- बिहार में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। वर्ष 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में पटना को विश्व का छठा सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया था।
- वायु में प्रदूषक तत्वों की मात्रा कम करने के लिए बिहार में स्मॉग टावर लगाया जाना है। जानकारों का मानना है कि बिहार में प्रदूषण की समस्या का हल स्मॉग टावर नहीं है।
- बिहार में वर्ष 2019 में हवा साफ करने के लिए क्लीन एयर एक्शन प्लान बनाया गया था। इसका मकसद पटना में प्रदूषण का स्तर कम करना था। हालांकि, इस योजना में भी स्मॉग टावर लगाने की बात नहीं कही गई है।
- इससे पहले दिल्ली में भी स्मॉग टावर स्थापित किया गया था, लेकिन स्थानीय लोग इसके असर को लेकर उत्साहित नहीं हैं।
बिहार की हवा दिन-ब-दिन प्रदूषित होती जा रही है। यहां की राजधानी पटना के हालात इतने खराब हैं कि वर्ष 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट ने पटना को विश्व का छठा सबसे प्रदूषित शहर माना। प्रदूषण को कम करने की कोशिशों में सबसे ताजा कोशिश बिहार में स्मॉग टावर लगाने की हो रही है।
स्मॉग टावर यानी हवा को साफ करने वाला एक विशाल प्यूरिफायर। यह टावर वातावरण से प्रदूषित हवा को फिल्टर के माध्यम से छानकर वातावरण में साफ हवा छोड़ेगा
बिहार में स्मॉग टावर की स्थापना की बात सबसे पहले राज्य के पर्यावरण मंत्री नीरज कुमार सिंह ने कही। उन्होंने मंत्री पद संभालते ही विभाग के प्रमुख सचिव के साथ बैठक के बाद घोषणा किया कि बिहार की राजधानी पटना में साईकिल ट्रैक और स्मॉग टावर की स्थापना की जाएगी।
प्रदूषण को लेकर सरकार के इस सक्रियता के पीछे बिहार में बढ़ते प्रदूषण को माना जाना चाहिए। राज्य सरकार के सामने प्रदूषण की समस्या एक चुनौती बनती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में पटना को छठा सबसे प्रदूषित शहर घोषित किए जाने के बाद शहर के लोगों की चिंता बढ़ी।
इस वर्ष पटना का सालाना औसत पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीए 2.5) 149 माइक्रोग्राम/घनमीटर दर्ज किया गया। वर्ष 2017 में जारी ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट ने पटना को देश के शीर्ष 20 प्रदूषित शहरों में से एक माना। इस रिपोर्ट में सामने आया कि पटना में पीएम10 की मात्रा 258 से लेकर 200 माइक्रॉन प्रति घनमीटर के बीच पाई गई। इसी तरह अन्य रिपोर्ट के मुताबिक पटना के हवा में पीएम 2.5 की मात्रा वर्ष 2017 में 118.5, 2018 में 119.7 और 2019 में मात्रा 82.1 माइक्रॉन प्रति घनमीटर रही। विश्व स्वास्थ्य संगठन और नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएएक्यूएस) के द्वारा स्थापित मानकों के मुताबिक पटना का प्रदूषण स्तर बेहद खतरनाक स्थिति में है।
बिहार में राजधानी पटना के अलावा दूसरे जिलों में भी हवा की गुणवत्ता बेहद खराब है। बावजूद इसके किसी भी जिले को 2018 में लागू हुए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
क्या स्मॉग टावर है बिहार की समस्या का समाधान
“स्मॉग टावर लगाकर प्रदूषण कम करना ऐसा ही हुआ जैसा आप बाथरूम में नल खुला छोड़ दें और उससे निकले पानी को बार-बार हटाते रहें। जबकि पानी को रोकना है तो सीधे नल को बंद किया जाना चाहिए,” यह कहना है अर्थ डे नेटवर्क के क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम के डायरेक्टर अजय मित्तल का। वह इस उदाहरण से समझाना चाह रहे हैं कि वायु प्रदूषण को रोकना है तो उसके स्रोत पर ध्यान देना होगा।
“स्मॉग टावर लगाना एक बेहद खराब उपाय है। बजाए इसके सरकार को दूसरे उपायों पर ध्यान देना चाहिए ताकि प्रदूषण कम हो,” वह कहते हैं। मित्तल सुझाते हैं कि राज्य में प्रदूषण की निगरानी के लिए और अधिक केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए। इससे राज्य में प्रदूषण की समस्या का ठीक अंदाजा लग सकेगा।
वर्ष 2019 में बिहार की कई सामाजिक संस्थाओं ने सरकार के साथ मिलकर पटना की हवा साफ करने की एक योजना “क्लीन एयर एक्शन प्लान” बनाई। इस योजना के मुताबिक वर्ष 2030 तक पटना में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत घरेलु ईंधन (19%), फैक्ट्री (12%), खुले में कचरा जलाना (11%), धूल (11%), डीजल जेनरेटर (4%) और अन्य (23%) रहने का अनुमान है।
