- बिहार में फेफड़े के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके पीछे वायु प्रदूषण एक बड़ी वजह है।
- साफ वायु के लिए एक विशेष कार्ययोजना पटना, गया और मुजफ्फरपुर में अप्रैल 2019 में लागू की गई थी लेकिन जानकार मानते हैं कि यह योजना काफी धीमी गति से चल रही है।
- ठोस कचरा और बायो मेडिकल कचरे को जलाने की वजह से हवा और अधिक प्रदूषित होती जा रही है।
सत्तर की उम्र में राज कुमार यादव एक गंभीर रोग से जूझ रहे हैं। तीन महीने से वह अस्पताल में भर्ती हैं। बार-बार खांसी का दौरा पड़ता है और कभी-कभी देर रात नींद में ही खांसी शुरू हो जाती है और घंटों चलती है। खांसते-खांसते बेहाल हो जाते हैं और सर दर्द शुरू हो जाता है।
यादव कुछ साल पहले मजदूरी का काम करते थे लेकिन बीते कुछ महीनों से अपने बच्चों पर आश्रित हैं। उनका मानना है कि कचरे के पहाड़ से निकलते धुएं की वजह से उनकी तबियत इस कदर खराब हुई है।
पटना-गया सड़क पर रामतक बिरिया गांव में उनका दो मंजिला घर है और घर के बगल में 74 एकड़ में फैला कचरे का अंबार। बिहार की राजधानी पटना का कचरा यही रखा जाता है। “यहां स्थिति नर्क से भी बदतर है। खतरनाक कचरे में नगर निगम के लोग सीधे आग लगा देते हैं। आस-पास के लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही है, पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है,” वह कहते हैं।
“स्थिति इतनी खराब है कि हाल में खत्म हुए बिहार विधानसभा चुनाव के समय में प्रचार करने वास्ते भी नेता लोग इस क्षेत्र में नहीं आए,” इतना कहने के बाद यादव को फिर खांसने लगते हैं।
स्थानीय लोगों को लगता है कि अगर जांच की जाए तो कई और लोगों में सांस और फेफड़े संबंधी बीमारियां सामने आएंगी। “कचरे में हमेशा आग लगी रहती है और कभी-कभी इतना धुआं उठता है कि घर में रहना मुश्किल हो जाता है। धुएं की बदबू हमारे कपड़ों, बरतन और खाने तक में समा गई है। लगता है सरकार ने हमें मरने के लिए छोड़ दिया है,” पैंतालीस वर्षीय स्थानीय दुकानदार चरण शुक्ला कहते हैं।
बिहार में बढ़ रहा फेफड़े का कैंसर
स्वास्थ्य के जानकारों का दावा है कि बिहार में फेफड़े के कैंसर के मरीज में बढ़ोतरी देखी जा रही है और वे इसके पीछे की बड़ी वजह बढ़ता वायु प्रदूषण को मानते हैं। “हम वर्ष 2015 से पहले तक हर साल लगभग 19,000 फेफड़ा कैंसर के मरीज देखा करते थे, लेकिन अब इसकी संख्या 25,000 तक पहुंच चुकी है,” महावीर कैंसर संसथान एवं रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार कहते हैं। पटना स्थित इस संस्थान में बिहार भर से मरीज इलाज के लिए आते हैं।
“दुःख की बात है कि बिहार में मरीज जब हमारे पास आते हैं तो वे अक्सर तीसरे या चौथे चरण में होते हैं। इसमें लोगों की भी कोई गलती नहीं है, क्योंकि बीमारी का पता काफी देरी से चलता है। उससे पहले जिंदगी सामान्य रहती है और कोई स्वास्थ्य समस्याएं या लक्षण नहीं नजर आतीं,” कुमार कहते हैं।
वह कहते हैं कि लगभग 60,000 नए कैंसर के मामले बिहार में सामने आ रहे हैं जिसमें से 50 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हो जाती है। इसकी बड़ी वजह देरी से बीमारी का पता चलना है।
गैर लाभकारी संस्था ग्रीनपीस साउथ एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पटना विश्व का सातवां और देश का छठा सबसे प्रदूषित शहर है। यह रिपोर्ट वर्ष 2019 में जारी की गई थी। बिहार का एक दूसरा शहर मुजफ्फरपुर इस रिपोर्ट में तेरहवें स्थान पर है।
इस रिपोर्ट का सबसे खतरनाक पक्ष है पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का वायु में बढ़ना। यह प्रदूषण कण काफी छोटे होते हैं और फेफड़ों पर इनका बुरा असर होता है। इससे कैंसर भी हो सकता है।
