- पर्यावरण, जैव-विविधता और जलवायु को ध्यान में रखकर तैयार किए गए आमने-सामने बैठकर खेले जाने वाले खेलों का मकसद लोगों के बीच पर्यावरण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
- पर्यावरण सम्बंधी खेल अनुभव से मिलने वाली शिक्षा का रूप हैं। इनसे पारिस्थितिकी से जुड़े मुद्दों के असर पर जानकारी बढ़ाना आसान और ज्यादा सुलभ हो जाता है।
- इन खेलों को बनाने वालों का कहना है कि शुरुआती जिज्ञासा के बाद लंबी अवधि में जुड़ाव बढ़ाने के लिए लोगों को प्राकृतिक गतिविधियों या नागरिक समूहों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
कुछ महीनों पहले लॉन्च किया गया एक नया बोर्डगेम, खेलने वालों को नीलगिरी जीवमंडल के सफर पर ले जाता है। इसका नाम बायोम्स ऑफ नीलगिरिस है। यह गेम लोगों को संरक्षणवादियों, फोटोग्राफरों, नागरिक वैज्ञानिकों वगैरह की भूमिकाएं निभाने, लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए संरक्षण मिशन पर जाने के लिए आमंत्रित करता है। यही नहीं, इसमें नीलगिरि तहर, भारतीय गौर, एशियाई हाथी जैसे सैकड़ों जानवरों और 3,300 से ज्यादा फूलदार पौधों की प्रजातियों की खोज करने और यहां तक कि आक्रामक प्रजातियों को हटाने जैसी जानकारियां भी हैं। इस गेम को बनाने वाले ब्लूएनकोर स्टूडियो की संस्थापक शैली सिन्हा ने कहा कि इसे इमर्सिव अनुभव के लिए डिजाइन किया गया है। इसका मकसद नीलगिरी के पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
पिछले कुछ सालों में भारत में पर्यावरण और जलवायु से जुड़े कई गेम लॉन्च हुए हैं। जैसे, द हॉपी फ्रॉग खेलने वालों को यह दिखाता है कि जिस पारिस्थितिकी तंत्र में इंसान हावी हैं, वहां मेंढ़क किस तरह रह पाते हैं। मैप द वाइल्ड भोजन की खोज पर फोकस करता है और बर्ड्स इन द सिटी यह पता लगाता है कि बेंगलुरु में शहरीकरण पक्षियों की संख्या पर किस तरह असर डालता है।
हालांकि, कई तरह के वर्चुअल और ऑनलाइन गेम भी हैं। लेकिन, आमने-सामने बैठकर खेले जाने वाले खेल लोगों को पर्यावरण पर खतरों को समझने और जैव-विविधता से जोड़ने के लिए अलग तरह का सीखने का माहौल उपलब्ध कराते हैं।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) की वरिष्ठ शोध विश्लेषक श्वेता भूषण कहती हैं, “यह लोगों को खेल में शामिल करने का शानदार तरीका है। खेल लोगों की प्रेरणा, आगे बढ़ने और किसी खास काम में आने वाली बाधाओं के बारे में बताता है। भले ही व्यक्ति किसी खास अवधारणा के बारे में कुछ भी नहीं जानता हो, लेकिन इंटरैक्टिव तरीके से वे उस बारे में जान जाते हैं।”
जागरूकता बढ़ाने के लिए टूल
साल 2024 में बनाया गया हॉपी फ्रॉग आसान बोर्डगेम है। इसे अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एटीआरईई) के शोधकर्ताओं शेषाद्रि के.एस., विदिशा एम.के. और मारिया एंटनी पी. ने डिजाइन किया है।
यह गेम कुछ-कुछ सांप-सीढ़ी और मोनोपॉली जैसा है। इसमें बिखरे हुए सफेद, हरे और लाल रंग वाले 100 बक्से होते हैं। खिलाड़ी मेंढक के रूप में खेलते हैं, जिसे वे ओरिगेमी का इस्तेमाल करके बनाते हैं। जब मेंढक हरे या लाल रंग पर उतरता है, तो उन्हें इससे मिलता-जुलता कार्ड चुनना होता है। लाल रंग मेंढक के लिए खतरे का सूचक है, जबकि हरे रंग पर आना उसके लिए फायदेमंद है।

उदाहरण के लिए, अगर लाल कार्ड यह बताता है कि गाड़ी गुजर रही है, तो मेढ़क को पीछे की तरफ उछलना होगा। इससे खिलाड़ी को पता चलता है कि सड़क पर वाहन उभयचर जीवों के लिए खतरा हैं। इससे बड़ा खतरा चिट्रिड कवक के संपर्क में आना है, जो उभयचर जीवों की जान ले सकता है। इसके बाद खिलाड़ी को शुरू से शुरुआत करनी पड़ती है। इस खेल को शहर और गांवों के लगभग 800 लोगों ने खेला है।
