकी आबादी का आंकड़ा देखकर पता लगाना होगा कि यह कम हो रहा है या बढ़ रहा है। यह प्रक्रिया का हिस्सा है। अगर पारिस्थितिकी तंत्र से एक भी प्रजाति की आबादी परेशान हुई तो पारिस्थितिकी तंत्र अच्छा नहीं है। हमारे वातावरण में हर प्रजाति की भूमिका है। इन बातों को देखते हुए यह कोशिश होनी चाहिए कि स्थानीय प्रजातियों की आबादी सही सलामत रहे।
बैनर तस्वीरः रांची के बिरसा चिड़ियाघर में अपने शावक के साथ लेपर्ड कैट। तस्वीर- अजय कुमार