- अरुणाचल प्रदेश में किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान पहली बार मानुल या पलासेस कैट कैमरे में कैद हुई जो सबसे दुर्लभ छोटी बिल्लियों में शामिल है।
- सर्वेक्षण में समुद्र तल से 4200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पांच अन्य जंगली बिल्लियों की मौजूदगी भी देखी गई। इससे ऐसी ऊंची जगहों पर जंगली बिल्लियों की भरपूर विविधता का पता चलता है।
- जानकारों के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश में मानुल का पहला दस्तावेजी सबूत पूर्वी हिमालय में वन्यजीव अनुसंधान में मील का पत्थर है। वे इन नतीजों को दुनिया भर में जैव-विविधता हॉटस्पॉट के रूप में राज्य की अहमियत की पुष्टि करने वाला बताते हैं और वैज्ञानिक निगरानी और संरक्षण में लगातार निवेश पर जोर देते हैं।
अरुणाचल प्रदेश में पहली बार सबसे दुर्लभ छोटी बिल्लियों में से एक मानुल (ओटोकोलोबस मैनुल) की तस्वीर कैमरे में कैद हुई है। पूर्वोत्तर भारतीय राज्य में इस बिल्ली के होने की पुष्टि से इस प्रजाति की ज्ञात सीमा पूर्वी हिमालय तक बढ़ गई है। पहले इस बिल्ली के भारत के सिक्किम, पड़ोसी देश भूटान और पूर्वी नेपाल में होने के बारे में पता था।
यह फोटोग्राफिक सबूत डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा पिछले साल किए गए वन्यजीव सर्वेक्षण से सामने आया है। पिछले महीने जारी इस सर्वेक्षण के नतीजों में हिम तेंदुआ, सामान्य तेंदुआ, बादलदार तेंदुआ, तेंदुआ बिल्ली और मार्बल कैट जैसी पांच अन्य जंगली बिल्लियों की मौजूदगी भी दर्ज की गई। ये सभी प्रजातियां 4,200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पाई गई हैं, जो इनमें से कुछ के लिए दर्ज की गई सबसे ज्यादा ऊंचाई में से एक है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया का यह सर्वेक्षण रिवाइव ट्रांस-हिमालयन रेंजलैंड प्रोजेक्ट के तहत वन विभाग, अरुणाचल प्रदेश सरकार और स्थानीय समुदायों के सहयोग से किया गया था।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके मानुल की खोज का जश्न मनाया।
अरुणाचल प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और मुख्य वन्यजीव वार्डन (वन्यजीव एवं जैव विविधता) न्गिलयांग टैम ने कहा, “अरुणाचल प्रदेश में मानुल की खोज पूर्वी हिमालय में वन्यजीव अनुसंधान में मील का पत्थर है। ये नतीजे दुनिया भर में जैव-विविधता के केंद्र के रूप में राज्य की अहमियत की पुष्टि करते हैं और वैज्ञानिक निगरानी व संरक्षण में लगातार निवेश पर जोर देते हैं। चरवाहों और ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी दिखाती है कि संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान और उनकी आजीविका हमारे नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा में भागीदार हो सकते हैं।”

ज्यादा ऊंचाई पर पाई जाने वाली प्रजातियां
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने यह सर्वेक्षण जुलाई और सितंबर 2024 के बीच पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों में 2,000 वर्ग किलोमीटर में ऊंचाई वाले ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों में किया। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस दौरान 83 जगहों पर 136 कैमरा ट्रैप लगाए गए, जिससे यह सबसे व्यापक वन्यजीव निगरानी तरीकों में से एक बन गया। “सर्वेक्षण में सावधानीपूर्वक योजना और दूरदराज के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कई दिनों की ट्रैकिंग शामिल थी। इस काम को खराब मौसम, ऊबड़-खाबड़ और खड़ी ढलान, रसद संबंधी बाधाएं व सीमित पहुंच ने चुनौतीपूर्ण बना दिया। कैमरा ट्रैप को अक्सर खराब मौसम और दूरदराज के दुर्गम इलाकों में आठ महीने से ज्यादा समय तक सक्रिय रखा गया था। स्थानीय गाइडों और समुदाय के सदस्यों की भागीदारी और साझेदारी ने टीम को इन चुनौतियों से निपटने में मदद की।