शेषाद्रि उम्मीद जताते हैं कि इस गेम के जरिए खिलाड़ी मेंढकों के बारे में थोड़ा-बहुत सीखेंगे, जिन्हें अक्सर “सुस्त जीव” माना जाता है। वे बताते हैं, “मेंढक खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। वे कीड़े खाते हैं और संतुलन बनाए रखने के लिए उनकी आबादी को नियंत्रित करते हैं। इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।”
इस बीच, बायोम्स ऑफ नीलगिरिस में पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले असल, जरूरी मामलों को शामिल किया गया है। गेमप्ले में प्रजातियों को हो रहे नुकसान, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष को शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, अंक पाने के लिए खिलाड़ियों को कैमरा ट्रैप इंस्टॉल करके शिकारी को पकड़ना होता है। सिन्हा बताती हैं कि खेल में असल जीवन के उदाहरणों पर आधारित मिशनों को शामिल करने का उद्देश्य लोगों को वास्तविक दुनिया का अहसास कराना था। वह आगे कहती हैं, “उम्मीद है कि वे खेल को वास्तविकता से जोड़ पाएंगे और अपने फैसलों के असर को उसी के हिसाब समझ पाएंगे।”
हालांकि, इन खेल को तैयार करने वालों का मुख्य उद्देश्य लोगों को उनकी आस-पास की जैव-विविधता से जोड़ना है, जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता। कई बार लोग अपने अहाते या पार्क की वनस्पतियों तक के बारे में नहीं जानते हैं, जहां वे अक्सर जाते हैं। यह कुदरत से अलगाव है, जिन्हें शायद ये बोर्डगेम दूर कर रहे हैं।
सिन्हा कहती हैं, “अनुभव से सीखना सबसे ऊपर है और इसके लिए बोर्डगेम बेहतरीन उपकरण हैं। वे हमें जटिल प्रणालियों को समझने, अलग-अलग नजरिए के लिए सहानुभूति पैदा करने और समाधान के लिए विचारों को सामने लाने में मदद करते हैं। जब आप शिक्षा और मनोरंजन को एक साथ मिलाते हैं और गेमप्ले के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के तरीके सिखाते हैं, तो आप शर्तिया तौर पर पर्यावरण संरक्षण की भावना जगाते हैं।”
डे-ब्रेक जैसे जलवायु गेम खेलने वाली श्वेता को लगता है कि वे असल जीवन की चुनौतियों के बारे में बताने और उन्हें समझने का बेहतरीन जरिया हैं। वह बताती हैं कि सहभागिता वाली कार्यशाला में जब नई अवधारणा या मौजूदा समस्या बताई जाती है, तो अक्सर डेटा और व्याख्यान का इस्तेमाल लोगों को यह समझाने के लिए किया जाता है कि इसका उन पर किस तरह असर होता है। वह कहती हैं, “उदाहरण के लिए, गर्मी कई तरह से कई अलग-अलग समुदायों को प्रभावित कर रही है। लेकिन, इसे उस व्यक्ति को किस तरह इंटरैक्टिव तरीके से बताया जा सकता है जिसे इस बारे में पहले से जानकारी नहीं है? ऐसा करने का एक तरीका खेल है, क्योंकि वे सीखने की प्रक्रिया को ज्यादा आसान बनाते हैं और पहुंच में लाते हैं।”

सबको शामिल करने में मदद
शेषाद्रि और उनके साथी शोधकर्ता लगभग 10 सालों से कर्नाटक के छोटे-से गांव बिसले जा रहे हैं। इसका मकसद उभयचर जीवों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। पिछले साल, शेषाद्रि ने हॉपी फ्रॉग खिलाने का फैसला किया। शेषाद्रि याद करते हैं कि इसने तुरंत असर किया और छात्र मेंढ़कों के बारे में बात करने लगे। वह आगे कहते हैं, “खेल खेलकर लोग जैव–विविधता के बारे में मजेदार तरीके से बात कर सकते हैं। इसमें विषय बहुत ज्यादा बोझिल नहीं लगता है। इससे उनकी सहानुभूति भी बढ़ती है, जो पर्यावरण पर बात करते समय अहम नजरिया है।”
इन खेलों में सबको शामिल करने के बारे में शेषाद्रि कहते हैं, “उदाहरण के लिए, हमारी टीम में हम चार भाषाएं बोलते हैं और इससे उन लोगों की संख्या बढ़ जाती है जिनके लिए हम खेल को सुविधाजनक बना सकते हैं। जिन 800 लोगों के साथ हमने खेल खेला है, उनमें से आधे गांवों से हैं। इस खेल को मुख्य आसान रंगों के साथ डिजाइन किया गया है, इसलिए यह रंग को नहीं पहचान सकने वाले लोगों के लिए अनुकूल है। खेल को समझना आसान और सुलभ बनाया जा सकता है। लेकिन, सबको शामिल करना इस बात पर निर्भर करता है कि बताने वाले इसे किस तरह बताते हैं।”
पर्यावरण को बचाने में मदद?
