- इंडोनेशिया के पाम ऑयल को आयात करने में भारत और चीन सबसे आगे हैं। इस तेल को निकालने के लिए जंगल काटकर ताड़ के पेड़ लगाए गए जिससे इंडोनेशिया के पापुआ प्रांत के जंगल और आदिवासी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
- इंडोनेशिया सरकार ने एक दशक पहले पापुआ प्रांत में ताड़ के पेड़ लगाकर इस प्रांत को खेती आधारित व्यापारिक केंद्र में बदलने की कोशिश की थी। आज इंडोनेशिया पाम ऑयल उत्पादन के मामले में विश्व में शीर्ष पर पहुंच गया है।
- वर्ष 2019 में इंडोनेशिया के फोटोग्राफर अल्बर्टस वेम्ब्रिएन्टो ने मोंगाबे और गेको प्रोजेक्ट के लिए तीन पापुआ प्रांत के गांवों में फोटोग्राफी की थी। इनकी तस्वीरों में इस प्रांत के आदिवासियों पर ताड़ की खेती का प्रकृति और लोगों पर असर दिखता है।
- तस्वीरों को कोरियन सेंटर फॉर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म- न्यूजटापा, 101 इस्ट, अलजजीरा का एशिया-पेसिफिक करेंट अफैयर्स प्रोग्राम के तहत गेको प्रजेक्ट और मोंगाबे में एकसाथ प्रकाशित किया गया है।
इंडोनेशिया के पापुआ का बोवेन दिगोल क्षेत्र। घने जंगलों के लिए मशहूर इस इलाके की नई पहचान पाम ऑयल से है। ताड़ के बीजों से निकाले गए तेल को पाम ऑयल कहते हैं। आजकल भारत में इसकी खपत बहुत अधिक है।
इस जंगल से होते हुए 38 वर्षीय पस्कलिना बाजार जा रही हैं। ताड़ के पेड़ों से गुजरते हुए। कुछ सालों पहले जब यहां प्राकृतिक जंगल थे तो पस्कलिना जैसी कई महिलाएं यहां साबूदाना जुटाने आया करती थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सब बदल गया।
पस्कलिना यहां के अयु (Auyu) आदिवासी समाज से वास्ता रखती हैं जो कच्चे मकानों में रहते हैं। वर्षों से यह समुदाय, आसपास के जंगल पर शिकार और साबूदाना के लिए निर्भर था। साबूदाना इन आदिवासियों का प्रमुख भोजन है।
पिछले चार वर्षों में यहां के जंगलों में बड़ा बदलाव हुआ है, जिससे पस्कलिना जैसी आदिवासी महिलाएं बेखबर थी। उनके जंगलों को ताड़ की खेती के लिए बेच दिया गया। देखते-देखते यह क्षेत्र ताड़ के जंगल में तब्दील हो गया। ताड़ के पेड़ों से पाम ऑयल निकाला जाता है। यही तेल इंडोनेशिया, भारत और चीन जैसे देशों को निर्यात करता है।
पस्कलिना की तरह इलाके के दर्जनों परिवार को जंगल बिकने का पता तब चला जब यहां के पेड़ों को काटकर ताड़ के पेड़ लगाए जाने लगे। “जंगल खत्म होने के बाद मुझे बार-बार चक्कर आता है। डॉक्टर ने विटामिन की गोलियां दी। वह कहते हैं कि मैं तनाव में हूं और मुझे इलाज की जरूरत है,” पस्कलिना कहती हैं।
बदले हुए माहौल में अब जीवनयापन के लिए पस्कलिना अपने बगीचे में उपजी चीजों को बाजार में बेचती हैं। बाजार तक जाने का रास्ता ताड़ के पेड़ों के बीच से जाता है जहां से तपती गर्मी में गुजरना मुश्किल हो जाता है। पैदल इस रास्ते को पार करने में दो घंटे का समय लगता है। “इन रास्तों पर चलते हुए मुझे अपने पूर्वजों की याद आती है और मैं अपराधबोध से भर जाती हूं। अपने पूर्वजों का जंगल न बचा पाने का मुझे मलाल है। इस बात पर कई बार रोना आता है,” वह कहती हैं।
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पाम ऑयल की मांग को पूरा करने के लिए जंगल खत्म हुए और इसका प्रभाव पर्यावरण के साथ यहां के लोगों पर भी हुआ है। इससे सबसे अधिक प्रभावित पस्कलिना जैसी कई महिलाएं हुईं हैं।
एक दूसरे गांव में 29 वर्षीय महिला एंजेला अपने पति के साथ ताड़ के पेड़ों के बीच काम करती हैं। इस काम से उन्हें घर चलाने लायक भी आमदनी नहीं हो रही है। ऐसे में एंजेला के कंधे पर खाना जुटाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी आ जाती है।
अयु समुदाय के लोग एक वक्त इस जंगल पर राज करते थे, लेकिन वे अपनी ही जमीन पर मजदूर बनकर रह गए हैं। इन जंगलों ने वर्षों से उनका पेट पाला है। अब उन्हें ताड़ उगाने वाली कंपनी से कई बार खाने के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिसे कंपनी वाले बाद में मजदूरी से काट लेते हैं। इस वजह से कई बार उन्हें महीनों काम करने के बाद भी कोई मजदूरी नहीं मिलती और खाने के लाले हो जाते हैं। यहां कुपोषण की समस्या अब आम बात हो गयी।
इन सब समस्याओं की शुरुआत जंगल खत्म होने से हुई। यहां के आदिवासियों का पेट पालने के लिए जंगल में भरपूर खाद्य सामग्री मिल जाती थी। लेकिन, अब कंपनी वाले शहरों में खाए जाने वाली चीजें यहां भी उपलब्ध कराने लगे हैं। इसके बारे में इन आदिवासियों में आम राय है कि इसमें जंगल के खाने जितना पोषण नहीं है। वे यह भी नहीं जानते कि शहर से आया खान किस चीज से बना है।
इन तस्वीरों के माध्यम से फोटोग्राफर ने पापुआ की त्रासदी दिखाई है। इन तस्वीरों में पाम ऑइल की कीमत चुकाते जंगल, लोग और महिलाएं दिखती हैं।