सर्वेक्षण में कई प्रजातियों के लिए सबसे ज्यादा ऊंचाई पर रहने के रिकॉर्ड दर्ज किए गए हैं। इमें सामान्य तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस) समुद्र तल से 4,600 मीटर ऊपर, बादलदार तेंदुआ (नियोफेलिस नेबुलोसा) 4,650 मीटर की ऊंचाई पर, मार्बल कैट (पार्डोफेलिस मार्मोराटा) 4,326 मीटर ऊपर, हिमालयी उल्लू (स्ट्रिक्स निविकोलम) 4,194 मीटर की ऊंचाई पर और ग्रे-हेडेड फ्लाइंग गिलहरी (पेटौरिस्टा कैनिसेप्स) 4,506 मीटर की ऊंचाई पर पाई गई। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सामान्य तेंदुआ, बादलदार तेंदुआ, मार्बल कैट, हिमालयी उल्लू और ग्रे-हेडेड फ्लाइंग गिलहरी के लिए दर्ज ऊंचाई के रिकॉर्ड भारत में अब तक के सबसे ज्यादा हैं और ये पहले से ज्ञात वैश्विक ऊंचाई सीमाओं को पार कर सकते हैं।
“अरुणाचल प्रदेश में लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर मानुल की खोज बार-बार यह याद दिलाती है कि हम ऊपरी हिमालय में जीवन के बारे में अभी भी कितना कम जानते हैं,” डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के हिमालय कार्यक्रम के विज्ञान एवं संरक्षण प्रमुख ऋषि कुमार शर्मा ने मोंगाबे इंडिया को एक ईमेल में अरुणाचल प्रदेश में पलासेस कैट की खोज की अहमियत को समझाते हुए लिखा। उन्होंने आगे कहा, “यह भूभाग हिम तेंदुओं, बादलदार तेंदुओं, मार्बल कैट और अब मानुल को जीवंत चरागाह परंपराओं के साथ आवास दे सकता है, इससे इसकी शानदार समृद्धि और लचीलेपन का पता चलता है। ये नतीजे इस बात पर जोर देते हैं कि विज्ञान और स्थानीय ज्ञान पर आधारित समुदाय की अगुवाई वाला संरक्षण हमारे नाजुक चरागाहों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए क्यों बेहद जरूरी है।”
सर्वेक्षण के उद्देश्य के बारे में शर्मा ने कहा, “यह सर्वेक्षण पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश के ज्यादा-ऊंचाई वाले आवासों में स्तनधारी प्रजातियों की जैव-विविधता का आकलन करने के व्यापक, परिदृश्य-स्तरीय कोशिश के हिस्से के रूप में तैयार किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य हिम तेंदुओं के जनसंख्या-घनत्व का अनुमान लगाना था। हमने अलग-अलग प्रजातियों की मौजूदगी और उस हिसाब से प्रचुरता का दस्तावेजीकरण करने के लिए कई ग्रिड में व्यवस्थित कैमरा-ट्रैप सर्वेक्षणों का इस्तेमाल किया। साथ ही, इस कम-अध्ययन वाले क्षेत्र में भविष्य की संरक्षण योजना को बेहतर बनाने के लिए डेटा भी तैयार किया गया। हम पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों में लंबी अवधि का अनुसंधान और संरक्षण कार्यक्रम चला रहे हैं और हम पिछले पांच सालों से ज्यादा-ऊंचाई वाले वन्यजीवों का अध्ययन कर रहे हैं।”


गुस्सैल बिल्ली
मानुल को उस ऊंचाई पर देखा गया है जो इस प्रजाति के लिए अब तक दर्ज की गई सबसे ज्यादा ऊंचाई (समुद्र तल से लगभग 5,050 मीटर) से थोड़ी ही कम है। इसे इसकी शक्ल-सूरत के कारण “क्रोधी बिल्ली” के नाम से भी जाना जाता है। ठंड के प्रति अनुकूलित यह जंगली बिल्ली सबसे दुलर्भ बिल्लियों में से एक है, जिसकी तस्वीरें शायद ही कैद होती हैं। इसलिए, यह बिल्ली की सबसे कम अध्ययन की गई प्रजातियों में से एक है।