साल 2014 में लेखक और उद्यमी पॉल हॉकेन ने लगभग 200 शोधकर्ताओं के साथ मिलकर जलवायु समाधानों का व्यापक डेटाबेस तैयार किया था। इस प्रोजेक्ट से प्रेरित होकर कनाडा में मॉन्ट्रियाल के मैकेनिकल इंजीनियर सैम लेवाक-लेवे ने ‘सोल्यूशंस’ नाम का गेम डिजाइन किया, जिसमें खिलाड़ियों को वैश्विक तापमान को कम करने के लिए समाधान सुझाने होते हैं। इसका मकसद लोगों को असल जीवन के जलवायु समाधानों पर चर्चा करने के लिए प्रेरित करना था, उन्हें इसके दुष्प्रभाव को समझाना था और खेल खत्म होने के बाद सोल्यूशन को आगे ले जाना था।
अमेरिका के फ्लोरिडा में अगस्त 2021 में रोजेरियन अकादमी में प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका कैसी क्लेन ने बताया कि किस तरह सोल्यूशंस खेल ने छात्रों को अपने स्कूल के कैफेटेरिया में भोजन की बर्बादी को कम करने के मकसद से काम करने के लिए प्रेरित किया। यहां तक कि उनके स्कूल प्रशासन को अपने परिसर में एक बगीचा फिर से लगाने और उसमें खाद के लिए बर्तन रखने के लिए प्रेरित किया। क्लेन ने यूट्यूब वीडियो में कहा, “इस गेम ने छात्रों को प्रेरित किया, जिन्होंने फिर प्रशासन को यहीं स्कूल में बड़ा प्रभाव डालने के लिए प्रेरित किया।”
सोल्यूशंस जैसे खेल, खिलाड़ियों को खेल से मिले सबक को आगे ले जाने और कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। साल 2020 के एक अध्ययन से पता चला कि बोर्ड गेम किसी खिलाड़ी के कामों और बोर्ड गेम पर उनके असर के बीच जुड़ाव को दिखाने में बहुत ज्यादा असरदार हो सकते हैं। अध्ययन के लेखकों ने कहा कि वे “पर्यावरण को हो रहे नुकसान से पैदा होने वाले सामाजिक मुद्दों के बारे में संवाद के ज्यादा प्रासंगिक, समझने योग्य, ठोस और आसान रूपों” के तौर पर भी क्षमता दिखाते हैं।
साल 2021 मे हुए एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात को मजबूती से सामने रखा कि जिन प्रतिभागियों ने CATAN: Oil Springs खेला, उनके “व्यवहार में टिकाऊ नजरिए और खुद से बताए गए टिकाऊ व्यवहार में बढ़ोतरी” देखी गई। इस खेल को मशहूर बोर्ड गेम CATAN को पर्यावरण से जुड़ा शैक्षणिक उपकरण बनाने के लिए डिजाइन किया गया था।

शेषाद्रि का कहना है कि द हॉपी फ्रॉग जैसे पर्यावरण संबंधी खेलों को तैयार करते समय लोगों को विषय के बारे में जागरूक करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसके बारे में उन्हें शायद ज्यादा जानकारी नहीं होती। वह कहते हैं, “बातचीत शुरू करने के लिए सीखना पहला कदम है। अगर पर्यावरण संबंधी खेल लोगों को जैव-विविधता से जोड़ पाते हैं या उन्हें इसके बारे में जानने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, तो वे अपना काम कर रहे हैं।”
सिन्हा इस बात से सहमत हैं और कहती हैं कि बायोम्स ऑफ नीलगिरिस को तैयार करते समय उन्होंने यह पक्का करने के लिए पारिस्थितिकीविद् गॉडविन वसंत बोस्को और बोटेनिकल इलेस्ट्रेटर संजना सिंह के साथ मिलकर निश्चित किया कि कॉन्टेंट प्रामाणिक और शैक्षिक हो। वह कहती हैं, “विचार यह है कि खेलों के जरिए लोग पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले अलग-अलग कारकों, वन्यजीवों के लिए खतरों, संरक्षण की अहमियत और स्थानीय समुदायों के महत्व के बारे में जानेंगे।”