इस योजना में सुझाव दिया गया है कि ऑटो को सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों से बदलकर, ईंट बनाने के लिए नई तकनीक लाकर, कचरे को जलाने के बजाए इससे खाद बनाने जैसे उपायों से प्रदूषण कम किया जा सकता है। हालांकि, इस योजना में कहीं भी स्मॉग टावर लगाने की बात नहीं कही गई है।
कितना कारगर रहा दिल्ली का स्मॉग टावर
दिल्ली में पिछले वर्ष स्मॉग टावर की स्थापना हुई है। करीब 24 फीट लंबा यह टावर लाजपत नगर में लगा हुआ है। आसपास रहने वाले लोग इस टावर की सफलता पर संदेह व्यक्त करते हैं। “हमारे पास इस इलाके में स्मॉग टावर लगने के बाद प्रदूषण का आंकड़ा नहीं है। अब तक प्रशासन ने ऐसा कोई आंकड़ा पेश नहीं किया है जिससे पता चले कि प्रदूषण कम हुआ है। हमने अपने स्तर पर पता किया तो पता चला कि यहां की हवा अब भी पहले जैसी ही है,” कहते हैं लाजपत नगर निवासी मनु सोधी। एक रिपोर्ट के मुताबिक लाजपत नगर स्थित लगा स्मॉग टावर महज 750 मीटर के घेरे में स्थित हवा को ही साफ रख सकता है।
नवंबर 2019 में केंद्रीय पर्यावरण सचिव ने खुद ही स्मॉग टावर की सफलता पर संदेह जाहिर किया। इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को स्मॉग टावर को लेकर एक विशेषज्ञों का समूह बनाकर इसकी हवा साफ करने की क्षमता पता लगाने के निर्देश दिए।
चीन स्थित जियान में एक स्मॉग टावर संचालित है। हालांकि, वहां भी इसकी सफलता को लेकर कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2019 में स्वीकार किया कि जियान स्थित स्मॉग टावर के असर को लेकर कोई शोध उपलब्ध नहीं है। सरकार ने माना कि स्मॉग टावर को लेकर कोई तकनीकी साक्ष्य भी मौजूद नहीं जो कहे कि यह कारगर है।
सरकारों को क्यों आकर्षित करता स्मॉग टावर लगाने का विचार
बीते कुछ वर्षों से हवा की खराब गुणवत्ता चुनाव में भी मुद्दा बनने लगी है। कम से कम यह बात राजनीतिक दलों के चुनावी वादों में तो जरूर शामिल होने लगी है। जानकारों का मानना है कि वायु प्रदूषण को लेकर सरकार कुछ काम होता हुआ दिखाना चाहती है, इसलिए इसे कम करने को लेकर स्मॉग टावर लगाने जैसे कदम उठा रही है। हालांकि, प्रदूषण फैलाने वालों को रोकने के लिए सरकार की तरफ से कोई ठोस निर्णय होता नहीं दिखता।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वर्ष 2015 में एक कानून बनाया जिसमें थर्मल बिजली परियोजनाओं को धुआं कम करने का प्रावधान था। इसके लिए संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) लगाने के निर्देश दिए, ताकि धुएं में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा कम की जा सके। हालांकि, इस निर्देश को जमीन पर लागू नहीं किया जा सका है।
“बिहार के भीतर कोयले से चलने वाले कई संयंत्र हैं जिससे भारी मात्रा में प्रदूषण फैलता है। स्रोत पर ही प्रदूषण कम कर शहर की हवा साफ रखी जा सकती है,” पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था वातावरण के भगवान केसवट ने कहा। उन्होंने कहा कि स्मॉग टावर के बजाए सरकार को प्रदूषण की निगरानी के लिए और अधिक केंद्र स्थापित करने चाहिए, ताकि प्रदूषण का आंकड़ा मिल सके। पर्यावरण विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि एक स्मॉग टावर को लगाने में एक से 1.2 करोड़ रुपए का खर्च आ सकता है। “सरकार पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही है, ऐसे में यह एक फिजूल खर्ची होगी। सरकार ने वर्ष 2021 के बजट में एनसीएपी के लिए मिलने वाले बजट में कटौती की है। पहले यह 460 करोड़ रुपए था जो कि अब मात्र 260 करोड़ रह गया है,” उन्होंने कहा।
इस तरह पटना शहर को मात्रा 10 करोड़ प्रतिवर्ष मिलता था, जो कि अब और भी कम हो जाएगा। इस संबंध में पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन वह बात करने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
बैनर तस्वीरः पटना की एक व्यस्त सड़क। शहर में प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों में यातायात के साधन भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। तस्वीर– यूजीन किम/फ्लिकर