वर्ल्ड एयर क्वालिटी की 2018 की रिपोर्ट जिसे आईक्यू एयर, एयर विजुअल और ग्रीनपीस ने साथ मिलकर तैयार किया था, के मुताबिक पटना की हवा में सालाना 119.7 औसत पीएम 2.5 है।
बिहार में वायु प्रदूषण
बिहार में वायु प्रदूषण मापने के लिए 11 एयर क्वालिटी इंडेक्स स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जो कि पटना (6), गया (2), मुजफ्फरपुर (2) और वैशाली (1) शहरों में हैं।
अप्रैल 2019 में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएससीबी) ने क्लिन एक्शन प्लान लागू किया था जिसका लक्ष्य था पटना, गया और मुजफ्फरपुर की हवा साफ करना। हालांकि, यह योजना कागजों पर ही सिमटती दिख रही है।
इस योजना के तहत सड़कों से उड़ने वाली धूल, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, रसोई से निकला धुआं, खुले में कचरा जलाने की वजह से निकला धुआं और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं को वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में रखा गया।
योजना के तहत 15 साल से पुरानी गाड़ियों को सड़क से दूर रखना, ई रिक्शा को बढ़ावा देना, पेड़ लगाना और सीएनजी-एलपीजी गैस का प्रयोग जैसी सुझाव दिए गए थे। योजना को 2019 से लेकर 2024 तक चलाया जाना है।
“हम 2015 से ही क्लीन एयर एक्शन प्लान लाने के लिए मुहीम चला रहे हैं, लेकिन अब योजना आने के बाद भी जमीन पर इसका असर नहीं दिख रहा है।” सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) की सीनियर प्रोगाम ऑफिसर अंकिता ज्योति कहती हैं।
पटना में ऑटो चलाने वाले 45 वर्षीय विकास पांडे ने कहा कि बिहार में अधिकतर ऑटो रिक्शा पेट्रोल या डीजल पर चल रहे हैं जबकि उन्हें सीएनजी पर चलाना शुरू करना चाहिए। सीएनजी एक सस्ता ईंधन है।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि ईंट बनाने वाले संयंत्रों की वजह से बिहार में काफी मात्रा में प्रदूषण फैलता है। बिहार में 6000 ऐसे संयंत्र हैं। “हमने ईंट संयंत्रों को चिमनी बनाने के लिए कुछ विशेष निर्देश दिए हैं जिससे प्रदूषण कम हो। उसके अलावा फ्लाइ ऐश से ईंट बनाने का काम भी तेजी से हो रहा है। बिहार में इस समय 250 फ्लाई ऐश से ईंट बनाने के संयंत्र हैं,” बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अशोक घोष कहते हैं।
निर्माण स्थल से भी वायु प्रदूषण फैलता है। इसपर अशोक घोष कहते हैं कि हम सड़को के किनारे पेड़ लगा रहे हैं ताकि धूलकण अधिक न फैले।
“हालांकि, निर्माण स्थल पर कानून का पालन कराना जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है। हम सिर्फ निगरानी रख सकते हैं,” घोष ने कहा।
खराब कचरा प्रबंधन और जलाने की वजह से खराब हो रही हवा
राजधानी पटना के 75 वार्ड्स में से सिर्फ तीन में कचरे को अलग- अलग किया जाता है। कचरा प्रबंधन पर लोगों को जागरूक करने वाली संस्थाय मिथिंगा वेस्ट मैनेजमेंट की डायरेक्टर मोनालिसा कहती हैं कि घर में ही कचरे को अलग-अलग करने की बात लोगों को समझाने में काफी दिक्कत होती है। इसके लिए घर-घर जाकर वे लोगों को इसकी जरूरत समझा रहे हैं।
अस्पतालों से निकले बायो-मेडिकल कचरे के उचित निपटारे की मांग करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता विकास चंद्रा कहते हैं कि नियम के अनुसार शहर से 70 किलोमीटर दूर बायो-मेडिकल वेस्ट को नष्ट करना होता है, लेकिन बिहार के शहरों में ऐसा नहीं हो रहा है। उन्होंने पटना हाई कोर्ट में इस सिलसिले में केस भी किया है।
बैनर तस्वीर- पटना में ठोस कचरे को खुलेआम जलाया जाता है जिससे वायु प्रदूषित होती है। फोटो- समीर वर्मा