- बायोफ्यूल बनाने के लिए पहले छत्तीसगढ़ में जेट्रोफा का उपयोग होना था। हालांकि, इसके बीजों की कमी की वजह से यह योजना धरातल पर कामयाब नहीं हो सकी। अब राज्य सरकार धान से बायोफ्यूल बनाने की योजना पर काम कर रही है।
- इसको लेकर राज्य ने नौ निजी और दो सरकारी कंपनियों के साथ करार किया है। ये कंपनियां इस काम को आगे बढ़ाएंगी। सरकारी कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड शामिल हैं।
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जोर देकर कहा है कि धान से बायोफ्यूल बनाने के कई फायदे हैं।
छत्तीसगढ़ में धान से बायोफ्यूल बनाने की तरकीब पर काम हो रहा है। इससे पहले सरकार बायोफ्यूल के एक प्रयोग में असफल हो चुकी है। प्रयोग था जेट्रोफा से बायोडीजल बनाने का। जेट्रोफा के बीज की कमी की वजह से यह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई। छत्तीसगढ़ ने अब धान के साथ यह प्रयोग करना शुरू किया है। राज्य में धान का उत्पादन देखते हुए इसे धान का कटोरा कहा जाता है।
अब इस नई पहल पर राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि जेट्रोफा की खेती तो की गई, लेकिन उचित प्रबंधन न होने की वजह से इसका अपेक्षित उत्पादन नहीं हो पाया। अब धान को लेकर यह प्रयोग किया जाएगा।
“हम किसानों से धान खरीदते हैं। जहां भी बायोफ्यूल बनाने का संयंत्र होगा वहां किसान अपनी फसल पहुंचाएंगे। इसमें किसी तरह का ढुलाई का खर्चा नहीं आएगा। गन्ना और मक्का से बायोफ्यूल बनाने की अनुमति हमारे पास पहले से ही है, लेकिन इन फसलों का उत्पादन कम है,” मुख्यमंत्री बघेल ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) के प्रबंध निदेशक अरुण प्रसाद का कहना है कि राज्य सरकार ने नौ निजी कंपनी और दो सरकारी कंपनी के साथ समझौता किया है। इन कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिडेट शामिल है। कंपनियां संयंत्र लगाने के लिए धान उत्पादन वाले इलाके में जमीन तलाश रही हैं।
प्रसाद ने जोर देकर कहा कि ये कंपनियां छत्तीसगढ़ में निवेश करना चाहती है जिसकी बड़ी वजह यहां कच्चे माल यानी धान की प्रचूर मात्रा में उपलब्धता है।
भारत सरकार के क्लीन एनर्जी यानी स्वच्छ ऊर्जा की योजना में बायोफ्यूल एक अहम हिस्सा है। विश्व में कच्चा तेल आयात करने के मामले में भारत का स्थान तीसरा है। अपनी घरेलू जरूरत पूरी करने के लिए भारत आयात पर निर्भर है। वर्ष 2018 में नेशनल पॉलिसी ऑन बायोफ्यूल्स के तहत 2030 तक जीवाश्म ईंधन में 20 फीसदी बायोफ्यूल मिलाने का लक्ष्य है। फिलहाल देश में 5 से 6 फीसदी बायोफ्यूल ही जीवाश्म ईंधन में मिलाया जाता है। हालांकि बीते जून में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि तेल कंपनियां 2023 के अप्रैल से ही 20 फीसदी एथानॉल के साथ पेट्रोल बेचना शुरू करेंगी।
छत्तीसगढ़ में खाने लायक धान को ईंधन में बदलने की जिस योजना पर काम हो रहा है उसपर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। एक बड़ा सवाल खाद्य सुरक्षा का है। क्या इस योजना से देश की खाद्य सुरक्षा पर कोई असर होगा?
बायोफ्लूयल को अगेव के पौधे से भी बनाया जाता है। इसे रामबांस के नाम से भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ का वन विभाग बस्तर क्षेत्र में इस पौधे की खेती को बढ़ावा दे रहा है। यहां इसका इस्तेमाल रस्सी और हस्तशिल्प बनाने में होता है।
प्रसाद ने योजना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की धान खरीदी की एक क्षमता है और अतिरिक्त धान किसान के पास ही रह जाता है। एफसीआई की खरीदी भी अंदरुनी इलाके तक नहीं है। “इन वजहों से राज्य सरकार विचार कर रही है कि आखिर बचे हुए धान का क्या किया जाए? धान का इस्तेमाल बायोफ्लूल बनाने में हो तो इससे न सिर्फ जीवाश्म ईंधन से निर्भरता कम होगी बल्कि किसानों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य देना सुनिश्चित हो पाएगा” प्रसाद कहते हैं।
बघेल ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में कहा कि एफसीआई राज्य से धान की पूरी पैदावार नहीं लेती जिससे राज्य में धान बच जाता है। इस धान से बायोफ्यूल बनाया जा सकता है और इसी वजह से हमें इसकी अनुमति चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार सिर्फ एफसीआई के धान से ही बायोफ्यूल बनाने की अनुमति देती है।
प्रसाद के मुताबिक छत्तीसगढ़ ने बायो इथेनॉल को राज्य के औद्योगिक नीति के तहत मान्यता दी है लेकिन धान से बायोफ्यूल बनाने की योजना को केंद्र सरकार के अमुमति की जरूरत है।
बघेल कहते हैं कि बस्तर इलाका धान से बायोफ्यूल बनाने का संयंत्र लगाने के लिए मुफीद है। बायोफ्यूल का निर्माण किसी भी तरह के कार्बोहाइड्रेट वाले पदार्थ से किया जा सकता है और इसके लिए कच्चा माल की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित करना जरूरी है।
क्या छत्तीसगढ़ के पास धान की कमी है?