अरुणाचल प्रदेश में पलासेस कैट की पिछली रिपोर्टों पर शर्मा ने कहा, “हमारी जानकारी के अनुसार राज्य में मानुल का कोई पूर्व फोटोग्राफिक दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है। भारत के ऐतिहासिक दस्तावेज बहुत ज्यादा दुर्लभ और अक्सर किस्से-कहानियों पर आधारित हैं, जिनमें से ज्यादातर की पुष्टि और सम्बंधित शोध लद्दाख और आसपास के ट्रांस-हिमालयी क्षेत्रों के ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों से हैं। अरुणाचल से मिला यह फोटोग्राफिक सबूत भारतीय हिमालय के भीतर इस प्रजाति के लिए अहम सीमा विस्तार का रिकॉर्ड है।”
मानुल के संभावित शिकार के बारे में उन्होंने कहा, “जिन ऊंचाइयों पर हमने पलासेस कैट (3,500-5,000 मीटर) का अध्ययन किया है, वहां संभावित शिकार हिमालयी खरगोश या पिका (ओचोटोना प्रजाति), ऊनी खरगोश (लेपस ओयोस्टोलस) और अलग-अलग तरह के चूहे या वोल जैसे छोटे स्तनधारी जीव हैं। जमीन पर घोंसला बनाने वाले पक्षी भी मौसमी रूप से अहम हो सकते हैं। शिकार वाली ये प्रजातियां अल्पाइन घास के मैदानों और झाड़ीदार मैदानों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं, जिनका शिकार करने के लिए पलासेस कैट अच्छी तरह से अनुकूलित हैं।”
सह-अस्तित्व में मदद करती चारागाह परंपराएं
सर्वेक्षण में ब्रोक्पा पशुपालक समुदाय और उनके पशुओं की तस्वीरें भी ली गईं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, यह दस्तावेजीकरण सदियों पुरानी चरागाह परंपराओं को रेखांकित करता है, जिन्होंने इन ऊंचाई वाले चरागाहों में लोगों और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को संभव बनाया है।
ब्रोक्पा समुदाय के बारे में शर्मा ने मोंगाबे इंडिया से कहा, “ब्रोक्पा जातीय-भाषाई समुदाय है जो अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग जिलों के ऊंचाई वाले गांवों में निवास करता है। भारत में इनकी अनुमानित संख्या लगभग पांच हजार से छह हजार के बीच है। ये पारंपरिक रूप से अर्ध-खानाबदोश याक और भेड़ चराने वाले हैं और इनकी आजीविका ऊंचाई वाले चरागाहों से गहराई से जुड़ी हुई है। आज भी कई लोग मौसम के हिसाब से आवाजाही करते हैं और पशुओं को एक चारागाह से दूसरे चारागाह में ले जाते हैं। हालांकि, युवा पीढ़ी कृषि, छोटे व्यापार और जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स (जीआरईएफ) के साथ मजदूरी में तेजी से शामिल हो रही है।”
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स्थानीय वन्यजीवों के साथ ब्रोक्पा समुदाय के संबंधों पर उन्होंने कहा, “ब्रोक्पा स्थानीय वन्यजीवों के साथ घनिष्ठ और अक्सर सकारात्मक संबंध बनाए रखते हैं। एक ओर, हिम तेंदुए और जंगली कुत्ते जैसे शिकारी कभी-कभी मवेशियों को अपना शिकार बना लेते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। दूसरी ओर, उनकी चरागाह वाली जीवनशैली और पारंपरिक संस्थाएं व्यापक चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र के रखरखाव में मदद करती हैं जो जंगली शाकाहारी और मांसाहारी जीवों का भी पोषण करते हैं। अपने काम से, हमने ना सिर्फ इस भूभाग के वन्यजीवों का, बल्कि ब्रोक्पा के जीवंत यथार्थ, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों का भी दस्तावेजीकरण करने की कोशिश की है, जो इन नाजुक पहाड़ी इलाकों में किसी भी लंबी अवधि के संरक्षण प्रयास के केंद्र में हैं।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 7 अक्टूबर, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: साल 2024 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान अरुणाचल प्रदेश में पहली बार मानुल की तस्वीर ली गई थी। इस सर्वेक्षण में सामान्य तेंदुआ, मार्बल कैट और हिम तेंदुआ जैसी अन्य जंगली बिल्लियों के सबसे ज्यादा ऊंचाई पर पाए जाने का भी पता चला। तस्वीर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के सौजन्य से।