- असम के काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में पहली बार ट्रैप कैमरा में मार्बल कैट की उपस्थिति को दर्ज किया गया है। इस प्रजाति को IUCN रेड लिस्ट में ‘संकटग्रस्त’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में यह ट्रैप कैमरा जुलाई 2024 में छोटी स्तनधारी प्रजातियों के लिए चल रहे बायोडायवर्सिटी मॉनिटरिंग के तहत लगाए गए थे।
- इस खोज के बाद शोधकर्ता इस प्रजाति के वितरण, आवास उपयोग और खतरों को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक सर्वेक्षण करने की सलाह देते हैं।
असम के उत्तरी लखीमपुर जिले के काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में मार्बल कैट (पार्डोफेलिस मार्मोराटा) का पहला फोटोग्राफिक साक्ष्य दर्ज किया गया। यह देश में छोटी जंगली बिल्लियों की रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। आईयूसीएन की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत इस मार्बल कैट को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सर्वोच्च स्तर का संरक्षण प्राप्त है।
यह तस्वीर जुलाई 2024 में काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में चल रहे बायोडायवर्सिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम के तहत लगाए गए ट्रैप कैमरा में रिकॉर्ड की गई थी, और इसके निष्कर्ष हाल ही में जर्नल ऑफ़ थ्रेटन्ड टैक्सा में प्रकाशित किए गए।
“हमने काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में छोटी स्तनधारी प्रजातियों की गतिविधियों और पारिस्थितिकी का अध्ययन करने के लिए ट्रैप कैमरा लगाए थे। इस दौरान, हमें एक मार्बल कैट का फोटोग्राफिक साक्ष्य मिला, जो काकोई में इस प्रजाति का पहला फोटोग्राफिक दस्तावेज़ीकरण है,” जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के लेखकों में से एक, अभिजीत कोंवर ने मोंगाबे इंडिया को बताया।
काकोई का यह जंगल उत्तरी लखीमपुर जिले के दो अन्य आरक्षित वनों, रंगा और दुलुंग से जुड़ा हुआ है। “काकोई में मार्बल कैट की मौजूदगी दर्शाती है कि इस ज़िले के जंगलों की सेहत अच्छी है,” जिले के प्रभागीय वन अधिकारी मनोज गोस्वामी ने कहा।

मार्बल कैट के आवास
मार्बल कैट एक छोटी बिल्ली होती है जिसके बालों का पैटर्न विशिष्ट रूप से मार्बल या धब्बेदार होता है। यह बिल्ली तेंदुओं की तरह जमीन और पेड़ों दोनों पर रहती है। आकार में यह लगभग एक बड़ी घरेलू बिल्ली के समान होती है, हालाँकि इसकी पूँछ लंबी और घनी होती है। यह प्रजाति भारत-मलय क्षेत्र में पूर्वी नेपाल में हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण-पश्चिमी चीन तक, महाद्वीपीय दक्षिण-पूर्वी एशिया और सुमात्रा एवं बोर्नियो द्वीपों में पाई जाती है। इस नए अध्ययन के अनुसार, भारत में यह प्रजाति उत्तरी पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के पूर्वी हिमालय की तलहटी में सदाबहार, अर्ध-सदाबहार और बाँस के मिश्रित वनों में पाई जाती है।
“मार्बल कैट मुख्य रूप से बड़े नम और मिश्रित पतझड़ और सदाबहार वन क्षेत्रों से जुड़ी होती हैं, जिनमें ऊंचे पेड़ों की घनी आबादी और कम से कम 48.6% वन आवरण होता है,” कोंवर ने बताया।
शोधपत्र के अनुसार, अध्ययन क्षेत्र के सबसे नज़दीकी स्थल, जहाँ पहले मार्बल कैट की सूचना मिली थी, अरुणाचल प्रदेश में टैली घाटी वन्यजीव अभयारण्य और असम के धेमाजी जिले का सुबनसिरी रिजर्व फ़ॉरेस्ट थे। ये दोनों जगह अध्ययन क्षेत्र से लगभग 20 से 30 किलोमीटर दूर हैं।
“ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में 2,690 मीटर की ऊँचाई पर एक ट्रैप कैमरा रिकॉर्ड, भारत में मार्बल कैट की अब तक की ज्ञात ऊपरी सीमा को दर्शाता है। असम में मार्बल कैट के कैमरा ट्रैप रिकॉर्ड, मानस और नामेरी टाइगर रिज़र्व में, निचली ऊँचाई तक ही सीमित हैं,” शोधपत्र में आगे कहा गया है।