वर्ष 2020-21 में छत्तीसगढ़ ने 9.2 मिलियन मीट्रिक टन (92 लाख मीट्रिक टन) धान की रिकॉर्ड खरीदी की है।
छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल डेवलपमेंट ऑथोरिटी के सीईओ सुमित सरकार के मुताबिक छत्तीसगढ़ की नीति राष्ट्रीय बायोफ्यूल नीति 2018 से प्रभावित है जहां इस बात का जिक्र है कि अतिरिक्त खाद्यान्न उत्पादन से इथेनॉल का निर्माण किया जा सकता है।
“राज्य में हर साल धान की बंपर फसल होती है और यह आंकड़ा 6,00,000 मीट्रिक टन से एक करोड़ मीट्रिक टन को छूता है। बंपर उत्पादन के परिणामस्वरूप टनो धान राज्य के पास ही रह जाते हैं। इसी वजह से राज्य ने केंद्र सरकार से धान से बायोफ्यूल बनाने की अनुमति मांगी है। इस सिलसिले में कई बैठके हो चुकी हैं,” सरकार का कहना है।
छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) के महाप्रबंधक ओपी बंजारे कहते हैं कि केंद्र सरकार ने एफसीआई के धान से बायोफ्यूल बनाने की अनुमति दी हुई है। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के धान को भी इस काम में लाने की अनुमति मांगी है। प्रधानमंत्री ने इस साल पांच जून को इथेनॉल ब्लेंडिंग यानी जीवाश्म ईंधन में बायोफ्यूल मिलाने की नीति जारी की। इसके बाद इस अभियान में तेजी आई।
“इस काम के लिए संयंत्रों को कच्चा माल की आपूर्ति का दायरा बढ़ाना होगा। इसमें धान को भी शामिल किया जा सकता है। इसे देखते हुए राज्य ने केंद्र स अनुमति मांगी है। लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक हरी झंडी नहीं दी है,” सरकार ने कहा।
सरकार ने समझाया कि मिल में धान से चावल निकालने के बाद इसे बायोफ्यूल बनाने के लिए भेजा जा सकता है। इसके भूसे से भी स्वच्छ ऊर्जा बनाया जा सकता है जिसका उपयोग बॉयलर और ऊर्जा उत्पादन में हो सकता है।
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धान से बायोफ्यूल बनाने के लिए निवेशक हैं तैयार
सरकार के साथ सात निजी निवेशकों ने समझौता किया है जिसके तहत 100 किलोलीटर प्रतिदिन (केएलपीडी) उत्पादन की क्षमता से उत्पादन किया जा सकेगा। अनुमान के मुताबिक एक मीट्रिक टन धान से 45 लीटर बायोफ्यूल इथेनॉल के रूप में उत्पादित किया जा सकता है।
इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन धान से बायोफ्यूल बनाने के लिए 500 केएलपीडी क्षमता का संयंत्र स्थापित कर रही है। राज्य के निवेशकों में शामिल श्री बजरंग केमिकल डिस्टिलरी लिमिडेट के प्रेसिडेंट एसके गोयल ने बेमेतरा जिले में ऐसा संयंत्र लगाने के लिए राज्य सरकार से करार किया है।
रायपुर निवासी पूर्व सरकारी वैज्ञानिक और खाद बनाने वाली आकाश लैबोरेटरीज से जुड़े अशोक मिश्रा बताते हैं कि जेट्रोफा के फेल होने के पीछे वजह थी उसके भीतर बायोमास का कम होना। “यह कोई फसल नहीं बल्कि बाड़ पर लगाने वाला पौधा बनकर रह गया। इसकी मात्रा इतनी कम थी कि प्रयोग सफल न हो सका। अभी भी जेट्रोफा का उपयोग इथेनॉल बनाने में किया जा सकता है,” वह कहते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में धान की उपलब्धता है इसलिए इस प्रयोग के सफल होने की पूरी संभावना है।
खाद्य नीति के विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से मुद्दे की तरफ ध्यान दिलाया। वह कहते हैं कि सबसे बड़ी चिंता खाद्या सुरक्षा की होनी चाहिए। नीति निर्धारक धान से इथेनॉल बनाने की ओर सोच रहे हैं, इसका मतलब भूख खत्म करना अभी भी उनकी प्राथमिकता में नीचे है।
“भारत अभी भी भूख की समस्या से जूझ रहा है। यहां विश्व में सबसे अधिक परिवार भूख के शिकार हैं। अगर हम तब भी खाद्यान्न से बायोफ्यूल बनाने का निर्णय लेते हैं तो यह किस तरह की विविधता होगी? यह नीतिगत स्तर पर सही निर्णय नहीं होगा,” उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी से कहा।
बैनर तस्वीरः धान के खेत की प्रतीकात्मक तस्वीर। छत्तीसगढ़ को धान के बंपर उत्पादन को लेकर चावल का कटोरा नाम से जाना जाता है। तस्वीर– डब्लूबीके फोटोग्राफी/फ्लिकर