श्वेता कहती हैं, “खेल खेलने से काम करने की प्रेरणा मिलती है या नहीं या इससे जागरूकता बढ़ती है या नहीं, यह खेलने वाले की दिलचस्पी पर निर्भर करता है। वह कहती हैं, “अगर किसी की पर्यावरण और जलवायु में दिलचस्पी है, तो खेल उसे मजेदार लगेगा और वह इससे सीखेगा, लेकिन अगर उनका ध्यान सिर्फ गेमप्ले पर है, तो वे इसे महज किसी दूसरे बोर्डगेम की तरह देखेंगे।”
शेषाद्रि कहते हैं कि असरदार प्रभाव के लिए इन खेलों को किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा खिलाया जाना चाहिए जो उन्हें शिक्षाप्रद भी बना सकें। हालांकि, वह यह भी मानते हैं कि इसकी एक सीमा है, क्योंकि हमेशा उस तरीके को शामिल करना संभव नहीं होता है। “विचार सिर्फ खेल बनाने और उस पर ठहर जाने का नहीं है। इसमें मदद करने वाले के रूप में, हमें इसे अलग-अलग क्षेत्रों और समुदायों के बीच ले जाना होगा, ताकि इसमें हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल कर सकें और उन्हें उभयचर जीवों जैसे प्रकृति के विभिन्न पहलुओं के बारे में बता सकें। लोगों को प्रकृति से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करके जानने की इच्छा को जीवित रखा जा सकता है।”
श्वेता का यह भी मानना है कि खेल लोगों को सामुदायिक समूहों और जलवायु कार्रवाई प्रयोगशालाओं से परिचित कराकर लंबी अवधि की सहभागिता पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, ताकि खेल सीधे उस तरह के काम में घुल-मिल सकें जिसका लोग हिस्सा बन सकते हैं।
वह आगे कहती हैं, “उदाहरण के लिए, अगर खेल झील को फिर से संवारने जैसे मुद्दों से संबंधित हैं, तो खेल का इस्तेमाल उन्हें इस मुद्दे के बारे में शिक्षित करने, लोगों के बीच संवाद बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। जो लोग इससे प्रेरित होते हैं उन्हें स्वयंसेवी अवसरों या अन्य नागरिक समूहों में भेजा जा सकता है।”
शेषाद्रि कहते हैं कि खेल तैयार करने वाले खिलाड़ियों को थोड़ा प्रेरित करने की कोशिश करते हैं। वे बताते हैं, “हम खिलाड़ियों को खेल खेलने के बाद अलग-अलग मेंढकों के स्टिकर देते हैं और उन्हें अपने आस-पास के इलाकों में उन्हें खोजने के लिए कहते हैं। यह एक तरीका है कि लोग अपने आस-पास की जैव-विविधता की तारीफ करें।”
सिन्हा कहती हैं कि जब लोग खेलते हैं, तो वे सिर्फ तथ्यों के बारे में ही नहीं सीखते हैं। वे इस बारे में भी सीखते हैं कि तुरंत क्या कदम उठाने हैं, दांव पर क्या लगा है और उनमें उम्मीद जगती है। वे आगे कहती हैं, “यह सिर्फ मनोरंजन के बारे में नहीं है। यह जागरूकता पैदा करने, बातचीत को बढ़ावा देने और बदलाव को प्रेरित करने के बारे में है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 28 फरवरी, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: बायोम्स ऑफ नीलगिरिस में पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले असल मामले जैसे कि जैव विविधता का नुकसान, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष, गेमप्ले में शामिल किए गए हैं। तस्वीर – शैली सिन्हा द्वारा।