कोंवर बताते हैं कि काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट में इस प्रजाति के कैमरा ट्रैप रिकॉर्ड असम में इसकी उपस्थिति के और सबूत प्रदान करते हैं, जो छोटे और कम सर्वेक्षण वाले रिजर्व फ़ॉरेस्ट में व्यवस्थित कैमरा ट्रैपिंग के महत्व को उजागर करते हैं।
कैसे लगाए गए कैमरा
अध्ययन के लिए, 10 जुलाई से 6 अगस्त, 2024 तक, 28 दिनों की अवधि में छोटे स्तनधारियों का दस्तावेज़ीकरण करने के लिए आठ निष्क्रिय इन्फ्रारेड ब्राउनिंग स्ट्राइक फोर्स प्रो डीसीएल ट्रैप कैमरा लगाए गए थे।
“कैमरा ट्रैप को जानवरों के रास्तों और प्राकृतिक रास्तों पर, ढलान के अनुसार, ज़मीन से लगभग 30 से 50 सेंटीमीटर ऊपर, बिना किसी चारे के, अवसरवादी ढंग से लगाया गया था। इन्हें 1.5-2 किलोमीटर की दूरी पर लगाया गया था और पूरे सर्वेक्षण काल में ये 24 घंटे सक्रिय रहे, यानी कुल 224 कैमरा ट्रैप दिन,” कोंवर ने बताया। कैमरा ट्रैप दिनों की गणना, इस्तेमाल किए गए कैमरा ट्रैप की संख्या को प्रत्येक कैमरे के चालू रहने के दिनों की संख्या से गुणा करके की जाती है।

उन्होंने आगे बताया कि कैमरा ट्रैप में तेंदुआ, मलायन साही और जंगली सूअर जैसी अन्य प्रजातियाँ भी रिकॉर्ड की गईं। लखीमपुर के पर्यावरणविद् जुगल बोरा ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “इन छोटे स्तनधारियों के अलावा, काकोई जैसे आरक्षित वनों में हाथियों की भी अच्छी आबादी है और स्थानीय निवासियों ने इन जंगलों में तेंदुओं की मौजूदगी की भी सूचना दी है।”
लोग और जंगली बिल्लियाँ
शोधकर्ताओं ने काकोई रिजर्व फ़ॉरेस्ट की सीमा से लगे गांवों में रहने वाले 18 लोगों को मार्बल कैट की तस्वीर दिखाकर उनसे उसकी पहचान पूछी। इन लोगों ने इसकी पहचान स्थानीय भाषा में गोधाफुतुकी या गोधाफुतुकी मेकुरी के रूप में की। दिलचस्प बात यह है कि स्थानीय लोग लेपर्ड कैट, एक दूसरी छोटी जंगली बिल्ली की प्रजाति, को भी इसी नाम से जानते हैं।
कोंवर ने इस बारे में आगे बताया कि जिन लोगों से ये सवाल पूछे गए वह मुख्य रूप से किसान और चरवाहे थे जो अक्सर अपने पशुओं को चराने, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने और अन्य जीविका गतिविधियों के लिए जंगल का उपयोग करते थे। “यहाँ के ग्रामीण मुख्यतः मिसिंग, नेपाली और चाय जनजाति समुदायों से हैं,” कोंवर कहते हैं।
हालांकि शोध पत्र में असम में आदिवासी शिकारियों द्वारा मार्बल कैट के शिकार की पहले भी रिपोर्टें आई हैं, कोंवर बताते हैं कि 13 उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने कभी किसी मार्बल कैट को न तो चोट पहुँचाई और न ही मारा। पाँच अन्य लोगों ने बताया कि जब मार्बल कैट उनके पोल्ट्री फ़ार्म के पास आती थीं, तो वे कभी-कभी उन्हें डराने के लिए गुलेल का इस्तेमाल करते थे, लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उनका इरादा उन्हें मारने का कभी नहीं था।
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कोंवर कहते हैं, “उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि वे न तो इन जानवरों का मांस खाते हैं और न ही इनके किसी अंग की बिक्री करते हैं।” “हमारे उत्तरदाताओं ने बताया कि अवैध शिकार, कर्मकांडी शिकार और बदले की भावना से की गई हत्याएँ इस समय मार्बल कैट के लिए कोई बड़ा ख़तरा नहीं हैं।”
“असम में मार्बल कैट के बारे में बहुत कम जानकारी होने के कारण, हम इसके वितरण, आवास उपयोग और क्षेत्र में इसके सामने आने वाले खतरों को बेहतर ढंग से समझने के लिए सर्वेक्षणों की पुरज़ोर सिफ़ारिश करते हैं। इसके अलावा, स्थानीय लोगों से मार्बल कैट के संरक्षण के बारे में बात करना भी इसके संरक्षण के लिए ज़रूरी है,” वे सुझाव देते हैं।
बैनर तस्वीरः आईयूसीएन की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत इस मार्बल कैट को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सर्वोच्च स्तर का संरक्षण प्राप्त है। एक छोटी बिल्ली होती है जिसके बालों का पैटर्न विशिष्ट रूप से मार्बल या धब्बेदार होता है। यह बिल्ली तेंदुओं की तरह जमीन और पेड़ों दोनों पर रहती है। तस्वीर – जेम्स ईटन, विकिमीडिया कॉमन्स (CC0 1.0) के माध्यम से।